मुहावरे एवं उनका अर्थ | 300 महत्वपूर्ण मुहावरों का अर्थ | हिंदी में मुहावरे | idioms in hindi – दोस्तों वर्तमान परीक्षाओं में अगर हिंदी विषय सम्मिलित है,तो हिंदी में मुहावरों का अर्थ जरूर पूछा जाता है। उत्तर प्रदेश की परीक्षाओं में,हाईस्कूल,इंटरमीडिएट की बोर्ड परीक्षाओं में या बीटीसी, बीएड,यूपीटेट, सुपरटेट की परीक्षाओं में इस टॉपिक से जरूर प्रश्न आता है।
अतः इसकी महत्ता को देखते हुए hindiamrit.com आपके लिए मुहावरे एवं उनका अर्थ | 300 महत्वपूर्ण मुहावरों का अर्थ | हिंदी में मुहावरे | idioms in hindi लेकर आया है।
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मुहावरे एवं उनका अर्थ | 300 महत्वपूर्ण मुहावरों का अर्थ | हिंदी में मुहावरे | idioms in hindi
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मुहावरे एवं उनका अर्थ | 300 महत्वपूर्ण मुहावरों का अर्थ | हिंदी में मुहावरे | idioms in hindi
300 महत्वपूर्ण मुहावरों का अर्थ | मुहावरे एवं उनका अर्थ | हिंदी में मुहावरे | idioms in hindi जानने से पहले ये जान लेते है कि मुहावरे किसे कहते हैं, मुहावरे क्या हैं,मुहावरा की परिभाषा,हिंदी में मुहावरों का अर्थ ।
मुहावरे की परिभाषा | मुहावरे क्या हैं परिभाषा
कवि तथा अनुभवी विद्वान कुछ बातें (वाक्य) इस ढंग से करते हैं कि उनका वाच्यार्थ (सीधा अर्थ) तो गौण हो जाता है किन्तु वाच्यार्थ से सम्बन्धित एक ऐसा प्रभावशाली अर्थ प्रतीत होता है,जो पाठक अथवा श्रोता के मन में गढ़ता चला जाता है। पाठक अथवा श्रोता चमत्कृत हो उठता है। इस प्रकार की उक्तियाँ ‘मुहावरे’ कहलाती हैं।
यहाँ कुछ मुहावरे, उनके अर्थ तथा वाक्यों में प्रयोग दिये जा रहे हैं जो परीक्षा की दृष्टि से अति महत्वपूर्ण हैं।
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300 महत्वपूर्ण मुहावरों का अर्थ | हिंदी में मुहावरे | idioms in hindi | मुहावरों का अर्थ एवं वाक्य प्रयोग
(1) अक्ल से तुरफ (बुद्धिहीन होना)
रमेश शरीर से तो मोटा-ताजा है, पर अक्ल से तुरफ है।
(2) अक्ल पर पत्थर पड़ना (बुद्धि नष्ट होना)
पिता ने कुसंग में फँसे पुत्र को समझाते हुए कहा, ‘तुम्हारी अक्ल पर पत्थर पड़ गये थे, तुमने एक नहीं मानी, अब तो जीवन भर रोना ही पड़ेगा।’
(3) अक्ल का अन्धा (मूर्ख)
तुम तो अक्ल के अन्धे हो, परीक्षा में सत्रह का गुणा नहीं कर पाये ।
(4) अक्ल का पुतला (बुद्धिमान्)
गाँव वालों ने धनीराम पर पन्द्रह मुकदमे लगा दिए, वह एक-एक करके सबको जीत गया । वास्तव में वह अक्ल का पुतला है।
(5) अक्ल चकराना (बुद्धि काम न करना)
जंगल में डकैतों के बीच फँसने पर मेरी तो अक्ल ही चकरा गई ।
(6) अक्ल का दुश्मन (बुद्धिहीन)
