राधाकृष्णन का शिक्षा दर्शन | राधाकृष्णन के अनुसार शिक्षा के उद्देश्य पाठ्यक्रम एवं शिक्षण विधियां

बीटीसी एवं सुपरटेट की परीक्षा में शामिल शिक्षण कौशल के विषय वर्तमान भारतीय समाज एवं प्रारंभिक शिक्षा में सम्मिलित चैप्टर राधाकृष्णन का शिक्षा दर्शन | राधाकृष्णन के अनुसार शिक्षा के उद्देश्य पाठ्यक्रम एवं शिक्षण विधियां आज हमारी वेबसाइट hindiamrit.com का टॉपिक हैं

Contents

राधाकृष्णन का शिक्षा दर्शन | राधाकृष्णन के अनुसार शिक्षा के उद्देश्य पाठ्यक्रम एवं शिक्षण विधियां

राधाकृष्णन का शिक्षा दर्शन | राधाकृष्णन के अनुसार शिक्षा के उद्देश्य पाठ्यक्रम एवं शिक्षण विधियां
राधाकृष्णन का शिक्षा दर्शन | राधाकृष्णन के अनुसार शिक्षा के उद्देश्य पाठ्यक्रम एवं शिक्षण विधियां


सर्वपल्ली राधाकृष्णन का शिक्षा दर्शन | राधाकृष्णन के अनुसार शिक्षा के उद्देश्य पाठ्यक्रम एवं शिक्षण विधियां

Tags  – राधाकृष्णन का शिक्षा दर्शन pdf,राधाकृष्णन शिक्षा दर्शन,राधाकृष्णन का शिक्षा दर्शन,राधाकृष्णन का शिक्षा में योगदान,राधाकृष्णन जी का शिक्षा दर्शन,राधाकृष्णन का शिक्षा में योगदान,राधाकृष्णन के अनुसार शिक्षा की परिभाषा,राधाकृष्णन का दर्शन,राधाकृष्णन के अनुसार शिक्षा के उद्देश्यों की विवेचना कीजिए,Philosophy of Radhakrishnan in hindi,राधाकृष्णन के अनुसार शिक्षा के उद्देश्य,राधाकृष्णन के अनुसार शिक्षा की परिभाषा,राधाकृष्णन का शिक्षा दर्शन | राधाकृष्णन के अनुसार शिक्षा के उद्देश्य पाठ्यक्रम एवं शिक्षण विधियां

डॉ. सर्वपल्ली राधाकृष्णन का जीवन परिचय (1888-1975)

विश्व के महान् दार्शनिक एवं राजनीतिज्ञ डॉ. सर्वपल्ली राधाकृष्णन् का जन्म 5 सितम्बर, सन् 1888 में मद्रास से 40 मील दूर तिनविरिण नामक स्थान पर हुआ था। आपने अपनी प्रारम्भिक शिक्षा ईसाई मिशनरी स्कूल में प्राप्त की थी। सन् 1909 में आपने एम.ए. की डिग्री प्राप्त की। इसी वर्ष आप प्रेसीडेन्सी कॉलेज, मद्राम में दर्शनशास्त्र के प्राध्यापक नियुक्त किये गये। सन् 1921 में कलकत्ता विश्वविद्यालय में दर्शनशास्त्र के प्राध्यापक नियुक्त हुए। आप आन्ध्र तथा बनारस विश्वविद्यालय के उपकुलपति भी रहे। सन् 1950 में आपको रूस में राजदूत बनाकर भेजा गया। वहाँ आपने भारतीय संस्कृति का सफलतापूर्वक प्रतिनिधित्व किया। सन् 1952-1962 तक राज्य सभा के सभापति तथा भारत के उपराष्ट्रपति पद पर रहे। सन् 1962 में भारत के राष्ट्रपति बने। सन् 1975 में आपका देहान्त हो गया।

महान् लेखन तथा दार्शनिक

राधाकृष्णन् एक महान लेखन और दार्शनिक थे। आपने सामाजिक और आर्थिक विषयों पर भी अपने विचार प्रकट किये। आपके द्वारा रचित प्रमुख ग्रन्थों के नाम इस प्रकार हैं-‘धर्म ओर समाज’,’शिक्षा’, ‘राजनीति और युद्ध-ए’कल्की या सभ्यता का भविष्य तथा पूर्व धर्म और पाश्चात्य दर्शन’। डॉ. सर्वपल्ली राधाकृष्णन् ने यूरोप वालों को भारतीय दर्शन और धर्म का ज्ञान कराने के साथ-साथ पाश्चात्य दर्शन और धर्म पर भी अपने विचार प्रकट किये। संक्षेप में उन्होंने पूर्व जगत् और पश्चिमी जगत् की व्याख्या करके दोनों को एक-दूसरे के निकट लाने का प्रयास किया।

ये भी पढ़ें-  रचनात्मक एवं आंकलित मूल्यांकन क्या है | रचनात्मक और आंकलित मूल्यांकन में अंतर | formulative and summative evaluation in hindi 

