गणित शिक्षण का अर्थ,परिभाषा महत्व एवं उद्देश्य | CTET MATH PEDAGOGY

दोस्तों अगर आप CTET परीक्षा की तैयारी कर रहे हैं तो CTET में 50% प्रश्न तो सम्मिलित विषय के शिक्षणशास्त्र से ही पूछे जाते हैं। आज हमारी वेबसाइट hindiamrit.com आपके लिए गणित विषय के शिक्षणशास्त्र से सम्बंधित प्रमुख टॉपिक की श्रृंखला लेकर आई है। हमारा आज का टॉपिक गणित शिक्षण का अर्थ,परिभाषा महत्व एवं उद्देश्य | CTET MATH PEDAGOGY है।

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गणित शिक्षण का अर्थ,परिभाषा महत्व एवं उद्देश्य | CTET MATH PEDAGOGY

गणित शिक्षण का अर्थ,परिभाषा महत्व एवं उद्देश्य | CTET MATH PEDAGOGY
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गणित शिक्षण का अर्थ

देखिए गणित का सामान्य अर्थ है- “गणना का विज्ञान”। गणित संख्या, स्थान और मापन का विषय है। जिसकी सहायता से परिमाण, दिशा और स्थान इत्यादि का भली-भांति बोध होता है और जीवन की संख्यात्मक एवं गणनात्मक समस्याएं हल होती हैं। गणितीय अवधारणाओं की सहायता से हम कठिन समस्या को भी सरल बना सकते हैं। सभी प्रकार के अनुसंधान, गणनाएं, व्याख्याएं एवं परिणामों को प्रमाणित करने की विधि गणित ज्ञान का व्यावहारिक पक्ष है। गणित प्रकृति में निहित सभी प्रकार के रहस्यों को ठीक से समझने में सहायता करता है अर्थात् हम कह सकते हैं कि गणित मानव जीवन का सच्चा आधार है।

गणित शिक्षण की परिभाषाएं

अलग-अलग विद्वानों ने गणित को विभिन्न तरीकों से परिभाषित किया है। गणित की कुछ प्रमुख परिभाषाएं निम्नलिखित हैं:

हॉगबेन के अनुसार, “गणित सभ्यता और संस्कृति का दर्पण है। “

लॉक के अनुसार, “गणित वह मार्ग है जिसके द्वारा बच्चे के मन तथा मस्तिष्क में तर्क करने की आदत स्थापित होती है। “गणित मन में तर्क की स्थायी आदत विकसित करने का द्वार है। “

रोजर बेकन के अनुसार, “गणित सभी विज्ञानों का सिंह द्वारा एवं कुंजी है। “

प्रो. वोस के अनुसार, “हमारी पूर्ण सभ्यता, जो प्रकृति के उपयोग तथा बौद्धिक गहराई पर निर्भर करती है, इसकी वास्तविक बुनियाद गणितीय विज्ञान है। “

ऑक्सफोर्ड डिक्शनरी के अनुसार, “गणित, मापन, मात्र तथा परिमाण का विज्ञान है।”

राष्ट्रीय शिक्षा नीति 1986 के अनुसार, “गणित को इस रूप में देखना चाहिए कि वह एक वाहन है जिसके माध्यम द्वारा बच्चे को सोचना, समझना, तर्कशील विश्लेषण करना स्पष्ट किया जाता है। ये अपने आप में विशिष्ट विषय है तथा किसी भी अन्य विषय का सहगामी हो सकता है, जो कि विश्लेषण तथा तर्क विद्या पर बल देता है। “

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उपरोक्त अर्थ एवं परिभाषाओं के आधार पर गणित के विषय में हम निम्नलिखित निष्कर्ष निकाल सकते हैं:

(1) गणित संख्याओं, स्थान और मापन आदि का अध्ययन है।
(2) गणित अमूर्त प्रत्ययों को समझने में सहायता करता है।
(3) गणित के ज्ञान से वस्तुस्थिति स्पष्ट होती है।
(4) गणित संख्यात्मक निष्कर्ष निकालने में सहायता करता है।
(5) गणित के ज्ञान को सरलता से भुलाया नहीं जा सकता।