वह तो निरा अक्ल का दुश्मन है। सदा उल्टे-सीधे काम करता रहता है।
(7) अक्ल के पीछे लाठी लिए फिरना (मूर्खता के काम करना)
वह तो अक्ल के पीछे लाठी लिए फिरता है, नयी पुस्तक खरीदनी मंजूर, पुरानी पर जिल्द नहीं बँधवानी।
(8) अगर मगर करना (बहाना बनाना)
आपको तीर्थाटन हेतु चलना ही होगा, अगर मगर करना बेकार है।
(9) अन्धे की लकड़ी होना (असहाय का सहायक होना)
इस बुढ़ापे की अवस्था में तो एकमात्र उसका पौत्र ही अन्धे की लकड़ी है।
(10) अन्न जल उठना (एक स्थान से सम्बन्ध समाप्त होना)
जब कर्मचारी का अन्न जल उठ जाता है तभी स्थानान्तरण होता है।
(11) अपवाद होना (जिस पर नियम लागू न हो)
संस्कृत पढ़ने वाले छात्र बिनयशील होते हैं पर देवदत्त इसका अपवाद है।
(12) अपना उल्लू सीधा करना (स्वार्थ सिद्ध करना)
झगड़ा गोपाल और मोहने का है, रमेश अपना उल्लू सीधा करना चाहता है।
(13) अपनी खिचड़ी अलग पकाना (सबसे अलग रहकर कार्य करना)
बड़े भाई होकर भी वे अपनी खिचड़ी अलग पकाते है।
(14) अपने पैरों पर खड़े होना (स्वावलम्बी होना)
विवाह तभी करना ठीक है, जब युवक अपने पैरों पर खड़ा हो जाये।
(15) अपने पाँव आप कुल्हाड़ी मारना (स्वयं अपनी हानि करना)
भारतीय लोग अंग्रेजी पढ़कर अपने पाँव आप कुल्हाड़ी मार रहे हैं ।
(16) अपने हाथों से अपनी कब्र खोदना (अपनी अवनति का कारण स्वयं होना)
अनुचित कार्यों में संलिप्त होकर लालाजी ने अपने हाथों से अपनी कब्र खोद ली।
(17) अपने मुंह मियों मिट्ठू बनना ( अपनी प्रशंसा स्वयं करना)
पत्नी की बात सुनकर उसने कहा-लोग अपने मुँह मियाँ मिट्टू बनते रहते हैं लेकिन इससे कोई लाभ नहीं होता।
(18) अमृत बरसना (बहुत लाभदायक वर्षा होना)
इस समय की यह वर्षा, मानो किसान के खेत में अमृत बरस रहा है
(19) आकाश-पाताल एक करना (असीम प्रयत्न करना)
इस वर्ष अशोक ने पढ़ने में आकाश-पाताल एक कर दिया, इसीलिए तो उसने कक्षा में सर्वप्रथम स्थान प्राप्त किया है।
(20) आकाश से बातें करना (बहुत ऊँचा होना)
हिमालय पर्वत आकाश से बातें करता है।
(21) आकाश के तारे तोड़ना (असम्भव कार्य करना)
वैज्ञानिको ने चन्द्रमा पर पहुँचकर आकाश के तारे तोड़ लिए।
(22) आँख का तारा (बहुत प्यारा)
राम तो दशरथ की आँखों के तारे थे।
(23) आँख बचा कर निकल जाना ( सामने उपस्थित न होना)
उधार क्या दिया गणेश तो आजकल ऑँख बचाकर निकल जाता है।
(24) आँख उठाना (हिम्मत करना)
उसने शत्रुओं को इतना कुचल दिया कि अब वे ऑँख नहीं उठा सकते।
(25) आँख ठहरना (पसन्द आना)
सुषमा को देखते ही उस पर रवि की ऑँखें ठहर गयीं।
(26) ऑखें तरसना (देखने की तीब्र लालसा होना)
अरे भाई! कहाँ रहते हो? तुम्हें देखने को तो आँखें तरस गयीं|।
(27) ऑखें दिखाना (डरावनी मुद्रा बनाना)
क्यों आँखें दिखाते हो, यहाँ तुमसे डरता कौन है ?
