श्रम का महत्व पर निबंध हिंदी में | कर्म ही पूजा है पर निबंध | essay on the importance of labour in hindi

समय समय पर हमें छोटी कक्षाओं में या बड़ी प्रतियोगी परीक्षाओं में निबंध लिखने को दिए जाते हैं। निबंध हमारे जीवन के विचारों एवं क्रियाकलापों से जुड़े होते है। आज hindiamrit.com  आपको निबंध की श्रृंखला में  श्रम का महत्व पर निबंध हिंदी में | कर्म ही पूजा है पर निबंध | essay on the importance of labour in hindi प्रस्तुत करता है।

Contents

श्रम का महत्व पर निबंध हिंदी में | कर्म ही पूजा है पर निबंध | essay on the importance of labour in hindi

इस निबंध के अन्य शीर्षक / नाम

(1) श्रम पर निबंध हिंदी में
(2) मैं अपना भाग्य विधाता हूं पर निबंध
(3) दैव दैव आलसी पुकारा पर निबंध
(4) कर्म प्रधान विश्व करि राखा पर निबंध
(5) श्रम की आवश्यकता पर निबंध


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पहले जान लेते है श्रम का महत्व पर निबंध हिंदी में | कर्म ही पूजा है पर निबंध | essay on the importance of labour in hindi  पर निबंध की रूपरेखा ।

निबंध की रूपरेखा

(1) प्रस्तावना
(2) श्रम की भूमिका
(2) श्रम और भाग्य
(3) जीवन में श्रम की आवश्यकता
(4) श्रम से असंभव भी संभव
(5) उपसंहार

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प्रस्तावना

हमारे जीवन में श्रम का बहुत अधिक महत्व है। हम जानते हैं हम अपने जीवन में जो कुछ भी प्राप्त करते हैं वह अपने कर्मों के द्वारा ही प्राप्त करते हैं हम अपने कर्मों को पूर्ण करने में श्रम ही करते हैं अर्थात श्रम करना ही कर्म करना है।

बैठ भाग्य की बाट जोहना, यह तो कोरा भ्रम है।
अपना भाग्य विधाता सम्बल, हर दम अपना श्रम है।
मानवता का मान इसी में, जीवन सरस निहित है।
निरालम्ब वह मनुज, कि जो, नीरस है, श्रम विरहित है।।






श्रम की भूमिका

मनुष्य मात्र का उद्देश्य सुख की प्राप्ति है। मनुष्य से लेकर चींटी और हाथी तक प्रत्येक जीव सुख चाहता है एवं दुःख से छुटकारा पाने का इच्छुक है।

सुख का मूल कारण ज्ञान है और ज्ञान की प्राप्ति बिना श्रम के नहीं हो सकती। इस प्रकार हम कह सकते हैं कि सुख का साधन श्रम है। बिना श्रम के मनुष्य कभी भी सुखी नहीं हो सकता।

वास्तविकता तो यह है कि बिना श्रम के कोई भी काम हो ही नहीं सकता। श्रम जीवन की कुंजी है।

श्रमजीवी यश पाता है, स्वास्थ्य, शान्तिधन, शौर्य-आनन्द।
स्वावलम्बन-भरी साधृता, पद-वैभव, श्रम के आनन्द।॥


श्रम और भाग्य

बहुत-से लोगों में एक ऐसी भावना है कि श्रम के महत्त्व को न समझ कर वे निकम्मे हो जाते हैं। उनका कहना है कि मनुष्य के भाग्य में जो कुछ होना है, वही होता है। चाहे वह कितना भी परिश्रम क्यों न कर ले, भाग्य के विपरीत वह कुछ भी नहीं कर सकता।

परन्तु यह उसका निरा भ्रम है। वास्तव में श्रम का ही दूसरा नाम भाग्य है। श्रम के बिना भाग्य की कोई सत्ता ही नहीं है। मैं अपने भाग्य का स्वयं निर्माता हूँ।

मेरा श्रम ही मेरे भाग्य का निर्माण करता है। अपने भाग्य को अच्छा-बुरा बनाना मनुष्य के अपने ही हाथ में है।

संस्कृत के किसी कवि का यह कथन कितना यथार्थ है-

उद्योगिनं पुरुषसिंहमुपैति लक्ष्मीः,
दैवेन देयमिति कापुरुषाः वदन्ति।
दैवं निहत्य कुरु पौरुषमात्मशक्त्या,
यत्ने कुते यदि न सिध्यति कोऽत्र दोषः ॥

उद्योगशील वीर पुरुष को लक्ष्मी प्राप्त हो जाती है। ‘भाग्य देता है-ऐसा तो कायर लोग कहा करते हैं। अतः भाग्य का भरोसा छोड़कर अपनी पूरी शक्ति से काम करो । यदि यत्न करने पर भी सफलता नहीं मिलती तो समझो कि तुम्हारे उद्योग में कमी है और सोचो कि तुम्हारे प्रयत्न में क्या दोष रहा है?

