कोहलबर्ग का नैतिक विकास का सिद्धांत(moral development theory of kohlberg in hindi )

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कोहलबर्ग का नैतिक विकास का सिद्धांत(moral development theory of kohlberg in hindi)

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कोहलबर्ग का नैतिक विकास का सिद्धांत(moral development theory of kohlberg in hindi )

जीन पियाजे की तरह कोहलबर्ग ने बताया कि नैतिक विकास कुछ अवस्थायों से होता है। कोहल बर्ग ने पाया कि अवस्थाएं सार्वभौमिक होती हैं।उन्होंने इस बात का निर्णय 20 वर्ष के बच्चों के साक्षात्कार पर किया। जिसमें कहानियों के सभी पात्र नैतिक उलझन में घिरे रहते हैं। इन कहानियों को सुनकर प्रश्नों के उत्तर सुनकर कोहल बर्ग ने नैतिक विकास की तीन अवस्थाओं का वर्णन किया।

कोहलबर्ग का नैतिक विकास का सिद्धांत की तीन अवस्थाएं-

कोहलबर्ग का नैतिक विकास का सिद्धान्त की तीन अवस्थाएं है। तथा उनमें से प्रत्येक अवस्थाओं को दो दो चरणों में विभक्त किया गया है:-

नैतिक विकास की अवस्थाओं के नाम निम्न तरीके से है-

(1) पूर्व रूढ़िगत नैतिकता अवस्था / पूर्व परंपरागत नैतिक अवस्था (level of pre-conventional level)

(2) रूढ़िगत नैतिकता का स्तर / परंपरागत नैतिक अवस्था (level of conventional morality)

(3) उत्तर रूढ़िगत नैतिकता का स्तर / गैर परंपरागत नैतिक अवस्था  (level of post-conventional morality)

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(1) पूर्व रूढ़िगत नैतिकता अवस्था / पूर्व परंपरागत नैतिक अवस्था (level of pre-conventional level)

यह अवस्था 4 से 10 वर्ष के बीच की मानी जाती है। यह नैतिक चिंतन का सबसे निचला स्तर होता है। इस अवस्था में बाहर से मिलने वाले पुरस्कार एवं दंड तथा क्या सही है और क्या गलत है इस पर आधारित होती है।
इस अवस्था के दो चरण है-

प्रथम चरण- यह बाहरी सत्ता पर आधारित होता है। इस चरण में नैतिक सोच सजा में बंधी होती है अर्थात कोई गलत कार्य करने पर दंड दिया जाता है। जैसे- बड़ों की बात माननी चाहिए नहीं तो वह हमें दंडित करते हैं

द्वितीय चरण – इस चरण के अंतर्गत व्यक्ति के केंद्रित तथा एक-दूसरे का हित साधने का चिंतन होता है। इस चरण में वही बात सही है जिसमें बराबरी का लेन-देन हो। जैसे- हम दूसरों की इच्छा को पूरी कर दें तो दूसरा भी हमारी इच्छा को पूरी कर देगा।

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(2) रूढ़िगत नैतिकता का स्तर / परंपरागत नैतिक अवस्था (level of conventional morality)

यह अवस्था 10 से 13 वर्ष के बीच मानी जाती है। इस अवस्था में लोग एक पूर्व आधारित सोच में चीजों को देखते हैं। जैसे बच्चों का व्यवहार उनके माता-पिता या बड़े के समान ही होता है। अर्थात जैसे उनके माता-पिता रहे होंगे वैसे ही मिलते जुलते गुण उनके बच्चों के भी होंगे। इस अवस्था के दो चरण हैं –

प्रथम चरण – प्रथम चरण अच्छे आपसी व्यवहार व नैतिक विकास पर आधारित होता है। इस अवस्था में लोग विश्वास दूसरों का ख्याल रखना दूसरों से निष्पक्ष व्यवहार को अपने नैतिक व्यवहार का आधार मानते हैं। जैसे- बालक अपने माता-पिता की नजरों में एक अच्छा लड़का बनने की कोशिश करता है।

द्वितीय चरण- द्वितीय चरण सामाजिक व्यवस्था बनाए रखने पर आधारित होता है। यह लोगों में नैतिक निर्णय आदेशों तथा कर्तव्यों पर आधारित होता है। जैसे- इसमें किशोर का सोचना होता है कि समाज अच्छे से चले इसलिए सबको समाज के दायरे में ही रहना चाहिए।

(3) उत्तर रूढ़िगत नैतिकता का स्तर / गैर परंपरागत नैतिक अवस्था  (level of post-conventional morality)