गणित का उपयोग/महत्व

सभी व्यक्तियों का सम्पूर्ण जीवन गणित से जुड़ा हुआ है। गणित एवं मानव जीवन का सम्बन्ध आदि काल से रहा है। मानव जाति की उन्नति में गणित अत्यन्त लाभदायक सिद्ध हुआ है। मानव जीवन का कोई भी क्षेत्र गणित से अछूता नहीं रहा है। लगभग सभी कार्य, धंधे एवं औद्योगिक कार्य गणित के ज्ञान पर निर्भर करते हैं। उचित गणितीय ज्ञान के बिना कोई भी राष्ट्र उन्नति नहीं कर सकता। अतः नेपोलियन ने सत्य ही कहा है कि गणित की उन्नति के साथ देश की उन्नति का घनिष्ठ सम्बन्ध है। गणित के हमारे जीवन में निम्नलिखित उपयोग हैं:

(1) दैनिक क्रय-विक्रय में – मनुष्य के दैनिक जीवन में होने वाली क्रय-विक्रय सम्बन्धी क्रियाएं, जैसे- गिनना, मापना और तौलना आदि गणित पर ही निर्भर करती हैं।

(2) वाणिज्य-व्यापार में प्रयोग – गणित को व्यापार का प्राण माना जाता है। कोई भी व्यापर गणितीय गणनाओं के बिना नहीं हो सकता है। विश्व में कोई भी व्यक्ति जो भी कमाता और खर्च करता है, सभी कार्य गणित पर निर्भर करते हैं। एक मजदूर से लेकर उद्योगपति तक, घर से ले कर बैंक तक, बाजार से लेकर वित्तीय संस्थाओं तक, सभी किसी-न-किसी रूप में गणित का प्रयोग करते हैं।

(3) विज्ञान में गणित का प्रयोग – गणित को विज्ञान का जन्मदाता माना जाता है। सभी प्रकार के अनुसंधान, गणनाएं, व्याख्याएं एवं परिणामों को प्रमाणित करने के लिए गणित का प्रयोग किया जाता है। गणित विज्ञान की नींव है। गणित, विभिन्न विज्ञानों- रासायनिक, भौतिक आदि के नियमों को स्पष्ट रूप देता है। अत: रोजर
बेकन ने सत्य ही कहा है “गणित सभी विज्ञानों का द्वारा एवं कुंजी है। “
अतः गणित कार्य करने की विधियाँ देता है। गणितीय समस्याओं को हल करने की योग्यता प्रदान करता है।

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गणित शिक्षण के उद्देश्य

राष्ट्रीय पाठ्यचर्या की रूपरेखा (NCF)-2005 के अनुसार गणित शिक्षण के निम्नलिखित उद्देश्य हैं –
(1) बच्चे की विचार प्रक्रिया का गणितीयकरण ।
(2) बच्चे गणित में आनन्द लेना सीखें।
(3) समस्या समाधान के लिए सही अभिवृत्ति और सभी प्रकार की समस्याओं को व्यवस्थित रूप से हल करने की योग्यता भी देता है।
(4) गणितीय तकनीक का कहाँ और कैसे उपयोग किया जाए अर्थात् बच्चे प्रभावशाली गणित सीखें।
(5) गणित को बच्चे के जीवनानुभवों का एक अंश बनाना।
(6) बच्चों को रुचिपूर्ण समस्याएं बनाने एवं उनके हल प्रस्तुत करने के लिए प्रेरित करना।
(7) बच्चों में तार्किक चिन्तन को विकसित करना।

उपरोक्त उद्देश्यों का निष्कर्ष डेविड व्हीलर के कथन में निहित है। उनके अनुसार, “बहुत सारा गणित जानने के बजाय यह जानना अधिक उपयोगी है कि गणितीकरण कैसे किया जाए।”
जार्ज पोल्या के अनुसार स्कूली गणित शिक्षा के दो मुख्य उद्देश्य हैं:
बच्चों को गणित की मूल संरचनाओं, जैसे- अंकगणित, बीजगणित, ज्यामिति और त्रिकोणमिति को समझाना।

अच्छा और संकीर्ण उद्देश्य

इस उद्देश्य के अन्तर्गत रोजगार योग्य ऐसे वयस्कों का निर्माण करना है जो सामाजिक और आर्थिक विकास में योगदान दे सकें। यह संख्यात्मक संक्रियाओं, जैसे- मापन, भिन्न प्रतिशत और अनुपात से सम्बन्धित है।
ऊँचा उद्देश्य – इस उद्देश्य के अन्तर्गत बढ़ते बच्चे के आंतरिक संसाधनों का विकास करना है अर्थात् बच्चे में चिंतन का विकास करना है ताकि वह अमूर्त विचारों के साथ काम कर सके।
उपरोक्त दोनों उद्देश्यों की अनुशंसा एन.सी.एफ. 2005 ने भी की है।

