बीटीसी एवं सुपरटेट की परीक्षा में शामिल शिक्षण कौशल के विषय आरंभिक स्तर पर भाषा का पठन लेख एवं गणितीय क्षमता का विकास में सम्मिलित चैप्टर बालक में पठन का विकास / बालक में पठन प्रक्रिया के विकास के उपाय आज हमारी वेबसाइट hindiamrit.com का टॉपिक हैं।
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बालक में पठन का विकास / बालक में पठन प्रक्रिया के विकास के उपाय
पठन प्रक्रिया के विकास के उपाय / बालक में पठन का विकास
पठन रुचि का विकास एक कुशल पाठक के रूप में करना भी एक कला है। सामान्यतः विद्यालयों में देखा जाता है कि जब कक्षा में अध्यापक किसी पाठ्य-पुस्तक के गद्यांश या पद्यांश को छात्रों से पढ़ने के लिये कहता है तो कुछ छात्र पठन के लिये उत्साहित प्रतीत होते हैं तथा इस बात के लिये तत्पर रहते हैं कि शिक्षक उनसे पठन के लिये आदेश करे।
इसके विपरीत कुछ छात्र अपना चेहरा छिपाते हैं कि शिक्षक उनसे पठन के लिये आदेशन कर दे। दोनों प्रकार के छात्रों द्वारा यह सिद्ध किया जाता है कि जो छात्र पठन में रुचि रखते हैं तथा पठन के लिये तत्पर होते हैं उनमें पठन रुचि का विकास हो चुका है तथा जो छात्र शिक्षक से अपना चेहरा छिपाते हैं उनमें पठन रुचि का विकास नहीं हुआ है। सामान्य रूप से पठन रुचि के विकास के लिये शिक्षक को निम्नलिखित उपाय करने चाहिये जिससे बालक का कुशल पाठक के रूप में विकास सम्भव हो सके-
1. रुचिपूर्ण सामग्री प्रदान करना-छात्रों में पठन रुचि का विकास करने के लिये रुचिपूर्ण सामग्री प्रदान करनी चाहिये जिससे छात्र उसकी ओर स्वतः ही आकर्षित होकर उसे पढ़ने लगें; जैसे- प्राथमिक स्तर के छात्रों की कहानी एवं कविता में विशेष रुचि होती है। इस स्तर पर बालकों को साहसिक कहानियों था छोटी-छोटी कविताओं को पठन के लिये प्रदान किया जाय तो निश्चित रूप से पठन के प्रति उनकी रुचि विकसित होगी तथा पठन के प्रत्येक अवसर का लाभ उठाने के लिये वे लालायित होंगे।
2. छात्रों के स्तरानुकूल सामग्री-पठन रुचि के विकास के लिये यह आवश्यक है कि छात्रों को उनके स्तर एवं योग्यता के अनुकल सामग्री प्रदान की जाय। प्राथमिक स्तर पर छात्रों को सरल एवं बोधगम्य भाषा में लिखित कहानियों एवं कविताओं को पढ़ने के लिये प्रदान करना चाहिये जिससे वह उनका भाव समझ सकें तथा बार-बार पढ़ने के लिये प्रेरित हो सकें क्योंकि जो पाठ्यवस्तु छात्रों को रुचिकर लगती है उसको वह बार-बार पढ़ना चाहते हैं।
3. सरल एवं बोधगम्य भाषा-जो पाठ्यवस्तु पठन के लिये छात्रों के समक्ष प्रस्तुत की जा रही है उसकी भाषा सरल एवं बोधगम्य होनी चाहिये जिससे छात्र पाठ्यवस्तु का भाव ग्रहण कर सकें। जिस सामग्री के पठन में छात्रों को भाव समझने में कठिनाई होती है उसमें छात्रों की रुचि उत्पन्न नहीं होती तथा ऐसी सामग्री के पठन से छात्र बचने का प्रयास करते हैं। इसके विपरीत जिस पाठ्य सामग्री की भाषा सरल एवं बोधगम्य होगी उस सामग्री के पठन में छात्रों को भाव समझने में कठिनाई नहीं होगी तथा उनकी रुचि भी विकसित होगी।
4. शिक्षक का सकारात्मक व्यवहार-पठन के समय छात्रों द्वारा यदि कोई त्रुटि की जाती है तथा शिक्षक द्वारा छात्रों को दण्डित किया जाता है तो छात्रों की पठन से अरुचि हो जायेगी। इसके विपरीत यदि छात्रों के प्रति शिक्षक का व्यवहार सकारात्मक एवं आत्मीय होता है तो शिक्षक के प्रत्येक कथन को छात्र आदर्श कथन मानेंगे तथा शिक्षक निर्देशन एवं परामर्श के आधार पर छात्र पठन में पूर्ण रुचि विकसित कर लेंगे।
5. उचित पृष्ठपोषण-पठन के समय छात्रों को शिक्षक द्वारा पृष्ठपोषण प्रदान किया जाता है तो छात्र पठन की क्रिया को बार-बार करने के लिये प्रेरित होते हैं। इसके विपरीत स्थिति में पृष्ठपोषण के अभाव में छात्रों में पठन क्षमता का विकास तीव्र गति से नहीं होता है। अत: पठन रुचि के विकास के लिये पृष्ठपोषण आवश्यक है।
