सामाजिक अध्ययन की पाठ्यपुस्तक की विशेषताएं,महत्व,उपयोगिता | CTET SOCIAL STUDIES PEDAGOGY

दोस्तों अगर आप CTET परीक्षा की तैयारी कर रहे हैं तो CTET में 50% प्रश्न तो सम्मिलित विषय के शिक्षणशास्त्र से ही पूछे जाते हैं। आज हमारी वेबसाइट hindiamrit.com आपके लिए सामाजिक विज्ञान विषय के शिक्षणशास्त्र से सम्बंधित प्रमुख टॉपिक की श्रृंखला लेकर आई है। हमारा आज का टॉपिक सामाजिक अध्ययन की पाठ्यपुस्तक की विशेषताएं,महत्व,उपयोगिता | CTET SOCIAL STUDIES PEDAGOGY है।

Contents

सामाजिक अध्ययन की पाठ्यपुस्तक की विशेषताएं, महत्व,उपयोगिता | CTET SOCIAL STUDIES PEDAGOGY

सामाजिक अध्ययन की पाठ्यपुस्तक की विशेषताएं,महत्व,उपयोगिता | CTET SOCIAL STUDIES PEDAGOGY
सामाजिक अध्ययन की पाठ्यपुस्तक की विशेषताएं,महत्व,उपयोगिता | CTET SOCIAL STUDIES PEDAGOGY

CTET SOCIAL STUDIES PEDAGOGY

Tags – ctet social studies pedagogy,सामाजिक विज्ञान का पाठ्यक्रम,ctet social studies pedagogy notes in hindi pdf,सामाजिक विज्ञान की पाठ्यपुस्तक की विशेषताएं,ctet social studies pedagogy in hindi,ctet pedagogy,pedagogy of social studies in hindi,सामाजिक अध्ययन की पाठ्यपुस्तक का महत्व,सामाजिक अध्ययन की पाठ्यपुस्तक की उपयोगिता,सामाजिक अध्ययन की पाठ्यपुस्तक की विशेषताएं,महत्व,उपयोगिता | CTET SOCIAL STUDIES PEDAGOGY

सामाजिक विज्ञान के पाठ्यक्रम का अर्थ

पाठ्यक्रम शब्द अंग्रेजी के क्यूरीकुलम (Curriculum) शब्द का पर्यायवाची है। अंग्रेजी में यह शब्द लैटिन भाषा से आया है और इसका अर्थ-‘Race Course’ अर्थात् दौड़ने का मैदान। शिक्षा के क्षेत्र में इसका तात्पर्य विद्यार्थियों के दौड़ के मैदान से है। शिक्षा की तुलना एक दौड़ से की जाती है जिसमें पाठ्यक्रम वह दौड़ का मैदान है जिसको पार करके एक दौड़ने वाला अपने गंतव्य स्थान पर पहुंच जाता है। दूसरे शब्दों में, पाठ्यक्रम वह मार्ग है जिसका अनुसरण करके विद्यार्थी शिक्षा के लक्ष्य को प्राप्त करता है।

कनिंघम के अनुसार “पाठ्यक्रम कलाकार (अध्यापक) के हाथ में वह साधन है जिससे वह अपने स्टूडियो (School) में अपनी सामग्री (विद्यार्थियों) को अपने आदर्श (उद्देश्य) के अनुसार ढालता है।’
-पाठ्यक्रम विकसित करने हेतु चार सोपानों का क्रमिक अनुसरण करने की योजना निम्न है-
1. सामाजिक विज्ञान शिक्षण के उद्देश्यों का निर्धारण
2. उद्देश्यों की पूर्ति हेतु वांछित अधिगम अनुभवों का चयन
3. चयनित अधिगम अनुभवों का संगठन
4. उद्देश्यों की प्राप्ति के परिप्रेक्ष्य में मूल्यांकन सुझाव

