प्रश्नोत्तर प्रविधि / विधि | questions answer devices / method in hindi

प्रश्नोत्तर प्रविधि / विधि | questions answer devices / method in hindi – दोस्तों सहायक अध्यापक भर्ती परीक्षा में शिक्षण कौशल 10 अंक का पूछा जाता है। शिक्षण कौशल के अंतर्गत ही एक विषय शामिल है जिसका नाम शिक्षण अधिगम के सिद्धांत है। यह विषय बीटीसी बीएड में भी शामिल है। आज हम इसी विषय के समस्त टॉपिक को पढ़ेगे।  बीटीसी, बीएड,यूपीटेट, सुपरटेट की परीक्षाओं में इस टॉपिक से जरूर प्रश्न आता है।

अतः इसकी महत्ता को देखते हुए hindiamrit.com आपके लिए प्रश्नोत्तर प्रविधि / विधि | questions answer devices / method in hindi लेकर आया है।

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प्रश्नोत्तर प्रविधि (Questions Answer Device)

सुकरात के समय से चली आने वाली यह एक प्राचीन पद्धति है । इस पद्धति के तीन सोपान हैं-

(1) प्रश्नों को व्यवस्थित रूप से निर्मित करना ।

(2) उन्हें समुचित रूप से छात्रों के सामने रखना ताकि नये ज्ञान के लिए उनमें उत्सुकता जाग्रत हो सके, तथा छात्रों के माध्यम से उनमें सम्बन्ध स्थापित करते।

(3) हुए नवीन ज्ञान देना । इसमें आवश्यकतानुसार निम्न स्तर, मध्यम स्तर एवं उच्च स्तर के प्रश्न आवश्यकतानुसार प्रयोग किये जा सकते हैं।


प्रश्नोत्तर प्रविधि की विशेषताएँ (Characteristics of Question Answer devices )

(1)  इस विधि के प्रयोग करने से छात्र सक्रिय रहते हैं ।

(2) छात्र नये ज्ञान को प्राप्त करने के प्रति उत्सुक रहते हैं ।

(3) यह विधि मनोवैज्ञानिक सिद्धान्तों पर आधारित है।

(4) इस विधि से पाठ के विकास में सहायता मिलती है।

(5) छात्रों में विचार करने एवं चिन्तन करने की शक्ति का विकास होता है।

(6) यह विधि पाठ के प्रत्यास्मरण में सहायक है।

(7) इस विधि से छात्रों की समस्याओं एवं कठिनाइयों का निराकरण किया जा सकता है।

(8) छात्रों के ज्ञान का मूल्यांकन करने में सहायक है ।


प्रश्नोत्तर प्रविधि की सीमाएं  (Limitations of Question Answer devices )

(1) इस विधि के प्रयोग करने से कभी-कभी ये यान्त्रिक बन जाती है और नीरसता ले आती है।

(2) इस विधि का प्रयोग करने के लिए प्रशिक्षण आवश्यक है।

(3) अच्छे और सही प्रश्नों का निर्माण करने में सभी लोग पारंगत नहीं होते ।

(4) इस विधि में दूसरी प्रविधियों का भी सहारा लेना पड़ता है।

(5) उच्च कक्षाओं के लिए इनका प्रयोग अधिक उपयोगी है।


प्रश्न पूछने की आवश्यकता

(1) पूर्वज्ञान का पता लगाकर आगे आने वाले ज्ञान से सम्बन्ध जोड़ने के लिए।

(2) मनोवैज्ञानिकों का कहना है कि बच्चे का ध्यान चंचल होता है । कक्षा में बैठकर भी वह दुनिया की उड़ान भरता है । ऐसे समय में बच्चे का ध्यान कक्षा में लाने के लिए शिक्षक को प्रश्नों का सहारा लेना पड़ता है। इस प्रकार बच्चे के अवधान को आकर्षित करने हेतु प्रश्नों की आवश्यकता पड़ती है।

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(3) बच्चों ने पढ़ा हुआ पाठ कितना अर्जित किया है इस हेतु प्रश्नों की आवश्यकता पड़ती है।

(4) पाठ के पुनरावलोकन के लिए भी प्रश्नों की आवश्यकता पड़ती है ।

(5) बालक को प्रेरित करना तथा नये ज्ञान के प्रति जिज्ञासु बनाने के लिए प्रश्नों की आवश्यकता होती है।

(6) बच्चों की समस्याओं को जानने और उनके निवारण हेतु प्रश्न आवश्यक होते हैं।

रेमेट का मत है कि उत्तम प्रश्न हल करने की योग्यता प्राप्त करना प्रत्येक शिक्षक की आकांक्षा होनी चाहिए । अतः इस कला में दक्षता एवं निपुणता प्राप्त करने के लिए

शिक्षकों को यह ज्ञात होना चाहिए कि प्रश्न पूछने के उद्देश्य क्या हैं
प्रश्न पूछने के उद्देश्य विभिन्न विषयों में प्रश्नों का अपना विशिष्ट महत्त्व व उद्देश्य होता है।

