बीटीसी एवं सुपरटेट की परीक्षा में शामिल शिक्षण कौशल के विषय शैक्षिक मूल्यांकन क्रियात्मक शोध एवं नवाचार में सम्मिलित चैप्टर शैक्षिक मूल्यांकन का अर्थ,परिभाषा और उद्देश्य | मूल्यांकन के क्षेत्र | meaning and definition of Educational Evaluation in hindi आज हमारी वेबसाइट hindiamrit.com का टॉपिक हैं।
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शैक्षिक मूल्यांकन का अर्थ,परिभाषा और उद्देश्य | मूल्यांकन के क्षेत्र | meaning and definition of Educational Evaluation in hindi
मूल्यांकन के क्षेत्र | शैक्षिक मूल्यांकन का अर्थ,परिभाषा और उद्देश्य | meaning and definition of Educational Evaluation in hindi
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मूल्यांकन का अर्थ | meaning of evaluation in hindi
मूल्यांकन शैक्षिक प्रक्रिया का एक अभिन्न अंग है। मूल्यांकन न केवल
शैक्षिक प्रक्रिया से जुड़ा है बल्कि जीवन के प्रत्येक पहलू से सम्बन्धित है। जीवन के प्रत्येक क्षेत्र में किसी-न-किसी रूप में मूल्यांकन की अपेक्षा की जाती है।
उदाहरणार्थ-एक डॉक्टर अपनी औषधि की प्रभावशीलता का मूल्यांकन रोगी के आधार पर करता है। बाग का माली अपने पौधे का मूल्यांकन उनकी सुन्दरता के आधार पर करता है ठीक इसी प्रकार एक शिक्षक अपने प्रभावी शिक्षण का मूल्यांकन विद्यार्थी में हुए अपेक्षित व्यवहार परिवर्तन के आधार पर करता है। इस दृष्टिकोण से मूल्यांकन शिक्षा के उद्देश्यों पर आधारित है।
मापन द्वारा गुणों, योग्यताओं तथा विशेषताओं के परिणाम के बारे में जानकारी प्राप्त होती है कि अमुक छात्र ने 50 में से 30 या 40 अंक प्राप्त किये हैं, परन्तु 50 में से 30 या 40 अंक प्राप्त करना ही पर्याप्त नहीं होता है। अध्यापक को यह जानना आवश्यक है कि प्राप्तांक कितने अच्छे हैं? अत: मूल्यांकन के अन्तर्गत किसी गुण, योग्यता या विशेषता का मूल्य निर्धारित किया जाता है अर्थात् मूल्यांकन द्वारा परिमाणात्मक या गुणात्मक दोनों ही प्रकार की सूचनाएँ प्राप्त होती हैं। इसके आधार पर छात्र की योग्यता एवं उपलब्धि दोनों का आकलन किया जाता है।
मूल्यांकन के शाब्दिक अर्थ को स्पष्ट करते हुए कहा जा सकता है कि मूल्यांकन दो शब्दों के मेल से बना है- मूल्यांकन = मूल्य + अंकन (Evaluation) (Value) + (Assigning numbers)
इस प्रकार मूल्यांकन का आशय किसी वस्तु या व्यक्ति के मूल्य को आँकने की वह प्रक्रिया है जिसमें मापित मूल्य का अवलोकन कर उसकी उपयोगिता या मूल्य का निर्धारण किया जाता है।
मूल्यांकन की परिभाषाएं
क्रानबेक के अनुसार,” मूल्यांकन वह प्रक्रिया है जिसके द्वारा शिक्षक एवं छात्र यह निर्णय करते हैं कि शिक्षण लक्ष्यों को प्राप्त किया जा रहा है कि नही।”
स्टोन के अनुसार,“मूल्यांकन एक नवीन प्राविधिक पद है जिसका प्रयोग मापन की धारणा की परंपरागत जांचों एवं परीक्षाओं की अपेक्षा अधिक व्यापक रूप में व्यक्त करने के लिए किया गया है।”