सामाजिक विज्ञान की पाठ्यपुस्तक

वर्तमान शिक्षा प्रणाली में पाठ्यपुस्तक ही सामाजिक विज्ञान शिक्षण का मुख्य आधार है। पाठ्यपुस्तक अध्यापक के हाथ में महत्वपूर्ण औजार है, यह प्रभावशाली शिक्षण के लिए आवश्यक तथा ऐच्छिक है। अपने शिक्षण कार्य को सरल एवं सुबोध बनाने के लिए शिक्षक को एक उपकरण प्राप्त हुआ है जो पाठ्य-पुस्तक है। यह छात्र तथा शिक्षक दोनों का पथ-प्रदर्शन करती है। क्रो व क्रो के अनुसार “केवल पाठ्य-पुस्तक या केवल शिक्षक शिक्षा का सर्वोत्तम साधन नहीं है। यदि युवा पीढ़ी को अपने उत्तरदायित्वों को पूरा करने के लिए प्रशिक्षित करना है तो उचित प्रकार से चयन की गई पाठ्यपुस्तकों एवं भलीभांति प्रशिक्षित अध्यापक के मेल की आवश्यकता है। “

पाठ्य-पुस्तक की विशेषताएं

(1) कारणों का तार्किक क्रम
(2) उपयुक्त छपाई
(3) पाठ्य-पुस्तक की आकर्षक जिल्द
(4) लेखक व विषय का पूर्ण विवरण
(5) पाठ्य-पुस्तक की भूमिका/आत्मा
(6) उद्देश्य केन्द्रीकृत विषय
(7) पाठ्य-पुस्तक की विषयवस्तु
(8) पाठ्यवस्तु उस श्रेणी के बच्चों के स्तर के अनुकूल होनी चाहिए जिस श्रेणी के लिए वह लिखी जा रही है।
(9) पाठ्यवस्तु बच्चों की जिज्ञासा तथा रुचि को बढ़ाने वाली होनी चाहिए। जैसे सामाजिक एवं राजनीतिक जीवन के पाठ के शुरू में चित्र आदि दिए गए हैं।
(10) पाठ्यवस्तु सरल, स्पष्ट एवं सुबोध होनी चाहिए। अगर पाठ्य पुस्तक कठिन होगी तो अध्यापक के ऊपर भार पड़ेगा क्योंकि उसे पूरक सामग्रियां प्रदान करनी पड़ेगी।
(11) अपने प्रदेश, देश तथा विश्व की आवश्यक ऐतिहासिक, सामाजिक एवं भौगोलिक बातों का वर्णन होना चाहिए।

(12) विषयवस्तु ऐसी हो जो विभिन्न प्रांतों एवं विभिन्न देशों के “अन्योन्याश्रय संबंध’को महत्व देती हो।
(13) भिन्न-भिन्न स्थानों, प्रांतों तथा देशों के मध्य सामाजिक, सांस्कृतिक तथा आर्थिक निर्भरता दिखाने वाली सामग्री पारस्परिक सद्भाव विकसित करने में सहायक होती है।
(14) अन्य प्रांतों एवं देशों के निवासियों के रहन-सहन, विचार एवं धर्म आदि के विषय में सही तथा निष्पक्ष प्रस्तुतीकरण होना चाहिए। ऐसे वाक्य नहीं होने चाहिए जिससे किसी भी धर्म या संप्रदाय की भावनाओं को ठेस पहुंचे।
(15) पाठ्य-वस्तु में ऐतिहासिक घटनाओं का चित्रण करते समय नाम तथा तिथियों की यथार्थता एवं शुद्धता का ध्यान रखना चाहिए एवं कालावधियों के समानताओं एवं परिवर्तनों पर प्रकाश डालना चाहिए।
(16) सामाजिक विज्ञान की पाठ्य-वस्तु देश के आदर्श भावी नागरिकों के निर्माण में सहायक होनी चाहिए।
(17) पूछताछ एवं खोजबीन की भावना का विकास हो।

ये भी पढ़ें-  गणित शिक्षण में मूल्यांकन : उपचारात्मक एवं निदानात्मक परीक्षण   | CTET MATH PEDAGOGY

