शैक्षिक प्रशासन का अर्थ एवं परिभाषाएं / शैक्षिक आयोजन के प्रकार

बीटीसी एवं सुपरटेट की परीक्षा में शामिल शिक्षण कौशल के विषय शैक्षिक प्रबंधन एवं प्रशासन में सम्मिलित चैप्टर शैक्षिक प्रशासन का अर्थ एवं परिभाषाएं / शैक्षिक आयोजन के प्रकार आज हमारी वेबसाइट hindiamrit.com का टॉपिक हैं।

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शैक्षिक प्रशासन का अर्थ एवं परिभाषाएं / शैक्षिक आयोजन के प्रकार

शैक्षिक प्रशासन का अर्थ एवं परिभाषाएं / शैक्षिक आयोजन के प्रकार
शैक्षिक प्रशासन का अर्थ एवं परिभाषाएं / शैक्षिक आयोजन के प्रकार


(Educational Administration) शैक्षिक प्रशासन का अर्थ एवं परिभाषाएं / शैक्षिक आयोजन के प्रकार

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शैक्षिक प्रशासन की अवधारणा
Concept of Educational Administration

शिक्षक का कार्य केवल ज्ञान प्रदान करना ही नहीं है, अपितु उससे यह अपेक्षा की जाती है कि वह छात्रों में अपेक्षित विचारों, आवश्यक कौशर्लो, क्षमताओं तथा नैतिक मूल्यों का विकास करे। साथ ही उनमें प्रजातान्त्रिक मौलिक तत्त्वों के प्रति विश्वास भी उत्पन्न करे। वर्तमान समय में अध्ययन, अध्यापन तथा शोधन को जीवन की एक पुण्य यात्रा माना जा रहा है जिसके लिये विद्यालय द्वारा समुचित वातावरण उत्पन्न करना आवश्यक है। इस प्रकार विद्यालय का कार्य विस्तृत हो रहा है। इसी कारण आज विद्यालय को समाज की आवश्यकताओं के अनुरूप विकसित करने के लिये अभिभावकों तथा सभी सामाजिक वर्गों का सहयोग आवश्यक हो गया है जिससे सभी को शिक्षा प्राप्त करने के पर्याप्त अवसर प्रदान किये जा सकें। जनतन्त्र में सभी के विचारों का आदर तथा सम्मान किया जाता है। अत: जनतन्त्र में जनशिक्षा की समुचित व्यवस्था करना ही आधुनिक युग की सबसे बड़ी उपलब्धि है।

वास्तव में आज संसार के सभी विकसित, विकासशील तथा अर्द्धविकसित अपनी सुरक्षा के बाद शिक्षा पर सर्वाधिक व्यय करने में संलग्न हैं। वर्तमान समय में सामाजिक परिवर्तन का आधार शिक्षा ही है। शिक्षा सभ्यता तथा संस्कृति का मूलाधार होती है। इसलिये शिक्षा राष्ट्र की बहुमूल्य निधि तथा श्रेष्ठतम् राष्ट्रीय प्रतिष्ठान मानी जा रही है। साथ ही किसी भी राष्ट्र का बहुमुखी विकास भी उत्तम शिक्षा पर ही निर्भर होता है। अत: शिक्षा ही राष्ट्र की प्रगति की निधि है। उत्तम शिक्षा का आधार समुचित शैक्षिक संगठन और प्रशासन में निहित होता है तथा शैक्षिक प्रशासन सामाजिक परिवर्तन का एक उत्तम साधन है। इस प्रकार जनशिक्षा के लक्ष्यों की प्राप्ति हेतु समुचित शैक्षिक व्यवस्था (प्रशासन) की सुव्यवस्था अति आवश्यक है और संगठन एवं प्रशासन के माध्यम से ही शिक्षा जगत् से शैक्षिक असमानताओं का निराकरण सम्भव है।

जनशिक्षा के लक्ष्यों को पूर्ण करने हेतु सामूहिक प्रयास आवश्यक हैं। यह उत्तम एवं स्वच्छ शैक्षिक प्रशासन पर निर्भर करता है। इसी प्रकार शिक्षा के अन्तर्गत शैक्षिक प्रशासन के माध्यम से शिक्षण संस्थाओं को कार्यरत किया जाता है। उन्हें गतिशील तथा विकासशील बनाने के लिये शैक्षिक प्रशासन की समुचित सुव्यवस्था किया जाना परम आवश्यक है।

