सूक्ष्म शिक्षण का अर्थ एवं परिभाषा | सूक्ष्म शिक्षण के लाभ एवं गुण | process of micro teaching in hindi

सूक्ष्म शिक्षण का अर्थ एवं परिभाषा | सूक्ष्म शिक्षण के लाभ एवं गुण |  process of micro teaching in hindi  – दोस्तों सहायक अध्यापक भर्ती परीक्षा में शिक्षण कौशल 10 अंक का पूछा जाता है। शिक्षण कौशल के अंतर्गत ही एक विषय शामिल है जिसका नाम शिक्षण अधिगम के सिद्धांत है। यह विषय बीटीसी बीएड में भी शामिल है। आज हम इसी विषय के समस्त टॉपिक को पढ़ेगे।  बीटीसी, बीएड,यूपीटेट, सुपरटेट की परीक्षाओं में इस टॉपिक से जरूर प्रश्न आता है।

अतः इसकी महत्ता को देखते हुए hindiamrit.com आपके लिए सूक्ष्म शिक्षण का अर्थ एवं परिभाषा | सूक्ष्म शिक्षण के लाभ एवं गुण |  process of micro teaching in hindi  लेकर आया है।

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सूक्ष्म शिक्षण का अर्थ एवं परिभाषा | सूक्ष्म शिक्षण के लाभ एवं गुण |  process of micro teaching in hindi

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सूक्ष्म शिक्षण का अर्थ

सूक्ष्म शिक्षण कक्षा अध्यापन की कोई विधि नहीं है। यह तो शिक्षक प्रशिक्षण की एक प्रयोगशालीय एवं वैश्लेषिक (Laboratory and Analytical) तकनीक है।

इस प्रकार की प्रशिक्षण क्रिया में शिक्षण की इकाई को अनेक छोटी-छोटी इकाइयों में बाँट दिया जाता है। किन्तु प्रत्येक इकाई अपने आप में पूर्ण रहती है। सूक्ष्म शिक्षण छात्राध्यापक के लिए एक प्रशिक्षण है जिसमें सामान्य कक्षाध्यापन की जटिलताओं को कम किया जाता है।

जटिल शिक्षण कौशल को आसान घटक शिक्षण कौशल (Component Teaching Skills) में विश्लेषित किया जाता है। एक समय में एक कौशल लेकर 5-10 मिनट की पाठ योजना तैयार की जाती है। इस पाठ को सूक्ष्म कक्षा जिसमें 5-10 छात्र होते हैं, पढ़ाया जाता है ।

इस विधि में वास्तविक एवं सामान्य शिक्षण प्रक्रिया की जटिलताओं को निम्न प्रकार से कम किया जाता है-

(1) एक बार में एक घटक कौशल को लेकर। (2) पाठ्य-वस्तु को एक इकाई तक सीमित रहना। (3) कक्षा में छात्रों की संख्या घटाकर (5-10 छात्र) सूक्ष्म करना। (4) पाठ अवधि को 5-10 मिनट का बनाकर सूक्ष्म करना।

सूक्ष्म शिक्षण की परिभाषाएं

डी. ऐलन एवं के. रेयॉन (D. Allen & K. Ryan) ने सूक्ष्म-शिक्षण को इन शब्दों में परिभाषित किया है-

“ सूक्ष्म शिक्षण, शिक्षकों को शिक्षण के अभ्यास के लिए एक ऐसी स्थिति प्रदान करता है जो कक्षा-कक्ष की सामान्य जटिलताओं को कम कर देता है ।

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B. M. Shore के अनुसार-

“सूक्ष्म शिक्षण कम छात्रों एवं कम शिक्षण क्रियाओं वाली प्रविधि के लिए किया जाता है।”

1968 में स्टेनफोर्ड विश्वविद्यालय में जहाँ इस प्रणाली का जन्म हुआ, एलन ने सूक्ष्म शिक्षण को इस प्रकार परिभाषित किया है-