पाठ्य-पुस्तक के महत्व / उपयोगिता

(1) व्यवस्थित शिक्षा प्रक्रिया व अधिगम को क्रमबद्धता प्रदान करना।
(2) कक्षा से सम्बन्धित क्रमबद्ध व सुव्यवस्थित विषय सामग्री
(3) शिक्षण से पूर्व पाठ की तैयारी में सहायक
(4) ज्ञान का अपार भण्डार
(5) ज्ञान को सरलता व कठिनता के स्तर पर विभिन्न इकाइयों में बांटने में सहायक
(6) समय तथा शक्ति की बचत
(7) पाठ को दोहराने में सहायक
(8) छात्रों में रुचि जागृत करने में सहायक
(9) मन्दबुद्धि बालकों के लिए लाभकारी
(10) सामाजिक विज्ञान में पाठ योजना

जिन उत्तरदायित्वों को निभाने की एक शिक्षक से अपेक्षा होती है उनमें सबसे बड़ा उत्तरदायित्व उसके नियमित कक्षा शिक्षण को लेकर होता है। एक सामाजिक विज्ञान के अध्यापक को भी इस दृष्टि से एक या एक से अधिक कक्षाओं को रोजाना अपने विषय का अनुदेशन कार्य करना होता है। अपने इस कक्षा शिक्षण तथा अनुदेशन कार्य को पूरा करने हेतु उसे उसके निम्न तीन सोपानों से गुजरना पड़ता है-
(i) शिक्षण की पूर्व-क्रियात्मक अवस्था
(ii) शिक्षण की अन्तःक्रियात्मक अवस्था
(iii) शिक्षण की उत्तर क्रियात्मक अवस्था

कक्षाकक्ष में संपन्न वास्तविक शिक्षण (अन्तःक्रियात्मक अवस्था)

अधिगम को सुचारू रूप से संपन्न करने हेतु एक शिक्षक द्वारा जो पूर्व नियोजन किया जाता है उसे ही पाठ योजना निर्माण तथा शिक्षण की पूर्व क्रियात्मक अवस्था के नाम से जाना जाता है।
पाठ शब्दावली से अभिप्राय शिक्षक द्वारा किसी एक कार्य-दिवस में अपने विषय विशेष के लिए निर्धारित कक्षा की घंटी में अपने विषय की किसी एक इकाई तथा उप-इकाई के अनुदेशन या शिक्षण हेतु किए हुए ऐसे नियोजन से है जिससे उसे उस इकाई या उप-इकाई के लिए निर्धारित अनुदेशनात्मक उद्देश्यों की प्राप्ति में अधिक-से-अधिक मदद मिल सके।
शिक्षा अंतर्राष्ट्रीय शब्दकोश के अनुसार “पाठ योजना किसी पाठ के महत्वपूर्ण बिन्दुओं से संबंधित एक ऐसी रूपरेखा है जिसमें उनको उसी क्रम में व्यवस्थित किया जाता है जिस क्रम में अध्यापक द्वारा विद्यार्थियों के सामने उन्हें रखा जाता है। “

कक्षा शिक्षण में पाठ योजना का महत्व

(1) यह शिक्षक के लिए पथ-प्रदर्शक का कार्य करती है किसी शिक्षक को इससे यह पता चलता है कि उसे क्या तथा किस प्रकार से शिक्षण करना है।
(2) पाठ-योजना शिक्षक को संगठित एवं सुव्यवस्थित रूप से सोचने के लिए उत्तेजित करती है।
(3) इसके द्वारा नये पाठ का पूर्व पाठ के साथ उचित सम्बन्ध स्थापित हो जाता है। पाठ-योजना द्वारा शिक्षक पाठ के उद्देश्यों को भली-भांति समझ लेता है।
(4) यह शिक्षक को सहायक सामग्री के विषय में सोचने तथा उपयोग करने के लिए विवश करती है।

(5) पाठ्य सामग्री द्वारा पाठन समय के अनुसार व्यवस्थित रहता है।
(6) पाठ-योजना द्वारा अध्यापक को उचित एवं महत्वपूर्ण प्रश्न करने की प्रेरणा प्राप्त होती है।
(7) यह शिक्षक को उत्तम शिक्षण विधि चुनने में सहायता देती है।.
(8) बालकों के स्तर एवं पूर्व ज्ञान का पूर्ण ध्यान रखती है।
(9) यह शिक्षक को अमूर्त वस्तुओं के शिक्षण में सहायता देती है।
(10) यह अध्यापक को अपने शिक्षण का मूल्यांकन करने में सहायता देती है। पाठ योजना अध्यापक के चिन्तन में निश्चितता एवं नियमितता लाती है।