(28) ऑखें दो-चार होना (प्रेम हो जाना)
दुष्यन्त ने शकृन्तला को आश्रम में देखा, तभी दोनों की आँखें दो-चार हो गयी ।
(29) ऑखें बिछाना (प्रेमसहित आदर करना)
राष्ट्रपति के आगमन पर नागरिकों ने महामहिम के स्वागत में आँखे बिछा दी।
(30) ऑखें खुलना (होश में आना)
एक लाख रुपये जुए में हारने पर ही उसकी आँखें खुली।
(31) आँखों से गिर जाना (मान-सम्मान खो देना)
हरीश चोरी में पकड़े जाने पर सबकी आँखों से गिर गया।
(32) आँखों में धूल डालना (झोंकना) (धोखा देना)
वह नोटों की गड्डी में जाली नाट रखकर आखा में धुल झांकना चाहता था।
(33) ऑखों पर पद्दा पड़ना (लाभ के कारण सच्चाई का ज्ञान न होना)
दूसरों को ठगने वालों की आँखों पर पर्दा पड़ा रहता है, लेकिन उन्हें किए का फल मिलता है।
(34) ऑखों में खून उतरना (अत्यधिक क्रोध आना)
शत्रु को देखते ही लाखन की आँखों में खुन उतर आया।
(35) आँचल बाँधना (जादू करना, टोना करना)
बच्चा तो ठीक पैदा हुआ, तीन दिन से जच्चा के दूध ही नहीं उतर रहा है लगता है किसी ने आँचल बाँध दिया।
(36) आग बबूला होना (बहुत क्रुध्द होना)
बच्चों को शोरगुल करते देखकर वह आग बबूला हो गया।
(37) आग में घी डालना (उत्तेजित करना)
झगड़ा शान्त होने पर भी निर्मला ने आकर आग में घी डाल दिया।
(38) आटे दाल का भाव मालूम होना (वास्तविकता का पता चलना, कठिनाई में पड़ना)
गृहस्थी का भार आने पर तुम्हें आटे दाल का भाव मालूम हो जायेगा।
(39) आठ-आठ ऑसू बहाना (विलाप करना, अत्यधिक रोना)
भाई के मरने पर सभी भाई-बहिन आठ-आठ आँसू बहा रहे हैं।
(40) आप काज महाकाज (किसी काम को स्वयं ही करना ठीक रहता है)
स्थानान्तरण हेतु अधिकारी से स्वयं निवेदन करना चाहिए, किसी सिफारिश के चक्कर में नहीं पड़ना चाहिए क्योंकि आप काज (सो) महाकाज ।
(41) आपे से बाहर होना (मर्यादा का उल्लंघन करना, क्रोधित होना)
मनोहर की उत्तेजनापूर्ण बातें सुनकर सुधीर आपे से बाहर हो गया।
(42) आवाज उठाना (विरोध में बोलना)
युवाओं को ही भ्रष्टाचारियों के विरुद्ध आवाज उठानी चाहिए।
(43) आसमान पर थूकना (श्रेष्ठ जनों का निरादर करना)
इस समय युवक अपने देवी-देवताओं की बुराई करते हुए आसमान पर थूकने से नहीं झिझकते।
(44) आसमान सिर पर उठाना (बहुत शोरगुल करना)
तुमने तो बिना बात ही आसमान सिर पर उठा रखा है।
(45) आसमान टूट पड़ना (भारी बिपत्ति आना)
पाँच बर्ष की अल्पायु में पिता की मृत्यु से उस बेचारे के ऊपर आसमान टूट पड़ा।
(46) आस्तीन का साँप (मित्र के रूप में छिपा हुआ घातक शत्रु)
वह तो आस्तीन का साँप है, सामने मीठी बातें करता है, और परोक्ष रूप में हमारी सब गुप्त बातें शत्रु को बता देता है।
(47) इधर की उधर लगाना (चुगली करना)
गणेश ने अपने पिताजी की बूरी आदत पर निशाना लगाते हुए कहा-अब तो आप इधर की उधर लगाना छोड़ दो अन्यथा इसका दण्ड भुगतना पड़ेगा।
(48) ईद का चाँद होना (बहुत समय बाद मिलना)
अरे ! आप तो ईद के चाँद हो गये हैं, कितने समय बाद आपके दर्शन हुए।
(49) ईंट से ईंट बजाना (समूल विनाश)
मेरा हिस्सा मुझे दीजिए अन्यथा मैं ईंट से ईंट बजा दूँगा।
(50) ईंट का जवाब पत्थर से देना (दुष्ट के साथ दुष्टता का व्यवहार करना)
ईंट का जवाब पत्थर से देने पर ही डाकू भाग खड़े हुए।