कोठारी आयोग के अनुसार,”मूल्यांकन एक क्रमिक प्रक्रिया है जोकि सम्पूर्ण शिक्षा प्रणाली का एक महत्वपूर्ण अंग है और जो शैक्षिक उद्देश्यों से घनिष्ठ रूप से सम्बंधित है।”
मूल्यांकन की त्रिमुखी प्रक्रिया | शैक्षिक मूल्यांकन की त्रिमुखी प्रक्रिया
डीवी (Dewey) के अनुसार, “शैक्षिक मूल्यांकन एक त्रिमुखी प्रक्रिया
शैक्षिक मूल्यांकन एक जटिल प्रक्रिया है।”
नवीन धारणा के अनुसार इस प्रक्रिया के तीन महत्वपूर्ण बिन्दु हैं-
(1) शिक्षण उद्देश्य (Instructional or Educational Objectives)|
(2) अधिगम अनुभव (Leaming Experiences)|
(3) मूल्यांकन के उपकरण या व्यवहार परिवर्तन (Tools of Evaluation or Behaviour Changes)
ड्यूवी (Dewey) ने शैक्षिक मूल्यांकन के तीन बिन्दु या अंग होने के कारण इसे त्रिमुखी प्रक्रिया (Tripolar Process) कहा है। उपरोक्त तीनों अंग परस्पर घनिष्ठ रूप से सम्बन्धित हैं जिसे निम्न चित्र द्वारा स्पष्ट किया गया है-
लेकिन डॉ. पटेल के अनुसार, “शैक्षिक मूल्यांकन की प्रक्रिया चतुर्मुखी है।”
डॉ. पटेल ने 1978 में चार बिन्दुओं के आधार पर शैक्षिक प्रक्रिया की व्याख्या की है, जो निम्न हैं-
(1) विषयवस्तु (Content or Curriculum), (2) शैक्षिक उद्देश्य (Educational Objectives), (3) अधिगम क्रियाएँ (Learning Activities), (4) मूल्यांकन पद्धति (Evaluation Procedures)|
मूल्यांकन की आवश्यकता तथा महत्व | मूल्यांकन की शिक्षा में आवश्यकता तथा महत्व
मापन और मूल्यांकन की शिक्षा में निम्न आवश्यकता एवं महत्व हैं-
(1) सीखने की प्रेरणा (Motivation of Learning)।
(2) पाठ्यक्रम में परिवर्तन (Modification in Curriculum)।
(3) शिक्षण में उन्नति (Progress in Teaching)।
(4) निर्देशन एवं परामर्श में सहायक (Helpful in Guidance and Counselling)।
(5) परीक्षा प्रणाली में सुधार (Improvement in Examination System)|
(6) विद्यालयों में सुधार (Improvement in Institutions)।
मूल्यांकन के उद्देश्य | शिक्षा में मूल्यांकन के उद्देश्य
मापन एवं मूल्यांकन का अपने में न कोई उद्देश्य होता है और न कार्य,
जिस क्षेत्र में इनका प्रयोग जिन उद्देश्यों से किया जाता है उस क्षेत्र में इनके वही उद्देश्य होते हैं और इन उद्देश्यों की पूर्ति करना इनके कार्य होते हैं। शिक्षा के क्षेत्र में मापन एवं मूल्यांकन के उद्देश्य एवं कार्य निम्न हैं-
(1) चयन एवं वर्गीकरण में सहायक
(2) पूर्वकथन (Prediction)।
(3) तुलना (Comparison)।
(4) परामर्श एवं निर्देशन (Guidance and Counselling)|
(5) निदान (Diagnosis)।
(6) अन्वेषण एवं शोध कार्य (Researches)।
(7) संशोधन (Modification)।
(8) अभिभावकों, प्रबन्धकों एवं प्रशासकों को छात्र की उपलब्धि के विषय में बताना ।
(9) शैक्षिक एवं व्यवसायिक मार्ग प्रदर्शन में सहायक
(10) शिक्षकों की कुशलता तथा सफलता का मापन
(11) शिक्षण विधियों की उपयुक्तता की जांच करना
(12) विद्यालय में चलने वाली पाठ्यपुस्तक के छात्रों के लिए उपयुक्त है या नहीं इसकी जांच करना ।