ये भी पढ़ें-  सामाजिक अध्ययन की शिक्षण विधियां | CTET SOCIAL STUDIES PEDAGOGY

शिक्षण में पाठ-योजना की आवश्यकता

(1) पाठ योजना के द्वारा छात्र को नया ज्ञान उसके पूर्व ज्ञान के आधार पर दिया जाता है।
(2) इसके द्वारा पाठ सरल, स्पष्ट, रुचिकर तथा आकर्षक हो जाता है।
(3) पाठ-योजना के द्वारा शिक्षक समुचित नीतियों, विधियों, सहायक सामग्री तथा उपकरणों पर शिक्षण से पूर्व विचार कर लेता है।
(4) पाठ-योजना से शिक्षक पाठ्य-वस्तु संबंधी प्रत्येक तथ्यों से अवगत हो जाता है। इससे वह प्रसंग को स्पष्ट रूप से कक्षा में प्रस्तुत कर सकता है।
(5) पाठ-योजना द्वारा शिक्षक को यह संकेत दिया जाता है कि उन्हें अपना पाठ कहां से प्रारम्भ करना है तथा कहां पर समाप्त करना है।
(6) पाठ-योजना द्वारा छात्रों में तर्क, चिन्तन, कल्पना आदि गुणों का विकास किया जाता है।

उत्तम पाठ-योजना की विशेषताएं

1. पाठ-योजना लिखित होनी चाहिए।
2. यह इस बात की सूचक होनी चाहिए कि हमें क्या पढ़ाना है तथा कैसे पढ़ाना है।
3. यह एक समय विशेष में शिक्षणीय ज्ञान का प्रारूप सावधानी के साथ बनाती है।
4. पाठ-योजना में लचीलापन होना आवश्यक है, जिससे कि पाठ नयी परिस्थितियों में भली-भांति क्रियान्वित किया जा सके।

पाठ-योजनाओं का वर्गीकरण

1. व्यापक पाठ-योजनाएं
2. लघु पाठ-योजनाएं
3. सूक्ष्म पाठ-योजनाएं
4. लिखित पाठ-योजनाएं
5. अलिखित पाठ-योजनाएं

पाठ-योजना के उपागम

पाठ योजना किस तरह से बनाई जाए तथा किस रूप में लिखी जाए इस कार्य में अध्यापकों की सहायता हेतु विभिन्न शिक्षा शास्त्रियों ने अपने-अपने विचारों के आधार पर कुछ तरीके सुझाए हैं। इन्हें तकनीकी भाषा में उपागम (Approach) की संज्ञा दी जाती है। मुख्य रूप से चार उपागमों का पाठ-योजना बनानें और लिखने की पद्धतियों के रूप में उपयोग किया जा सकता है-
1. हरबर्ट उपागम
2. इकाई उपागम
3. ब्लूम उपागम
4. क्षेत्रीय शिक्षण महाविद्यालय मैसूर द्वारा प्रतिपादित उपागम (RECM Approach)

हरबर्ट उपागम

जर्मन के प्रसिद्ध शिक्षाविद जे.एफ. हरबार्ट तथा उसके शिष्यों ने मिलकर पाठ योजना के पांच औपचारिक पदों का विकास किया। इनके अनुसार छात्र को समस्त ज्ञान बाहर से प्रदान किया जाता है। यह ज्ञान संचित होता रहता है तथा नवीन ज्ञान को पूर्व ज्ञान से सम्बन्धित कर दिया जाये तो छात्र अच्छी प्रकार से सीख लेता है। हरबार्ट के पांच उपागमों का विवरण-
1. योजना
2. प्रस्तुतीकरण
3. तुलना एवं स्पष्टीकरण
4. सामान्यीकरण
5. प्रयोग

