स्टोरेज डिवाइस के प्रकार / कंप्यूटर स्टोरेज डिवाइस के नाम

आज का युग कम्प्यूटर का युग है। आज के जीवन मे सभी को कम्प्यूटर की बेसिक जानकारी होनी चाहिए। बहुत सी प्रतियोगी परीक्षाओं में भी कम्प्यूटर से सम्बंधित प्रश्न पूछे जाते हैं। इसीलिए हमारी साइट hindiamrit.com कम्प्यूटर से जुड़ी समस्त महत्वपूर्ण टॉपिक की श्रृंखला पेश करती है,जो आपके लिए अति महत्वपूर्ण साबित होगी,ऐसी हमारी आशा है। अतः आज का हमारा टॉपिक स्टोरेज डिवाइस के प्रकार / कंप्यूटर स्टोरेज डिवाइस के नाम की जानकारी प्रदान करना है।

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स्टोरेज डिवाइस के प्रकार / कंप्यूटर स्टोरेज डिवाइस के नाम

स्टोरेज डिवाइस के प्रकार / कंप्यूटर स्टोरेज डिवाइस के नाम
स्टोरेज डिवाइस के प्रकार / कंप्यूटर स्टोरेज डिवाइस के नाम

कंप्यूटर स्टोरेज डिवाइस के नाम / स्टोरेज डिवाइस के प्रकार

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सैकेण्डरी स्मृति के उपकरण (युक्तियाँ)
[DEVICES OF SECONDARY MEMORY]

सैकेण्डरी भण्डारण स्मृति (Secondary Storage Memory)
यह सभी सिस्टम सॉफ्टवेयर तथा एप्लीकेशन प्रोग्रामों को संकलित करती है तथा मौलिक रूप से यह आँकड़ों के बैकअप के लिए प्रयुक्त होती है। यह आकार में थोड़ी बड़ी होती है और प्राथमिक स्टोरेज स्मृति से थोड़ी धीमी होती है। हार्ड डिस्क ड्राइव, फ्लॉपी डिस्क ड्राइव तथा फ्लैश ड्राइव आदि कुछ सैकण्डरी स्टोरेज स्मृति के उदाहरण हैं।

सैकेण्डरी तथा बैकअप स्मृति (Secondary and Backup Memory)

सैकण्डरी तथा बैकअप मैमोरी डॉक्यूमेण्ट फाइलों तथा प्रोग्रामों की प्रतिलिपियों को संकलित करने में प्रस्तुत होती हैं। ये डॉक्यूमेण्ट तथा कम्पाइलर, सॉफ्टवेयर पैकेज, ऑपरेटिंग सिस्टम की फाइलों, बड़े आँकड़ों की फाइलों इत्यादि के लिए निर्धारित किये जाते हैं।

फ्लॉपी डिस्क, पेन ड्राइव, यूएसबी, थम्ब ड्राइव, मैग्नेटिक डिस्क, बाहरी हार्ड ड्राइव डिस्क, ऑप्टिकल डिस्क तथा मैग्नेटिक टेप इत्यादि बैकअप स्टोरेज डिवाइस हैं। ये प्रोग्राम सैकण्डरी मैमोरी में स्थित होते हैं लेकिन इनकी प्रतिलिपियाँ बैकअप मैमोरी मे होती हैं, इस प्रकार यदि सिस्टम विकृत हो जाता है या बिगड़ जाता है तो बैकअप फाइल को सैकेण्डरी मैमोरी में दोबारा स्थापित किया जा सकता है। यदि सैकेण्डरी मैमोरी दुर्घटनावश या अन्य किसी कारण से समाप्त हो जाती है तो बैकअप फाइलें इसमें भी सहायक सिद्ध होती हैं।

भण्डारण युक्तियाँ (Storage Devices)


(1) फ्लॉपी डिस्क (Floppy Disc)-

यह ग्रामोफोन रिकार्ड की तरह प्लास्टिक की बनी गोल प्लेट होती है। यह बहुत लचीली प्लास्टिक की बनी होती है। लचीली प्लास्टिक (Flexible Plastic) से बनी होने के कारण इसका नाम फ्लॉपी (Floppy) पड़ा। फ्लॉपी पर मैग्नेटिक ऑक्साइड की परत चढ़ी होती है। इसी मैग्नेटिक ऑक्साइड की परत के कारण इस प्लास्टिक पर आँकड़े संग्रहित किये जा सकते हैं। यह प्लेट मोटे प्लास्टिक के खोल में बंद रहती है ताकि प्लेट को कोई नुकसान न पहुँच सके।