मूल्यांकन की विशेषताएं
(1) मूल्यांकन निरंतर चलने वाली प्रक्रिया है ।
(2) मूल्यांकन समस्त शिक्षण एवं अधिगम का अभिन्न अंग है।
(3) मूल्यांकन का शिक्षा के उद्देश्य से घनिष्ठ संबंध होता है।
(4) मूल्यांकन परीक्षण एक व्यापक पद है जिसमें जांच एवं मापन दोनों का समावेश होता है ।
(5) मूल्यांकन का संबंध छात्र की स्थिति से ना होकर छात्र के विकास से होता है।
(6) मूल्यांकन एक सहयोगी कार्य है क्योंकि इसमें छात्रों शिक्षकों अभिभावकों सभी का सहयोग प्राप्त किया जाता है ।
(7) मूल्यांकन केवल विद्यार्थी की शैक्षिक उपलब्धि का ही मापन नहीं करता है अपितु उसकी शैक्षिक उपलब्धि में सुधार करता है ।
(8) मूल्यांकन का संबंध समूह में विद्यार्थी की स्थिति से नहीं होता और उसके विकास होता है।
(9) मूल्यांकन का क्षेत्र अत्यंत व्यापक है क्योंकि इसमें विद्यार्थी के सभी पक्ष आ जाते हैं। जैसे – नैतिक, मानसिक, संवेगात्मक, सामाजिक एवं शारीरिक पक्ष आदि।
मूल्यांकन के क्षेत्र
इसका (मूल्यांकन) का क्षेत्र अत्यधिक व्यापक है। आर. एस. वर्मा के अनुसार,“मूल्यांकन के क्षेत्र से हमारा तात्पर्य उन क्षेत्रों से है, जिनमें व्यवहारगत परिवर्तन हो सकते हैं। दूसरे शब्दों में, किसका मूल्यांकन किया जाए प्रश्न का उत्तर ही मूल्यांकन का क्षेत्र निर्धारित करना है। मूल्यांकन द्वारा हम व्यक्तित्व के विभिन्न आयामों का पता लगाते हैं। ये आयाम संवेगात्मक, सामाजिक, नैतिक, शारीरिक तथा बौद्धिक क्षेत्रों से सम्बन्धित हो सकते हैं।” मूल्यांकन का सम्बन्ध केवल छात्र की बौद्धिक उपलब्धि से न होकर उसके सम्पूर्ण व्यक्तित्व से है। रेमर्स तथा गेज के अनुसार, “मूल्यांकन की प्रक्रिया की व्यापकता छात्र के समस्त व्यक्तित्व पर अपने प्रसार का उल्लेख करती है न कि केवल उसकी बौद्धिक उपलब्धि पर।”
मूल्यांकन के क्षेत्र के अन्तर्गत छात्र के व्यक्तित्व के निम्न अंग हैं-
(1) ज्ञान (Knowledge)-मूल्यांकन में इस बात का अध्ययन किया जाता है कि छात्र ने विषय-वस्तु के सम्बन्ध में कितना ज्ञान अर्जित किया है।
(2) कुशलताएँ (Skills)-कुशलताओं का सम्बन्ध पाठ्य-विषय से सम्बन्धित कुशलताओं से है।
(3) रुचियाँ (Interests)--इनका सम्बन्ध किसी वस्तु विषय या क्रिया को पसन्द करने या न करने से है। अभिरुचि परीक्षणों का आयोजन इसी उद्देश्य से किया जाता है।
(4) बोध या अवबोध (Comprehension)-बोध से तात्पर्य है कि छात्र सीखी हुई सामग्री की कितनी प्रकार से व्याख्या करने की क्षमता रखता है।
(5) योग्यताएँ (Abilities)-छात्रों की योग्यताओं का ज्ञान करना, योग्यताएँ सामान्य तथा विशिष्ट दोनों प्रकार की होती हैं।
(6) सूचना (Information)-छात्र ने ज्ञान के सम्बन्ध में कितनी सूचना का संकलन किया है।
(7) प्रवृत्तियाँ, अभिवृत्तियाँ तथा मूल्य (Tendencies, attitude and value)-यह देखना कि छात्र को अपने विषय में, अपने मित्रों से, अपने विद्यालय में क्या प्रवृत्तियाँ, अभिवृत्तियाँ तथा मूल्य हैं?