बहुविकल्पीय प्रश्न (खुद को जाँचिए)

1. चौथी कक्षा के विद्यार्थियों के लिए अधिगम उद्देश्य दिया गया है “विद्यार्थी दशमलव वाली दो संख्याओं की, जो कि दशमलव के दो स्थान तक हैं, को क्रम में रखने और उनकी तुलना करने की योग्यता रखता है।”
यह अधिगम का उद्देश्य उल्लेख करता है;

(a) प्रक्रियात्मक ध्येय
(b) सुव्यवस्थित ध्येय
(c) सामाजिक ध्येय
(d) विषयात्मक ध्येय

2. कक्ष 11 के कुछ विद्यार्थियों को ‘हासिल वाले’ दो अंकों की संख्याओं के जोड़ में कठिनाई का सामना करना पड़ता है। इस समस्या का कारण है:

(a) गणित में रुचि का अभाव
(b) ऑकत मान और स्थानीय मान में अन्तर की समझ का अभाव
(c) शून्य के महत्व की समझ का अभाव
(d) पुनर्समूहीकरण की प्रक्रिया की समझ का अभाव

3. प्राथमिक स्तर पर गणित की अच्छी पाठ्य पुस्तक के लिए निम्नलिखित में से कौन-सी विशेषता महत्वपूर्ण है?

(a) उसमें अवधारणाओं का परिचय सन्दर्भों के द्वारा दिया जाना चाहिए
(b) उसमें केवल बहुत से अभ्यास होने चाहिए, जिससे कि यथा तथ्य अभ्यास किया जा सके
(c) वह आकर्षक और रंगीन होनी चाहिए
(d) वह मोटी और बड़ी होनी चाहिए

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4. गणित की कक्षा में सम्प्रेषण का उल्लेख किस क्षमता का विकास करना है?

(a) दण्ड आरेख (बार ग्राफ) को देखकर आँकड़ों का अर्थ लगाना
(b) कक्षा में पूछे गए प्रश्नों का तुरन्त उत्तर देना
(c) गणित की समस्याओं पर दूसरों के विचारों का खण्डन करना
(d) गणितीय विचार को सुव्यवस्थित, संचित और स्पष्ट करना

5. राष्ट्रीय पाठ्यचर्या रूपरेखा 2005 सिफारिश करती है कि प्राथमिक स्तर पर गणित की शिक्षा का केन्द्र होना चाहिए

(a) उच्चतर गणित के लिए तैयारी
(b) गणित के अमूर्त विचार जानना
(c) कक्षा-कक्ष में की गई पढ़ाई को विद्यार्थियों की दैनिक जिन्दगी से जोड़ने में सहायता करना
(d) विद्यार्थियों को गणित की शिक्षा में अन्तर्राष्ट्रीय मापदण्ड अर्जित करने में सहायता करना

6. निम्नलिखित में से प्राइमरी कक्षाओं में रेखागणित के अध्ययन का कौन-सा भाग पढ़ाया जाता है?

(a) औपचारिक रेखागणित
(b) अनौपचारिक रेखागणित
(c) (a) और (b) दोनों
(d) इनमें से कोई नहीं

7. एन.सी.एफ. 2005 के अनुसार गणित शिक्षण होना चाहिए:

(a) बालक केन्द्रित
(b) शिक्षक केन्द्रित
(c) पाठ्य पुस्तक आधारित
(d) ये सभी

8. गणित की पाठ्य पुस्तक का आवश्यक अंग है

(a) अवधारणाओं का स्पष्टीकरण
(b) अवधारणाओं की क्रमबद्धता
(c) अवधारणाओं को व्यावहारिक जीवन से जोड़ना
(d) उपरोक्त सभी

9. एन.सी.एफ. 2005 बल देता है:

(a) रटने पर
(b) करके सीखने पर
(c) सूत्र याद करने पर
(d) सवाल हल करने पर

उत्तरमाला – 1. (d)       2. (d)          3. (a)        4. (d)         5. (c)      6. (b)       7. (a)          8. (d)        9. (b)


                          ◆◆◆ निवेदन ◆◆◆

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