फ्लॉपी सूचनाओं, संग्रहण, अध्ययन तथा स्थानान्तरण का कार्य करती है। फ्लॉपी में हम विभिन्न सूचनाएँ संग्रहित कर सकते हैं। उसे सी. पी. यू. में डालकर उसमें संग्रहित सूचनाओं को निर्गत कर सकते हैं तथा फ्लॉपी के माध्यम से एक स्थान से दूसरे स्थान तथा एक कम्प्यूटर से दूसरे कम्प्यूटर तक ले जा सकते हैं फ्लॉपी इनपुट तथा आउटपुट दोनों ही रूपों में प्रयुक्त की जा सकती है।। फ्लॉपी डिस्क में तथ्य वृत्तों में संग्रहित किये जाते हैं। इन वृत्तों को ट्रैक (Track) कहते हैं। जब हम इनमें कम्प्यूटर की सहायता से तथ्य संग्रहित करते हैं तो कम्प्यूटर फ्लॉपी में चुम्बकीय विधि से ट्रैक्स तथा सेक्टर बनाता है इसके उपरांत सेक्टर तथा ट्रैक्स के अनुसार सूचनाएँ फ्लॉपी में संग्रहित हो जाती हैं।


फ्लॉपी 2.5″, 3.5″. 5.25″ व 8″ के आकार में आती हैं। एक या दो सतह वाली सिंगल या डबल घनत्व वाली फ्लॉपी उपलब्ध है। सिंगल घनत्व में 48 ट्रैक्स तथा डबल घनत्व में 96 ट्रैक्स होते हैं। इस प्रकार 1.2 मेगाबाइट एवं 1.44 मेगाबाइट की फ्लॉपी उपलब्ध हैं।

किसी भी डिस्क की भण्डारण क्षमता = रिकॉर्डिंग सतह की संख्या x प्रति सतह ट्रैकों की संख्या ४ प्रति ट्रेक सैक्टर की संख्या x प्रति सैक्टर बाइट्स की संख्या इस प्रकार 2.5″ की उच्च घनत्व वाली डिस्क के लिए, जिसके पास 80 ट्रैक हैं, और 512 बाइट्स प्रति सैक्टर हैं,
भण्डार क्षमता 32x80x512 = 14,74,560 बाइट्स = 1.4 MB (लगभग)

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फ्लॉपी डिस्क के ठीक बीच में ड्राइविग स्पिण्डल के लिए एक छेद होता है। जब फ्लॉपी को डिस्क ड्राइव में बने स्लॉट से अंदर डाला जाता है तो डिस्क ड्राइव के स्पिण्डल पर डिस्क बैठ जाती है तथा स्पिण्डल के साथ घूमने लगती है। इसके नीचे एक अण्डाकार स्लॉट होता है जिसे प्रेशर पैड स्लॉट कहते हैं। इसमें एक तीसरा छिद्र भी होता है जिसे इण्डेक्स होल (Index hole) कहते हैं।

डिस्क के दायीं ओर एक छोटा-सा हिस्सा कटा होता है जिससे इसे ठीक ढंग से ड्राइव में लगाया जा सकता है। फ्लॉपी को चलाने व आँकड़े लिखने व पढ़ने के लिए फ्लॉपी ड्राइव की आवश्यकता होती है। इसमें फ्लॉपी को लगाने के लिए स्थान होता है जिसमें फ्लॉपी को फिट कर दिया जाता है। बीच में एक पिन होता है जो फ्लॉपी को छूकर उस पर आँकड़े लिखता है तथा फ्लॉपी से आँकड़े कम्प्यूटर को प्रेषित कर दिए जाते हैं।

(2) हार्ड डिस्क ड्राइव (Hard Disc Drive)