(8) बुद्धि (Intelligence)-यह ज्ञात करना कि कुछ छात्र क्यों भूल करते हैं तथा गलतियों की पुनरावृत्ति क्यों करते हैं?
(9) शारीरिक स्वास्थ्य (Physical Health)-शारीरिक स्वास्थ्य का मापन करना मूल्यांकन के क्षेत्र के अन्तर्गत आता है। इसके लिए ‘प्रश्नावली’ ‘स्वस्थ इतिहास’ तथा निरीक्षण पद्धतियों का प्रयोग किया जाता है। वास्तव में शारीरिक, स्वास्थ्य भी एक महत्वपूर्ण तत्व है, जिसका मापन किये बिना कोई भी मूल्यांकन अधूरा रह जायेगा।
(10) छात्रों की त्रुटियाँ (Mistakes of Students)-मूल्यांकन के द्वारा छात्र की जाँच हो जाती है कि वह त्रुटियाँ क्यों कर रहा है। त्रुटियों का ज्ञान हो जाने पर उनके निराकरण के प्रयास किए जाते हैं।
मूल्यांकन शैक्षिक प्रक्रिया का एक अभिन्न अंग है। मूल्यांकन न केवल
शैक्षिक प्रक्रिया से जुड़ा है बल्कि जीवन के प्रत्येक पहलू से सम्बन्धित है। जीवन के प्रत्येक क्षेत्र में किसी-न-किसी रूप में मूल्यांकन की अपेक्षा की जाती है।
उदाहरणार्थ-एक डॉक्टर अपनी औषधि की प्रभावशीलता का मूल्यांकन रोगी के आधार पर करता है। बाग का माली अपने पौधे का मूल्यांकन उनकी सुन्दरता के आधार पर करता है ठीक इसी प्रकार एक शिक्षक अपने प्रभावी शिक्षण का मूल्यांकन विद्यार्थी में हुए अपेक्षित व्यवहार परिवर्तन के आधार पर करता है। इस दृष्टिकोण से मूल्यांकन शिक्षा के उद्देश्यों पर आधारित है।
मापन द्वारा गुणों, योग्यताओं तथा विशेषताओं के परिणाम के बारे में जानकारी प्राप्त होती है कि अमुक छात्र ने 50 में से 30 या 40 अंक प्राप्त किये हैं, परन्तु 50 में से 30 या 40 अंक प्राप्त करना ही पर्याप्त नहीं होता है। अध्यापक को यह जानना आवश्यक है कि प्राप्तांक कितने अच्छे हैं? अत: मूल्यांकन के अन्तर्गत किसी गुण, योग्यता या विशेषता का मूल्य निर्धारित किया जाता है अर्थात् मूल्यांकन द्वारा परिमाणात्मक या गुणात्मक दोनों ही प्रकार की सूचनाएँ प्राप्त होती हैं। इसके आधार पर छात्र की योग्यता एवं उपलब्धि दोनों का आकलन किया जाता है।
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