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आलसी लोग ही बैठकर भाग्य को कोसा करते हैं-‘दैव दैव आलसी पुकारा।”





जीवन में श्रम की आवश्यकता

श्रम ही मानव की सफलता की कूंजी है। यही मानव शक्ति का आधार है। किसी भी कार्य में सफलता प्राप्त करने के लिए परिश्रम की आवश्यकता होती है।

श्रम के बिना सफलता केवल स्वप्न है। कभी-कभी ऐसा भी होता है कि परिश्रम करने पर भी सफलता नहीं मिलती, ऐसे अवसर पर लोग भाग्य को कोसा करते हैं। परन्तु उन्हें सोचना चाहिए कि असफलता का कारण उनके श्रम की कमी है।

उन्हें विचार करना चाहिए कि उनके श्रम में क्या त्रुटि रह गयी है। यदि हम विचारपूर्वक अपने श्रम की त्रुटि को दूर कर दे तो सफलता निश्चित है।

वास्तव में भाग्य के भरोसे पर हाथ पर हाथ रखकर बैठे रहना कायरता है। श्रम के बिना आप से आप कोई काम हो ही नहीं सकता। यदि रोगी भाग्य के भरोसे बैठा रहे, रोग के नाश के लिए भाग-दौड़ न करे तो दुष्परिणाम निश्चित है।

बिना श्रम के हम जीवन में एक कदम भी आगे नही बढ़ सकते, यहाँ तक कि भोजन भी बिना श्रम के पेट में नहीं पहुँचता।

किसी कवि ने ठीक ही कहा है-

उद्यमेन हि सिध्यन्ति कार्याणि न मनोरयैः ।
न हि सुप्तस्य सिंहस्य प्रविशन्ति मुखे मृगाः।॥

उद्योग से ही कार्य सिद्ध होते हैं केवल मनोरथ करने से भाग्य के बल पर नहीं। सोये हुए शेर के मुख में हिरण स्वयं नहीं घुसते । वास्तव में जीवन श्रम पर आधारित है। श्रम में ही जीवन का अस्तित्व है।



श्रम से असम्भव भी सम्भव

श्रम के बल पर ही मनुष्य असम्भव को भी सम्भव बना देता है। सावित्री ने अपने श्रम से अपने पति को यमराज से छुड़ा लिया था। श्रम के बल पर ही मनुष्य न आज उन महान् उद्योगों को जन्म दिया है जिनको देखकर आश्चर्य होता है।

यह मनुष्य के श्रम का ही परिणाम है कि आज मनुष्य आकाश में उड़ता है और समुद्र पर चलता है। जहाँ पहुँचने में पहले महीनों लगते थे, वहाँ अव वह कुछ घण्टों में पहुँच जाता है।

रेडियो, तार, बेतार का तार, बिजली आदि का आविष्कार मनुष्य के श्रम के परिणाम हैं। श्रम के बल पर ही मनुष्य ने आज पृथ्वी, जल, अग्नि, वायु आदि प्राकृतिक तत्त्वों पर भी अपना अधिकार कर लिया है।

पूज्य महात्मा गांधी तथा माननीय नेताओं के श्रम के बल पर ही आज हमारा देश स्वतन्त्र है।

श्रम की इस अद्भुत शक्ति को देखकर ही नेपोलियन बोनापार्ट ने कहा था कि

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“संसार में असम्भव कोई काम नहीं। असम्भव शब्द को तो केवल मूर्खों के शब्दकोष में ही ढूँढा जा सकता है।”





उपसंहार

आधुनिक युग विज्ञान का युग है। प्रत्येक बात को तर्क की कसौटी पर कसा जा सकता है।

भाग्य जैसी काल्पनिक वस्तुओं में अब जनंता का विश्वास घटता जा रहा है। वास्तव में भाग्य श्रम से अधिक कुछ, भी नहीं, श्रम का ही दूसरा नाम भाग्य है।

जीवन में श्रम की महती आवश्यकता है। बिना श्रम के मानव जाति का कल्याण नहीं, दुःखों से त्राण नहीं और समाज में उसका कहीं भी सम्मान नहीं । हमें सदैव इस बात का ध्यान रखना चाहिए कि अपने भाग्य के विधाता हम स्वयं है।

अतः कहा गया है कि-

श्रम एवं परोयज्ञः, श्रम एवं परन्तपः।
नास्ति किंचिद् श्रमात् असाध्यं, तेन श्रमपरोभव ॥






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