दोस्तों अगर आप CTET परीक्षा की तैयारी कर रहे हैं तो CTET में 50% प्रश्न तो सम्मिलित विषय के शिक्षणशास्त्र से ही पूछे जाते हैं। आज हमारी वेबसाइट hindiamrit.com आपके लिए सामाजिक विज्ञान विषय के शिक्षणशास्त्र से सम्बंधित प्रमुख टॉपिक की श्रृंखला लेकर आई है। हमारा आज का टॉपिक सामाजिक अध्ययन शिक्षण में मूल्यांकन के प्रकार एवं प्रविधियां | CTET SOCIAL STUDIES PEDAGOGY है।
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सामाजिक अध्ययन शिक्षण में मूल्यांकन के प्रकार एवं प्रविधियां | CTET SOCIAL STUDIES PEDAGOGY
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सामाजिक विज्ञान में मूल्यांकन के प्रकार
सामाजिक विज्ञान में अधिगम की सफलता (उत्पाद) शिक्षण अधिगम प्रक्रिया पर निर्भर करती है अत: मूल्यांकन शिक्षण-अधिगम प्रक्रिया के स्तर पर प्रारम्भ होना चाहिए जिससे कि समय, शक्ति तथा संसाधनों के अपव्यय को रोका जा सके। प्रक्रिया से सम्बन्धित मूल्यांकन को हम रचनात्मक मूल्यांकन तथा शैक्षणिक उत्पाद सम्बन्धित मूल्यांकन को हम आकलित अथवा संकलनात्मक मूल्यांकन कहते हैं। रचनात्मक तथा आकलित/संकलनात्मक मूल्यांकन एक-दूसरे के पूरक हैं क्योंकि उत्पाद शैक्षणिक प्रक्रिया का ही परिणाम है। जिसे दो भागों में विभाजित किया गया है-
1. रचनात्मक मूल्यांकन (Formative Evaluation)
2. आकलित मूल्यांकन (Summative Evalution)
रचनात्मक मूल्यांकन (Formative Evaluation)
मूल्यांकन की प्रक्रिया में निरंतरता एवं सततता (Continuity) का विशेष गुण पाया जाता है। निर्माणात्मक मूल्यांकन उसके इस विशेष गुण पर ही आधारित होता है। शिक्षण-अधिगम उद्देश्यों को भलीभांति निश्चित करने के बाद जब पाठ पढ़ाना प्रारंभ कर दिया जाता है और विद्यार्थी अधिगम अनुभवों की प्राप्ति का कार्य प्रारंभ कर देते हैं तो समय-समय पर यह निश्चित करना कि विद्यार्थियों द्वारा अधिगम अनुभवों की उपलब्धि किस रूप में एवं किस सीमा तक हो रही है तथा शिक्षण अधिगम उद्देश्यों की प्राप्ति में शिक्षक और विद्यार्थी दोनों किस सीमा तक सफल हो रहे हैं, निर्माणात्मक मूल्यांकन के कार्यक्षेत्र में आता है।
स्पष्ट है कि इस प्रकार के मूल्यांकन का उद्देश्य और प्रयोग सभी दृष्टियों से निर्माणात्मक और रचनात्मक ही होता है। विद्यार्थियों/अध्यापकों के कार्य की जांच कर उसमें गुण-दोष निकालना नहीं बल्कि उन्हें अपने कार्य में सुधार लाने तथा प्रगति पथ पर अग्रसर होने के लिए आवश्यक सूचनाएं तथा मार्गदर्शन करना होता है। इस दृष्टि से निर्माणात्मक मूल्यांकन को एक ऐसे मूल्यांकन के रूप में परिभाषित किया जा सकता है जिसमें ऐसी मूल्यांकन तकनीकों का प्रयोग होता है जिनके द्वारा शिक्षण-अधिगम प्रक्रिया से जुड़े हुए तत्वों तथा क्रियाओं की अच्छाई और कमजोरियों को सतत रूप से प्रकाश में लाकर उसमें अपेक्षित सुधार लाने की भूमिका निभाई जाती है।
