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व्यंजन की परिभाषा | व्यंजन के प्रकार | vyanjan in hindi

व्यंजन की परिभाषा | व्यंजन के प्रकार | vyanjan in hindi
इस टॉपिक में क्या क्या सम्मिलित किया गया है?
(1) वर्ण की परिभाषा,वर्ण किसे कहते हैं
(2) व्यंजन की परिभाषा,व्यंजन किसे कहते हैं
(3) व्यंजन के प्रकार,व्यंजन के भेद
(4) अभ्यांतर प्रयत्न के आधार पर व्यंजन के प्रकार
(5) प्राण वायु के आधार पर व्यंजन के प्रकार
(6) स्वर तंत्रियों के कंपन के आधार पर व्यंजन के प्रकार
(7) उच्चारण स्थान के आधार पर व्यंजन के प्रकार
(8) अर्ध स्वर किसे कहते है
(9) उक्षिप्त व्यंजन किसे कहते हैं
(10) लुंठित ध्वनि और पार्श्विक व्यंजन क्या है
(11) महत्त्वपूर्ण परीक्षा उपयोगी प्रश्न
व्यंजन किसे कहते हैं || व्यंजन की परिभाषा
वे वर्ण जिनका उच्चारण बिना स्वर की सहायता के बिना सम्भव नही है अर्थात इनको स्वर की सहायता से बोला जाता है,व्यंजन कहलाते हैं। हिंदी वर्णमाला में व्यंजनों की संख्या 33 है।
व्यंजन के प्रकार || व्यंजनों का वर्गीकरण
दोस्तों व्यंजनों का वर्गीकरण, व्यंजन के प्रकार अलग अलग प्रकार के आधार पर विभाजित किये गए है। व्यंजनों के विभाजन,व्यंजनों के वर्गीकरण के कुल 6 आधार हैं,जो निम्नलिखित हैं। हम सबसे पहले व्यंजन के प्रकार एकसाथ जान लेते हैं। उसके बाद हम उनका अलग अलग वर्णन करके पढ़ेगे।
(1) मूल विभाजन या अभ्यांतर प्रयत्न के आधार पर व्यंजनों के प्रकार
(i) स्पर्श व्यंजन / उदित व्यंजन / वर्गीय व्यंजन (ii) अन्तस्थ व्यंजन
(iii) ऊष्म व्यंजन (iv) संयुक्त व्यंजन
(2) प्राण वायु के आधार पर व्यंजनों के प्रकार
(i) अल्पप्राण (ii) महाप्राण
(3) स्वर तंत्रियों के कंपन / घोष के आधार पर व्यंजनों के प्रकार
(i) घोष या सघोष (ii) अघोष
(4) उच्चारण स्थान के आधार पर व्यंजनों के प्रकार
नीचे विस्तृत रूप से पढ़ेगे।
व्यंजन कितने प्रकार के होते हैं | व्यंजनों के प्रकार
(1) मूल विभाजन या अभ्यांतर प्रयत्न के आधार पर व्यंजनों के प्रकार
यह विभाजन सर्वप्रथम एवं सबसे प्राचीन है। मूल विभाजन के आधार पर व्यंजनों को 4 भागों में बांटा गया है। इस प्रकार व्यंजन मूलतः 4 प्रकार के होते हैं।
(i) स्पर्श व्यंजन / उदित व्यंजन / वर्गीय व्यंजन
वे व्यंजन जिनका उच्चारण करने पर जीभ मूल उच्चारण स्थानों ( कंठ,तालु,मूर्धा,दंत,ओष्ठ) को स्पर्श करती है इसीलिए ये स्पर्श व्यंजन कहलाते हैं। यह व्यंजनों के शुरू के 5 वर्ग होते है इसीलिए इन्हें वर्गीय व्यंजन भी कहा जाता है। ये व्यंजन जीभ के अलग अलग उच्चारण स्थानों के टकराने से उत्पन्न हुए हैं,इसीलिए इन्हें उदित व्यंजन भी कहा गया है।इनकी संख्या 25 है।
वर्ग | व्यंजन |
क वर्ग | क,ख, ग, घ, ङ । |
च वर्ग | च,छ, ज,झ,ञ । |
ट वर्ग | ट,ठ, ड, ढ, ण । |
त वर्ग | त,थ,द, ध, न । |
प वर्ग | प,फ, ब,भ,म । |