सामान्यतः प्रश्नों के निम्न उद्देश्यों को ध्यान में रखते हुए पूछा जाता है-


(1) प्रेरित करना।

(2) रुचियों, अभिरुचियों तथा योग्यताओं का पता लगाना ।

(3) अर्जित ज्ञान व नवीन ज्ञान से सम्बन्ध जोड़ना ।

(4) समस्याओं को उत्पन्न करना व निवारण करना ।

(5) क्रियाशीलता हेतु।

(6) बच्चों के शारीरिक, बौद्धिक, सामाजिक ज्ञान का पता लगाना।

(7) ध्यान केन्द्रित करना ।

(8) बालक के अर्जित ज्ञान को अग्रसर कर नई दिशा प्रदान करना।

(9) ज्ञान का मूल्यांकन करने हेतु ।

(10) बच्चों में सजगता लाना तथा उनकी अभिव्यंजनात्मक शक्ति का पता लगाना ।

(11) आत्मविश्वास उत्पन्न करने हेतु ।

(12) उनके ज्ञान, उसके प्रयोग व चातुर्य (Skill) का पता लगाना ।

(13) छात्र व कार्य का मूल्यांकन करने हेतु ।

(14) पाठ का उचित तथा व्यवस्थित रूप में विकास करने हेतु ।

(15) सीखने की प्रक्रिया में पथ-प्रदर्शन करना ।

(16) तर्क, विचार, अन्वेषण व अनुसन्धान के लिए प्रेरित करना।

अच्छे प्रश्नों की विशेषताएँ

(1) सरल व स्पष्ट प्रश्न ।

(2) बच्चों की शारीरिक, मानसिक अवस्था, रुचि, योग्यता तथा अभिरुचि पर आधारित प्रश्न।

(3) प्रेरणा उत्पन्न करने वाले प्रश्न ।

(4) निश्चित उत्तर वाले प्रश्न

(5) निरीक्षण, अवलोकन, चिन्तन-मनन व तर्क शक्ति को उत्पन्न करने वाले प्रश्न।

(6) प्रश्नों की भाषा सरल व शैली आसान हो ।

(7) सम्बन्धात्मक तथा व्यवस्थित प्रश्न ।

(8) परिणामों की प्रभावोत्पादकता को दर्शाने वाले प्रश्न ।


अनुचित प्रश्न (Defective Questions)

बच्चों से निम्नलिखित प्रश्न नहीं कराने चाहिए-

(1) ‘हाँ’ या ‘न’ में आने वाले उत्तरों के प्रश्नों को नहीं पूछना चाहिए । यह प्रश्न बच्चों के अन्दर द्विविधा उत्पन्न करते हैं और उनकी विचारात्मक शक्ति का ह्रास होता है।

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(2) ऐसे प्रश्न जो प्रतिध्वनि प्रश्न (Echo-quest) कहलाते हैं बच्चों से नहीं करने चाहिए क्योंकि यह उनकी क्रियाशीलता को कम करते हैं । जैसे—शिक्षक ने बच्चों को बताया कि मुहम्मद तुगलक अपनी योजनाओं के कारण असफल हुआ और फिर पूछ लिया कि मुहम्मद तुगलक क्यों असफल हुआ।

(3) रिक्त स्थान की पूर्ति वाले प्रश्न अच्छे होते हैं किन्तु अब इनका निर्माण इस रूप में किया जाता है कि वे वाक्य को पूरा करने के लिए सिर्फ एक शब्द की पूर्ति कराते हैं तो यह अनुचित होते हैं । इनसे बच्चों की मानसिक शक्ति का विकास नहीं होता ।
जैसे – अशोक का कलिंग युद्ध के बाद……….हो गया था । यह प्रश्न बहुत छोटी अवस्था के बालकों के लिए उपयुक्त होते हैं।

(4) जिन प्रश्नों के द्वारा शिक्षक अपनी बात की पुष्टि करवाता है वह प्रश्न भी शिक्षण की दृष्टि से अनुचित होते हैं । यह पुष्टिकारक या स्वीकारोक्ति प्रश्न (Corroberative Questions) कहलाते हैं । जैसे-मुहम्मद बिन तुगलक की असफलता का कारण उसकी योजनाएं क्या थी ।

(5) सांकेतिक प्रश्न (Suggestive Questions) भी अनुचित प्रश्न होते हैं । इन श्नों के अन्दर शिक्षक द्वारा बच्चों को दिये जाने वाले संकेत की झलक झिपी रहती है;

जैसे—क्या महमूद गजनवी ने भारत पर 17 बार आक्रमण किये थे?
इसके अतिरिक्त बच्चों से अस्पष्ट, अनिश्चित, अप्रासांगिक तथा अनुपयोगी प्रश्नों को नहीं पूछना चाहिए।




प्रश्न पूछने के समय रखी जाने वाली सावधानियाँ

प्रश्न पूछना भी एक कला है। शिक्षक का अपने कार्य में सफल होना तथा शिक्षण उद्देश्य को प्राप्त करने का सबसे बड़ा आधार प्रश्न करना है । प्रश्न पूछते समय अग्र सावधानियाँ रखी जानी चाहिए-

