समय समय पर हमें छोटी कक्षाओं में या बड़ी प्रतियोगी परीक्षाओं में निबंध लिखने को दिए जाते हैं। निबंध हमारे जीवन के विचारों एवं क्रियाकलापों से जुड़े होते है। आज hindiamrit.com आपको निबंध की श्रृंखला में छात्र और अनुशासन पर निबंध हिंदी में | विद्यार्थी जीवन और अनुशासन पर निबंध | विद्यालय में अनुशासन का महत्व पर निबंध प्रस्तुत करता है।
Contents
छात्र और अनुशासन पर निबंध हिंदी में | विद्यार्थी जीवन और अनुशासन पर निबंध | विद्यालय में अनुशासन का महत्व पर निबंध
इस निबंध के अन्य शीर्षक / नाम
(1) अनुशासन का महत्व पर निबंध
(2) विद्यार्थी जीवन में अनुशासन का महत्व पर निबंध
(3) विद्यार्थी जीवन में अनुशासन की आवश्यकता पर निबंध
(4) विद्यालय में अनुशासन की आवश्यकता पर निबंध
(5) essay on importance of discipline in student life in hindi
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छात्र और अनुशासन पर निबंध हिंदी में | विद्यार्थी जीवन और अनुशासन पर निबंध | विद्यालय में अनुशासन का महत्व पर निबंध
पहले जान लेते है छात्र और अनुशासन पर निबंध हिंदी में | विद्यार्थी जीवन और अनुशासन पर निबंध | विद्यालय में अनुशासन का महत्व पर निबंध की रूपरेखा ।
निबंध की रूपरेखा
(1) प्रस्तावना
(2) विद्यार्थी और विद्या
(3) अनुशासन का स्वरूप और महत्व
(4) अनुशासनहीनता के कारण
(क) परिवारिक कारण (ख) सामाजिक कारण
(ग) राजनीतिक कारण (घ) शैक्षिक कारण
(5) अनुशासनहीनता के निवारण के उपाय
(6) उपसंहार
छात्र और अनुशासन पर निबंध हिंदी में | विद्यार्थी जीवन और अनुशासन पर निबंध | विद्यालय में अनुशासन का महत्व पर निबंध
प्रस्तावना
विद्यार्थी देश का भविष्य हैं। देश के प्रत्येक प्रकार का विकास विद्यार्थियों पर ही निर्भर है। विद्यार्थी जाति, समाज और देश का निर्माता होता है, अत: विद्यार्थी का चरित्र उत्तम होना बहुत आवश्यक है।
उत्तम चरित्र अनुशासन से हा बनता है। अनुशासन जीवन का प्रमुख अंग और विद्यार्थी-जीवन की आधारशिला है। व्यवस्थित जीवन व्यतीत करने के लिए मात्र विद्यार्थी ही नहीं प्रत्येक मनुष्य के लिए अनुशासित होना अति आवश्यक है।
अनुशासनहीन विद्यार्थी व्यवस्थित नहीं रह सकता और न ही उत्तम शिक्षा ग्रहण कर सकता है। आज विद्यार्थियों में अनुशासनहीनता की शिकायत सामान्य-सी बात हो गयी है।
इससे शिक्षा-जगत् ही नहीं, अपितु सारा समाज प्रभावित हुआ है और निरन्तर होता ही जा रहा है। अतः इस समस्या के सभी पक्षों पर विचार करना उचित होगा।
विद्यार्थी और विद्या
विद्यार्थी’ का अर्थ है- विद्या का अर्थी’ अर्थात् विद्या प्राप्त करने की कामना करने वाला।
विद्या लौकिक या सांसारिक जीवन की सफलता का मूल आधार है, जो गुरुकृपा से प्राप्त होती है। इससे विद्यार्थी-जीवन के महत्त्व का भी पता चलता है, क्योंकि यही वह समय है, जब मनुष्य अपने समस्त भावी जीवन की सफलता की आधारशिला रखता है।