(ii) अन्त:स्थ व्यंजन
अंत: का अर्थ होता है – भीतर या अंदर । जिन व्यंजनों का उच्चारण करते समय जीभ,मुँह के किसी भी भाग को पूरी तरह स्पर्श नही करती अर्थात इनका उच्चारण मुह के भीतर से होता है,अंत:स्थ व्यंजन कहलाते हैं। इनकी संख्या 4 है – य,र,ल,व ।
(iii) ऊष्म व्यंजन
ऊष्मा का अर्थ है – गर्मी या गर्माहट। जिन व्यंजनों का उच्चारण करते समय गर्मी उत्पन्न हो अर्थात इनके उच्चारण में मुख से हवा के रगड़ खाने के कारण ऊष्मा पैदा हो,ऊष्म व्यंजन कहलाते है। इनकी संख्या 4 है – श,ष,स,ह ।
(iv) संयुक्त व्यंजन
जो व्यंजन दो व्यंजनों के मेल से बनते हैं,संयुक्त व्यंजन कहलाते हैं। इनकी संख्या 4 है – क्ष,त्र,ज्ञ,श्र ।
क्ष = क् + ष = क्षमा,रक्षा,कक्षा
त्र = त् + र = पत्र,त्रिशूल,त्रिनेत्र
ज्ञ = ज् + ञ = ज्ञान,विज्ञान,यज्ञ
श्र = श् + र = श्रवण,श्रम,परिश्रम
(2) प्राण वायु के आधार पर व्यंजनों के प्रकार
व्यंजनों को प्राण वायु के आधार पर भी बांटा गया है। इसके अनुसार व्यंजन दो प्रकार के होते हैं :–
(i) महाप्राण
जिन व्यंजनों का उच्चारण करते समय प्राण वायु अधिक निकले या अधिक प्रयोग हो,महाप्राण कहलाते हैं। इनकी संख्या 14 है। जो 5 वर्गों के सम स्थान वाले वर्ण (10) + उष्म व्यंजन (4) हैं। अर्थात ख,घ,छ,झ,ठ,ढ,थ,ध,फ,भ,श,ष,स,ह ।
NOTE– सभी उष्म व्यंजन और वर्ग के दूसरे चौथे स्थान के वर्ण ही महाप्राण वर्ण है।
(ii) अल्पप्राण
जिन व्यंजनों का उच्चारण करते समय प्राण वायु महाप्राण की तुलना में कम निकले या कम प्रयोग हो,अल्पप्राण कहलाते हैं। इनकी संख्या 19 है। जो 5 वर्गों के विषम स्थान वाले वर्ण (15) + अंत:स्थ व्यंजन (4) हैं। अर्थात क,ग,ङ,च,ज,ञ,ट,ड,ण,त,द,न,प,ब,म,य,र,ल,व ।
NOTE– सभी अंत:स्थ व्यंजन और वर्ग के पहले,तीसरे,पांचवे स्थान के वर्ण ही अल्पप्राण वर्ण है।
(3) स्वर तंत्रियों के कंपन / घोष के आधार पर व्यंजनों के प्रकार
घोष के आधार पर व्यंजनों के प्रकार,स्वर तंत्रियों के कंपन के आधार पर व्यंजनों को दो भागो में बाँटा गया है :–
(i) घोष या सघोष व्यंजन
इन व्यंजनों का उच्चारण करते समय स्वर तंत्रियों में अधिक कंपन हो,घोष या सघोष वर्ण कहलाते हैं। इनकी संख्या 20 है। जिसमें वर्गों के 3,4,5 वर्ण (15) + अंत:स्थ व्यंजन(4) + ह आते हैं। अर्थात ख,ग,ङ,ज,झ,ञ,ड,ढ,ण,द,ध,न,ब,भ,म,य,र,ल,व,ह
NOTE – सभी अंत:स्थ व्यंजन, ह वर्ण और वर्गों के तीसरे,चौथे,पांचवे वर्ण घोष वर्ण के अंतर्गत आते हैं।
(ii) अघोष व्यंजन
इन व्यंजनों का उच्चारण करते समय स्वर तंत्रियों में घोष वर्णों की तुलना में कम कंपन होता है,अघोष वर्ण कहलाते हैं। इनकी संख्या 14 है। जो वर्गों के 1,2 वर्ण (10) + श,ष,स हैं अर्थात क,ख,च,छ,ट,ठ,त,थ,प,फ,ष,श,स
NOTE – श,ष,स वर्ण और वर्गों के पहले,दूसरे वर्ण अघोष वर्ण के अंतर्गत आते हैं।
(4) उच्चारण स्थान के आधार पर व्यंजनों के प्रकार