सर्वपल्ली राधाकृष्णन का शिक्षा दर्शन

मिशनरियों की आलोचनाओं से कष्ट

राधाकृष्णन् के परिवार का वातावरण अत्यन्त धार्मिक था। अत: प्रारम्भ से ही उनके अन्दर हिन्दुत्व के प्रति श्रद्धा की भावना थी। जब स्कूलों और कॉलेजों में ईसाई प्रचारकों ने उनकी धार्मिक भावनाओं को ठेस पहुँचायी तो उनका हृदय बड़ा दुःखी हुआ। ये ईसाई प्रचारक कठोरता के साथ हिन्दू धर्म की आलोचना करते थे, जिससे उनके मन में हिन्दुत्व के विषय में शंका उत्पन्न होती थी। राधाकृष्णन् को हिन्दू धर्म की आलोचनाओं से मानसिक आघात पहुँचा और उन्होंने हिन्दू धर्म का गहन अध्ययन आरम्भ कर दिया। वे लिखते हैं-“ईसाई आलोचकों की चुनौती से विचलित होकर ही मैं हिन्दुत्व का विधिवत् अध्ययन करके यह पता लगाने को प्रस्तुत हुआ हूँ कि हमारे धर्म का कितना अंश मृत और कितना अंश आज जीवित है।”

हिन्दू धर्म के प्रति श्रद्धा

डॉ. सर्वपल्ली राधाकृष्णन् ने हिन्दू धर्म का जो गहन अध्ययन खान है। उसमें जो कुछ भी बुराई आयी हैं वह धर्म के कारण नहीं वरन् उसको मनुष्यों द्वारा किया उससे वे इस निष्कर्ष पर पहुँचे कि हिन्दू धर्म घृणा के योग्य नहीं वरन् पवित्रता की अनुचित ढंग से प्रस्तुत करने के कारण आयी है। डॉ. राधाकृष्णन् के अनुसार हिन्दू धर्म केवल भारतवासियों के लिये ही प्रेरणा का स्रोत नहीं है वरन् उसमें इतने सद्गुण हैं कि वह विश्व
को भी शान्ति और कल्याण का मार्ग दिखा सकता है।

पूर्व और पश्चिम का समन्वय

रवीन्द्रनाथ टैगोर के समान डॉ. सर्वपल्ली राधाकृष्णन् क्षेत्रों में नहीं वरन् पूर्व-पश्चिम की विचारधाराओं के आदर्श मिलन स्थल थे। दिनकर के शब्दों में-“विश्व की दार्शनिक विचारधारा को उन्होंने एक नया मोड़ दिया, संसार के चिन्तकों को उन्होंने एक नयी उत्तेजना दी। पश्चित जिस उच्च दर्शन का अभिमान करता है, पूर्वी जगत् के पास भी वैसा दर्शन विद्यमान है और विश्व का कल्याण एक ऐसे सामाजिक दर्शन को खड़ा करने में है, जिसमें पूर्वी और पश्चिमी दोनों ही दर्शनों के श्रेष्ठ तत्त्व समन्वित हों।”

ये भी पढ़ें-  ऑपरेशन ब्लैकबोर्ड योजना - उद्देश्य, लक्ष्य, विशेषताएं / ऑपरेशन ब्लैकबोर्ड में दी जाने वाली सामग्री

राजनीति का आध्यात्मीकरण

महात्मा गाँधी के समान डॉ. राधाकृष्णन् राजनीति के आध्यात्मीकरण में विश्वास करते थे। वे धर्म का प्रवेश जीवन के कुछ समस्त क्षेत्रों में में करने के पक्षधर थे। इस प्रकार वे जीवन के प्रत्येक पहलू को चाहे वह राजनीतिक हो या साहित्य, धर्म से अलग करने के पक्ष में नहीं थे। इस कारण ही लोकतन्त्र, शक्ति और युद्ध एवं अन्तर्राष्ट्रीय समस्याओं पर जो उनके विचार थे, वे उनके धार्मिक दृष्टिकोण के द्वारा निर्धारित हैं।

विज्ञान के सम्बन्ध में विचार

डॉ. सर्वपल्ली राधाकृष्णन् विज्ञान का अनादर नहीं करते थे परन्तु उसका मानव सभ्यता पर जो दुष्प्रभाव पड़ा उसकी उन्होंने खुलकर आलोचना की। ईश्वर और धर्म से मानव का ध्यान हटाने में विज्ञान को जो हाथ रहा, वह उनके मतानुसार चिन्ता का विषय है। जीव विज्ञान ने मनुष्यों को पशुता की ओर ले जाने की प्रेरणा दी क्योंकि इस विज्ञान ने यह सिद्धान्त प्रतिपादित किया कि जिस प्रकार प्राकृतिक नियमों की अधीनता में अन्य जीव चलते हैं वैसे ही मनुष्य चलता है परन्तु साथ ही विज्ञान की विभिन्न उपलब्धियों के प्रति वे बड़े उत्साहित और आशावान थे।

