दोस्तों विज्ञान की श्रृंखला में आज हमारी वेबसाइट hindiamrit.com का टॉपिक द्रव्य के प्रकार या संघटन / types or composition of matter in hindi है। हम आशा करते हैं कि इस पोस्ट को पढ़ने के बाद आपकी इस टॉपिक से जुड़ी सभी समस्याएं खत्म हो जाएगी ।
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types or composition of matter in hindi / द्रव्य के प्रकार या संघटन
द्रव्य के प्रकार या संघटन / types or composition of matter in hindi
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तत्व की परिभाषा / definition of Element
राबर्ट बॉयल ने सन् 1660 में बताया कि “वह शुद्ध द्रव्य, जिसे भौतिक या रासायनिक विधियों द्वारा दो या दो से अधिक अन्य सरल पदार्थों में विभाजित नहीं किया जा सकता और न ही उनसे बनाया जा सकता, तत्व कहलाता है” अर्थात् “तत्व समान प्रकार के परमाणुओं से मिलकर बने होते हैं एवं एक ही तत्व के सभी परमाणुओं का परमाणु क्रमांक समान होता है।” वास्तव में, तत्व प्रकृति के मूल पदार्थ हैं। यहाँ मूल पदार्थ से यह अभिप्राय है, कि इन्हीं से संसार के सभी द्रव्यों की रचना हुई है। उदाहरण – लोहा, क्लोरीन, गन्धक, सोना, ब्रोमीन आदि ।
तत्वों की विशेषताएँ Characteristics of Elements
तत्वों की विशेषताएँ निम्नलिखित हैं (i) प्रत्येक तत्व का सबसे छोटा कण परमाणु होता है। (ii) समान तत्व के सभी परमाणु संघटन तथा गुणधर्म में समान होते हैं। (iii) भिन्न तत्व के परमाणु भिन्न संघटन एवं गुणधर्म वाले होते हैं। (iv) अब तक ज्ञात तत्वों की संख्या 118 है, जिनमें से 27 तत्व मानव निर्मित तथा शेष प्राकृतिक हैं। (v) तत्वों को भौतिक या रासायनिक विधियों द्वारा पुनः सरल पदार्थों में विभाजित नहीं किया जा सकता।
नोट – (i) भू पर्पटी में ऑक्सीजन सर्वाधिक मात्रा में पाया जाने वाला तत्व तथा ऐलुमिनियम सर्वाधिक मात्रा में पायी जाने वाली धातु (तथा तीसरा सर्वाधिक मात्रा में पाया जाने वाला तत्व) है। (ii) हीरा तथा ग्रेफाइट भी तत्व हैं। ये कार्बन के अपररूप (Allotropes) हैं।
तत्वों का वर्गीकरण Classification of Elements
तत्वों को निम्न तीन भागों में वर्गीकृत किया जा सकता है।
(i) धातु (Metals) – वे तत्व, जो सामान्य अभिक्रियाओं में अपने परमाणुओं से एक या एक से अधिक इलेक्ट्रॉन त्यागकर धनायन बनाने की प्रवृत्ति रखते हैं, धातु कहलाते हैं। उदाहरण- सोना, चाँदी, ताँबा, पोटैशियम, सोडियम आदि। इन्हें धनविद्युती तत्व भी कहते हैं। साधारण ताप पर (Hg को छोड़कर) सभी धातुएँ ठोस अवस्था में होती हैं। ये प्रायः ऊष्मा तथा विद्युत की सुचालक, आघातवर्ध्य (Malleable), धात्विक चमक वाली तथा तन्य (Ductile) होती हैं। धातु ऑक्साइडों की प्रकृति सामान्यतया क्षारकीय होती है।