यह फ्लॉपी डिस्क के समान होती है किन्तु आकार में बड़ी तथा तीव्रगति से चलने वाली होती है। यह कम्प्यूटर में स्थायी रूप से लगी होती है। इसलिए इन्हें फ्लॉपी डिस्क के समान इधर-उधर नहीं ले जाया जा सकता है। हार्ड डिस्क में फ्लॉपी डिस्कों जैसी धातु की बनी कई डिस्कें एक के ऊपर एक समान्तर रूप में एक साथ लगा दी जाती हैं जिससे यह हार्ड डिस्क का रूप ग्रहण कर लेती है। इसमें ऊपर व नीचे की सतह को छोड़कर प्रत्येक सतह पर डाटा लिखा जाता है। डिस्क अपनी सतह पर लगातार घूमती रहती है।

अत: किसी भी सतह पर डाटा पढ़ा या लिखा जा सकता है। इसमें प्रत्येक सतह के लिए अलग-अलग रीड राइट हैड लगे होते हैं। 6 डिस्क के पैन में 10 अभिलेखन सतह होती है तथा प्रत्येक सतह में लगभग 20 संकेन्द्रीय वलय होते हैं। किसी भी एक पैक की डिस्कों को अलग-अलग नहीं किया जा सकता है। कम्प्यूटर में इसी प्रकार की डिस्क का प्रयोग होता है। एक हार्ड डिस्क की क्षमता 200 मेगाबाइट से 40 गीगाबाइट व इससे भी अधिक हो सकती है। हार्ड डिस्क काफी विश्वसनीय होती है तथा इसमें बहुत सारे आँकड़ें व निर्देश संग्रहित किये
जा सकते हैं। हार्ड डिस्क ड्राइव में शैफ्ट की गति 2400 चक्कर प्रति मिनट होती है।

(3) ऑप्टीकल स्टोरेज डिवाइस (Optical Storage Device)

यह तीन प्रकार की होती हैं-

(a) कॉम्पेक्ट डिस्क (Compact Disc)-इसे कॉम्पैक्ट डिस्क रीड-ऑनली मैमोरी (Compact Disc Read only Memory) या सी. डी. रौम (CD-ROM) भी कहा जाता है। यह एक ऑप्टीकल डिस्क है। जहाँ हमें अधिक डाटा संग्रह करना हो तो उसके बार-बार बदलने की आवश्यकता न हो वहाँ इसका प्रयोग किया जाता है। इसमें संग्रहित डाटा का पुनर्प्रचालन बहुत आसानी से तथा विश्वासपूर्वक किया जा सकता है। यह तथ्यों को संग्रहित करने से पूर्व उन्हें मशीनी भाषा में बदलती है फिर परिवर्तित रूप को लेकर किरणों की सहायता से डिस्क की परत पर उसे संग्रहित कर लेती है। यह सिल्वर या गोल्डन कलर की होती है। यह लगभग 12.5 सेमी. की गोल डिस्क होती है।

यह रिफ्लेक्टिव मैटीरियल से तैयार की जाती है तथा कवर से ढकी होती है। इसमें एकत्रित सूचनाओं को एक विशेष ड्राइव सी. डी-रोम ड्राइव के माध्यम से पढ़ा जाता है। एक सी. डी. में लगभग 640 मेगाबाइट तक आँकडे  निर्देश संग्रहित हो जाते हैं। इस डिस्क पर तथ्यों को लिखने- पढ़ने का कार्य लेजर किरण ही करती है। इस पर तथ्यों को रिकॉर्ड करने के बाद यदि इसे क्लोज कर दिया जाये तो इसमें संग्रहित सूचनाओं में परिवर्तन तथा संशोधन नहीं किया जा सकता है।
सी. डी. रौम (CD-ROM) में संग्रहित तथ्य स्थायी होते हैं इन्हें केवल पढ़ा जा सकता है। इसलिए कॉम्पैक्ट डिस्क को केवल पढ़ने योग्य मैमोरी कहते हैं। इसमें डाटा सुरक्षित रहता है तथा सी. डी. में रोड ऑनली के कारण वायरस का खतरा भी शून्य है।