“सूक्ष्म शिक्षण, शिक्षण का लघु रूप है जिसके अन्तर्गत अर्थात् छोटी कक्षा को थोड़े समय पढ़ाना होता है अर्थात् कक्षा शिक्षण का लघु रूप।”

क्लिष्ट एवं अन्य ने शिक्षण की परिभाषा इस प्रकार दी है-

“सूक्ष्म शिक्षण अध्यापक प्रशिक्षण की एक लघु प्रक्रिया है जिसमें शिक्षण परिस्थितियों को सरल रूप में प्रस्तुत किया जाता है जिसके अन्तर्गत विशिष्ट कौशल का अभ्यास किया जाता है। कक्षा का आकार शिक्षण का कालांश तथा प्रकरण का लघु रूप होता है।”

प्रो. नरेन्द्र वैद्या के अनुसार-

“सूक्ष्म शिक्षण वह सूक्ष्म पदीय शिक्षण स्थितियाँ हैं।

मैक्नाइट (McKnight) के अनुसार-

“सूक्ष्म शिक्षण वह सूक्ष्म पदीय शिक्षण जहाँ वास्तविक कक्षा-शिक्षण की जटिल रात पर्याप्त कम हो जाती हैं। इसके साथ ही शिक्षण अभ्यास की तुलना में पृष्ठ-पोषण की मात्रा बढ़ जाती है।”

बुच ने सूक्ष्म शिक्षण की परिभाषा इस प्रकार दी है-

“यह एक अध्यापक शिक्षा की एक प्रविधि है। इसमें सुनिश्चित शिक्षण कौशल के अभ्यास के लिए अवसर दिया जाता है। पाँच से दस मिनट शिक्षण के लिए पाठ योजना तैयार करता है और वास्तविक कक्षा के लघु रूप को पढ़ाता है। शिक्षण कौशल के सुधार एवं विकास के लिए
पृष्ठपोषण दिया जाता है।”

सूक्ष्म शिक्षण के आधार अथवा सूक्ष्म शिक्षण प्रक्रिया के सिद्धान्त

सूक्ष्म शिक्षण प्रक्रिया के निम्न मूलभूत सिद्धान्तों पर आधारित है-

(1) शिक्षण एक जटिल कौशल है जिसे आसान कौशलों में विश्लेषित किया जा सकता है।

(2) सूक्ष्म शिक्षण वास्तविक कौशल है।

(3) सरल शिक्षण परिवेश में एक-एक घटक शिक्षण कौशलों को लेकर उन पर कुशलता प्राप्त की जा सकती है।

(4) पृष्ठ-पोषण सहित प्रशिक्षण कौशल कुशलता में सहायक होता है।

(5) एक समय में किसी भी एक कौशल के प्रशिक्षण पर ही जोर दिया जाता है। वास्तविक शिक्षण के लिए उन्हें मिलाया जा सकता है।

(6) कौशल प्रशिक्षण, वास्तविक शिक्षण में परिवर्तित किया जा सकता है।

सूक्ष्म शिक्षण प्रक्रिया (Process of Micro Teaching)

इस प्रक्रिया में एक छात्राध्यापक किसी भी एक शिक्षण कौशल का अभ्यास करने के लिए एक छोटी-सी विषय-वस्तु पर पाठ योजना बनाकर पढ़ाता है। पाँच से सात मिनट तक पढ़ाने के पश्चात् छात्राध्यापक पढ़ाना बंद कर देता है और फिर छात्राध्यापक को कई
स्रोतों; जैसे-निरीक्षक (Supervisor), सहपाठी (Peer), टेप-रिकॉर्डर (Tape- Recorder). दूरदर्शन (Television) आदि द्वारा पृष्ठ-पोषण (Feedback) प्रदान की जाती है।

