मेरे प्रिय कवि पर निबंध हिंदी में | essay on my favourite poet in hindi | मेरा प्रिय साहित्यकार पर निबंध

समय समय पर हमें छोटी कक्षाओं में या बड़ी प्रतियोगी परीक्षाओं में निबंध लिखने को दिए जाते हैं। निबंध हमारे जीवन के विचारों एवं क्रियाकलापों से जुड़े होते है। आज hindiamrit.com  आपको निबंध की श्रृंखला में  मेरे प्रिय कवि पर निबंध हिंदी में | essay on my favourite poet in hindi | मेरा प्रिय साहित्यकार पर निबंध  प्रस्तुत करता है।

Contents

मेरे प्रिय कवि पर निबंध हिंदी में | essay on my favourite poet in hindi | मेरा प्रिय साहित्यकार पर निबंध

इस निबंध के अन्य शीर्षक / नाम

(1) लोकनायक तुलसीदास पर निबंध
(2) गोस्वामी तुलसीदास और रामचरितमानस पर निबंध
(3) तुलसी – एक जनप्रिय कवि
(4) मेरा प्रिय साहित्यकार
(5) तुलसीदास पर निबंध

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पहले जान लेते है मेरे प्रिय कवि पर निबंध हिंदी में,essay on my favourite poet in hindi,मेरा प्रिय साहित्यकार पर निबंध  की रूपरेखा ।

निबंध की रूपरेखा

(1) प्रस्तावना
(2) तुलसी के काव्य में कलापक्ष
(3) तुलसी के काव्य में भावपक्ष
(4) तुलसी का साहित्य
(5) तुलसी का लोकनायकत्व
(6) उपसंहार

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प्रस्तावना

गोस्वामी तुलसीदास हिन्दी साहित्य के उन चमकते हुए ननक्षत्रों में से एक हैं जिनके प्रकाश से हिन्दी जगत अनन्त काल तक प्रकाशित रहेगा।

तुलसी हिन्दी के सर्वश्रेष्ठ महाकवि है। वे उच्च कोटि के भक्त, समाज सुधारक और महान् कवि है। कवि के रूप में जब हम देखते हैं तो उनकी तुलना में सूर के सिवाय कोई दूसरा हिन्दी कवि नहीं ठहरता है।

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यदि काव्यगत विशेषताओं के आधार पर तुलना की जाये तो तुलसी सूर से भी कहीं आगे हैं कलापक्ष और भावपक्ष दोनों ही दृष्टियों से तुलसीदास अनुपम और अद्वितीय है।

“भारतीय संस्कृति के पोषक, राम भक्ति का मूलाधार।
‘रामचरितमानस’ अनुपम कृति, हिन्दी का नव-रस आगार ॥
आज विश्व के निखिल रसिकजन, कर ‘मानस’ में स्नान-विलास।
मुक्त कण्ठ से कह उठते हैं, जय तुलसी, जय तुलसी दास॥”



तुलसी के काव्य में कलापक्ष

कलापक्ष की दृष्टि से तुलसी के काव्य को देखने पर चकित रह जाना पड़ता है। उन्होंने उन सभी शैलियों में रचना की है जो उस समय तक हिन्दी में प्रचलित थी उन्होंने प्रबन्ध और मुक्तक, दोनों प्रकार के काव्यों की सफल रचना की है।

ब्रज और अवधी दोनों भाषाओं पर उनका पूर्ण अधिकार था। दोनों में ही उन्होंने उत्तम रचनाएँ की। छन्द शास्त्र के वे पारंगत थे। पचास से अधिक छन्दों में उन्होंने काव्य रचनाएँ की। अलंकारों के प्रयोग में भी वे सिद्धहस्त थे भाषा में तुलसी जैसी सरलता और स्पष्टता अन्यत्र दुर्लभ है।

शब्द चमत्कार के पचड़े में वे कहीं फैसे ही नहीं हैं। रचना चातुर्य का भद्दा प्रदर्शन उन्होंने रुचा ही नहीं है। उनकी वाक्य रचना ऐसी सुदृढ़ और व्यवस्थित है कि उनका एक भी शब्द इधर से उधर हिलाना सम्भव नहीं है।

भाषा का एक उदाहरण प्रस्तुत हैं-

“कंकण किंकिण नूपुर धुनि-मुनि।
कहत लखन सन राम हृदय गुनि॥”



तुलसी के काव्य में भावपक्ष

भावपक्ष की दृष्टि से यदि तुलसी के काव्य को देखें तब तो उनका स्थान और भी ऊँचा ठहरता है। यह ठीक है कि उनकी कविता का मुख्य विषय भक्ति और अध्यात्म ही रहा है किन्तु सम्पूर्ण मानव व्यापारों के उन्होंने अति सुन्दर चित्र खींचे हैं।

‘जीव-जगत’ और ‘प्रकृति के जैसे स्वाभाविक और मार्मिक चित्र उन्होंने खींचे, वैसे अन्यत्र दूर्लभ हैं। उनके काव्य इस लोक और परलोक, दोनों के साधक ये, है।

वे हृदय में पवित्र भावों का संचार करते हैं, साथ ही जीवन की अनेक समस्याओं का समाधान भी करते है। उनके काव्य को पढ़कर जीवन की अनेक बाधाओं को झेलते हुए कर्मपथ पर आगे बढ़ने का उत्माह और तो प्रेरणा मिलती है।

अलग-अलग संस्कारों और अलग-अलग स्वभाव के पात्रों का उन्होंने सजीव और साहित्यिक चित्रण किया है। विविधता तुलसी के काव्यों में सर्वत्र पायी जाती है। उन्होंने नौ के नौ रसों का बड़ा ही मार्मिक वर्णन किया है।