(ii) अधातु (Non-metals) – वे तत्व, जो सामान्य अभिक्रियाओं में एक या एक से अधिक इलेक्ट्रॉन ग्रहण करके ऋणायन बनाने की प्रवृत्ति रखते हैं, अधातु कहलाते हैं। उदाहरण- सल्फर (गन्धक), कार्बन, ऑक्सीजन, नाइट्रोजन, हाइड्रोजन, क्लोरीन, ब्रोमीन आदि। इन्हें ऋणविद्युती तत्व भी कहते हैं। ये चमकहीन, भंगुर, ऊष्मा एवं विद्युत के कुचालक होते हैं।
(iii) उपधातु (Metalloids) – वे तत्व, जिनमें धातु एवं अधातु दोनों के रासायनिक गुणधर्म उपस्थित होते हैं, उपधातु कहलाते हैं। आधुनिक मतानुसार, वे तत्व जो भिन्न-भिन्न रासायनिक क्रियाओं में इलेक्ट्रॉन ग्रहण करने तथा त्यागने, दोनों की प्रवृत्ति रखते हैं, उपधातु कहलाते हैं। उपधातुओं की संख्या केवल 7 है। उदाहरण- आर्सेनिक (As), ऐन्टीमनी (Sb) आदि।
यौगिक की परिभाषा / definition of Compounds
वे पदार्थ, “जो दो या दो से अधिक तत्वों के निश्चित अनुपात में रासायनिक संयोग से बनते हैं, यौगिक कहलाते हैं “। उदाहरण- जल (H2O) एक यौगिक है, क्योंकि इसमें इसके अवयवी तत्वों अर्थात् हाइड्रोजन तथा ऑक्सीजन का भार के अनुसार अनुपात सदैव 18 होता है। आधुनिक अणु सिद्धान्त के अनुसार, यौगिक वह पदार्थ है, जिसके अणु भिन्न-भिन्न प्रकार के परमाणुओं के निश्चित अनुपात में संयोग द्वारा निर्मित होते हैं। कुछ मुख्य यौगिकों के रासायनिक सूत्र निम्नलिखित हैं
यौगिक सूत्र
जल H20
कार्बन डाइऑक्साइड CO2
साधारण नमक (सोडियम क्लोराइड) NaCl
सल्फर डाइऑक्साइड SO2
सल्फ्यूरिक अम्ल H2SO4
नाइट्रिक अम्ल HNO3
सोडियम कार्बोनेट (धावन सोडा) Na2CO3
कॉस्टिक सोडा (सोडियम हाइड्रॉक्साइड) NaOH
ऐसीटिक अम्ल (सिरका) CH3COOH
यौगिकों की विशेषताएँ Characteristics of Compounds
यौगिक निम्नलिखित विशेषताएँ दर्शाते हैं
(i) यौगिक, तत्वों के निश्चित अनुपात में संयोग के फलस्वरूप बनते हैं। (ii) यौगिक के बनने में प्राय: प्रकाश, ऊष्मा, विद्युत आदि अवशोषित या उत्सर्जित होते हैं। (iii) प्रत्येक यौगिक शुद्ध एवं समांगी (Homogeneous) पदार्थ होता है। (iv) यौगिकों को उनके अवयवों में साधारण भौतिक विधियों द्वारा विभाजित नहीं किया जा सकता, क्योंकि ये प्रबल बन्धों द्वारा बँधे होते हैं। (v) यौगिकों का एक निश्चित गलनांक एवं क्वथनांक होता है। (vi) किसी यौगिक के गुण उसके अवयवी तत्वों के गुणों से भिन्न होते हैं।
मिश्रण की परिभाषा / definition of Mixtures
वे अशुद्ध द्रव्य, जो दो या दो से अधिक भिन्न प्रकार के द्रव्यों को किसी भी अनुपात में मिला देने पर बनते हैं तथा जिनके अवयवों को विधियों द्वारा पृथक् किया जा सकता है, मिश्रण कहलाते हैं। उदाहरण- चीनी तथा जल का मिश्रण, नमक तथा जल का मिश्रण, शरबत, मिश्रधातु, इस्पात, बारूद आदि। मिश्रण के गुणधर्म उसके अवयवों के गुणों के मिश्रित गुण होते हैं। नोट – मिश्रण केवल ठोस तत्वों के परस्पर संयोग से ही नहीं बनते, अपितु ठोस, द्रव और गैस किसी भी भिन्न अवस्था वाले तत्वों के परस्पर संयोग से भी बनते हैं।
मिश्रण के प्रकार Types of Mixtures
मिश्रण निम्नलिखित दो प्रकार के होते हैं