यदि यह काल व्यर्थ चला जाये तो सारा जीवन नष्ट हो जाता है। संसार में विद्या सर्वाधिक मूल्यवान् वस्तु है, जिस पर मनुष्य के भावी जीवन का सम्पूर्ण विकास तथा सम्पूर्ण उन्नति निर्भर करती है।
इसी कारण महाकवि भर्तृहरि विद्या की प्रशंसा करते हुए कहते हैं- “विद्या ही मनुष्य का श्रेष्ठ स्वरूप है, विद्या भली-भाँति छिपाया हुआ धन है (जिसे दूसरा चुरा नहीं सकता)।
विद्या ही सांसारिक भोगों को, यश और सुख को देने वाली है, विद्या गुरुओं की भी गुरु है।
विदेश जाने पर विद्या ही बन्धु के सदृश सहायता करती है। विद्या ही श्रेष्ठ देवता है । राजदरबार में विद्या ही आदर दिलाती है, धन नहीं; अत: जिसमें विद्या नहीं, वह निरा पशु है।”
फलत: इस अमूल्य विद्यारूपी रत्न को पाने के लिए इसका मूल्य भी उतना ही चुकाना पड़ता है और वह है तपस्या।
इस तपस्या का स्वरूप स्पष्ट करते हुए कवि कहता है-
सुखार्थिनः कुतो विद्या, कुतो विद्यार्थिनः सुखम्।
सुखार्थी वा त्यजेद् विद्यां, विद्यार्थी वा त्यजेत् सुखम्।।
यह है कि सुख की इच्छा वाले को विद्या कहाँ और विद्या की इच्छा वाले को सख कहाँ? सुख की इच्छा वाले को विद्या को कामना छोड़ देनी चाहिए या फिर विद्या की इच्छा वाले को सख की कामना छोड़ देनी चाहिए।
अनुशासन का स्वरूप और महत्त्व
अनुशासन’ का अर्थ है बड़ों की आज्ञा (शासन) के पीछे (अनु) चलना। जिन गुरुओ की कृपा से विद्यारूपी रत्न प्राप्त होता है, उनके आदेशानुसार कार्य किये बिना विद्यार्थी की उद्देश्य-सिद्धि भला कैसे हो सकती है?
अनुशासन’ का अर्थ वह मर्यादा है जिसका पालन ही विद्या प्राप्त करने और उसका उपयोग करने के लिए अनिवार्य होता है।
अनुशासन का भाव सहज रूप से विकसित किया जाना चाहिए। थोपा हुआ अथवा बलपूर्वक पालन कराये जाने पर यह लगभग अपना उद्देश्य खो देता है।
विद्यार्थियों के प्रति प्रायः सभी को यह शिकायत रहती है कि वे अनुशासनहीन होते जा रहे हैं, किन्तु शिक्षक वर्ग को भी इसका कारण ढूँढ़ना चाहिए कि क्यों विद्यार्थियों की उनमें श्रद्धा विलुप्त होती जा रही है।
अनुशासन का विद्याध्ययन से अनिवार्य सम्बन्ध है। वस्तुतः जो महत्त्व शरीर में व्यवस्थित रुधिर-संचार का है, वही विद्यार्थी के जीवन में अनुशासन का है। अनुशासनहीन विद्यार्थियों को पग-पग पर ठोकर और फटकार सहनी पड़ती है।
अनुशासनहीनता के कारण
वस्तुतः विद्यार्थियों में अनुशासनहीनता एक दिन में पैदा नहीं हुई है इसके अनेक कारण हैं, जिन्हें मुख्यत: निम्नलिखित चार वग्गों में बाँटा जा सकता है-
(क) पारिवारिक कारण
बालक की पहली पाठशाला उसका परिवार है। माता-पिता के आचरण का बालक पर गहरा प्रभाव पड़ता है।
आज बहुत-से ऐसे परिवार हैं, जिनमें माता-पिता दोनों नौकरी करते हैं या अलग-अलग व्यस्त रहते हैं और अपने बच्चों की ओर ध्यान देने हेतु उन्हें अवकाश नहीं मिलता।