एक ओर उन्होंने अनुराग के चित्र खींचे है तो दूसरी ओर वियोग पक्ष को भी चित्रित किया है। उन्होंने क्रोध, ईष्या, प्रेम, उत्साह तथा धैर्य आदि मानव हृदय के सभी भावों के सजीव और साकार चित्र उपस्थित किये हैं।

गोस्वामी तुलसी के काव्य की सवसे बड़ी विशेषता तो यह है कि उन्होंने अपने विस्तृत साहित्य में सन्त कहीं भी मर्यादा का उल्लंघन नहीं किया है। तुलसी ने श्रृंगार का ऐसा सुन्दर वर्णन किया है जिसे बिना किसी लज्जा के सबके सामने पढ़ा जा सकता है। ऐसा सुन्दर वर्णन यदि कहीं है तो बह तुलसी के साहित्य में ही है।



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तुलसी का साहित्य

गोस्वामी तुलसी ने एक विशाल साहित्य की रचना की है। 12 श्रेष्ठ काव्यग्रन्थ देकर उन्होंने हिन्दी साहित्य को अमर कर दिया है। इनमे से ‘रामचरितमानस’ और ‘विनय-पत्रिका’ तो अपना जोड़ ही नहीं रखते हैं। इसमें तनिक भी सन्देह नहीं है कि हिन्दी को एक प्रौढ़ और साहित्यिक भाषा सिद्ध करने के लिए अकेले तुलसी व उनका साहित्य ही पर्याप्त है।





तुलसी का लोकनायकत्व

महाकवि तुलसीदास यथार्थ लोकनायक हैं। लोकनायक उस व्यक्ति को कहते है जिसकी दृष्टि काल-स्थान की संकुचित सीमा को तोड़कर मानव मात्र तक जा पहुँची हो। तुलसी में यह विशेषता पूर्ण रूप से मौजूद है ।

वे अपने साहित्य के द्वारा सार्वभौम और सार्वकालिक हो गये हैं। उन्होंने कबीर और दादू के लोक-विरोधी तत्त्वों को समझा और देखा कि अशिक्षित और अज्ञानी लोग जनता को अन्धकार
में ढकेले जा रहे हैं।

यह देखकर उनसे रहा नहीं गया और उनके मुख से ये शब्द निकल पड़े-

साखी सबदी दोहरा, कहि कहनी उपखान।
भगति निरूपहि भगत कलि, निंदाहि वेद पुरान ॥

दूसरी ओर उन्होंने योगमार्ग की एकपक्षता को देखा। योगमार्गी ईश्वर को घट के भीतर मानकर संकुचित कर देते हैं। अत: तुलसी ने सगुण भक्ति का मार्ग अपनाया और इश्वर को भीतर-बाहर सब जगह मानकर अपनी कला का प्रदर्शन किया।

भक्ति में दूराव-छिपाव की भावना उन्हें पसन्द नही थी। मन, वचन और कर्म की सरलता को वे भक्ति का लक्षण समझते थे।

उनका विचार था-

“सुधे मन, सूुधे वचन, सुधी सब करतूति।
तुलसी सीधी सकल विधि, रघुवर प्रम प्रसूति ॥

इस प्रकार तुलसी ने भक्ति को गिने चुने बिरले आदमियों के देखने-सुनने की चीज न रखकर उसे अन्न- जल की तरह सबके लिए सुलभ कर दिया।

तुलसी की भक्ति की सबसे बड़ी विशेषता यह है कि उसमें न कम से विरोध है, न धर्म से-वह तो योग, धर्म और ज्ञान की मिली-जुली त्रिवेणी है। उसमें मानव जीवन के सभी पक्षों का समन्वय है।

अपनी समन्यवादी भावना से उन्होंने वैष्णवों और शैवों के बढ़ते हुए द्वेष को शान्त किया, लोकधर्म तथा भक्ति को एकत् किया तथा ज्ञान, कर्म और उपासना में एकता स्थापित की।

कृष्णभक्त कवियों में जिस लोकसंग्रह का अभाव था वह तुलसी के काव्य में साकार हो उठा। इस प्रकार तुलसी की वाणी भक्ति रस से भरी मंगलकारिणी गंगा होकर बही । तुलसी भक्त और कवि होने से पहले समाज सुधारक ये।

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अपने सर्वश्रेष्ठ महाकाव्य ‘रामचरितमानस’ के द्वारा उन्होंने समाज की अनेक कुरीतियों और दोषों को दूर करने का सफल प्रयास किया।

धर्म और समाज की कैसी व्यवस्था होनी चाहिए-पिता-पुत्र, माता-पुत्र, भाई- भाई, गुरु-शिष्य, पति-पत्नी, स्वामी तथा सेवक आदि में पारिवारिक सम्बन्ध कैसे होने चाहिए तथा राजा-प्रजा ऊँच-नीच और ब्राह्मण-शुद्र आदि के सामाजिक सम्बन्ध कैसे होने चाहिए, आदि सभी प्रश्नों का समाधान तुलसी ने अपने इष्टदेव राम के चरित्र में किया है।

उन्होंने सगुण के साथ निर्गुण का और गृहस्थ के साथ वैराग्य का सुन्दर समन्वय कर अपने को लोकनायकत्व के पद पर प्रतिष्ठित कर आदरणीय बना दिया है।




उपसंहार

संक्षेप में इतना ही कहना पर्याप्त होगा कि महाकवि तुलसीदास हिन्दी के सर्वश्रेष्ठ कवि, पहुँचे हुए भक्त, और एक समाज सुधारक थे। उनमें वे सभी गुण बिद्यमान थे जिनके आधार पर उनके लोकनायक होने में किसी को मतभेद नहीं हो सकता है।

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