(51) ईश्वर का प्यारा होना (स्वर्ग सिधारना)
ठेले से टकराते ही वह तुरन्त ईश्वर का प्यारा हो गया।
(52) उँंगली पर नचाना (मनमानी करना)
इस नये मैनेजर ने सब कर्मचारियों को उँगलियों पर नचा रखा है।
(53) उँगली पकड़कर पहुँचा पकड़ना (थोड़ा पा लेने पर और अधिक के लिए प्रयत्न करना)
तुम्हें प्यासा जानकर पानी क्या पिलाया, अब तुम खाना भी माँगने लगे, उँगली पकड़कर पहुँचा पकड़ते हो।
(54) उँगली उठाना (लांछन लगाना)
सावित्री जैसी भाभी पर तू उँगली उठा रहा है, शर्म कर।
(55) उड़ती चिड़िया के पंख गिनना (दूर से ही वास्तविकता भाँप लेना)
तुम मुझे उलझाने का प्रयत्न मत करो, मैं उड़ती चिड़िया के पंख गिन लेता हूँ।
(56) उन्नीस बीस का अन्तर (बहुत ही थोड़ा अन्तर)
दोनों भाइयों की मुखाकृति में उन्नीस-बीस का ही अन्तर है।
(57) उल्टी गंगा बहाना (नियम के विपरीत कार्य करना)
छोटा भाई होने के नाते मुझे आपकी सेवा करनी चाहिए। आप मुझे स्नान कराकर क्यों उल्ही गंगा बहाते है।
(58) उल्टी-सीधी सुनाना (बुरा-भला कहना, सुनाना )
उल्टी-सीधी सुनाने से तो काम बिगड़ता ही है, बनता नहीं
(59) उल्लू बोलना ( बुरा समय आना, स्थान उजड़ जाना)
नवाब साहब का परिवार समाप्त हो गया, आजकल हवेली में उल्लू बोल रहे।
(60) उल्लू सीधा करना (स्वार्थ साधना)
उसने मोहन को उल्लू बनाकर अपना उल्लू सीधा कर लिया।
(61) ऊँची दुकान फीका पकवान (आडम्बर अधिक, वास्तविकता कम)
डाक्टर हीरा लाल के पास डिग्रियाँ तो बहुत बड़ी-बड़ी हैं, परन्तु उनके इलाज से लाभ किसी को होता नहीं यह तो वही बात हुई-‘ऊंची दुकान फीका पकवान।
(62) ऊँट के मुँह में जीरा ( अत्यल्प वस्तु)
गुजरात के बाढ़-पीड़ितों के लिए हजार-दो हजार की सहायता ऊँट के मुँह में जीरे के समान है।
(63) एक और एक ग्यारह होना (एकता में बल)
अभी तक तो बह भीगी बिल्ली बना बैठा था, भाई के आते ही सीधे मुँह बात नहीं कर रहा है। देख लो, एक और एक ग्यारह हो गया।
(64) एक आंख न सुहाना (बिल्कुल अच्छा न लगना)
चाचाजी को पिताजी एक आँख नहीं सुहाते हैं।
(65) एक ही लकड़ी से हॉकना (अच्छे-बुरे की पहचान न होना)
हम स्वाधीनता के नाम पर सबको एक ही लकड़ी से हॉक रहे हैं।
(66) एक ही थैली के चट्टे-बट्टे होना (सभी का एक जैसा होना)
इस सरकार में विश्वास किस पर करे। झूठ बोलने में तो सभी माहिर है अथवा कहिए कि एक ही बेला के चट्टे-बट्टे हैं।
(67) एक न चलने देना (किसी भी बात को न मानना)
आज समय बदल चुका है। प्रायः बच्चे बड़ों की एक नहीं चलने देते।
(68) एड्री-चोटी का पसीना एक करना (अत्यधिक परिश्रम करना)
एम०ए० में प्रथम श्रेणी लाने के लिए तुम्हें एड़ी-चोटी का पसीना एक करना होगा।
(69) ओखली में सिर दिया तो मूसलों से क्या डरना (काम शुरू कर देने पर बाधाओं से नहीं डरना चाहिए)
जब परीक्षा का फार्म भर दिया है तो पढ़ाई में मेहनत तो करनी ही पड़ेगी-‘जब ओखली में सिर दिया तो फिर मूसलों से क्या डर’।
(70) ओखली में सिर देना (कठिन काम आरम्भ करना, कष्ट सहने को तैयार होना)
खेती करना कितना कठिन है यह तो पहले सोचना चाहिए था। अब जब ओखली में सिर दे लिया मूसलो से क्या डर ?
(71) अंगारे बरसना (अत्यधिक गर्मी पड़ना)
इस बार तो मई माह में ही अंगारे बरसने लगे। आगे न जाने क्या होगा?