6. उपयोगी सामग्री-सामान्य रूप से देखा जाता है कि प्राथमिक विद्यालय में प्रवेश करते समय अभिभावक बालक से कहते हैं कि शिक्षा से ही व्यक्ति योग्य एवं बड़ा आदमी बनता है तथा शिक्षा जीवन के लिये उपयोगी है। इस तथ्य को आत्मसात् करके छात्र विद्यालयी गतिविधियों को आत्मसात् करता है। ठीक इसी प्रकार जब किसी सामग्री को छात्र की दृष्टि में उपयोगी एवं आवश्यक सिद्ध कर दिया जाता है तो छात्र उस सामग्री का पूर्ण मनोयोग एवं रुचि के साथ पठन करता है।
7. परिवेशीय सामग्री- छात्रों को प्रदान करने वाली सामग्री उनके परिवेश से सम्बन्धित होती है तो छात्र व्सका बड़े ही मनोयोग से पठन करते हैं; जैसे-राजा रानी की कहानियाँ सामाजिक कहानियाँ,सांस्कृतिक कहानियाँ एवं परिवेशीय जीव-जन्तु तथा वनस्पतियों के बारे में प्राप्त सामग्री का छात्र पूर्ण मनोयोग से पठन करते हैं क्योंकि उसका तथ्यात्मक स्वरूप वह पुस्तक में देखते हैं तथा व्यावहारिक स्वरूप परिवेश में देखते हैं।
8. समाजोपयोगी सामग्री-जो सामग्री सामाजिक दृष्टि से महत्त्वपूर्ण एवं उपयोगी मानी जाती है उसका छात्र पूर्ण मनोयोग से पठन करता है; जैसे-विज्ञान एवं आविष्कार से सम्बन्धित कहानियों का छात्र पूर्ण मनोयोग से पठन करता है क्योंकि विद्यालय एवं समाज में छात्रों को यह बताया जाता है कि विज्ञान एवं आविष्कार हमारे समाज एवं राष्ट्र के लिये आवश्यक एवं उपयोगी हैं।
9. रसात्मक सामग्री-जिस पाठ्यवस्तु के पठन में छात्र को विभिन्न प्रकार के रसों का अनुभव होता है उस पाठ्यवस्तु का पठन छात्र पूर्ण मनोयोग से करता है, जैसे-एक छात्र वीर रस की कविताओं को पढ़ने में रुचि का प्रदर्शन करता है वहीं दूसरा छात्र हास्य रस की कविता के पठन में रुचि का प्रदर्शन करता है। इस प्रकार जो सामग्री रसात्मक आधार पर छात्र की इच्छा के अनुरूप है उसमें छात्र के पठन की रुचि एवं मनोयोग का पूर्ण प्रदर्शन होगा।
10. मनोरंजन सम्बन्धी सामग्री-प्राथमिक स्तर पर छात्रों द्वारा उस सामग्री का अधिक रुचि से पठन किया जाता है जिसमें छात्रों का मनोरंजन होता है। मनोरंजन से युक्त चुटकुले, कहानियाँ एवं कविता छात्रों के पठन का प्रमुख विषय हैं। इन विषयों पर आधारित सामग्री प्रदान करके छात्रों में रुचि का विकास किया जा सकता है। प्राथमिक स्तर की पुस्तकों में प्राय: चाँद का कुर्ता, दही-बड़ा, जलेबी एवं चूहों की सभा आदि कविताओं को छात्रों द्वारा पूर्ण मनोयोग के साथ पठन करते हुए देखा जा सकता है। आनन्द के लिये पठन सामान्य रूप से पठन, औपचारिक रूप से पठन एवं आनन्द के लिये पठन आदि में व्यापक रूप से अन्तर पाया जाता है। आनन्द को अनुभूति को रस कहते हैं।
जब किसी बालक को किसी कविता या गद्यांश में आनन्द का अनुभव होने लगता है तो उसको वह बार-बार पढ़ने लगता है। सामान्य रूप से कक्षा में किसी कहानी विशेष को छात्रों द्वारा बार-बार पढ़ने का आग्रह किया जाता है; जैसे-चाँद का कुर्ता कविता को छात्र बार-बार पढ़ना पसन्द करते हैं क्योंकि उस कविता में उनको आनन्द का अनुभव होता है। यह कविता शीत ऋतु से सम्बन्धित है। छात्रों को शीत ऋतु के बारे में पूर्ण ज्ञान है। इसमें माँ-बेटे का वार्तालाप है। बालक भी अपनी माँ से बहुत-सी बातें करता है।
इस प्रकार अनेक तथ्य ऐसे होते हैं जो किसी कविता या गद्यांश में छात्रों के मन को छू जाते हैं, जैसे-मुंशी प्रेमचन्द की कहानियों में जन सामान्य को आनन्द क्यों आता है क्योंकि उन कहानियों में समाज की स्थिति एवं मानवीय सम्वेदनाओं का पूर्ण विवेचन किया गया है। अत: जहाँ किसी पद्यांश या गद्यांश के पठन से आनन्द की अनुभूति होगी वहाँ पठन में रुचि का विकास होगा। अत: शिक्षक को सर्वप्रथम छात्रों में आनन्द की उत्पत्ति करने का प्रयास करना चाहिये। इसके लिये शिक्षक को छात्रों के मनोभावों के अनुरूप पाठ्यवस्तु प्रदान करनी चाहिये जिससे छात्र पूर्ण मनोयोग से पठन कर सकें।
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