उच्चारण स्थान | व्यंजन |
कंठ | क वर्ग,ह । |
तालु | च वर्ग ,य,श । |
मूर्धा | ट वर्ग ,र,ष । |
दंत | त वर्ग ,ल,स । |
ओष्ठ | प वर्ग, |
दंत + ओष्ठ | व |
कुछ व्यंजन एवं उनके अन्य नाम || परीक्षा दृष्टि से उपयोगी
(1) स्पर्श संघर्षी व्यंजन – च,छ,ज,झ ।
(2) संघर्षी व्यंजन – फ़,व,स,श,ह ।
(3) नासिक्य व्यंजन – ङ,न,ण,म,ञ ।
(4) निरानुनासिक व्यंजन – च,क,ट,थ ।
(5) लुंठित या प्रकम्पित व्यंजन – र
(6) पार्श्विक व्यंजन – ल
(7) स्वर यंत्र मुखी या काकल्य व्यंजन – र
(8) अर्ध स्वर – य,व ।
(9) द्विगुण व्यंजन / उक्षिप्त व्यंजन – ढ़,ड़ ।
अर्ध स्वर क्या है || अर्ध स्वर किसे कहते हैं
ऐसे व्यंजन जिनके स्थान पर स्वर प्रयोग करने से उच्चारण में अंतर नहीं आता है अर्थात इनका स्थान स्वर ने ले लिया या यह कह सकते है की इनके जगह स्वर प्रयोग कर सकते है इसीलिए इनको अर्ध स्वर कहते हैं। य और व अर्ध स्वर होते है। य के स्थान पर ई का प्रयोग,व के स्थान पर आ का प्रयोग करते हैं। इनको निम्न उदाहरण से समझ सकते हैं। जैसे – गयी = गई , मिठायी = मिठाई , कौवा = कौआ , कुँवा = कुँआ
द्विगुण व्यंजन / उक्षिप्त व्यंजन / नव विकसित व्यंजन
ऐसे व्यंजन जिनके उच्चारण में जीभ कही और टकराये और फिर कही और टकरा जाए,द्विगुण या उक्षिप्त व्यंजन कहलाते हैं। इन्हें नव विकसित इसीलिए कहा जाता है क्योंकि ये वर्ण संस्कृत में नही है ये केवल हिंदी में नए आये है इसीलिये इन्हें नव विकसित कहा जाता है। ड़ और ढ़ द्विगुण व्यंजन होते हैं। ये व्यंजन शब्दों के बीच या अंत में प्रयोग होते हैं। इन व्यंजनों से कभी कोई शब्द शुरू नहीं होता है। जैसे – कूड़ा,सड़ना,पढ़ना,बूढ़ा आदि।
द्वित्व व्यंजन क्या हैं || द्वित्व व्यंजन की परिभाषा
जो व्यंजन दो समान व्यंजनों के संयोग से बनते हैं,वे द्वित्व व्यंजन कहलाते हैं। जैसे – शक्कर,चक्कर,बिल्ला,दिल्ली,दद्दार आदि।
आगत व्यंजन क्या हैं
कुछ व्यंजन बाहर से आये हैं जो हिंदी भाषा में स्वीकार कर लिए गए हैं परन्तु यह हिंदी भाषा के नहीं है। आगत व्यंजन हैं – ज़,फ़ आदि।
अयोगवाह किसे कहते हैं || अयोगवाह के प्रकार
ऐसे वर्ण जिनका मेल न तो स्वर न ही व्यंजन से हो पाया है,अयोगवाह कहलाते हैं। ये स्वर नहीं है परंतु इनकी भी स्वरों की तरह मात्राएं होती हैं। अतः इन्हें स्वरों के साथ लिखा जाता है। ये स्वतंत्र रूप से प्रयोग नहीं किये जाते हैं। इनकी संख्या 2 है। ये वर्णमाला से बाहर है। अयोगवाह के दो प्रकार होते हैं –
(A) अनुस्वार – इसका उच्चारण नाक की सहायता से होता है। जैसे – अंकित,अंक,जंग आदि। इसका उच्चारण म के जैसे होता है।
(B) विसर्ग – इसका उच्चारण कंठ से होता है। जैसे – दुःख,प्रायः,प्रातःकाल,दुःशासन आदि। इसका उच्चारण ह के जैसे होता है।
व्यंजन की परिभाषा | व्यंजन के प्रकार से जुड़े 20 FAQS
(1) व्यंजन किसे कहते हैं?