शैक्षिक प्रशासन का अर्थ
Meaning of Educational Administration

‘प्रशासन’ अंग्रेजी भाषा के एडमिनिस्टर (Administer) शब्द का हिन्दी रूपान्तर है। यह लैटिन भाषा के एड + मिनिस्टर (Ad + Minister) दो शब्दों से मिलकर बना है जिसका अर्थ है कार्य कराना या सेवा करना और देखभाल करना तथा व्यवस्था करना आदि। फलत: यह शब्द जनता के कार्यों को करने एवं देखभाल करने से जुड़ा है। प्रशासन में शासन तथा सेवा दोनों का ही समावेश होता है। इस प्रकार प्रशासन एक सेवा तथा सहयोगी कार्य कहा जाता है। शिक्षा प्रशासन पूर्णतया शिक्षा से सम्बन्धित है। शिक्षा का क्षेत्र अत्यन्त व्यापक है, अत: शिक्षा प्रशासन का भी क्षेत्र अत्यन्त विस्तृत है। सामान्यतःप्रशासन का अर्थ-व्यवस्था (Management) से लगाया जाता है।

व्यवस्था वह साधन है, जिसके द्वारा किसी संगठन या संस्था का संचालन सुचारु रूप से किया जाता है। इस प्रकार प्रशासन का सम्बन्ध किसी भी संस्था या संगठन के अन्तर्गत प्रत्यक्ष या अप्रत्यक्ष रूप से काम करने वाले व्यक्तियों तथा उनकी क्रियाओं के समन्वय से रहता है। शिक्षा प्रशासन की प्रक्रिया द्वारा कार्यकर्ताओं के प्रयासों में सामंजस्य स्थापित किया जाता है एवं उपयुक्त सामग्री का प्रयोग इस प्रकार किया जाता है कि वह मानवीय गुणों के विकास में सहायक हो सके। यह प्रक्रिया केवल बालकों एवं नवयुवकों के विकास से ही सम्बन्धित नहीं है, वरन् प्रौढ़ों एवं समस्त कार्यकर्ताओं के विकास में भी सहायक होती है। शिक्षा संस्थाओं के प्रशासन के अन्तर्गत समस्त सम्बन्धित व्यक्तियों के कार्यों एवं विचारों में समन्वय स्थापित करती है, जिससे विद्यालय निर्धारित उद्देश्यों की अधिकतम पूर्ति करने में सफल हो सकें।

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शिक्षा प्रशासन शिक्षण तथा सीखने के कार्यक्रमों के विकास में प्रोत्साहन प्रदान करता है। शिक्षा प्रशासन का सम्बन्ध मानवीय तत्वों से ही नहीं, वरन् विद्यालय के भौतिक तत्वों से भी रहता है। शिक्षा प्रशासन मानवीय और भौतिक तत्वों के मध्य समन्वय स्थापित करके शिक्षा प्रक्रिया को भली-भाँति संचालित करता है। मनोवैज्ञानिक दृष्टि से इसका सम्बन्ध मानव की वैयक्तिक विभिन्नताओं, उसकी योग्यताओं, उसकी प्रतिभाओं, उसकी उपलब्धियों, उसकी शैक्षिक समस्याओं आदि से अधिक रहता है। इस प्रकार शिक्षा प्रशासन का अर्थ जानने के लिये
यह समझना आवश्यक है कि इसका सम्बन्ध मुख्यतः तीन तथ्यों से रहता है-(1) शिक्षा सम्बन्धी नीति-निर्धारण करना, शिक्षा का संचालन करके उसका प्रयास करना एवं शिक्षा की प्रगति हेतु योजनाएँ बनाना। (2) शिक्षा से सम्बन्धित योजनाओं को कुशलतापूर्वक क्रियान्वित करना। (3) क्रियान्वित की गयी योजनाओं का उचित मूल्यांकन करना।

शैक्षिक प्रशासन की परिभाषाएँ
Definitions of Educational Administration

कुछ शिक्षाविदों द्वारा शैक्षिक प्रशासन की निम्नलिखित परिभाषाएँ दी गयी हैं-
(1) डॉ. एस. एन. मुकर्जी (Dr. S. N. Mukerjee) के अनुसार, “शिक्षा-प्रशासन वस्तुओं के साथ-साथ मानवीय सम्बन्धों की व्यवस्था से भी सम्बन्धित होता है।”

(2) एल. एस. चन्द्रकान्त (L.S. Chandrakant) ने इसकी व्याख्या इस प्रकार की है-“यद्यपि शैक्षिक प्रशासन की कोई एक सर्वमान्य स्वीकृत परिभाषा नहीं है फिर भी इसका सम्बन्ध व्यक्तियों के अच्छे समूह तथा उनकी क्रियाओं से सम्बन्धित होता है।”