पृष्ठ-पोषण प्राप्त करने के पश्चात् छात्राध्यापक अपनी पाठ-योजना पर दिये गये सुझावों के आधार पर परिवर्तन लाता है। इसके पश्चात् वह पुनः उसी पाठ को दूसरे पाँच-दस छात्रों को पढ़ाता है। इसके पश्चात् उसे पुनः पृष्ठ-पोषण दी जाती है और पृष्ठ-पोषण के पश्चात् अपनी कमियों को देखकर अपने शिक्षण व्यवहार में सुधार लाता है। यह क्रम तब तक चलाया जा सकता है जब तक कि छात्राध्यापक को यह विश्वास न हो जाए कि उसके द्वारा पढ़ाया गया पाठ सही ढंग से पढ़ा लिया गया है।

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सूक्ष्म शिक्षण की विशेषताएँ (Characteristics of Micro-teaching)

(1) सूक्ष्म शिक्षण में सूक्ष्म पाठ योजना (Micro Lesson Plans) एवं शिक्षण के लिए छात्राध्यापक को विषय-वस्तु की एक छोटी इकाई को ही तैयार करना पड़ता है।

(2) सूक्ष्म पाठ की विषय-वस्तु एक ही सम्प्रत्यय (Concept) तक सीमित होती है।

(3) छात्राध्यापक (Pupil-teacher) 5-10 छात्रों की कक्षा में अध्यापन करता है।

(4) यह छात्र वास्तविक छात्र (Students) होते हैं और वास्तविक छात्र न मिलने पर छात्राध्यापकों (Pupil-teachers) से छात्रों की भूमिका निर्वाह (Role Play) करायी जाती है।

(5) सूक्ष्म पाठ 5-10 मिनट का होता है।

(6) सूक्ष्म शिक्षण विधि द्वारा प्रशिक्षण प्राप्त करने के लिए छात्राध्यापक को किसी अन्य प्रशिक्षण महाविद्यालय में जाने की आवश्यकता नहीं पड़ती।

(7) पाठ देते समय छात्रों में अनुशासनहीनता की समस्या नहीं रहती।

(8) छात्राध्यापक का पूर्ण ध्यान एवं प्रयास एक पाठ में एक ही शिक्षण कौशल (Teacher Skill) पर केन्द्रित रहता है।

(9) पाठ समुचित निरीक्षण सामग्री द्वारा अध्यापक द्वारा किया जाता है।

(10) पाठ को सुधारने हेतु पर्यवेक्षक (Supervisor) द्वारा पाठ के उपरांत समुचित रूप से प्रतिपुष्टि (Feedback) दी जाती है।

(11) प्रतिपुष्टि के साथ समालोचना एवं सुझाव दिए जाते हैं। इन सुझावों के आधार पर छात्राध्यापक निश्चित कौशल से सम्बन्धित अपने पाठ की पुनर्योजना बनाता है जिससे छात्राध्यापक को अपने पाठ को सुधारने का तुरन्त अवसर मिलता है।

(12) सुधारे हुए पुनर्नियोजित पाठ को पुन: पढ़ाने (Reteach) का अवसर मिलता है।

(13) उन्हीं छात्रों को विषय बदलकर उसी कौशल पर आधारित अथवा दूसरे छात्रों को वही पाठ उसी अवधि में उस दिन पढ़ाया जाता है जब तक कि उस कौशल का पूर्ण अभ्यास नहीं हो जाता।


सूक्ष्म शिक्षण के गुण

(1) सूक्ष्म शिक्षण वास्तविक शिक्षण है। उसमें शिक्षण और छात्र अभ्यास की स्थिति में एक साथ कार्य करते हैं।

(2) इससे कक्षा में अध्यापन की जटिलताओं में कमी आ जाती है क्योंकि इसमें कक्षा छोटी होती है और विषय-वस्तु का विस्तार भी कम होता है।

(3) सूक्ष्म शिक्षण किसी विशिष्ट कार्य की उपलब्धि के लिए प्रशिक्षण देने की ओर केन्द्रित रहता है।

(4) इसके द्वारा प्रशिक्षण कार्यक्रम में उच्च स्तर के नियन्त्रण की रचना की जा सकता है।