इकाई उपागम

एच.सी. मौरीसन महोदय ने इकाई पद्धति का सर्वप्रथम विकास किया। इस पद्धति का प्रयोग अमेरिका में अधिक प्रचलित है। यह पद्धति गेस्टाल्ट मनोविज्ञान के सिद्धान्तों पर मानी जाती है।
मौरीसन के अनुसार-“इकाई एक संगठित तथा कला के वातावरण का व्यापक तथा उपयोगी पक्ष है।”
मौरीसन ने इकाई पद्धति के पांच पदों का उल्लेख किया है-
1. अन्वेषण
2. प्रस्तुतीकरण
3. आत्मीकरण
4. संगठन
5. अभिव्यक्तिकरण

ब्लूम मूल्यांकन उपागम

मूल्यांकन उपागम का शिक्षण के क्षेत्र में एक नवीन प्रत्यय के रूप में विकास हुआ है। इसमें शिक्षण को उद्देश्य केन्द्रित माना जाता है। इसलिए परीक्षण शिक्षण पर पूर्ण रूप से आधारित होता है। क्षेत्रीय शिक्षा महाविद्यालय मैसूर उपागम (R.C.E.M. Approach) मूल्यांकन एक प्रक्रिया है। इसका निर्माण तीन तत्वों-शिक्षण उद्देश्यों सीखने के अनुभव तथा व्यवहार परिवर्तन या मूल्यांकन के सम्मिलित रूप में होता है। इन्हीं तीनों तत्वों का प्रयोग मूल्यांकन उपागम में स्पष्ट रूप से किया जाता है।

अभ्यास-प्रश्न ( बहुविकल्पीय प्रश्न )

1. सामाजिक अध्ययन की पाठ योजना में उद्देश्य कथन के पश्चात् होता है।
(a) गृह कार्य
(b) पुनरावृत्ति
(c) प्रस्तुतीकरण
(d)  गृहकार्य प्रस्तुतीकरण

2. एक अच्छी पाठ योजना की विशेषताएं आधारित होती हैं-
(a) उद्देश्यक
(b) विषयवस्तु आधारित
(c) विधि पर
(d) सतत् एवं व्यापक मूल्यांकन

ये भी पढ़ें-  चिंतन का अर्थ एवं परिभाषा,चिंतन के प्रकार,चिंतन के सोपान

3. पाठ्यक्रम विकास हेतु दिए गए चार सोपानों को क्रम में कीजिए-
I. चयनित अधिगम अनुभवों संगठन
II. परिप्रेक्ष्य में मूल्यांकन सुझाव
III.वांछित अनुभवों का चयन
IV. उद्देश्यों का निर्धारण
a. IV, III, I, II
b. I, II, III, IV
c.II, III, I, IV
d. IV, II, I, III

4. निम्नलिखित कथनों में से कौन-सा कथन पाठ्य-पुस्तक की विशेषता नहीं है-
a.पाठ्य-पुस्तक विषय का उद्देश्य केन्द्रीकृत होना जरूरी नहीं है।
b.पाठ्य-पुस्तक में लेखक व विषय का पूर्ण विवरण होना चाहिए।
c. दिए गए प्रकरणों का तार्किक क्रम होना चाहिए।
d. पाठ्य-पुस्तक की भूमिका अवश्य दी गई होनी चाहिए।

5. पाठ्य-पुस्तक की विषय वस्तु संबंधी गलत कथन को पहचानिए-
a.पाठ्य-पुस्तक का विषय छात्रों के स्तर के अनुकूल होना चाहिए
b.पाठ्यवस्तु स्पष्ट एवं सुबोध होनी चाहिए ताकि शिक्षार्थी को रुचिकर लगे।
c.पाठ्यवस्तु में ऐतिहासिक घटनाओं का चित्रण उनके नाम व तिथियों की यथार्थतानुसार किया जाना चाहिए।
d. सभी कथन सही हैं, कोई भी कथन गलत नहीं है।

6.”इकाई एक संगठित तथा कला के वातावरण का व्यापक तथा उपयोगी पक्ष है। यह कथन है-
(a)मफात
(b) मौरीसन
(c) ब्लूम
(d)हरबर्ट

7.मौरीसन ने इकाई पद्धति में पांच पदों का उल्लेख किया है जिनमें अभिव्यक्तिकरण का पद है-
(a) I
(b) IV
(c) V
(d) III