(i) समांगी मिश्रण (Homogeneous Mixture) – वह मिश्रण जिसके प्रत्येक भाग का संघटन तथा गुणधर्म समान हो, समांगी मिश्रण कहलाता है। इसके विभिन्न अवयवों की सीमाओं को पृथक् रूप से नहीं देखा जा सकता है। उदाहरण- नमक या चीनी तथा जल का मिश्रण एक समांगी मिश्रण है।
(ii) विषमांगी मिश्रण (Heterogeneous Mixture) – वह मिश्रण जिसका प्रत्येक भाग एकसमान नहीं होता, विषमांगी मिश्रण कहलाता है। इसकी संरचना एकसमान नहीं होती है। इसके विभिन्न अवयवों के बीच पृथक्करण सीमा स्पष्ट दिखाई नहीं देती है। उदाहरण— जल में चॉक या रेत का निलम्बन (Suspension) एक विषमांगी मिश्रण है।
मिश्रण की विशेषताएँ Characteristics of Mixtures
मिश्रण की कुछ विशेषताएँ निम्नलिखित हैं। (i) मिश्रण प्रायः विषमांगी होते हैं, यद्यपि कुछ मिश्रण समांगी भी हो सकते हैं। (ii) मिश्रण के संघटकों का अनुपात निश्चित नहीं होता है। (iii) मिश्रण में मूल पदार्थों के सभी गुण विद्यमान होते हैं तथा इन्हें इनके अवयवों में भौतिक विधियों द्वारा पृथक् किया जा सकता है। (iv) मिश्रण का कोई निश्चित गलनांक अथवा क्वथनांक नहीं होता है। (v) मिश्रण के बनने में न तो कोई ऊष्मा अथवा प्रकाश उत्सर्जित होता है और न ही अवशोषित।
मिश्रणों का उनके अवयवों में पृथक्करण
किसी मिश्रण से उसके अवयवों को पृथक् करने हेतु सामान्यतया प्रयुक्त की जाने वाली विधियाँ निम्नलिखित हैं (i) अवसादन तथा निथारना, (ii) छानना, (iii) चुम्बकीय पृथक्करण, (iv) अपकेन्द्रीकरण, (v) वाष्पीकरण, (vi) क्रिस्टलीकरण, (vii) आसवन (वाष्पन + संघनन), (viii) विलायक निष्कर्षण तथा (ix) ऊर्ध्वपातन।
विलयन की परिभाषा / definition of Solution
दो या दो से अधिक पदार्थों द्वारा बने समांगी मिश्रण को विलयन कहते हैं। उदाहरण- शरबत, नींबू पानी आदि। किसी भी विलयन के सामान्यत दो अवयव (Components) होते हैं, जो निम्नलिखित हैं
1. विलायक (Solvent ) – विलयन का वह अवयव, जो अपेक्षाकृत अधिक मात्रा में होता है, विलायक कहलाता है। नोट – जल एक सार्वत्रिक विलायक (Universal solvent) है। इसमें बने विलयन जलीय विलयन (Aqueous solution) कहलाते हैं। जल के अतिरिक्त किसी अन्य विलायक में बना विलयन अजलीय विलयन (Non-aqueous solution) कहलाता है।
2. विलेय (Solute ) – विलयन में विलायक के अतिरिक्त उपस्थित एक या एक से अधिक अवयव, जो अपेक्षाकृत कम मात्रा में होते हैं, विलेय कहलाते हैं।
उदाहरण-
(i) नींबू और जल का विलयन
जल – विलायक,
नींबू – विलेय
(ii) सोडा और जल का विलयन
जल – विलायक,
सोडा विलेय
(iii) चीनी और जल का विलयन
जल – विलायक,
चीनी – विलेय
(iv) आयोडीन और ऐल्कोहॉल का विलयन
ऐल्कोहॉल – विलायक,
आयोडीन – विलेय
नोट – आयोडीन तथा ऐल्कोहॉल का विलयन टिंक्चर आयोडीन के नाम से जाना जाता है।
विलयन के गुण Properties of Solution
