प्लेटो का शिक्षा दर्शन | प्लेटो के अनुसार शिक्षा के उद्देश्य पाठ्यक्रम एवं शिक्षण विधियां

बीटीसी एवं सुपरटेट की परीक्षा में शामिल शिक्षण कौशल के विषय वर्तमान भारतीय समाज एवं प्रारंभिक शिक्षा में सम्मिलित चैप्टर प्लेटो का शिक्षा दर्शन | प्लेटो के अनुसार शिक्षा के उद्देश्य पाठ्यक्रम एवं शिक्षण विधियां आज हमारी वेबसाइट hindiamrit.com का टॉपिक हैं।

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प्लेटो का शिक्षा दर्शन | प्लेटो के अनुसार शिक्षा के उद्देश्य पाठ्यक्रम एवं शिक्षण विधियां

प्लेटो का शिक्षा दर्शन | प्लेटो के अनुसार शिक्षा के उद्देश्य पाठ्यक्रम एवं शिक्षण विधियां
प्लेटो का शिक्षा दर्शन | प्लेटो के अनुसार शिक्षा के उद्देश्य पाठ्यक्रम एवं शिक्षण विधियां


(Plato) प्लेटो का शिक्षा दर्शन | प्लेटो के अनुसार शिक्षा के उद्देश्य पाठ्यक्रम एवं शिक्षण विधियां

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पाश्चात्य विचारकों का शिक्षा में योगदान

शिक्षाशास्त्री चाहे वह पाश्चात्य देशों में जन्मे हों या भारतीय परिवेश में, सभी का उद्देश्य शिक्षा को व्यापक तथा सर्वहित के योग्य बनाना रहा है। सभी शिक्षाशास्त्रियों ने शिक्षा को सभी के लिये उपयोगी बनाने के प्रयास को उचित ठहराया है। रूसो, फ्रॉबेल, मॉण्टेसरी, पेस्टालाजी, डीवी तथा रसेल आदि पाश्चात्य शिक्षाशास्त्रियों ने शिक्षा में क्रान्तिकारी परिवर्तन कर नये आयाम प्रस्तुत किये हैं। प्रमुख पश्चात्य शिक्षा विचारक निम्नलिखित हैं-(1) प्लेटो, (2) रूसो, (3) जॉन डीवी, (4) फ्रॉबेल तथा (5) मारिया मॉण्टेसरी।

प्लेटो का जीवन परिचय (आदर्शवादी) (427-347 B.C.)


सुकरात के बाद शिक्षा दार्शनिकों में प्लेटो का नाम बड़े ही आदर तथा गौरव के साथ लिया जाता है। इसका जन्म धनी तथा पूर्ण वैभवसम्पन्न घराने में एथेन्स के अन्तिम राजा काडूस के घर 427 ई. पू. में हुआ था। प्लेटो की माँसोलन वंश की थी। प्लेटो राजघराने का शाही बेटा था। राजनीतिक घराने के कारण प्लेटो को सबकुछ अपने पिता अरिस्टन से प्राप्त तो हो गया किन्तु प्लेटो धनसम्पन्नता तथा राजसी ठाट-बाट के कारण लोकहित सोच से परिचित नहीं हो सका। युवावस्था आते-आते मानसिक उथल-पुथल ने प्लेटो को झकझोर दिया। इस कारण प्लेटो का शासन निर्दयी शासकों के सानिध्य में आ गया।

सुकरात के साथ निर्दयी व्यवहार में इन्हीं शासकों का हाथ था। इस घटना से भी प्लेटो व्यथित था। वह युवावस्था में सुकरात के सम्पर्क में आ चुका था। उसने सुकरात के दर्शन तथा गुरुता में अपनी आस्था को विलीन कर दिया। प्लेटो महात्मा सुकरात का लगभग दस वर्ष तक शिष्य रहा।