निर्माणात्मक/रचनात्मक मूल्यांकन की परिणाम विद्यार्थियों और अध्यापकों को बराबर इस प्रकार की वांछनीय सूचनाएं प्रदान करने का कार्य करते हैं कि शिक्षण-अधिगम उद्देश्यों की प्राप्ति की दिशा में किए जाने वाले उनके प्रयत्न कितने सार्थक सिद्ध हो रहे हैं। इस प्रकार का मूल्यांकन इस दृष्टि से निदानात्मक पर पूरा जोर देता है। पाठ्यक्रम, शिक्षण विधियों तथा तकनीक, अध्यापक व्यवहार,विद्यार्थी द्वारा किए जाने वाले प्रयत्न, शिक्षण-अधिगम वातावरण तथा परिस्थितियां किसमें किस सुधार की आवश्यकता है इस बात का निदान करना इस प्रकार के मूल्यांकन की विशेषता मानी जा सकती है। इस प्रकार के निदान के फलस्वरूप, जहां आवश्यकता होती है वहां सुधार करके निश्चित उद्देश्यों की प्राप्ति के कार्य को आसान तथा प्रभावपूर्ण बनाने के प्रयत्न किए जा सकते हैं।
मूल्यांकन तकनीकों और प्रविधियों का चयन भी इसी लक्ष्य को ध्यान में रखते हुए यहां किया जाता है। उदाहरणस्वरूप अध्यापक द्वारा पाठ की सार्थक इकाई (Meaningful Unit) की समाप्ति के बाद ऐसे निदानात्मक प्रश्न पूछे जाते हैं या ऐसी क्रियाएं विद्यार्थियों द्वारा कराई जाती हैं जिनके द्वारा निश्चित रूप से यह पता लग सके कि विद्यार्थियों द्वारा अधिगम अनुभवों को (ज्ञान और कौशल आदि के रूप में) किस रूप में किस सीमा का ग्रहण किया जाता है। इस प्रकार की निश्चित जानकारी अगर समय-समय पर प्राप्त होती रहे तो इससे विद्यार्थी और अध्यापक दोनों को ही अपने प्रयत्नों में वांछनीय सुधार लाकर निश्चित शिक्षण-अधिगम उद्देश्यों की प्राप्ति में पर्याप्त सफलता मिल सकती है।
आकलित मूल्यांकन (Summative Evalution)
संकलनात्मक/आकलित मूल्यांकन में शिक्षण-अधिगम प्रक्रिया या पाठ्यक्रम की समाप्ति के बाद जानने का प्रयत्न किया जाता है कि शिक्षण-अधिगम उद्देश्यों की प्राप्ति में कहां तक सफलता मिली और इसके लिए किए गए प्रयत्न कैसे रहे? अतः जहां रचनात्मक मूल्यांकन में शिक्षण-अधिगम प्रक्रिया के दौरान ही प्रक्रिया और व्यवस्था में निहित अच्छाई और कमजोरियों को पहचानने का प्रयत्न कर अपेक्षित सुधार लाने में सहायता मिलती है वहां इस प्रकार का निदान तथा समयानुसार उपचार संकलनात्मक मूल्यांकन के परिणामों द्वारा संभव नहीं हो सकता। दूसरे जहां निर्माणात्मक मूल्यांकन स्वामित्व अधिगम में अत्यधिक सहयोगी सिद्ध हो सकता है वहां संकलनात्मक मूल्यांकन इस दिशा में विशेष योगदान नहीं देता।
संकलनात्मक अथवा आकलित मूल्यांकन को इस तरह एक ऐसे मूल्यांकन के रूप में जाना जा सकता है जिसमें ऐसी मूल्यांकन तकनीकों का प्रयोग होता है जिनके द्वारा किसी एक निश्चित अवधि या पाठ्यक्रम की समाप्ति के बाद बालक की शैक्षिक उपलब्धियों का मूल्यांकन किया जाता है और उसके आधार पर उसकी उपलब्धियों की तुलना अन्य बालकों से की जाती है तथा उसे निश्चित डिवीजन, ग्रेड या मेरिट पोजीशन प्रदान की जाती है।