(i) विलयन एक समांगी मिश्रण है, जिसमें विलेय तथा विलायक के कणों का आकार लगभग समान होता है। (ii) विलयन में विलेय के कणों का आकार अत्यन्त सूक्ष्म (10-10 मीटर व्यास) होता है। अतः विलयन के कणों को आँख या सूक्ष्मदर्शी से नहीं देखा जा सकता। (iii) विलयन प्रकाश को प्रकीर्णित नहीं करता है (क्योंकि विलयन के कण अत्यन्त सूक्ष्म होते हैं)। (iv) विलयन के कण स्थायी होते हैं, अत: विलयन में से विलेय के कणों को पृथक् नहीं किया जा सकता।
विलयन के प्रकार Types of Solution
1. विलेय तथा विलायक की भौतिक प्रावस्था के आधार पर नौ प्रकार के विलयन बनाये जा सकते हैं –
(i) ठोस का ठोस में मिश्रण उदाहरण— पीतल (brass) अर्थात् जस्ते (20%) तथा कॉपर (50%) की मिश्रधातु (ii) ठोस का द्रव में विलयन उदाहरण नमक का जल में विलयन। (iii) ठोस का गैस में विलयन उदाहरण- धुँआ, यह कार्बन का वायु में विलयन है। (iv) द्रव का ठोस में विलयन उदाहरण- जैली। (v) द्रव का द्रव में विलयन उदाहरण- मदिरा, यह एथिल ऐल्कोहॉल का जल में विलयन है। (vi) द्रव का गैस में विलयन उदाहरण- वायु में जल वाष्प (vii) गैस का ठोस में विलयन उदाहरण- हाइड्रोजन गैस तथा पैलेडियम धातु का समांगी मिश्रण। (viii) गैस का द्रव में विलयन उदाहरण सोडा-जल। (ix) गैस का गैस में विलयन उदाहरण– वायु, यह मुख्यत दो घटकों, ऑक्सीजन (21%) और नाइट्रोजन (78%) का मिश्रण है।
2. सान्द्रण के आधार पर विलयन निम्नलिखित प्रकार के हो सकते हैं –
(i) तनु विलयन (Dilute Solution) – वह विलयन, जिसमें विलायक की मात्रा विलेय की तुलना में बहुत अधिक होती है, तनु विलयन कहलाता है।
(ii) सान्द्र विलयन (Concentrated Solution) – वह विलयन, जिसमें विलायक की मात्रा विलेय की तुलना में कम या लगभग समान होती है, सान्द्र विलयन कहलाता है।
(iii) संतृप्त विलयन (Saturated Solution mapies) – वह विलयन, जिसमें स्थिर ताप पर और अधिक विलेय नहीं घोला जा सके, संतृप्त विलयन कहलाता है। नोट – किसी निश्चित ताप पर, संतृप्त विलयन में घुलित विलेय की मात्रा उसकी विलेयता (Solubility) या घुलनशीलता कहलाती है।
(iv) असंतृप्त विलयन (Unsaturated Solution) – यदि किसी बिलयन में विलेय पदार्थ की मात्रा संतृप्तता के लिए आवश्यक मात्रा से कम हो, तो वह विलयन असंतृप्त विलयन कहलाता है।
(v) अतिसंतृप्त विलयन (Supersaturated Solution) – जब किसी संतृप्त विलयन को गर्म किया जाता है, तो इसमें विलेय पदार्थ को घोलने की क्षमता में वृद्धि हो जाती है, इस प्रकार का विलयन अतिसंतृप्त विलयन कहलाता है। यह सामान्य ताप पर निर्मित नहीं होता है।
कोलॉइडी अवस्था क्या है / definition of Colloidal State
थॉमस ग्राहम (Thomas Graham) – ने सन् 1861 में अनेक पदार्थों के जलीय विलयनों को चर्म-पत्र झिल्ली (Parchment membrane) में से गुजार कर देखा तथा इस आधार पर उन्होंने पदार्थों को निम्नलिखित दो वर्गों में विभाजित किया गया है
1. क्रिस्टलाभ Crystalloids – वे पदार्थ, जिनके जलीय विलयन को चर्म-पत्र झिल्ली (Parchment membrane) में से गुजारने पर विलयन शीघ्रता से झिल्ली के दूसरी ओर चला जाता है, क्रिस्टलाभ कहलाते हैं। उदाहरण- चीनी, नमक, यूरिया आदि।