स्वतन्त्रता के सम्बन्ध में विचार

स्वतन्त्रता के सम्बन्ध में डॉ. सर्वपल्ली राधाकृष्णन् के विचार हीगल से मिलते हैं। उनके शब्दों में, “जिस स्वतन्त्रता की कल्पना मनुष्य करते हैं वह केवल नियन्त्रण का अभाव नहीं है और इस प्रकार की स्वतन्त्रता तो अवास्तविक और निषेधात्मक होती है। अपनी जन्मसिद्ध शारीरिक और मानसिक शक्तियों को पूर्णरूप से प्रयोग करना चाहिये। यही वास्तविक और भावात्मक स्वतन्त्रता है।” परन्तु वे पूर्णरूप से हीगलवादी नहीं हैं। उन्होंने स्वतन्त्रता के सम्बन्ध में काण्ट और स्पेन्सर की धारणा को भी स्वीकार किया है। वे स्पष्ट शब्दों में लिखते हैं, “स्वतन्त्र वह समाज है जिसमें प्रत्येक व्यक्ति अपनी इच्छानुसार जीवन व्यतीत करने के लिये स्वतन्त्र है। उसकी स्वतन्त्रता पर केवल इतना प्रतिबन्ध हो सकता है कि वह दूसरों की स्वतन्त्रता का अतिक्रमण न करे।”

ये भी पढ़ें-  शिक्षा के उद्देश्य | aims of education in hindi | शिक्षा के क्या उद्देश्य हैं

मानवतावादी दर्शन

डॉ. राधाकृष्णन् राष्ट्रीयता की विचारधारा से ऊपर उठकर मानवतावादी विचारधारा का प्रतिपादन करते हैं। उन्होंने अपने मानवतावाद का प्रतिपादन धर्म के आधार पर किया है। उनके अनुसार पश्चिम के मानवतावाद की सबसे बड़ी कमी यह है कि उसमें आध्यात्मिक सत्ता की उपेक्षा की गयी है, जबकि राधाकृष्णन् नैतिक मूल्यों को आध्यात्मिक आधारों पर स्थापित करना चाहते हैं। अन्य शब्दों में उनका मानवतावाद आध्यात्मिक मानवतावाद है। उनके मत में सभी ईश्वर के अंश हैं, इस कारण सभी बराबर हैं। मानव यदि मानव से घृणा करता है तो वह ईश्वर से भी धृणा करता है।

विश्व शान्ति के समर्थन में विचार

मानवतावाद में आस्था रखने के कारण डॉ. स्वप्न देखना चाहिये। वह दिन मानवता के लिये सबसे अधिक सुखदायी दिन होगा जबकि राधाकृष्णन ने विश्व शान्ति को परम आवश्यक माना है। उनके विचार में हमें विश्व राज्य का सम्पूर्ण पृथ्वी एक परिवार का आदर्श प्रस्तुत करेगी। वे विश्व शान्ति के लिये सदा चिन्तित रहते थे। उनका विचार था कि राष्ट्रों के पारस्परिक व्यवहार अन्तर्राष्ट्रीय कानूनों पर आधारित होने चाहिये। उन्होंने विश्व सरकार का समर्थन भी किया।


आपके लिए महत्वपूर्ण लिंक

टेट / सुपरटेट सम्पूर्ण हिंदी कोर्स

टेट / सुपरटेट सम्पूर्ण बाल मनोविज्ञान कोर्स

50 मुख्य टॉपिक पर  निबंध पढ़िए

इन 5 तरीकों से टेंसन मुक्त रहना सीखे ।

Final word

आपको यह टॉपिक कैसा लगा हमे कॉमेंट करके जरूर बताइए । और इस टॉपिक राधाकृष्णन का शिक्षा दर्शन | राधाकृष्णन के अनुसार शिक्षा के उद्देश्य पाठ्यक्रम एवं शिक्षण विधियां को अपने मित्रों के साथ शेयर भी कीजिये ।

Tags – राधाकृष्णन के अनुसार शिक्षा का उद्देश्य,राधाकृष्णन के अनुसार शिक्षा की परिभाषा,राधाकृष्णन के अनुसार शिक्षण विधियाँ,राधाकृष्णन के अनुसार शिक्षा के उद्देश्यों की विवेचना कीजिए,Philosophy of Radhakrishnan in hindi,राधाकृष्णन के अनुसार शिक्षा के उद्देश्य,राधाकृष्णन के अनुसार शिक्षा का उद्देश्य,राधाकृष्णन का शिक्षा में योगदान,राधाकृष्णन के अनुसार शिक्षण विधियाँ,राधाकृष्णन के अनुसार पाठ्यक्रम,राधाकृष्णन के अनुसार शिक्षण विधियां,राधाकृष्णन के अनुसार शिक्षा के उद्देश्य,राधाकृष्णन के अनुसार शिक्षा के सिद्धांत,Philosophy of Radhakrishnan in hindi,राधाकृष्णन का शिक्षा दर्शन | राधाकृष्णन के अनुसार शिक्षा के उद्देश्य पाठ्यक्रम एवं शिक्षण विधियां

Leave a Comment