वर्तमान स्थिति में इसी प्रकार के मूल्यांकन के परिणामों का विशेष बोलबाला रहता है क्योंकि इसी के परिणाम अंकों के रूप में बालकों की अंक तालिका में लिखे जाते हैं और इन्हीं के फलस्वरूप उन्हें सर्टिफिकेट, डिप्लोमा, डिग्री तथा मेरिट पारितोषिक आदि मिलते हैं तथा उन्हें एक श्रेणी से दूसरी श्रेणी या एक कोर्स से दूसरे कोर्स में जाने का अवसर मिलता है।
सामाजिक विज्ञान में मूल्यांकन की प्रविधियां
सामाजिक विज्ञान में मूल्यांकन की प्रविधियों से तात्पर्य उन प्रविधियों से है जिनके द्वारा प्राप्त ज्ञान का पता लगाया जाता है। दूसरे रूप में छात्रों के व्यवहार परिवर्तन का मापन किया जाता है। इस प्रकार इन प्रविधियों द्वारा शिक्षण के तीनों ज्ञानात्मक, भावात्मक तथा क्रियात्मक उद्देश्यों का मूल्यांकन किया जाता है। ये प्रविधियां मुख्यत: इस प्रकार हैं-
1. गुणात्मक प्रविधियां-इनके द्वारा आन्तरिक मूल्यांकन किया जाता है। यह हैं-
(i) निरीक्षण
(ii) साक्षात्कार
(iii) प्रश्नावली
(iv) मतसूची
(v) रेटिंग स्केल
(vi) संचयी अभिलेख
2. संख्यात्मक अथवा परिमाणात्मक प्रविधियां-इसके अन्तर्गत निष्पत्ति को अंकों अथवा प्राप्तांकों में प्रदर्शित किया जाता है। यह है-
(i) मौखिक परीक्षा
(ii) लिखित परीक्षा
(iii) प्रयोगात्मक परीक्षा
(1) गुणात्मक प्रविधियां
1. निरीक्षणः इसका प्रयोग मुख्य रूप से छोटे बालकों के मूल्यांकन के लिए किया जाता है। इससे उनके वास्तविक व्यवहार का पता चलता है। बड़े छात्र स्वयं अपना आत्मनिरीक्षण का विकास करते हैं। निरीक्षण के द्वारा बालकों के सामाजिक संवेगात्मक, बौद्धिक तथा नैतिक विकास के बारे में पता लगाया जाता है। यदि निरीक्षण सावधानी से किया जाए तो छात्रों के वास्तविक व्यवहार का सफलतापूर्वक पता लगाया जा सकता है।
2. साक्षात्कारः साक्षात्कार द्वारा बच्चों की भाषा-शैली, मनोवृति, रुचि, विश्लेषण शक्ति, तर्कशक्ति एवं मनोबल का पता चलता है।
3. चैकलिस्ट: इसमें कुछ कथन छात्रों को दिए जाते हैं। इन प्रश्नों के संबंध में छात्रों को हां या नहीं में उत्तर अंकित करना पड़ता है। इस प्रकार के कथन तैयार करने के लिए उद्देश्य स्पष्ट होने चाहिये। चैकलिस्ट का प्रयोग छात्रों की अभिवृत्तियों एवं भावात्मक पक्ष के मापन के लिए किया जाता है।
4. प्रश्नावली: प्रश्नावली में छात्र प्रश्नों की श्रृंखला के लिए अनुक्रिया व्यक्त करते हैं। इससे छात्रों से अनेक प्रकार की सूचनायें प्राप्त की जा सकती हैं।
5. रेटिंग स्कूल: रेटिंग स्केल में कुछ कथन दिए होते हैं। उनका तीन, पांच, सात बिन्दुओं तथा सापेक्ष निर्णय करना होता है। इसक प्रयोग उच्च कक्षा में छात्रों के लिए किया जाता है। रेटिंग स्केल के कथन स्पष्ट होने चाहिए।