जब सुकरात को विष देकर प्राण हनन किया गया । तब प्लेटो 28 वर्ष का था। अपने परम प्रिय तथा आदरणीय गुरु सुकरात को जघन्य हत्या से प्लेटो की आत्मा रो उठी। आश्चर्य तो इस बात का है कि प्लेटो का गुरु सुकरात नितान्त गरीब था, जबकि प्लेटो राजघराने का शाही पुत्र था। वह विद्रोह स्वरूप एथेन्स छोड़ विश्व भ्रमण हेतु मेगारा, मिस्त्र, इटली तथा भारत आदि की यात्रा पर दर्शन के प्रसारार्थ निकल पड़ा। अपने गुरु की यादें उसे रह-रहकर शेष छूटे कार्यों को पूरा करने के लिये प्रेरित कर रही थीं। प्लेटो दस वर्ष बाहर रहने के बाद एथेन्स पुनः वापस आ गया और वहाँ उसने एकेडेमी की स्थापना की। यह एकेडेमी प्लेटो द्वारा लगभग 40 वर्षों तक शिक्षण तथा शिक्षा प्रसार में कार्यरत रही। प्लेटो की लगभग सभी रचनाएँ संवाद के रूप में लिखी गयी हैं।

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प्लेटो की पुस्तकें / प्लेटो की रचनाएं

इसकी सात रचनाएँ प्राप्त हो चुकी हैं, जिनमें से छ: इस प्रकार हैं-

(1) Apology (अपोलॉजी), (2) Crito (कीटो), (3) Phaedo (फीडो), (4) Symposium (सिम्पोजियम), (5)Republic(रिपब्लिक), (6) The Laws(दीलॉज)।

उसकी पुस्तकों में रिपब्लिक’ बहुत प्रसिद्ध है। इस पुस्तक में प्लेटो ने आदर्श राज्य के स्वरूप का उल्लेख किया है। प्लेटो के शिक्षा सम्बन्धी विचार ‘रिपब्लिक’ तथा ‘दि लॉज’ पुस्तक से प्राप्त होते हैं। प्लेटो व्यक्ति को एक आदर्श नागरिक बनाना चाहता था। प्लेटो ने अकादमी में मनोविज्ञान, दर्शनशास्त्र, संगीत, गणित तथा राजनीति विज्ञान आदि विषयों के शिक्षण की व्यवस्था की। 80 वर्ष आयु में उनकी मृत्यु हो गयी।

प्लेटो के अनुसार शिक्षा का अर्थ
Education According to Plato

‘प्लेटो ने शिक्षा के अर्थ को स्पष्ट करते हुए लिखा है कि “मैं युवकों एवं उनसे अधिक उम्र वालों को सद्गुणों की उत्पादक उस शिक्षा के बारे में कह रहा हूँ जो उन्हें उत्साहपूर्वक नागरिकता के पूर्ण आदर्श की प्राप्ति में लगाती है तथा जो उनको उचित रूप से शासन करना तथा आज्ञा पालन करना सिखाती है। यही शिक्षा एक ऐसी शिक्षा है जिसका नाम सार्थक शिक्षा है। दूसरे प्रकार की शिक्षा, जो धन की प्राप्ति या शारीरिक शक्ति या न्याय एवं बुद्धिमत्ता रहित चालाकी को प्रयोजन बनाती है, बीच की है और जो शिक्षा कहे जाने योग्य नहीं है। जो सही प्रकार से शिक्षित होते हैं वे सामान्यतः अच्छे पुरुष होते हैं।” प्लेटो ने आदर्श राज्य के न्याय को एक सद्गुण बताया।

यह आदर्श न्याय निम्नलिखित बातों से कार्यान्वित है-

(1) बुद्धिमता (Wisdom), (2) साहस (Courage) एवं (3) संयम (Temperance)

इस प्रकार यही आधार मानकर प्लेटो ने राज्य के नागरिकों को भी तीन भागों में विभाजित किया है-

