क्रियात्मक शोध के चरण या सोपान | क्रियात्मक अनुसंधान के चरण

बीटीसी एवं सुपरटेट की परीक्षा में शामिल शिक्षण कौशल के विषय शैक्षिक मूल्यांकन क्रियात्मक शोध एवं नवाचार में सम्मिलित चैप्टर क्रियात्मक शोध के चरण या सोपान | क्रियात्मक अनुसंधान के चरण आज हमारी वेबसाइट hindiamrit.com का टॉपिक हैं।

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क्रियात्मक शोध के चरण या सोपान | क्रियात्मक अनुसंधान के चरण

क्रियात्मक शोध के चरण या सोपान | क्रियात्मक अनुसंधान के चरण
क्रियात्मक शोध के चरण या सोपान | क्रियात्मक अनुसंधान के चरण


(Action research) क्रियात्मक शोध के चरण या सोपान | क्रियात्मक अनुसंधान के चरण

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क्रियात्मक शोध के सोपान या चरण

1.समस्या का चयन

किसी भी अनुसन्धान का सबसे पहला सोपान वह समस्या होती है जिसके सम्बन्ध में अनुसन्धान किया जाना है; क्योंकि समस्या के अभाव में समाधान किसका किया जाए? समस्या के समाधान के लिए आवश्यकता है-अनुसन्धान की। अत: अनुसन्धानकर्ता को सबसे पहले उस समस्या को समझना चाहिए, जिसे वह हल करना चाहता है; क्योंकि समाधान हेतु की गई समस्त क्रियाएँ भी समस्या से सम्बन्धित ही होंगी।

जब शिक्षक या अनुसन्धानकर्ता को अपनी समस्या का ही पता नहीं होगा तो उसके द्वारा किए गए समस्त प्रयास निरर्थक ही होंगे; परन्तु उन्होंने जो भी प्रयत्नों की रूपरेखा बनाई, उसमें मौखिक
अभिव्यक्ति के अतिरिक्त लिखित अभिव्यक्ति को कहीं स्थान ही नहीं था। इसका आशय स्पष्ट था कि उनकी दृष्टि में उच्चारण एवं वर्तनी दोनों एक ही हैं। यथार्थतः, दोनों एक न होकर अलग-अलग हैं। यद्यपि दोनों परस्पर सम्बद्ध अवश्य हैं; परन्तु एक नहीं। उच्चारण का सम्बन्ध मौखिक अभिव्यक्ति से है तो वर्तनी का सम्बन्ध लिखित अभिव्यक्ति से। अतः किसी समस्या का समाधान खोजने से पूर्व उस समस्या को भली-भाँति समझा जाना चाहिए।

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2. समस्या को परिभाषित करना

इसके अन्तर्गत-आप जिस समस्या पर कार्य कर रहे हैं, उसको स्पष्ट कीजिए कि वास्तव में उस समस्या से आपका तात्पर्य क्या है। उदाहरण के लिए-वर्तनी वाली समस्या को ही बताइए कि अधिकतर लड़के लिखने में अशुद्धियाँ करते हैं। वे ‘बीड़ी’ का ‘बिड़ी’, ‘फूल’ का ‘फुल’ लिखते हैं।

3. समस्या सीमांकन

इसके अन्तर्गत-समस्या के उस क्षेत्र को बताइए जहाँ आप कार्य करेंगे;
उदाहरणार्थ-वर्तनी सम्बन्धी अशुद्धियाँ तो प्रत्येक पाठशाला के छात्र कर सकते हैं; परन्तु आप सभी पाठशालाओं के सभी छात्रों की अशुद्धियों का संशोधन कर सकें-यह कम ही सम्भव है। अतः आपको अपनी समस्या के समाधान हेतु अपनी पाठशाला को चुनना पड़ेगा। अपनी पाठशाला में भी यदि बहुत-सी कक्षाएँ हैं तो यह सम्भव नहीं कि आप सभी कक्षाओं में सभी छात्रों की वर्तनी सम्बन्धी अशुद्धियों को दूर कर सकें। ऐसी स्थिति में आपको अपनी कक्षा या कुछ सीमित कक्षाएँ ही लेनी पड़ेंगी और इस सोपान के अन्तर्गत उस पाठशाला एवं कक्षा का उल्लेख करना होगा, जिसमें आप अपना अनुसन्धान कार्य करेंगे ।

4. समस्या के सम्भावित कारणों का पता लगाना तथा कारणों का विश्लेषण

इस सोपान के अन्तर्गत उन कारणों पर विचार कीजिए जो वर्तनी सम्बन्धी अशुद्धियों के मूल कारण हैं; उदाहरण के लिए निम्न कारण हो सकते हैं-
1. बालकों का अशुद्ध उच्चारण, 2. उच्चारण पर स्थानीय प्रभाव, 3. वर्तनी सम्बन्धी नियमों से अनभिज्ञ होना, 4. शिक्षकों का अपूर्ण ज्ञान आदि। अब पुनः इन कारणों पर विचार कीजिए और देखिए कि इन सभी कारणों में सबसे प्रमुख कारण कौन-सा है ?