यह अवस्था 13 वर्ष से ऊपर मानी जाती है। यह अवस्था सामाजिक अनुबंधन उपयोगिता और व्यक्तिगत अधिकारों पर आधारित होती है।
इस अवस्था के दो चरण है–

प्रथम चरण- यह चरण मूल अधिकरों व मूल सिद्धांतो पर आधारित होता है। इसमे व्यक्ति यह सोचने लगता है कि कुछ मूल अधिकार और मूल सिद्धांत कानून से भी ऊपर होते हैं। व्यक्ति यह भी सोचने लगता है कि वह किस हद तक मूलभूत मानवाधिकारों के मूल्यों का संरक्षण करें।

द्वितीय चरण- यह चरण सार्वभौमिक नीति सम्मत सिद्धांतों पर आधारित होता है। कोहलबर्ग के सिद्धांत की सबसे उच्च अवस्था इसी को माना जाता है। इस अवस्था में जब कोई कानून या अंतरात्मा के द्वंद में फंस जाता है। तब व्यक्ति यह तर्क करता है कि अंतरात्मा की आवाज के साथ चलना चाहिए या कानून के साथ । बाद में व्यक्ति अपनी अंतरात्मा को ही महत्व देता है।और उस काम को अपने अनुसार करता है चाहे वह निर्णय जोखिम भरा ही क्यों न हो।

FAQS

प्रश्न – 1. लॉरेंस कोहलबर्ग कौन थे, और उनका मुख्य योगदान क्या था?

उत्तर – लॉरेंस कोहलबर्ग एक प्रसिद्ध अमेरिकी मनोवैज्ञानिक थे, जिन्होंने नैतिक विकास (Moral Development) का सिद्धांत प्रस्तुत किया। उन्होंने बताया कि नैतिकता का विकास विभिन्न चरणों में होता है।

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प्रश्न – 2. कोहलबर्ग का नैतिक विकास का सिद्धांत क्या है?

उत्तर – कोहलबर्ग का सिद्धांत यह बताता है कि नैतिकता (Moral Reasoning) बचपन से वयस्कता तक छह चरणों में विकसित होती है, जो तीन स्तरों में विभाजित होती है।

प्रश्न – 3. कोहलबर्ग ने अपने नैतिक विकास के सिद्धांत को किस पर आधारित किया?

उत्तर – उन्होंने जीन पियाजे (Jean Piaget) के संज्ञानात्मक विकास (Cognitive Development) सिद्धांत को आगे बढ़ाते हुए नैतिकता के विकास पर शोध किया।

प्रश्न – 4. कोहलबर्ग के नैतिक विकास के कितने स्तर (Levels) होते हैं?

उत्तर – कोहलबर्ग के नैतिक विकास के तीन स्तर होते हैं:पूर्व-परंपरागत स्तर (Pre-Conventional Level)परंपरागत स्तर (Conventional Level)उत्तर-परंपरागत स्तर (Post-Conventional Level)

प्रश्न – 5. कोहलबर्ग के नैतिक विकास के कितने चरण (Stages) होते हैं?

उत्तर – कोहलबर्ग ने नैतिक विकास को छह चरणों (Stages) में विभाजित किया:सजा और आज्ञाकारिता (Punishment and Obedience Orientation)स्वार्थपूर्ण उद्देश्य (Self-Interest Orientation)अच्छे लड़के / लड़की का दृष्टिकोण (Good Boy/Good Girl Orientation)कानूनी और सामाजिक व्यवस्था (Law and Order Orientation)सामाजिक अनुबंध (Social Contract Orientation)सार्वभौमिक नैतिकता (Universal Ethical Principles)

प्रश्न – 6. पूर्व-परंपरागत स्तर (Pre-Conventional Level) क्या होता है?

उत्तर – इस स्तर पर बच्चे नैतिक निर्णय केवल व्यक्तिगत लाभ और सजा से बचने के आधार पर लेते हैं।

प्रश्न – 7. परंपरागत स्तर (Conventional Level) क्या होता है?

उत्तर – इस स्तर पर व्यक्ति नैतिक निर्णय सामाजिक नियमों, मान्यताओं और कानून के आधार पर लेते हैं।

प्रश्न – 8. उत्तर-परंपरागत स्तर (Post-Conventional Level) क्या होता है?

उत्तर – इस स्तर पर व्यक्ति सार्वभौमिक नैतिक सिद्धांतों के आधार पर निर्णय लेते हैं, भले ही वे समाज के नियमों से मेल न खाते हों।

प्रश्न – 9. कोहलबर्ग का नैतिक विकास सिद्धांत शिक्षा में कैसे उपयोगी है?