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सी. डी. को चलाने के लिए सी. डी. प्लेयर ड्राइव होती है जिस पर डाटा को पढ़ा जा सकता है। सी.डी. रौम (CD-ROM) की अधिकतम क्षमता 900 MB, अधिकतम रीड/राइट एक्सेस गति सीमा 52X के साथ होती है जिसका अर्थ है 10,350 RPM (रोटेशन प्रति मिनट) तथा स्थानान्तरण दर 7.62 MBPS (मेगाबाइट प्रति सेकण्ड) होती है। इसमें डाटा ऑप्टिकल लैंस द्वारा लाल इन्फ्रारेड लेजर बीम की सहायता से लिखा जाता है। आजकल शब्दकोष, थीसिस, किताबों, संगीत इत्यादि, के लिए सी. डी. का प्रयोग बहुलता से हो रहा है। लैन का पूरा सॉफ्टवेयर एक ही सी. डी. पर आ जाता है। जहाँ फ्लॉपी के प्रयोग में बड़े सॉफ्टवेयर में यदि एक भी फ्लॉपी खराब हो जाती है तो पूरा सैट वेकार होने का खतरा रहता है वहाँ सी. डी. का प्रयोग एक अच्छा विकल्प है।

(b) सी. डी. वार्म (CD-Worm)-सी. डी. वार्म भी एक ऑप्टीकल स्टोरेज डिवाइस है। सी. डी. के गुणों को देखते हुए इसमें सुधार किया गया है। सी.डी. राइटर लगाकर सी. डी. पर एक बार लिखा जा सकता है। लेकिन एक बार कुछ लिखने के पश्चात् इसे मिटाकर पुनः नहीं लिखा जा सकता है। एक बार लिखते ही यह रीड ओनली हो जाता है। इसके ऊपर लिखा डाटा एक लम्बे समय तक सुरक्षित रहता है।

(c) मैग्नेटिक-ऑप्टीकल डिस्क (Magenetic Optical Disc) इस डिस्क में मैग्नेटिक तथा ऑप्टीकल डिस्क दोनों के गुण उपलब्ध रहते हैं। इसमें ऑप्टीकल डिस्क के बराबर डाटा संग्रहित किया जा सकता है तथा मैग्नेटिक डिस्क के अनुसार डाटा को बार-बार लिखा व मिटाया जा सकता है। इसमें मैग्नेटिक क्रिस्टल होते हैं। जिनमें बीच में प्लास्टिक की एक पर्त होती है। इसको पढ़ने के लिए लेसर तथा मैग्नेट पद्धति का प्रयोग किया जाता है।
यह आकार में लगभग 9 सेमी. की होती है परन्तु इनमें 100 MB तक डाटा संग्रह किया जा सकता है। एक सामान्य डिस्क राइटर बहुत-सा स्थान खाली छोड़ देता है तथा हिलता हुआ चलता है, जबकि मैग्नेटिक डिस्क राइटर मैग्नेटिक असर के कारण बिल्कुल सटकर चलता है तथा डिस्क का पूर्ण उपयोग करता है। पूरा का पूरा सॉफ्टवेयर एक ही डिस्क में संग्रहित हो जाता है।

(d) टेप ड्राइव (Tape Drive)-मैग्नेटिक टेप का प्रयोग डाटा संचय हेतु किया जाता है। इसमें एक टेप ड्राइव पर मैग्नेटिक टेप लिपटा रहता है जिसके साथ रीड राइट हैड जुड़ा होता है। टेप की पहचान दो आधार पर होती है-
(i) घनत्व,
(ii) स्थानान्तरण गति।
घनत्व का अर्थ प्रति इंच टेप में संग्रह किये जाने वाले शब्दों से किया जाता है।
स्थानान्तरण गति का अर्थ उस गति से है जिससे डाटा टेप से सी. पी. यू. में भेजा जा सकता है। यह शब्दों के घनत्व तथा टेप के घूमने की गति पर निर्भर करता है। इसकी मुख्य कमी यह है कि किसी विशेष डाटा को तलाशने के लिए पूरी टेप को पढ़ना पड़ता है। अत: समय बहुत खर्च होता है।

(e) कार्टेज टेप (Cartaige Tape)–वर्तमान में यह टेप बहुत प्रचलित है। यह परम्परागत संग्रह के स्थान पर बहुत कम जगह घेरती है। यह केवल 1/4″ मोटी हाती है। तथा टेप की रील 300 से 600 फुट लम्बी होती है। इनकी क्षमता 20 मेगाबाइट से 60 मेगाबाइट तक होती है।