(1) प्रश्न स्पष्ट रूप से पूछे जाएँ।

(2) प्रश्न पूछने के बाद बच्चों को सोचने का पर्याप्त अवसर प्रदान किया जाये।

(3) प्रश्न सभी कक्षा को ध्यान में रखते हुए पूछे जायें।

(4) प्रश्न प्रेरित करने वाले हों।

(5) प्रश्नों का वितरण समस्त कक्षा में होना चाहिए।

(6) प्रश्न कक्षा के स्तरानुकूल हो।

(7) प्रश्न बच्चों के विचारात्मक दृष्टिकोण को जागृत करने वाले होने चाहिए।

(8) प्रश्नों की शब्दावली उचित हो।

(9) प्रश्नों के पूर्व अनुचित शब्दों का प्रयोग नहीं किया जाना चाहिए।

(10) प्रश्न आत्मविश्वास के साथ पूछे जाने चाहिए।

(11) प्रश्नों को दोहराना दोष-पूर्ण है।

(12) प्रश्नों को स्वाभाविक रूप से पूछा जाना चाहिए।

(13) बालकों द्वारा दिये गये उत्तर को शिक्षक द्वारा दोहराया न जाये।

(14) बालकों के सही या गलत उत्तर का निर्णय शिक्षक को स्पष्ट रूप में देना चाहिए।

(15) प्रश्नों की झड़ी-सी लगाना भी अनुचित है।

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इस प्रकार यह कहा जा सकता है कि प्रश्न पूछना शिक्षण की एक महत्त्वपूर्ण प्रविधि है जिसका सतर्कता के साथ प्रयोग कर शिक्षक शिक्षण में सफलता प्राप्त कर सकता है।


उत्तर निकालना

प्रश्न पूछना जितना मुश्किल है उत्तर निकलवाना उससे अधिक मुश्किल होता है प्रायः यह देखने में आता है कि व प्रशिक्षणरत शिक्षक जब कक्षा में प्रश्न पूछते हैं ।

और उसका उचित उत्तर नहीं पाते तो उनका धैर्य डगमगा जाता है। वह कक्षा में आत्मविश्वास खो बैठते हैं। तथा उनका शिक्षण उनमें असन्तोष उत्पन्न करता है। शिक्षक को चाहिए कि वह प्रश्न पूछने की भाँति ही उत्तर निकलवाने में भी कुशलता से काम ले।


उत्तर निकालते समय ध्यान देने योग्य सावधानियाँ

(1) उत्तर स्पष्ट व सही निकलवाये जाएँ।

(2) शिक्षक उत्तर को सावधानीपूर्वक सुने तथा उसके प्रति अपनी स्पष्ट प्रतिक्रिया व्यक्त कर ।

(3) बच्चों के उत्तरों को तुरन्त अस्वीकृत न किया जाए।

(4) उत्तर छात्रों को प्रेरित करके उनके द्वारा ही निकलवाये जाएँ।

(5) छात्रों को स्वयं सही उत्तर तक पहुँचने के लिए प्रेरित किया जाये।

(6) प्रत्येक शुद्ध उत्तर को दुहराया जाए।

(7) अच्छे उत्तरों की प्रशंसा की जाये।

(8) सामूहिक उत्तरों की अवहेलना की जाये।

(9) शरारत व धोखे से परिपूर्ण उत्तरों को सावधानी से रोका जाए।

(10) छात्रों के उत्तरों के प्रति शिक्षक का व्यवहार धैर्य व सहानुभूतिपूर्ण होना चाहिए।

उत्तरों का स्वरूप कैसा हो?

(1) कक्षा में शुद्ध भाषा, व्याकरण तथा उच्चारण का ध्यान रखते हुए प्रश्नों का उत्तर लिया जाना चाहिए।

(2) उत्तर पूर्ण वाक्य बनाकर तथा सन्दर्भ सहित दिये जाने चाहिए।

(3) उत्तर सार्थक तथा अर्थपूर्ण है।

(4) उत्तर की बार-बार पुनरावृत्ति नहीं होनी चाहिए।

(5) उत्तरा भावपूर्ण, आत्मभिव्यक्ति तथा बुद्धिपूर्ण हो ।

(6) उत्तर संक्षिप्त तथा गहन भाव वाले हों।

(7) उत्तर की शुद्धता को छात्रों द्वारा ही शुद्ध करवाया जाये।

(8) उत्तरों में अनर्थक शब्दावली की उपेक्षा की जाये।

(9) छात्रों द्वारा दिये गये गलत उत्तरों के लिए उन्हें प्रताड़ित न किया जाये।

(10) बच्चों के उत्तरों के प्रति शिक्षक की मनोवृत्ति सहज, सहानुभूतिपूर्ण, धैर्यशाली तथा सहयोगी मित्र की सी होनी चाहिए।


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final words –

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