उत्तर – शिक्षक इस सिद्धांत का उपयोग करके छात्रों की नैतिक सोच को विकसित करने और उनमें नैतिक मूल्यों को बढ़ाने के लिए कर सकते हैं।

प्रश्न – 10. कोहलबर्ग के सिद्धांत और पियाजे के संज्ञानात्मक विकास सिद्धांत में क्या अंतर है?

उत्तर – पियाजे ने संज्ञानात्मक (बौद्धिक) विकास पर ध्यान केंद्रित किया, जबकि कोहलबर्ग ने नैतिक तर्क (Moral Reasoning) के विकास पर जोर दिया।

प्रश्न – 11. कोहलबर्ग के सिद्धांत का सामाजिक विकास पर क्या प्रभाव पड़ता है?

उत्तर – यह सिद्धांत बताता है कि लोग नैतिक रूप से कैसे परिपक्व होते हैं और सामाजिक मूल्यों को कैसे अपनाते हैं।

प्रश्न – 12. क्या सभी लोग कोहलबर्ग के सभी छह चरणों तक पहुँचते हैं?
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उत्तर – नहीं, अधिकांश लोग चौथे चरण (Law and Order Orientation) तक पहुँचते हैं, लेकिन केवल कुछ लोग पाँचवें और छठे चरण (Social Contract & Universal Ethics) तक पहुँचते हैं।

प्रश्न – 13. कोहलबर्ग के सिद्धांत की आलोचना क्या है?

उत्तर – यह नैतिकता के केवल तर्कशील (Rational) पक्ष पर ध्यान देता है, लेकिन भावनात्मक पहलू को अनदेखा करता है।इसमें सांस्कृतिक और लैंगिक विविधताओं को पर्याप्त रूप से शामिल नहीं किया गया है।कैरल गिलिगन (Carol Gilligan) ने इसे पुरुष-केंद्रित (Male-Centric) बताया।

प्रश्न – 14. कोहलबर्ग के सिद्धांत का न्याय प्रणाली (Judicial System) में क्या उपयोग है?

उत्तर – इस सिद्धांत का उपयोग यह समझने के लिए किया जाता है कि लोग नैतिक और कानूनी निर्णय कैसे लेते हैं, जिससे न्याय प्रक्रिया में सुधार किया जा सकता है।

प्रश्न – 15. कोहलबर्ग ने नैतिक विकास को मापने के लिए कौन-सा प्रयोग किया था?

उत्तर – उन्होंने “हाइन्ज़ दुविधा” (Heinz Dilemma) प्रयोग किया, जिसमें नैतिकता से जुड़े सवालों पर लोगों की प्रतिक्रियाएँ जांची गईं।

प्रश्न – 16. क्या कोहलबर्ग का सिद्धांत धर्म और नैतिकता से संबंधित है?

उत्तर – हाँ, लेकिन यह धर्म पर आधारित नहीं है। यह सिद्धांत बताता है कि नैतिक सोच सामाजिक और बौद्धिक विकास से प्रभावित होती है।

प्रश्न – 17. कोहलबर्ग के सिद्धांत का व्यवसाय (Business Ethics) में क्या उपयोग है?

उत्तर – व्यापारिक नैतिकता (Corporate Ethics) में इस सिद्धांत का उपयोग किया जाता है ताकि कर्मचारियों को नैतिक निर्णय लेने के लिए प्रेरित किया जा सके।

प्रश्न – 18. कोहलबर्ग का सिद्धांत नैतिक शिक्षा (Moral Education) में कैसे उपयोग किया जाता है?

उत्तर – इस सिद्धांत के आधार पर स्कूलों में नैतिक शिक्षा के कार्यक्रम तैयार किए जाते हैं, जिससे बच्चों में नैतिक मूल्यों का विकास हो सके।

प्रश्न – 19. क्या कोहलबर्ग का सिद्धांत केवल पश्चिमी संस्कृति पर आधारित है?

उत्तर – हाँ, इसे पश्चिमी नैतिकता के आधार पर विकसित किया गया था, इसलिए कुछ आलोचकों का मानना है कि यह अन्य संस्कृतियों पर पूरी तरह से लागू नहीं होता।

प्रश्न – 20. कोहलबर्ग के सिद्धांत का भविष्य में क्या प्रभाव हो सकता है?

उत्तर – भविष्य में इस सिद्धांत का उपयोग शिक्षा, कानून, नैतिक अनुसंधान और सामाजिक नीति निर्माण में और अधिक किया जा सकता है, जिससे नैतिक सोच को बेहतर समझा जा सके।

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