निर्देशात्मक एवं अनिर्देशात्मक परामर्श में अंतर / Difference between Instructive and Non-instructive Counselling in hindi

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निर्देशात्मक एवं अनिर्देशात्मक परामर्श में अंतर / Difference between Instructive and Non-instructive Counselling in hindi

निर्देशात्मक एवं अनिर्देशात्मक परामर्श में अंतर / Difference between Instructive and Non-instructive Counselling in hindi
निर्देशात्मक एवं अनिर्देशात्मक परामर्श में अंतर


Difference between Instructive and Non-instructive Counselling in hindi / निर्देशात्मक एवं अनिर्देशात्मक परामर्श में अंतर

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निर्देशात्मक परामर्श किसे कहते हैं (Instructive Counselling)

निर्देशात्मक परामर्श परामर्शदाता केन्द्रित होता है। इसमें परामर्शदाता अपना ध्यान व्यक्ति था परामर्शप्राथी की अपेक्षा समस्या पर अधिक रखता है। जेम्स एम.ली(James M.Lee) के अनुसार, “निर्देशात्मक परामर्श, परामर्शदाता द्वारा प्रवनियोजित प्रक्रिया है जिसके आधार पर वह परामर्शप्रार्थी की समस्या को समझता है और उसका समाधान करता है।” निर्देशात्मक परामर्श की प्रक्रिया अग्रलिखित प्रकार से चलती है-

(1) इस प्रक्रिया में पूर्व निर्धारित योजना के आधार पर समस्याकी व्याख्या विभिन्न पहलुओं को ध्यान में रखकर की जाती है। (2) विलयमसन (Williamson) तथा डालें (Darley) के अनुसार विभिन्न विधियों तथा उपकरणों के माध्यम से परामर्शदाता आँकड़े संग्रहीत कर उनका विश्लेषण करता है अथवा समस्या के कारणों को निर्धारित करता है। (3) तत्पश्चात् आँकड़ों का यान्त्रिक (Mechanical) तथा आकृतिक (Graphic) संगठन करके उनका संश्लेषण किया जाता है। (4) उपर्युक्त कार्यवाहियों के पश्चात् परामर्शदाता, परामर्शप्रार्थी से साक्षात्कार करता है। प्राप्त सूचनाओं के आधार वह परामार्शप्रार्थी को समस्या के कारणों एवं समाधानों के विषय में बताता है, परन्तु वह उसे समाधान स्वीकार करने के लिये बाध्य नहीं करता पर परामर्शदाता अपने तर्कों के द्वारा उसे अपने निर्णय पर पहुँचा देता है।

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अनिर्देशात्मक परामर्श किसे कहते हैं ( Non-Instructive Counselling)

निर्देशात्मक परामर्श के विपरीत अनिर्देशात्मक परामर्श, प्रार्थी-केन्द्रित परामर्श होता है। इस परामर्श में परामर्शदाता, परामर्शप्रार्थी के साक्षात्कार के लिये पहले से किसी प्रकार की तैयारी नहीं करता और न ही कोई योजना बनाता है। जेम्स एम. ली के अनुसार-“अनिर्देशात्मक परामर्श में प्रार्थी अपनी समस्या को भली प्रकार से समझ जाता है तत्पश्चात् उसे हल कर लेता है।” परामर्श के इस स्वरूप का प्रमुख व्याख्यता कार्ल रोजर्स को माना जाता है। रोजर्स (Rogers) के अनुसार, “निर्देशीय या निर्देशात्मक परामर्श अमनोवैज्ञानिक तथा प्रभावहीन है क्योंकि इसमें निर्देशन का केन्द्र बिन्दु समस्या होती है, न कि व्यक्ति। यह दोष अनिर्देशात्मक परामर्श द्वारा दूर हो जाता है।”