(1) संरक्षक या न्यायाधीश, (2) सैनिक तथा (3) व्यावसायिक

राज्य से न्याय को जीवित रखने के लिये प्लेटो ने उक्त तीनों वर्गों की शिक्षा पर विशेष बल दिया है। प्लेटो ने अनिवार्य शिक्षा के सम्बन्ध में अग्रलिखित रूप से विचार प्रकट किये हैं-“छात्रों हेतु शिक्षा अनिवार्य होगी-शिक्षार्थी राज्य के समझे जायेंगे न कि अपने माता-पिता के।” महिला शिक्षा पर भी उसने दृष्टिपात किया तथा संगीत एवं शारीरिक शिक्षा में सक्षम महिलाओं की शिक्षा पर बल दिया। प्लेटो ने कहा कि,“तुम्हें यह धारणा न बना लेनी चाहिये कि जो कुछ मैं कहता हूँ केवल पुरुषों पर लागू होता है एवं महिलाओं के लिये नहीं।”

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प्लेटो के अनुसार शिक्षा के उद्देश्य
Aims of Education According to Plato

प्लेटो के अनुसार शिक्षा के प्रमुख उद्देश्य अग्रलिखित हैं-

1. वैयक्तिक उद्देश्य (Individual aims)- प्लेटो के विचार में शिक्षा का उद्देश्य छात्र के व्यक्तित्व का सन्तुलित विकास करना चाहिये। इसके लिये छात्र में सद्गुणों का विकास किया जाना चाहिये। सौन्दर्य, न्याय तथा प्रेम छात्र के व्यक्तित्व का सन्तुलित विकास करते है। प्लेटो पूछते हैं, “क्या मैं यह कहने में सही नहीं हूँ कि अच्छी शिक्षा वह है जो शरीर तथा मन का सर्वाधिक विकास करती है।” अत: मन तथा शारीरिक विकास ही शिक्षा का उद्देश्य है।

2. सामाजिक उद्देश्य (Social aims)- प्लेटो ने समाज राथा राज्य की प्रगति के लियेबशिक्षा के उद्देश्य निर्धारित किये। उसने आदर्श नागरिकों के निर्माण को अपनी शिक्षा में स्थान दिया। इस तथ्य पर प्रकाश डालते हुए लिखा है, “यदि आप पूछे कि सामान्य रूप से उत्तम शिक्षा क्या है, उत्तर सरल है-शिक्षा उत्तम व्यक्तियों का निर्माण करती है, उत्तम व्यक्ति भली भाँति कार्य करते हैं और शत्रुओं को युद्ध में विजित करते हैं क्योंकि ऐसे मनुष्य उत्तम आदर्शों से युक्त होते हैं।”

प्लेटो के अनुसार पाठ्यक्रम
Curriculum According to Plato

प्लेटो ने विभिन्न आयु तथा स्तर के छात्रों के लिये विद्यालयों के पाठ्यक्रम में विभिन्न विषयों का उल्लेख किया है। उसके पाठ्यक्रम के विषय निम्नलिखित हैं-

(1) प्रारम्भिक कक्षाओं के लिये उसने शारीरिक प्रशिक्षण तथा संगीत को सर्वाधिक महत्त्वपूर्ण स्थान दिया। उसके अनुसार अच्छे गुणों के विकास हेतु गीत सुनाये जाने चाहिये। हा प्लेटो ने व्यक्ति को मन से शारीरिक प्राणी माना है। प्लेटो ने कहा है कि, “मेरा विचार है उत्तम शरीर अपनी शारीरिक सुन्दरता के द्वारा आत्मा को उन्नत बनाता है, उत्तम आत्मा शरीर को भी सुन्दर बनाती है।”