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(f) डिजिटल वर्सेटाइल डिस्क (D.V.D.) ड्राइव-ऑप्टीकल डिस्क स्टोरेज तकनीक का यह आधुनिक डिवाइस है। डी. वी. डी. (डिजिटल वीडियो डिस्क) क्षमता, गति तथा गुणवत्ता में सी. डी. से बेहतर है। इसमें ऑडियो, स्टिक फोटो और कम्प्यूटर डाटा अधिक सुरक्षित तरीके से रख सकते हैं। डी. वी. डी. के आविष्कार से कम्प्यूटर तथा व्यवसाय के क्षेत्र के साथ-साथ मनोरंजन के क्षेत्र में गहरा प्रभाव पड़ा है। इसके आने से भण्डारण के अन्य साधनों पर अधिक प्रभाव पड़ा है।

(g) HD-DVD. यह उच्च घनत्व वाली, अधिकतर एक तरफा तथा दोहरी पर्त वाली ऑप्टिकल डिस्क होती है। इसकी क्षमता 15 GB अकेले पर्त पर तथा 30 GB दोहरे पर्त पर होती है। HD-DVD की रीड/राइट गति 36 Mbps से 72 Mbps के बीच होती है। यह प्राथमिक रूप से उच्च परिभाषित वीडियो तथा डाटा के बड़े आयतनों के लिए डिजाइन की जाती है। HD-DVD ड्राइव का मौलिक रूप CD-ROM तथा DVD की तरह होता है इसमें अन्तर यह है कि ये भिन्न तरंग दैर्घ्य की लेजरपर कार्य करती है तथा इसकी डिस्क पर स्टोरेज की सूक्ष्मदर्शीय संरचना भिन्न होती है।

(h) ब्लू-रे यह उच्च घनत्व वाला भण्डारण माध्यम है। यह मुख्य रूप से उच्च परिभाषित वीडियो तथा डाटा के संकलन में प्रयुक्त होता है। दोहरे ब्लू-रे डिस्क की स्टोरेज क्षमता 50 GB होती है जो डाटा को 6 दोहरे पर्त वाली DVD या 10 पर्तवाली DVD में भण्डारण करने के बराबर होती है।

(i) पैन ड्राइव–एक फ्लैश ड्राइव बहुत छोटी तथा पोर्टेबल डिवाइस होती है, जिसमें हार्ड ड्राइव अथवा ऑप्टिकल ड्राइव की तरह कोई भी गतिमान भाग नहीं होता है। अधिकतर ये पीसी से बिल्ट-इन USB पोर्ट के द्वारा जुड़ती है। इस युक्ति (Device) की संकलन क्षमता 16 GB से 64 GB या उससे अधिक होती है। USB पैन ड्राइव हटायी जा सकने वाली युक्ति होती है।

पैन ड्राइव का प्रयोग

पैन ड्राइव का सामान्य प्रयोग इस प्रकार है-


(1) यह व्यक्तिगत फाइलों; जैसे—डॉक्यूमेंट, चित्र, वीडियो, म्यूजिक फाइल, प्रस्तुतीकरण इत्यादि को स्थानान्तरित करने में प्रयुक्त होती है।


(2) पैन ड्राइव डाटा, एप्लीकेशन रगॅफ्टवेयर फाइलों को सुरक्षित रखती है।


(3) यह सिस्टम तथा नेटवर्क प्रबन्धकर्ता द्वारा प्रयोग की जाती है जो सिस्टम के रख-रखाव, ट्रबल शूटिंग तथा डाटा की भरपाई के लिए सॉफ्टवेयर को बनाते हैं।


(4) कम्प्यूटर तकनीशियन कम्प्यूटर के सार-संभाल के वक्त तिथि तथा एण्टी- वायरस सॉफ्टवेयर में स्थानान्तरण के लिए पैन ड्राइव का प्रयोग करते हैं।


(5) यह अनुप्रयोगों को चलाने तथा परिवहन में भी प्रयुक्त होती है, जो कम्प्यूटर पर बिना इंस्ट्रॉलेशन के चलायी जाती है!


(6) इसका उपयोग डिजिटल म्यूजिक फाइल को संकलित करने में भी किया जा सकता है जिसे कम्पैटेबल मीडिया प्लेयर, होम म्यूजिक सिस्टम, कार ऑडियो आदि किसी भी मिली-जुली युक्तियों में प्रयोग करते हैं।

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