रोजर्स ने अनिर्देशात्मक परामर्श की निम्नलिखित विशेषताएँ बतायी हैं

(1) अनिर्देशात्मक परामर्श, परामर्शप्रार्थी पर केन्द्रित होता है। (2) इसमें परामर्शदाता पहले से ही किसी प्रकार की योजना का निर्माण नहीं करता। (3) परामर्शप्रार्थी, परामर्शदाता के पास स्वयं जाता है और उसके सम्मुख समस्या को प्रस्तुत करता है। (4) इस परामर्श में व्यक्ति को महत्त्व दिया जाता हैन कि समस्या को। (5) व्यक्ति अपनी समस्यालेकर परामर्शदाता के पास पहुँचता है तो परामर्शदाता उसके साथ सहानुभूति और विश्वास का व्यवहार करके उसे अपनी समस्याओं तथा कठिनाइयों को कहने का अवसर देता है। (6) इस प्रकार अनिर्देशात्मक परामर्श में परामर्शप्रार्थी को अपनी भावनाओं तथा दमित संवेगों को स्वतन्त्रतापूर्वक व्यक्त करने का अवसर दिया जाता है।

(7) परामर्शदाता तटस्थ होकर परामर्श प्रार्थी की समस्याओं, विचारों, अन्य व्यक्तियों के प्रति दृष्टिकोण और भावनाओं को समझने का प्रयास करता है। (8) परामर्शदाता व्यक्ति (परामर्शप्रार्थी) के लिये किसी विशेष निर्णय को नहीं सुझाता, अन्तिम निर्णय परामर्शप्रार्थी को ही लेना पड़ता है। (9) परामर्शदाता इस प्रकार का वातावरण उत्पन्न करता है, जिसमें परामर्शप्रार्थी अपनी समस्या का स्वय समाधान खोज सके। (10) संक्षेप में, अनिर्देशात्मक परामर्श का उद्देश्य, व्यक्ति की किसी समस्या का समाधान करना मात्र नहीं है वरन् उसके विकास में इस प्रकार सहायता देना है कि उसमें इतनी क्षमता उत्पन्न हो जाय कि वह स्वयं अपनी वर्तमान तथा भावी समस्याओं का समाधान कर सके।

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निर्देशात्मक एवं अनिर्देशात्मक परामर्श में अंतर / Difference between Instructive and Non-instructive Counselling in hindi


निर्देशात्मक तथा अनिर्देशात्मक परामर्श में अन्तर निम्नलिखित प्रकार से देखा जा सकता है-

क्र०सं०निर्देशात्मक परामर्श
(Instructive Counselling)
अनिर्देशात्मक परामर्श
(Non-instructive Counselling)
1.यह परामर्शदाता केन्द्रित होता है।यह परामर्शप्रार्थी केन्द्रित होता है।
2.यह व्यक्ति की अपेक्षा समस्या को अधिक महत्त्व
देता है।
यह समस्या की अपेक्षा व्यक्ति को अधिक महत्त्व
देता है।
3.इस परामर्श में परामर्शदाता अधिक सक्रिय रहता है।इसमें परामर्शप्रार्थी अधिक सक्रिय रहता है।
4.यह परामर्श बौद्धिक पहलू पर अधिक बल देता है। इसमें संवेगात्मक पहलू पर अधिक बल दिया
जाता है।
5.रोजर्स के अनुसार यह परामर्श कम मनोवैज्ञानिक है।रोजर्स के अनुसार यह परामर्श अधिक मनोवैज्ञानिक है।
6.इसमें नियंत्रित वातावरण होता है।इसमें स्वतंत्र वातावरण होता है।
7.यह विश्लेषण को अधिक बल देता है।यह संश्लेषण को अधिक बल देता है।
8.इसमें समस्या के समाधान का उत्तरदायित्व परामर्शदाता पर होता है।
इसमें समस्या के समाधान का उत्तरदायित्व
परामर्शप्रार्थी पर होता है।
9.इस परामर्श में भूतकालीन अध्ययन
आवश्यक माना जाता है।
इसमें निकटस्थ एवं वर्तमान समस्याओं को
महत्त्व प्रदान किया जाता है। भूतकालीन समस्याओं से इसका कोई सम्बन्ध नहीं।
10.इसमें समय कम लगता है।इसमें समय अधिक लगता है।

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