5. क्रियात्मक परिकल्पना-निर्माण

इसके अन्तर्गत-आप उन क्रियाओं पर विचार कीजिए, जिनके द्वारा समस्या के ऊपर दिए हुए कारणों को मिटाया या दूर किया जा सके; उदाहरण के लिए-हम छात्रों की वर्तनी सम्बन्धी अशुद्धियों को दूर करने के लिए कई क्रियायें अपना सकते हैं। ये क्रियायें हो सकती हैं-
1. पहले शिक्षकों द्वारा की जाने वाली वर्तनी सम्बन्धी अशुद्धियों को दूर करने के लिए उपलब्ध साधन-सुविधाओं के अनुसार शिक्षक संगोष्ठियों का आयोजन करें। एक ही पाठशाला के सभी शिक्षक एक साथ बैठकर इस पर विचार कर सकते हैं।
2. पुनः, विद्यार्थियों की सामान्य अशुद्धियाँ, अर्थात् उन अशुद्धियों को दूर करने के लिए जो प्रायः अधिकतर विद्यार्थियों द्वारा की जाती हैं; सामूहिक कार्यक्रम चलायें। इस कार्यक्रम में उन्हें वर्तनी सम्बन्धी नियमों से अवगत करायें।
3. विद्यार्थियों द्वारा व्यक्तिगत रूप से की जाने वाली वर्तनी सम्बन्धी अशुद्धियों कोअलग से; अर्थात् व्यक्तिगत रूप से ही विद्यार्थियों को बतायें।

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6. अभिकल्प निर्माण एवं उपकरणों का विकास

इस सोपान के अन्तर्गत-आप उन सभी बातों पर विचार कीजिए, जिनके द्वारा आप अपने प्रयलों का मूल्यांकन कर सकें। मूल्यांकन हेतु जो भी उदाहरण तैयार करने हों, उनका निर्माण-उल्लेख भी इसी सोपान के अन्तर्गत कीजिए; उदाहरण के लिए-ऊपर की समस्या के लिए ही वर्तनी सुधार के लिए किए गए प्रत्येक प्रयत्न के पश्चात् उसके परिणामों का परीक्षण किया जा सकता है और उसके लिए उन शब्दों की सूची तैयार की जा सकती है, जिन्हें लिखने में बालक प्रायः भूल करते हैं। इसी सूची के शब्दों को  समयान्तर से लेखनी की दृष्टि से समान शब्दों द्वारा बदला जा सकता है।

7. विश्लेषण (Analysis)

इस सोपान के अन्तर्गत समस्या के समाधान हेतु आपके द्वारा किए गए प्रयासों या प्राप्त आंकड़ों का विश्लेषण कीजिए। इसमें सांख्यिकीय गणना के आधार पर आप यह ज्ञात कर सकते हैं कि आपके द्वारा छात्रों की वर्तनी सम्बन्धी अशुद्धियों के सुधार में क्या और कितना परिवर्तन आया?

8. निष्कर्ष (Conclusion)

इसके अन्तर्गत आप अपने द्वारा वर्तनी सुधार के प्रयत्नों में जिस निष्कर्ष पर पहुँचे, उसका उल्लेख कीजिए और बताइए कि विद्यार्थियों में क्या परिवर्तन आया और यदि आपके प्रयलों में कोई कमी रह गई तो है उसे आगे कैसे दूर किया जा सकता है ? उपकरण निर्माण-अनुसंधान समस्या से सम्बन्धित परिकल्पना की रचना के पश्चात् उसके परीक्षण के लिए आवश्यक तथा तर्कसंगत आँकड़ों के संकलन की आवश्यकता होती है। इसके लिए प्रयुक्त साधन को उपकरण कहते हैं। क्रियात्मक अनुसंधान में समस्या न्यादर्श व जनसंख्या को ध्यान में रखकर उपयोगितानुसार उपकरणों का निर्माण किया जाता है।

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क्रियात्मक अनुसंधान में उपकरण इस प्रकार हो सकते हैं-प्रश्नावली, सर्वेक्षण, अवलोकन, साक्षात्कार, अनुसूची, अनुश्रवण, पर्यवेक्षण, अनुभवों का संयोजन तथा निरीक्षण के स्वरूप में होते हैं। उपकरण के निर्माण में ध्यान रखना चाहिए कि उपकरण में उत्तरदाता को ज्यादा लिखना न पड़े तथा उसके मन में स्वाभाविक बात निकल आए और उपकरणों से प्राप्त होने वाले तथ्य विश्वसनीय, वैध व वस्तुनिष्ठ हों। उपकरण लिखित, मौखिक, भौतिक-सूक्ष्म परिकल्पना की आवश्यकता व न्यादर्श की पूर्ण क्षमता अनुसार होना चाहिए।

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