इससे बालक उपेक्षित होकर विद्रोही बन जाता है। दूसरी ओर अधिक लाड़-प्यार से भी बच्चा बिगड़कर निरंकुश या स्वेच्छाचारी हो जाता है।
कई बार पति-पत्नी के बीच कलह या पारिवारिक अशान्ति भी बच्चे के मन पर बहुत बुरा प्रभाव डालती है और उसका मन अध्ययन-मनन से विरक्त हो जाता है।
इसी प्रकार बालक को विद्यालय में प्रविष्ट कराकर अभिभावकों का निश्चिन्त हो जाना, उसकी प्रगति या विद्यालय में उसके आचरण की खोज-खबर न लेना भी बहुत घातक सिद्ध होता है।
(ख) सामाजिक कारण
विद्यार्थी जब समाज में चतुर्दिक् व्याप्त भ्रष्टाचार, घूसखोरी, सिफारिशवाजी, भाई-भतीजाबाद,चीजों में मिलावट, फैशनपरस्ती. विलासिता और भोगवाद, अर्थात् प्रत्येक स्तर पर व्याप्त अनैतिकता को देखता है तो उसकाभावुक मन क्षुब्ध हो उठता है. वह विद्रोह कर उठता है और अध्ययम की उपेक्षा करने लगता है।
(ग) राजनीतिक कारण-छात्र
अनुशासनहीनता का एक बहुत बड़ा कारण राजनीति है। आज राजनीति जीवन के प्रत्येक क्षेत्र पर छा गयी है।
सम्पूर्ण वातावरण को उसने इतना विषाक्त कर दिया है कि स्वस्थ वातावरण में साँस लेना कठिन हो गया है।
नेता लोग अपने दलीय स्वारथों की पूर्ति के लिए विद्यार्थियों को नौकरी आदि के प्रलोभन देकर पथभ्रष्ट करते हैं, छात्र-यूनियनों के चुनाव में विभिन्न राजनीतिक दल पैसा खर्च करते हैं तथा विद्यार्थियों को प्रदर्शन और तोड़-फोड़ के लिए उकसाते हैं।
विद्यालयों में हो रहे इस राजनीतिक हस्तक्षेप ने अनुशासनहीनता की समस्या को और भी बढ़ा दिया है ।
(घ) शैक्षिक कारण
छात्र-अनुशासनहीनता का कदाचित् सबसे बड़ा कारण यही है। अध्ययन के लिए आवश्यक अध्ययन-सामग्री, भवन, सुविधाजनक छात्रावास एवं अन्यान्य सुविधाओं का अभाव, सिफारिश, भाई-भतीजावाद या घूसखोरी आदि कारणों से योग्य, कर्त्तव्य-परायण एवं चरित्रवान् शिक्षकों के स्थान पर अयोग्य, अनैतिक और भ्रष्ट अध्यापकों की नियुक्ति, अध्यापकों द्वारा छात्रों की कठिनाइयों की उपेक्षा करके ट्यूशन आदि के चक्कर में लगे रहना या आरामतलबी के कारण मनमाने ढंग से कक्षाएँ लेना या न लेना, छात्र और अध्यापकों की संख्या में बहुत बड़ा अन्तर होना, जिससे दोनों में आत्मीयता का सम्बन्ध स्थापित न हो पाना; परीक्षा-प्रणाली का दूषित होना, जिससे विद्यार्थी की योग्यता का सही मूल्यांकन नहीं हो पाना आदि छात्र-अनुशासनहीनता के प्रमुख कारण हैं।
परिणामस्वरूप अयोग्य विद्यार्थी योग्य विद्यार्थी पर वरीयता प्राप्त कर लेते हैं। फलतः योग्य विद्यार्थी आक्रोशवश अनुशासनहीनता में लिप्त हो जाते हैं।
निवारण के उपाय
यदि शिक्षकों को नियुक्त करते समय सत्यता, योग्यता और ईमानदारी का आकलन अच्छी प्रकार कर लिया जाये तो प्राय: यह समस्या उत्पन्न ही न हो।