(3) डॉ.जी. एस. वर्मा (a.G.S.Verma) के शब्दों में,“शैक्षिक प्रशासन अपने विभिन्न प्रशासकीय तत्त्वों के रूप में एक समन्वित कार्य (Task) है।”

प्रशासनिक तत्त्वों की संरचना निम्नलिखित रूप में प्रस्तुत है
(1) योजना बनाना (Toplan)-शैक्षिक प्रशासन की विस्तृत रूपरेखा निश्चित करना।
(2) नीति निर्धारण करना (To execute)-नीतियों को क्रियान्वित करना।
(3) समन्वय करना (To co-ordinate)-विभिन्न क्रियाओं को समन्वित करना।
(4) कार्यरूप देना (To Work)-विभिन्न क्रियाओं को क्रियान्वित करना।
(5) अधिक उपलब्धि करना (Maximum output)-शैक्षिक क्षेत्रों में अधिकाधिक उपलब्धियाँ प्रदान करना।
(6) नियन्त्रण करना (To control)-समस्त क्रियाओं का नियन्त्रण करना।

4. लूथर गुलिक (Luther Gulic) ने शैक्षिक प्रशासन का विश्लेषण व्यापक अर्थ में ‘पोस्डकोर्ब’ (POSDCORB) सूत्र द्वारा प्रस्तुत किया है।”
इसकी संरचना का विवेचन निम्नलिखित सात प्रशासकीय कार्यों के रूप में करते हैं।

पोस्डकोर्ब की संरचना ( Structure of POSDCORB )

P – (Planning) – योजना बनाना
O – (Organising) – संगठन करना
S – (Staffing) – नियुक्त करना
D – (Directing) – निर्देश देना
CO – (Co-ordin-ating  – समन्वय करना
R – (Reporting) – प्रतिवेदन तैयार करना
B – (Budge-ting) – बजट बनाना

5.आर.मॉर्ट तथा रॉस (R.Mort and Ross) ने शैक्षिक प्रशासन की व्यापक परिभाषा प्रस्तुत की है, उनके मतानुसार शैक्षिक प्रशासन का अर्थ है-
(1) छात्रों को निर्धारित लक्ष्यों की ओर अग्रसर करना।  (2) उनके लिये शिक्षकों का साधन के रूप में उपयोग करना।  (3) इस प्रक्रिया का संचालन ऐसे जन-समुदाय के सन्दर्भ में करना जो दोनों लक्ष्यों तथा इनकी प्राप्ति के साधनों से विभिन्न रूप में सम्बन्धित हो ।

6.फिफ़नर के अनुसार,“संगठन तथा प्रबंधन प्रशासन के दो विशिष्ट पहलू है।”

शैक्षिक प्रशासन की आवश्यकता
Need of Educational Administration

प्रशासन किसी भी संगठन अथवा संस्था को उसके आदशी, सफलता एवं उद्देश्यों तक पहुँचाने में सहायक होता है। उत्तम प्रशासन व्यवस्थित एवं श्रेष्ठ कार्य के लिये पूर्णत: उत्तरदायी है। शिक्षा के क्षेत्र में शिक्षा प्रशासन की सहायता से विभिन्न क्रियाओं को क्रमबद्ध रूप से नियोजित करके किसी विशिष्ट उद्देश्य की प्राप्ति की जा सकती है। अत: विद्यालय के संचालकों को इसका महत्त्व समझना आवश्यक है। विद्यालय के समुचित प्रशासन में विभिन्न बातें निहित हैं; जैसे- विद्यालय भवन की योजना, शिक्षकों एवं कर्मचारियों का चयन, शिक्षकों एवं कर्मचारियों का वेतन क्रम निर्धारित करना, शैक्षिक सामग्री एवं फर्नीचर आदि की आवश्यकतानुसार व्यवस्था करना, शैक्षिक एवं पाठ्य सहगामी क्रियाओं की व्यवस्था करना, छात्रों को निर्देशन प्रदान कर उनका मूल्यांकन करना, छात्रों का चारित्रिक निर्माण करना, विद्यालय संचालन के लिये धन प्राप्त करना एवं विद्यालय संगठन में योग्य नेतृत्व प्रदान करना आदि।