(5) पाठ पढ़ाने के तुरन्त बाद प्रशिक्षणार्थी अपने कार्य की समालोचना में लग जाता है। उसे पृष्ठ-पोषण (Feedback) देने के लिए पर्याप्त साधन उपलब्ध रहते हैं।

सूक्ष्म शिक्षण के लाभ

(1) शिक्षण कौशल विश्लेषण (Analysis of Teaching Skill)-सूक्ष्म शिक्षण द्वारा शिक्षण के प्रक्रम (Process) को अनेक अंगों तथा उपांगों (Parts) में बाँटकर शिक्षण प्रक्रिया को अधिक सरल बनाया जाता है।

(2) शिक्षण व्यवहारों में सुधार (Progress in Teaching Behaviour)- सूक्ष्म शिक्षण द्वारा शिक्षण व्यवहारों में सुधार एवं विस्तार किया जा सकता है।

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(3) कौशल (Skill)- छात्राध्यापक (Pupil-teacher) एक समय में एक ही कौशल (Skill) पर अपना ध्यान केन्द्रित कर उसका परिष्कार कर सकता है।

(4) प्रतिपुष्टि (Feedback)- प्रतिपुष्टि सम्पूर्ण दृष्टिकोणों को अंगीकार करती है।

(5) पर्यवेक्षक की भूमिका (Role of Supervisor)- पर्यवेक्षक अभ्यासक्रम का निर्देशक (Director) होता है, Faur Fonder नहीं। अत: वह परामर्शदाता के रूप में कार्य करता है और पाठ नियोजन (Planning) से लेकर पाठ तक सभी स्तरों पर मार्गदर्शन देता है। शिक्षण कौशल (Teaching Skill) में पूर्ण रूप से विकास हो सके।
पर्यवेक्षक तो छात्राध्यापक का पथप्रदर्शक, मित्र एवं दार्शनिक है।

(6) शिक्षण शिल्प (Teaching Technology)- सूक्ष्म शिक्षण द्वारा नये पाठ्क्रमों, शिक्षण विधियों, शैक्षिक फिल्म निर्माण, शिक्षण आदि में सुधार एवं विकास किया जा सकता है।

(7) अभ्यास (Practice)- सूक्ष्म शिक्षण अभ्यास के लिए अनेक उपयोगी एवं समुचित अवसर प्रदान करता है।

सूक्ष्म शिक्षण का महत्व

राष्ट्र को समृद्ध बनाने के लिए यह आवश्यक है कि कक्षाओं में अध्ययन-अध्यापन के स्तर में सुधार किया जाए। इसके लिए अध्यापक के कर्त्तव्य में गुणात्मक सुधार एवं विकास हो। स्वतन्त्रता के बाद से हमारी शिक्षा का गुणात्मक स्तर काफी गिर चुका है। शिक्षण के वृत्तिक कार्य में सुधार लाने पर ही प्रभावशाली कक्षा-अध्यापन सम्भव है।

कोठारी आयोग के अनुसार-“शिक्षा में गुणात्मक सुधार के लिए यह अनिवार्य है कि अध्यापकों में वृत्तिक शिक्षण का एक समुचित कार्यक्रम हो।”

अध्यापक के परम्परा प्रेम से शिक्षा सुधार में बाधा उत्पन्न होती है। अत: शिक्षा में आमूलचूल परिवर्तन के लिए यह आवश्यक है कि अध्यापक को सफल रीति से शिक्षण दिया जाए।

शिक्षा के सभी आयोगों ने शिक्षकों के प्रशिक्षण में सुधार लाने के लिए कहा है। प्रशिक्षण संस्थानों में पुराने तरीके अपनाये जा रहे है। वर्तमान आवश्यकतायें भी अब बदल चुकी हैं। वह पहले से काफी भिन्न हैं। अत: प्रशिक्षण को सार्थक बनाने के लिए आधुनिक तौर-तरीके अपनाये जायें। सूक्ष्म शिक्षण इसी ओर एक महत्वपूर्ण प्रयास है।

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