2. कोलॉइड Colloids – वे पदार्थ, जिनके जलीय विलयन को चर्म-पत्र झिल्ली में से सुगमता से निकलने में कठिनाई होती है अथवा वह निकल नहीं पाता है, कोलॉइड कहलाते हैं। उदाहरण- गोंद (Glue), जिलेटिन, ऐल्बुमिन आदि कोलॉइड हैं। कोलॉइड शब्द की उत्पत्ति ग्रीक शब्द कोला (Kolla) से हुई है, जिसका अर्थ होता है ‘गोंद।’ परन्तु कुछ समय पश्चात् ग्राहम तथा अन्य वैज्ञानिकों ने यह देखा कि बहुत क्रिस्टलाभों को लाइडों में और कोलाइडों को क्रिस्टलाभों में परिवर्तित किया जा सकता है जैसे सल्फर या साबुन का ऐल्कोहॉल में निर्मित विलयन क्रिस्टलाभ है जबकि इनका जल में निर्मित विलयन कोलॉइड होता है। इसी प्रकार, नमक का जलीय विलयन क्रिस्टलाभ तथा बेन्जीन में बना विलयन कोलॉइड के समान व्यवहार दर्शाता है अतः इससे यह निष्कर्ष निकलता है कि कोलॉइड कोई पदार्थ नहीं है, अपितु पदार्थ की एक विशिष्ट अवस्था है, जिसमें उचित परिस्थितियों में किसी भी पदार्थ को लाया जा सकता है।
कोलॉइड की आधुनिक अवधारणा Modern Concept of Colloids
आधुनिक अवधारणा के अनुसार, कोलॉइडी अवस्था, पदार्थ के कणों के आकार (Size) पर निर्भर करती है। किसी विलेय को विलायक में घोलने पर प्राप्त विलयनों को कणों के आकार के आधार पर निम्न तीन वर्गों में विभाजित किया जा सकता है (i) विलयन या वास्तविक विलयन (ii) निलम्बन (iii) कोलॉइड विलयन (विलयन या वास्तविक विलयन का अध्ययन आप पहले ही कर चुके हैं।) निलम्बन तथा कोलॉइडी विलयन का वर्णन निम्न प्रकार है।
निलम्बन (Suspension) – यह एक विषमांगी मिश्रण है। इसमें परिक्षेपित कणों का आकार 10^-3 सेमी और 10^-4 सेमी या इससे अधिक होता है। इन्हें नग्न आँखों अथवा सूक्ष्मदर्शी से देखा जा सकता है। ये अस्थायी होते हैं। उदाहरण- नदी का गन्दा जल, मृदा का जलीय विलयन, वायु में धुँआ, पेन्ट आदि।
कोलॉइडी विलयन (Colloidal Solution) – यह भी एक विषमांगी मिश्रण होता है। इसमें परिक्षेपित कणों का आकार 10^-5 सेमी से 10^-7 सेमी के बीच होता है। इन कणों को नग्न आँखों की सहायता से नहीं देखा जा सकता। उदाहरण- गोंद, रक्त, स्याही आदि।
कोलॉइडी विलयन के गुणधर्म Properties of Colloidal Solution
विषमांगी प्रकृति (Heterogeneous Nature) – ये विषमांगी प्रकृति के होते हैं।
रंग ( Colour) – कोलॉइडी विलयनों का रंग इनके कणों द्वारा प्रकीर्णित प्रकाश की तरंगदेयों पर निर्भर करता है तथा प्रायः परिक्षिप्त प्रावस्था के मूल अवस्था के रंग से भिन्न होता है।
पृष्ठ क्षेत्रफल (Surface Area) – कोलॉइडी कणों का क्षेत्रफल अत्यधिक होने के कारण ये उत्तम अधिशोषक तथा प्रभावशाली उत्प्रेरक होते हैं।
अणुसंख्य गुणधर्म (Colligative Properties) – विलयन के अणुसंख्य गुण अणुओं की संख्या पर निर्भर होते हैं। किसी भी कोलॉइडी विलयन में कणों की संख्या वास्तविक विलयन की अपेक्षाकृत कम होती है। अतः अणुसंख्य गुणधर्मों जैसे— परासरण दाब, क्वथनांक में उन्नयन आदि का मान बहुत कम होता है।