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शिक्षा प्रशासन का प्रभाव उन लोगों पर भी पड़ता है जो भावी नागरिक हैं। यदि राष्ट्र के नागरिकों के व्यक्तित्व का निर्माण उचित प्रकार से नहीं होगा तो उसका परिणाम राष्ट्र को भुगतना पड़ेगा। लगभग प्रति 5 वर्ष के पश्चात् छात्रों की संख्या दोगुनी हो जाती है। इस प्रकार शिक्षा के निकार्यों में वृद्धि का प्रभाव शिक्षा प्रशासन पर पड़ता है तथा शिक्षा प्रशासन की समस्याएँ जटिल होती जाती हैं। देश में शिक्षा की माँग के कारण नये विद्यालय खुलते जा रहे हैं। निरन्तर बढ़ती इस प्रवृत्ति के कारण बालकों की शिक्षा के स्तर पर भी विपरीत प्रभाव पड़ रहा है। इन समस्त समस्याओं को ध्यान में रखते हुए अब यह नितान्त आवश्यक हो गया है कि शिक्षा के क्षेत्र में प्रशासकों का भी पूर्व प्रशिक्षण होना चाहिये जिससे भावी प्रशासक पूर्ण योग्यता एवं दक्षता के साथ प्रशासनिक कठिनाइयों को समझ सकें एवं प्रशासन को सुचारु रूप से चला सकें।

शैक्षिक प्रबन्धन एवं आयोजन
Educational Management and Planning

शैक्षिक प्रबन्धन एवं आयोजन का मुख्य कार्य शिक्षा के प्रबन्धों, व्यवस्थाओं एवं क्रियाओं का व्यवस्थित एवं सुदृढ़ समाधान है। शैक्षिक प्रबन्धन एवं आयोजन का अर्थ हम उन सभी शिक्षा विकास की क्रियाओं से लगाते हैं जो शिक्षा के प्रचार-प्रसार एवं गुणवत्ता की वृद्धि हेतु सुनियोजित की जाती हैं। इसमें आर्थिक नियोजन भी होता है अपितु मुख्य ऊर्जा शैक्षिक दृष्टि से निहित होती है। इसका मुख्य उद्देश्य शैक्षिक प्रशासन को उच्च मार्ग की ओर ले जाना होता है किन्तु इसके परिणामों के लिये लम्बी प्रतीक्षा करनी पड़ती है। शैक्षिक प्रबन्धन एवं आयोजन का मुख्य लक्ष्य व्यक्तिगत और सामाजिक जीवन के उत्थान की ओर केन्द्रित होता है।

शैक्षिक आयोजन के प्रकार
Types of Educational Planning

शैक्षिक आयोजन निम्नलिखित प्रकार के होते हैं-

1. लघुकालिक आयोजन (Short term planning)

शैक्षिक आयोजन अनेक प्रकार से किया जा सकता है। जब यह थोड़े समय के लिये होता है; जैसे-एक वर्ष या उससे भी कम समय के लिये तो इसे हम लघुकालिक आयोजन कहते हैं। लघुकालिक आयोजन के लक्ष्य सीमित होते हैं। शिक्षा के क्षेत्र में यह लक्ष्य समय की आवश्यकता के अनुसार निर्धारित किये जाते हैं; जैसे-किसी वर्ष 12वीं कक्षा में शिक्षार्थियों के अधिक उत्तीर्ण होने की सम्भावना है तो जुलाई में जब कॉलेज खुलेंगे तो प्रत्येक महाविद्यालय को अधिक विद्यार्थियों को प्रवेश देने का लक्ष्य रखा जाता है।

यह केवल अल्प समय के लिये अर्थात् उसी वर्ष के लिये होता है। अगले वर्ष उसका अनुसरण किया जा सकता है या नहीं यह निर्णय उस वर्ष के उत्तीर्ण प्रतिशत पर निर्भर होगा। ऐसा लघुकालिक आयोजन अव्यवस्थित होता है किन्तु आयोजन में व्यवस्था होना आवश्यक है इसलिये जब हम लघुकालिक आयोजन कहते हैं तो हमारा तात्पर्य बहुधा एकवर्षीय आयोजन का ही होता है जो पंचवर्षीय आयोजन के अथवा अल्पदीर्घकालीन आयोजन के अन्तर्गत ही होता है परन्तु इसके लक्ष्य और प्राथमिकताएँ विभिन्न हो सकती हैं।

2. दीर्घकालिक आयोजन (Long term planning)

दीर्घकालिक आयोजन एक लम्बे समय के लिये होता है। इसमें पहला पद जो योजना के बनाने में लिया जाता है वह उद्देश्यों को प्रस्तुत करने का होता है। शैक्षिक आयोजन में ऐसे उद्देश्यों को राष्ट्रीय उद्देश्यों के दृष्टिकोण से ही प्रस्तुत किया जाता है। बहुधा योजना आयोग के सदस्य इन उद्देश्यों के सम्बन्ध में निर्णय लेते हैं।