6. अभिलेखः अभिलेख भी मूल्यांकन की महत्वपूर्ण विधियां माने जाते हैं। इनमें छात्रों के घटनाक्रम विवरण जिनमें अध्यापक छात्रों के महत्वपूर्ण व्यवहार एवं जटिल परिस्थितियों आदि का वर्णन करता है। संचयी आलेख जिनमें विद्यालय के प्रत्येक छात्र के संबंध में सूचनाओं को क्रमबद्ध रूप से व्यवस्थित किया जाता है, छात्रों की डायरियां आदि आते हैं।
संख्यात्मक या परिमाणात्मक प्रविधियां
1. मौखिक परीक्षाः इस परीक्षा में मौखिक प्रश्न, वाद-विवाद प्रतियोगिता वर्णन नाटक आदि का प्रयोग किया जाता है। इसका उपयोग छात्रों में प्रत्यास्मरण, चिन्तन विश्लेषण आदि योग्यताओं के मापन के लिए किया जाता है।
2. लिखित परीक्षाः इस परीक्षा में छात्र लिखित प्रश्नों के उत्तर भी लिखित रूप में देते हैं। इन परीक्षाओं का उपयोग छात्रों की स्मरण शक्ति, विश्लेषण, भाषा आदि का मापन के लिये किया जाता है। ये परीक्षायें भी दो प्रकार की होती हैं-
(i) निबन्धात्मक परीक्षायें
(ii) वस्तुनिष्ठ परीक्षायें
इन परीक्षाओं का प्रयोग विद्यालय के प्रत्येक विषय में परीक्षण के लिए किया जा सकता है।
अभ्यास प्रश्न ( बहुविकल्पीय प्रश्न ) –
1.सामाजिक अध्ययन में मूल्यांकन से सम्बन्धित कौन-सा कथन गलत है?
(a)मूल्यांकन स्थिति आधारित होता है परंतु मापन अंक आधारित होता है।
(b)मूल्यांकन मापन के पहले होता है परन्तु मापन मूल्यांकन के बाद होता है।
(c)मूल्यांकन में घटना या तथ्य का मूल्य ज्ञात किया जाता है परन्तु मापन में घटना या तथ्य के विभिन्न परिणामों के लिए प्रतीक निश्चित किए जाते हैं।
(d)मूल्यांकन का क्षेत्र व्यापक होता परन्तु मापन किसी एक चर या गुण का होता है।
2.निम्न कथनों पर विचार कीजिए-
(i)रचनात्मक मूल्यांकन के द्वारा शिक्षक अपने शिक्षण विधि एवं शिक्षार्थी अपने संज्ञानात्मक व्यवहार में सुधार करते हैं।
(ii)संकलनात्मक मूल्यांकन के द्वारा अधिगम की प्रगति और शैक्षिक उपलब्धि का आकलन होता है।
उपरोक्त कथनों में से कौन-सा/से कथन सत्य है/है?
(a)कथन I सत्य है परन्तु कथन II असत्य है
(b)कथन I व II दोनों सत्य हैं।
(c)दोनों कथन असत्य हैं
(d)कथन II सत्य हैं परन्तु I असत्य है।
3.सामाजिक अध्ययन शिक्षण के दौरान सतत् एवं व्यापक मूल्यांकन क्यों आवश्यक है-
(a)परीक्षा प्रणाली को महत्व देने हेतु
(b)शिक्षार्थी को प्रगति निरन्तर न बनाए रखने के लिए
(c)शिक्षार्थियों ने कितना नहीं सीखा है जानने के लिए
(d) निरन्तर मूल्यांकन होते रहने से शिक्षार्थियों में परीक्षा का अनावश्यक भय नहीं होता।
4.सामाजिक अध्ययन शिक्षण प्रणाली में सतत् एवं व्यापक मूल्यांकन की एक तकनीक है-
(a)निदानात्मक मूल्यांकन
(b)उपचारात्मक मूल्यांकन
(c)A व B दोनों
(d)A व B दोनों में से कोई नहीं
5.एक सामाजिक अध्ययन की अध्यापिका ‘भारतीय जलवायु’ प्रकरण पढ़ाने के बाद परीक्षा का आयोजन करती है और यह देखती है कि अधिकांश विद्यार्थी मौसम और जलवायु के बीच अन्तरको नहीं समझते हैं। यह किसके कारण हो सकता है?