(2) माध्यमिक कक्षाओं के लिये उसने दर्शन, ज्योतिष तथा गणित को पाठ्यक्रम में महत्त्वपूर्ण स्थान दिया इनके साथ संगीत तथा शारीरिक प्रशिक्षण और खेलकूद, व्यायाम तथा घुड़सवारी के शिक्षणं पर बल दिया।

(3) उच्च कक्षाओं हेतु प्लेटो ने निम्नलिखित छः विषयों को आवश्यक बताया-(i) गणित, (ii) समज्योतिष, (iii) ठोस् ज्यामिति, (iv) संगीत, (v) ज्योतिष, (vi) दर्शन ।

(4) प्लेटोने’ उद्यमी वर्ग’ के लिये औद्योगिक शिक्षा की व्यवस्थाबकी है। इस शिक्षा के अन्तर्गत लकड़ी का कार्य, लोहे का कार्य, अस्त्र-शस्त्र निर्माण तथा बुनाई का कार्य आदि आते हैं।

(Plato) प्लेटो के अनुसार शिक्षण की विधियाँ

प्लेटो ने शिक्षण के लिये तर्क विधि को उपयुक्त बताया। उसने प्रश्नोत्तरं विधि का भी प्रयोग किया। इसी विधि से व्याख्यान विधि तथा प्रयोगात्मक विधि का प्रचलन हुआ। उसने दर्शनशास्त्र तथा तर्कशास्त्र के लिये स्वाध्याय विधि को अपनाने की सिफारिश की। शिक्षा में उन्होंने खेल को अधिक महत्त्व दिया। खेल के माध्यम से ही छात्र का स्वभाव बनता है। शिक्षक को इन खेलों का प्रयोग बड़ी सावधानी से करना चाहिये।

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प्लेटो के अनुसार शिक्षक तथा विद्यालय


प्लेटो'”अकादमी’ जैसी संस्था सर्वत्र स्थापित करना चाहता था क्योंकि आत्मा के विकास के लिये यह आवश्यक है। उसने शिक्षा के प्रसार हेतु विद्यालय को आवश्यक साधन बताया है। प्लेटो ने शिक्षक को महत्त्वपूर्ण स्थान प्रदान किया है क्योंकि आदर्शवाद को प्रसारित करने का कार्य शिक्षक ही भली भाँति कर सकता है।

प्लेटो का शिक्षा के क्षेत्र में योगदान


प्लेटो के शिक्षा के क्षेत्र में निम्नलिखित योगदान हैं-

(1) उसने सभी के लिये शिक्षा के समान अवसर प्रदान किये। (2) उसने शिक्षा का उद्देश्य छात्र के व्यक्तित्व का विकास बताया। (3) प्लेटो ने महिलाओं की शिक्षा पर भी बल दिया और उसकी अनिवार्यता को स्वीकार किया है। (4) उसका दृष्टिकोण आदर्शवादी था अत: वह सत्यम्, शिवम् एवं सुन्दरम् पर विशेष बल देता था। (5) अनुशासन स्थापना हेतु प्लेटो ने नैतिक गुणों के विकास को आवश्यक बताया है।

(6) प्लेटो ने आयु तथा स्तर के अनुरूप पाठ्यक्रम का निर्माण किया। (7) प्लेटो का औद्योगिक शिक्षा की उन्नति में विशेष योगदान है। (8) प्लेटो ने प्रश्नोत्तर विधि का शिक्षण में प्रयोग किया, इसके अतिरित व्याख्या विधि, प्रयोगात्मक विधि तथा स्वाध्याय विधि का प्रचार किया। (9) आधुनिक विचारकों एवं राजनीतिज्ञों की आधुनिकतम धारणाएँ-ज्ञान की एकता, कानून का शासन लिंग भेद और समानता आदि उसके द्वारा विकसित की जा चुकी थीं। संक्षेप में हम कह सकते हैं कि प्लेटो राजनीतिशास्त्र तथा शिक्षा में आदर्शवाद के जनक माने जाते थे।

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