8.मौरीसन के अनुसार इकाई पद्धति (पाठ योजना) में अन्वेषण के बाद कौन-सा पद आता है?
(a) आत्मीकरण
(b) प्रस्तुतीकरण
(c) संगठन
(d)अभिव्यक्तिकरण

9.”पाठ योजना किसी पाठ के महत्वपूर्ण बिन्दुओं से संबंधित एक ऐसी रूपरेखा है जिसमें उनको उसी क्रम में व्यवस्थित किया जाता है जिस क्रम में अध्यापक द्वारा विद्यार्थियों के सामने उन्हें रखा जाता है।’ यह कथन है-
(a)वैस्ले
(b)एम.पी. मफात
(c) शिक्षा अन्तर्राष्ट्रीय शब्दकोश
(d)बाइनिंग एंड बाइनिंग

10. सामाजिक अध्ययन में ‘पाठ्यचर्या’ का क्या अर्थ है?
(a) पाठ्यक्रम
(b)पाठ्यसामग्री
(c)पाठ्यवस्तु
(d)अधिगम अनुभव

11. पाठ्यक्रम किस प्रकार का होना चाहिए-
(a) शिक्षार्थी केन्द्रित
(b)पाठ्यवस्तु केन्द्रित
(c)अभिभावक केन्द्रित
(d)शिक्षक केन्द्रित

12. पाठ योजना के द्वारा छात्रों को नया ज्ञान किस आधार पर प्रदान किया जाता है?
(a) पूर्व ज्ञान के आधार पर
(b) रुचि व जरूरत के आधार पर
(c) कक्षा की परिस्थितियों के आधार पर
(d) पाठ्यवस्तु के आधार पर

13. कक्षा VII की अध्यापिका अपनी कक्षा के विद्यार्थियों को समाज में व्याप्त ‘जाति संरचना’ की अवध  धारणा स्पष्ट करना चाहती है इस हेतु उसे किस प्रकार की विषय वस्तु का चयन करना चाहिए-
(a) सभी विद्यार्थियों को अधिक से अधिक अपने अड़ोस-पड़ोस के लोगों से जाति संबंधी ज्ञान प्राप्त करने को कहेगी।
(b)ऐसी विषयवस्तु का चयन करेगी जिससे किसी समुदाय विशेष की अवहेलना न हो।
(c)सभी विद्यार्थियों से उनकी जाति पूछ कर बच्चों का ज्ञान स्पष्ट करेगी।
(d) उपरोक्त सभी कथन सही हैं।

14. पाठ्य-वस्तु सहायक है-
(a)विद्यार्थियों को कक्षा में बैठाकर रखने में।
(b)देश के आदर्श-भावी नागरिकों के निर्माण में
(c)बच्चों के सम्पूर्ण विकास को जल्दी पूरा करने में
(d)अध्यापक की छवि कक्षा में सुधारने में

उत्तरमाला

1. (c)      2. (a)         3.(a)      4. (a)           5. (d)               6. (b)   7. (c)          8. (b)       9. (c)         10. (d)        11.(a) 12.(a)        13.(b)     14.(b)

                               ◆◆◆ निवेदन ◆◆◆

आपको विज्ञान के शिक्षणशास्त्र का यह टॉपिक कैसा लगा। हमे कॉमेंट करके जरूर बताएं । आप इस टॉपिक सामाजिक अध्ययन की पाठ्यपुस्तक की विशेषताएं,महत्व,उपयोगिता | CTET SOCIAL STUDIES PEDAGOGY को अपने प्रतियोगी मित्रों के साथ शेयर भी करें।

Tags – ctet social studies pedagogy,सामाजिक विज्ञान का पाठ्यक्रम,ctet social studies pedagogy notes in hindi pdf,सामाजिक विज्ञान की पाठ्यपुस्तक की विशेषताएं,ctet social studies pedagogy in hindi,ctet pedagogy,pedagogy of social studies in hindi,सामाजिक अध्ययन की पाठ्यपुस्तक का महत्व,सामाजिक अध्ययन की पाठ्यपुस्तक की उपयोगिता,सामाजिक अध्ययन की पाठ्यपुस्तक की विशेषताएं,महत्व,उपयोगिता | CTET SOCIAL STUDIES PEDAGOGY

Leave a Comment