(a)वह उस कक्षा की अध्यापिका नहीं है।
(b)विद्यार्थी प्रश्न को सही तरीके से नहीं समझ सके
(c)शिक्षिका की कक्षा में प्रायः अनुशासनहीनता रहती है।
(d)वह कक्षा में प्रभावी तरीके से सम्बन्धित संकल्पना को व्याख्यायित नहीं कर सकी
6. शिक्षार्थियों का आकलन करते समय सामाजिक अध्ययन की शिक्षिका को निम्नलिखित में से क्या नहीं करना चाहिए?
(a) बच्चों के कार्य से सम्बन्धित गुणात्मक उल्लेख करना
( b) शिक्षार्थियों की सीखने की क्षमताओं को ध्यान में रखकर सूचना दर्ज करना
(c) बच्चों के कार्य के कवल कुछ पक्षों पर ध्यान केन्द्रित करना (d) बच्चों के पूर्व आकलन के साथ तुलना करना
7.निम्न दिए गए कथनों में से कौन-सा कथन मूल्यांकन की विशेषताओं से सम्बन्धित नहीं है-
a.मूल्यांकन निरन्तर चलने वाली प्रक्रिया है।
b.मूल्यांकन का संप्रत्यय मापन, परीक्षण व अन्य सभी परीक्षाओं से अधिक व्यापक है।
c.मूल्यांकन द्वारा प्राप्त परिणामों के आधार पर शिक्षण-अधिगम प्रक्रिया को नियन्त्रित किया जाता है!
d.मूल्यांकन की भूमिका शिक्षार्थी व्यवहार मापन क्षेत्र में नकारात्मक है।
8.मूल्यांकन से सम्बन्धित असत्य कथन को पहचानिए-
(a)मूल्यांकन निश्चित समय व अवधि की सीमाओं में बंधा रहता है इसीलिए समय-समय पर किया जाता है।
(b)मूल्यांकन की प्रक्रिया में मापन एक साधन के रूप में कार्य करता है।
(c)मूल्यांकन का उद्देश्य विद्यार्थियों के संपूर्ण व्यक्तित्व एवं व्यवहार का अवलोकन किया जाता है। (d)मूल्यांकन के परिणामों द्वारा सार्थक भविष्यवाणी की जा सकती है।
9. गुणात्मक प्रविधियों की तकनीक है-
(a)प्रश्नावली
(b)मतसूची
(c)साक्षात्कार
(d)उपरोक्त
10. कक्षा VII की सामाजिक अध्ययन विषय की शिक्षिका अपनी कक्षा के शिक्षार्थियों को निदानात्मक और उपचारात्मक शिक्षण के दौरान सबसे पहला घटक क्या अपनाएगी-
(a) शिक्षार्थी की कठिनाई विशेष की पहचान करना
(b) पढ़ने के लिए बहुत अधिक सामग्री उपलब्ध कराना
(c) चर्चा के लिए अनेक अवसर उपलब्ध कराना
(d) शिक्षार्थियों की गलतीयों को तुरन्त सुधारना
11. सामाजिक विज्ञान में उपचारात्मक शिक्षण शिक्षक को क्या समझने में सहायता करेगा?
(a) पुनरावृति किस प्रकार कमजोर विद्यार्थियों की सहायता करती है।
(b) सामाजिक विज्ञान में विद्यार्थी ने समस्यागत विषय को समझ लिया है।
(c) उपचारात्मक शिक्षण प्रकरण का वह हिस्सा है
(d) कक्षा के शिक्षार्थी कितने बुद्धिमान हैं।
12. “मूल्यांकन निरन्तर चलने वाली प्रक्रिया है। यह प्रक्रिया छात्रों की औपचारिक शैक्षिक उपलब्धि से अधिक सम्बन्धित है। वह व्यक्ति के विकास में अधिक रुचि रखता है। यह व्यक्ति के विकास को उसकी भावनाओं विचार तथा क्रियाओं से सम्बन्धित, वांछित, व्यवहार परिवर्तनों के रूप में करता है। ‘यह कथन है-
(a) एम.पी. मफात
(b) ई.ए. वैस्ले
(c) बाइनिंग एंड बाइनिंग
(d) ncf 2005
उत्तरमाला –
1. (b) 2. (b) 3. (d) 4. (c) 5. (d) 6. (c) 7. (d) 8. (c) 9. (d) 10. (a) 11. (b) 12. (a)
◆◆◆ निवेदन ◆◆◆
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