ब्राउनी गति (Brownian Movement) – वनस्पतिज्ञ रॉबर्ट ब्राउन ने सन् 1827 में देखा कि कोलॉइडी कण विरामावस्था में नहीं रहते, अपितु अव्यवस्थित रूप लगातार गति करते रहते हैं। कोलॉइडी कणों की इस निरन्तर और अनियमित (zig zag) गति को ब्राउनी गति नाम दिया गया। ब्राउनी गति परिक्षेपण माध्यम के गतिमान अणुओं के कोलॉइडी कणों के साथ असमान संघात (Collision) के कारण उत्पन्न होती है। जैसे- कणों का आकार बढ़ता जाता है, ब्राउनी गति कम होती जाती है।”
टिण्डल प्रभाव (Tyndall Effect) – टिण्डल ने सन् 1869 में एक प्रयोग के दौरान पाया कि यदि प्रकाश के प्रबल पुँज को अन्धेरे स्थान में रखे कोलॉइडी विलयन में से गुजारा जाता है, तो उस पुँज का पथ प्रकाशित होने लगता है, क्योंकि कोलॉइडी कण अपने बड़े आकार के कारण प्रकाश का प्रकीर्णन कर देते हैं। यह परिघटना टिण्डल प्रभाव कहलाती है। कोलॉइडी विलयन से गुजरने वाला प्रकाश पुँज एक शंकु के रूप में दिखायी देता है, जिसे टिण्डल शंकु (Tyndall cone) कहते हैं। टिण्डल प्रभाव के कारण ही आकाश का रंग नीला दिखाई पड़ता है तथा रोशनदान से अंधेरे कमरे में आते या प्रोजेक्टर से परदे पर गिरते प्रकाश में तैरते धूल के कण चमकते हुए दिखायी देते हैं।
नोट 1. एक वास्तविक विलयन में प्रकाश को प्रकीर्णित करने के लिए पर्याप्त बड़े व्यास का कोई कण नहीं होता है, इसलिए किरण पुँज अदृश्य होता है। 2. लाल रंग की तरंगदैर्ध्य (2.) अधिक होने के कारण धूल, कोहरा आदि के कोलॉइडी कणों द्वारा लाल रंग का प्रकीर्णन सबसे कम होता है। अतः प्रकीर्णन कम होने के कारण लाल रंग के संकेत को दूर से ही देखा जा सकता है। इसी कारण संकेतों को सामान्यतया लाल रंग का बनाया जाता है।
विद्युत-कण संचलन (Electrophoresis) – कोलॉइडी कण विद्युत आवेशित होते हैं तथा विद्युत क्षेत्र में रखने पर विपरीत इलेक्ट्रोडो की ओर गमन करने लगते हैं। कोलॉइडी कणों का विद्युत क्षेत्र के प्रभाव में गति करना विद्युत-कण संचलन कहलाता है। कोलॉइडी कणों की कैथोड की ओर गति धन कण संचलन (Cataphoresis) तथा ऐनोड की ओर गति ऋण कण संचलन (Anaphoresis) कहलाती है।
स्कन्दन या अवक्षेपण (Coagulation or Precipitation) – जब किसी कोलॉइडी विलयन में विपरीत आवेश वाला विद्युत अपघट्य अल्प मात्रा में मिलाया जाता है, तो विलयन के कोलॉइडी कण उदासीन हो जाते हैं तथा परस्पर मिलकर अवक्षेप का निर्माण करते हैं, यह प्रक्रम स्कन्दन/अवक्षेपण कहलाता है। धनावेशित सॉल का स्कन्दन ऋणायन के उपयुक्त विद्युत अपघट्य मिलाने पर तथा ऋणावेशित सॉल का स्कन्दन धनायन के उपयुक्त विद्युत अपघट्य को मिलाने पर हो जाता है। कुछ धनावेशित तथा ऋणावेशित सॉल निम्नलिखित हैं धनावेशित सॉल – फेरिक हाइड्रॉक्साइड सॉल, स्टैनिक ऑक्साइड सॉल। ऋणावेशित सॉल – धातुओं जैसे गोल्ड, सिल्वर, प्लैटिनम आदि के सॉल ऑसैनिक सल्फाइड सॉल, सल्फर सॉल आदि।