उत्तर: जिन वर्णों का उच्चारण बिना स्वरों की सहायता के नहीं हो सकता, वे व्यंजन कहलाते हैं।
(2) हिंदी में कुल कितने व्यंजन होते हैं?
उत्तर: हिंदी में कुल 33 व्यंजन होते हैं।
(3) व्यंजन कितने प्रकार के होते हैं?
उत्तर: व्यंजन पाँच प्रकार के होते हैं – स्पर्श, ऊष्म, अंतःस्थ, अनुनासिक और संयुक्त।
(4) स्पर्श व्यंजन किसे कहते हैं?
उत्तर: जिन व्यंजनों के उच्चारण में किसी अंग से अवरोध उत्पन्न होता है, वे स्पर्श व्यंजन कहलाते हैं।
(5) ऊष्म व्यंजन किसे कहते हैं?
उत्तर: जिन व्यंजनों का उच्चारण बिना किसी अवरोध के निरंतर वायु प्रवाह से होता है, वे ऊष्म व्यंजन कहलाते हैं।
(6) अंतःस्थ व्यंजन कितने होते हैं?
उत्तर: हिंदी में चार अंतःस्थ व्यंजन होते हैं – य, र, ल, व।
(7) अनुनासिक व्यंजन कौन-कौन से हैं?
उत्तर: हिंदी के अनुनासिक व्यंजन हैं – ङ, ञ, ण, न, म।
(8) संयुक्त व्यंजन किसे कहते हैं?
उत्तर: दो या अधिक व्यंजनों के मेल से बने वर्ण संयुक्त व्यंजन कहलाते हैं, जैसे – क्ष, त्र, ज्ञ।
(9) कंठ्य व्यंजन कौन-कौन से हैं?
उत्तर: क, ख, ग, घ, ङ।
(10) ओष्ठ्य व्यंजन कौन-कौन से हैं?
उत्तर: प, फ, ब, भ, म।
(11) तालव्य व्यंजन कौन-कौन से होते हैं?
उत्तर: च, छ, ज, झ, ञ।
(12) मूर्धन्य व्यंजन कौन-कौन से होते हैं?
उत्तर: ट, ठ, ड, ढ, ण।
(13) दंत्य व्यंजन कौन-कौन से होते हैं?
उत्तर: त, थ, द, ध, न।
(14) अल्पप्राण और महाप्राण व्यंजन किसे कहते हैं?
उत्तर: – जिन व्यंजनों का उच्चारण कम वायु प्रवाह से होता है, वे अल्पप्राण कहलाते हैं, जैसे – क, प, च, त।
– जिन व्यंजनों का उच्चारण अधिक वायु प्रवाह से होता है, वे महाप्राण कहलाते हैं, जैसे – ख, फ, छ, थ।
(15) घोष और अघोष व्यंजन किसे कहते हैं?
उत्तर: – जिन व्यंजनों के उच्चारण में कंठ की कंपन होती है, वे घोष व्यंजन कहलाते हैं, जैसे – ग, ज, ड, द।
– जिन व्यंजनों के उच्चारण में कंठ की कंपन नहीं होती, वे अघोष व्यंजन कहलाते हैं, जैसे – क, च, ट, त।
(16) स्पर्श व्यंजन कितने प्रकार के होते हैं?
उत्तर: स्पर्श व्यंजन पाँच प्रकार के होते हैं – कंठ्य, तालव्य, मूर्धन्य, दंत्य, ओष्ठ्य।
(17) व्यंजन का उच्चारण किन भागों से किया जाता है?
उत्तर: कंठ, तालु, मूर्धा, दंत, ओष्ठ और नासिका की सहायता से।
(18) हिंदी में अयोगवाह कितने होते हैं?
उत्तर: हिंदी में दो अयोगवाह होते हैं – अं (अनुस्वार) और अः (विसर्ग)।
(19) संस्कृत में व्यंजनों की कुल संख्या कितनी होती है?
उत्तर: संस्कृत में कुल 33 व्यंजन होते हैं।
(20) हिंदी में कितने संयुक्त व्यंजन होते हैं?
उत्तर: हिंदी में तीन संयुक्त व्यंजन होते हैं – क्ष, त्र, ज्ञ।
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