प्रभावशाली, गरिमामण्डित, विद्वान् और प्रसन्नचित शिक्षक के सम्मुख विद्यार्थी सदैव अनुशासनबद्ध रहते हैं, क्योंकि वह उस शिक्षक के हृदय में अपना स्थान एक अच्छे विद्यार्थी के रूप में बनाना चाहते हैं।
पाठ्यक्रम को अत्यन्त सुव्यवस्थित व सुनियोजित, रोचक, ज्ञानवर्धक एवं विद्यार्थियों के मानसिक स्तर के अनुरूप होना चाहिए।
पाठ्यक्रम में आज भी पर्याप्त असंगतियाँ विद्यमान हैं, जिनका संशोधन अनिवार्य है;
उदाहरणार्थ-
इण्टरमीडिएट हिन्दी काव्यांजलि की कविताएँ ही बी० ए० द्वितीय वर्ष के हिन्दी पाठ्यक्रम में भी हैं। क्या कवियों का इतना अभाव है कि एक ही रचना वर्षों तक पढ़ने को विवश किया जाये।
छात्र-अनुशासनहीनता के उपर्युक्त कारणों को दूर करके ही हम इस समस्या का समाधान कर सकते हैं।
सबसे पहले वर्तमान पुस्तकीय शिक्षा को हटाकर प्रत्येक स्तर पर उसे इतना व्यावहारिक बनाया जाना चाहिए कि शिक्षा पूरी करके विद्यार्थी अपनी आजीविका के विषय में पूर्णतः निश्चिन्त हो सके।
शिक्षा का माध्यम अंग्रेजी के स्थान पर मातृभाषा हो। ऐसे योग्य, चरित्रवान् और कर्त्तव्यनिष्ठ अध्यापकों की नियुक्ति हो, जो विद्यार्थी की शिक्षा पर समुचित ध्यान दें।
विद्यालय या विश्वविद्यालय प्रशासन विद्यार्थियों की समस्याओं पर पूरा ध्यान दें तथा विद्यालयों में अध्ययन के लिए आवश्यक सुविधाएँ उपलब्ध करायी जायें।
विद्यालयों में प्रवेश देते समय गलत त्त्वों को कदापि प्रवेश न दिया जाये। किसी कक्षा में विद्यार्थियों की संख्या लगभग 50-55 से अधिक न हो।
शिक्षा सस्ती की जाये और निर्धन, किन्तु योग्य छात्रों को नि:शुल्क उपलब्ध करायी जाये। परीक्षा-प्रणाली स्वच्छ हो, जिससे योग्यता का सही और निष्पक्ष मूल्यांकन हो सके।
इसके साथ ही राजनीतिक हस्तक्षेप बन्द हो, सामाजिक भ्रष्टाचार मिटाया जाये, सिनेमा और दूरदर्शन पर देशभक्ति की भावना जगाने वाले चित्र प्रदर्शित किये जाएँ तथा माता-पिता बालकों पर समुचित ध्यान दें और उनका आचरण ठीक रखने के लिए अपने आचरण पर भी दृष्टि रखें ।
उपसंहार
छात्रों के समस्त असन्तोषों का जनक अन्याय है, इसलिए जीवन के प्रत्येक क्षेत्र से अन्याय को मिटाकर ही देश में सच्ची सुख-शान्ति लायी जा सकती है।
छात्र अनुशासनहीनता का मूल भ्रष्ट राजनीति, समाज, परिवार और दूषित शिक्षा-प्रणाली में निहित है।
इनमें सुधार लाकर ही हम विद्यार्थियों में व्याप्त अनुशासनहीनता की समस्या का स्थायी समाधान ढूढ़ सकता है; क्योंकि विद्यार्थी विद्यालय में पूर्णतः विद्यार्जन के लिए ही आते हैं, मात्र हुल्लड़बाजी के लिए नहीं।
दोस्तों हमें आशा है की आपको यह निबंध अत्यधिक पसन्द आया होगा। हमें कमेंट करके जरूर बताइयेगा आपको छात्र और अनुशासन पर निबंध हिंदी में | विद्यार्थी जीवन और अनुशासन पर निबंध | विद्यालय में अनुशासन का महत्व पर निबंध कैसा लगा ।
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