हार्डी-शुल्जे नियम (Hardy Schulze Law) – हार्डी-शुल्जे नियम के अनुसार, ‘स्कन्दक आयन (विपरीत आवेशित आयन) की संयोजकता जितनी अधिक होती है, उसकी स्कन्दन क्षमता भी उतनी ही अधिक होती है। अत: स्कन्दन क्षमता का क्रम निम्न प्रकार है ऋणात्मक सॉल के लिए Na+ < Ca2+ < fe3+ धनात्मक सॉल के लिए CI- < (SO4)2- < (PO4)3-
कोलॉइडी विलयनों के अनुप्रयोग Applications of Colloidal Solutions
कोलॉइडों का हमारे दैनिक जीवन, उद्योग, कृषि, औषधि आदि निम्न क्षेत्रों में महत्त्व है।
(i) खाद्य पदार्थों में (In Food Items) – यदि खाद्य पदार्थ कोलॉइडी रूप में होते हैं, तो इनका पाचन सुगमता से हो जाता है। इसी कारण अनेक खाद्य पदार्थ जैसे- दूध, पनीर, अण्डे, फलों की जैली, आइसक्रीम आदि कोलॉइडी रूपों प्रयुक्त किये जाते हैं।
(ii) साबुन तथा अपमार्जकों द्वारा कपड़ों की सफाई में (In Cleaning of PClothes by Soaps and Detergents) – कपड़ों की साबुन तथा अपमार्जकों द्वारा स्वच्छीकरण क्रिया में मैल तथा धूल के कण साबुन के साथ संयुक्त हो जाते हैं, जो जल के साथ स्थायी पायस (Emulsion) बनाकर कपड़ों से पृथक् हो जाते हैं। इस प्रकार कपड़ा साफ हो जाता है।
(iii) जल का फिटकरी द्वारा शोधन (स्कन्दन) (Purification of Water using Alum) – फिटकरी से AI3+ आयन प्राप्त होते हैं, जो जल में मिली ऋणावेशित गन्दगी के कणों को स्कन्दित कर देते हैं। जिससे गन्दगी नीचे बैठ जाती है, जिसे निथारकर या छानकर स्वच्छ जल प्राप्त कर लिया जाता है।
(iv) औषधियों में (In Medicines ) – Au, Ag, Mn, Ca, S आदि के कोलॉइडी विलयन का उपयोग औषधि के रूप में किया जाता है। पेनिसिलिन, स्ट्रैप्टोमाइसिन आदि ऐण्टीबायोटिक के इंजेक्शन कोलॉइडी विलयन होते हैं।
(v) रक्त स्त्राव को रोकना (To Stop Bleeding) – रुधिर एक ऋणावेशित कोलॉइडी विलयन है। चोट लगने पर खून बहने लगता है, तत्पश्चात् उस स्थान पर फेरिक क्लोराइड (FeCl3) या फिटकरी लगाने पर रुधिर प्रवाह रुक जाता है क्योंकि फेरिक आयन (Fe3+) तथा फिटकरी अर्थात् ऐलुमिनियम आयन (Al3+) रुधिर के ऋणावेशित कोलॉइडी कणों का स्कन्दन कर देते हैं, जिसके फलस्वरूप रुधिर का प्रवाह रुक जाता है।
(vi) डेल्टा का निर्माण (Delta Formation) – नदी के जल में ऋणावेशित रेत कण होते हैं। जब नदी समुद्र में गिरती है, तब ये रेत कण समुद्री उपस्थित आयनों (Na’, K, Mg2+) द्वारा स्कन्दित हो जाते हैं और इनके निक्षेप से नदी तथा समुद्र के मिलने के स्थान पर डेल्टा जल का निर्माण होता है।
(vii) धुएँ का अवक्षेपण (Precipitation of Smoke) – धुएँ में उपस्थित कार्बन के ऋणावेशित कोलॉइडी कणों को अवक्षेपक द्वारा अवक्षेपित कर दिया जाता है।
(viii) कृत्रिम वर्षा (Artificial Rain) – वायुयान द्वारा आवेश युक्त रेत को बादलों पर गिराने से जल के कोलॉइडी कण निरावेशित होकर निकट आ जाते हैं तथा वर्षा के रूप में नीचे गिरने लगते हैं।
◆◆◆ निवेदन ◆◆◆
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