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3. संव्यूही आयोजन (Comprehensive planning)

यह आयोजन बहुधा आर्थिक तत्त्वों पर ही केन्द्रित किया जाता है जो उचित नहीं है। अतएव हम कह सकते हैं कि आयोजन न केवल किसी एक तत्त्व पर केन्द्रित करके बनाया जाना चाहिये वरन् इसका रूप संव्यूही होना चाहिये।

4. संगठनात्मक आयोजन (Organizational planning)

राष्ट्रीय स्तर पर आयोजन के लिये अनेक देश योजना आयोग जैसे विशिष्ट संगठन का गठन करते हैं। सम्पूर्ण देश के लिये सभी क्षेत्रों में योजना बनाना इस आयोग का कार्य होता है। यह आयोग विभिन्न क्षेत्रों के विशेषज्ञों की सेवाएँ प्राप्त करके उनकी सलाह से योजना बनाता है। प्रायः इस आयोग का प्रधान कोई वरिष्ठ मन्त्री या प्रधानमन्त्री होता है। प्रबन्धात्मक आयोजन में आयोजना के प्रबन्ध सम्बन्धी पक्ष को ही प्रधानता मिलती है।

5. राष्ट्रीय एवं क्षेत्रीय आयोजन (National and regional planning)

राष्ट्रीय आयोजन राष्ट्र स्तर पर आयोजना बनाने पर बल देता है। भारत में योजना आयोग राष्ट्रीय स्तर पर आयोजन करता है जो मुख्यत: पाँच वर्ष के लिये होता है। राष्ट्र स्तर पर योजना में यह कठिनाई होती है कि प्रत्येक क्षेत्र में समस्याओं पर सामान्य रूप से ही ध्यान दिया जाता है। यदि किसी क्षेत्र की विशिष्ट समस्या है तो वह उपेक्षित रह जाती है। इस प्रकार जब कुछ क्षेत्र प्रगति की ओर तीव्रता से बढ़ने लगते हैं तो दूसरे पिछड़ जाते हैं। इस कमी को दूर करने के लिये अब क्षेत्रीय स्तर पर योजना बनाने पर बल दिया जाने लगा है। क्षेत्र एक राज्य का हो सकता है अथवा किसी राज्य को कुछ विशेष आधारों पर बाँटकर नियोजन किया जा सकता है जैसे पिछड़ापन अथवा प्रशासकीय सुविधा अथवा भौगोलिक स्थिति आदि आधारों पर क्षेत्रीय आयोजन का निर्माण किया जा सकता है।

6. संस्थागत आयोजन (Institutional planning)

शैक्षिक नियोजन का एक संक्षिप्त स्वरूप संस्थागत नियोजन होता है। संस्थागत आयोजन किसी भी शिक्षा संस्था के विकास की योजना होती है जिसका स्वरूप उस संस्था की आवश्यकताओं तथा उन आवश्यकताओं की पूर्ति के लिये उपलब्ध साधनों पर ही आधारित होता है। यह योजना जब सभी संस्थाओं के लिये बनायी जाती है तथा उन संस्थाओं पर लागू की जाती है तो उसे केन्द्रीकृत आयोजना कहते हैं। परन्तु जब योजना केवल विद्यालय विशेष की आवश्यकताओं एवं साधनों को दृष्टि में रखकर बनायी जाती है तो वह संस्थागत नियोजन कहलाती है।

7. सतत् प्रवाही आयोजन (Continual planning)

शैक्षिक आयोजन के सम्बन्ध में अब यह भी दृष्टिकोण मान्य होता जा रहा है कि आयोजन एक सतत् प्रवाही प्रक्रिया है। हम लघुकालिक तथा दीर्घकालिक उद्देश्य निर्धारित कर सकते हैं किन्तु उद्देश्य सदैव बदलते रहते है। ऐसा एक प्रगतिशील समाज में होना स्वाभाविक भी है। समाज बदलता है और इसके साथ ही शैक्षिक उद्देश्य भी। इसके अतिरिक्त हम योजना में कुछ लक्ष्यों को सामने रखते हैं जिनको प्राप्त करने के साथ अन्य लक्ष्य हमारे सामने उठ खड़े होते हैं। इन लक्ष्यों की पूर्ति के लिये आयोजन किया जाना आवश्यक हो जाता है। अत: सतत् प्रवाही आयोजन एक लगातार चलने वाली प्रक्रिया है।


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