(72) अंगारों पर चलना (खतरा मोल लेना)
देश की स्वतन्त्रता के लिए देशभक्तों ने अंगारों पर चलना सीखा।
(73) अँगूठा दिखाना (चिढ़ाना, साफ जवाब देना)
उसने तो विवाह से तीन दिन पूर्व ही अँगूठा दिखा दिया।
(74) कटी पतंग होना (निराश्रित)
भारतीय समाज में विधवा कटी पतंग हो गयी है।
(75) कफन सिर पर बाँधना (मरने के लिए उद्यत रहना)
वीर कफन सिर पर बाँधकर कारगिल युद्ध में कूद पड़े।
(76) कमर टूटना (निराश होना)
दीपावली पर बाजार में आग लगने के कारण दूकानदारों की तो कमर ही टूट गयी।
(77) कमर कसना (तैयार हो जाना)
परीक्षा निकट आ गयी है, अब तुम भी कमर कस लो।
(78) कलेजा ठंडा होना (मन को शान्ति मिलना)
पुत्र के सकुशल घर आने पर आज रमा का कलेजा ठंडा हुआ।
(79) कलेजा मुँह को आना (अति व्याकुल होना)
भीषण गर्मी के कारण कलेजा मुँह को आ रहा है ।
(80) कलेजे पर साँप लोटना (ईर्ष्या से जल उठना)
राघव की लहराती खेती को देखकर शीतल के कलेजे पर साँप लोट गया ।
(81) कलेजा फटना (घोर दुःख होना)
गुजरात में भूकम्प से मरने वालों की दुर्दशा के विषय में सुनकर सबका कलेजा फटने लगा।
(82) कलेजा छलनी होना (दिल अति दुखी होना)
एक रात पिता को छोड़कर बेटा कहीं चल दिया तो पिता इतना दुःखी हुआ कि उसका कलेजा छलनी हो गया।
(83) कलेजे पर पत्थर रखना (जी कड़ा करना)
डकैती में समस्त सम्पत्ति लुटने पर उसने कलेजे पर पत्थर रख लिया।
(84) कलेजा थामना (स्वयं को कठिनाई से सम्हालना)
युवा सुन्दरियों को देखकर मनचले आवाजकशी करते हैं तथा भले युवक कलेजा थाम कर रह जाते है।
(85) कच्चा चिट्ठा खोलना (कमजोरियों को विस्तार से बताना)
रमेश को बाप ने घर से क्या निकाला, अब वह परिवार का कच्चा चिट्ठा खोलना बन्द ही नहीं कर रहा है।
(৪6) कचन बरसना (खूब सम्पत्ति होना)
‘आवत हिय हरखै नहीं, नैनन नही सनेह ।
तुलसी तहाँ न जाइये, कंचन बरसे मेह ॥
(87) करवटें बदलना (नींद न आना)
पिताजी की बीमारी का समाचार सूनकर मेरी नींद उड़ गयी और मैं रात भर करबटें बदलता रहा।
(88) कलई खुलना (छिपा रहस्य ज्ञात हो जाना)
अब तक तुम धोखा देते रहे पर अब परिणाम देखकर तुम्हारी कलई खुल गयी।
(89) कलम तोड़ना (लिखने में सबसे आगे निकल जाना)
न्यायाधीश महोदय ने फैसला क्या दिया, कलम ही तोड़ दी।
(90) कलम उठाना (किसी विषय पर लिखना प्रारम्भ करना)
आज कवियों ने सरकार के विरोध में लिखने हेतु कलम उठा ली है।
(91) कसौटी पर कसना (परखना)
श्री चन्द्रहंस पाठक ऐसे प्राचार्य थे, जो शिक्षकों को कसौटी पर कसकर ही स्थायी रूप से नियुक्त करते थे।
(92) कान पर जूँ न रेंगना (कोई परवाह न करना)
मने चपरासी को समय पर आने के लिए अनेक बार मौसखिक एवं लिखित रूप से कहा लेकिन उसके कान पर जूँ तक नहीं रेंगती।
(93) कान में तेल डालना (किसी की बात न सुनना)
‘पास होने के लिए परिश्रम करो। मैं तो तुमसे यह बात कितनी बार कही थी लेकिन तुम तो तेल डाले हुए थे।
(94) कान खड़े होना (सावधान होना)
सेना आराम से सो रही थी, बाजे की आवाज सुनकर सबके कान खड़े हो गये।
(95) कान काटना (चतुराईपूर्ण कार्य करना)
चन्द्रमोहन छोटा होकर भी बड़े-बड़ों के कान काटता है।
(96) कान का कच्चा (झूठी शिकायत पर ध्यान देने वाला)
जो अधिकारी कान का कच्चा होता है, वह विश्वसनीय कर्मचारियों का भी हित नहीं कर सकता।
(97) कानों कान खबर ने होना (बिल्कुल पता न चलना)
मनीषा कब आयी थी और कब चली गयी, इसकी कानों कान भी खबर नहीं हुई।
(98) काम तमाम करना (मार डालना) ।
झाँसी की रानी ने तमाम आक्रमणकारी अँग्रेजों का काम तमाम कर दिया।
(99) कॉटा दूर होना (संकट टलना)
उसकी मृत्यु क्या हुई? घनश्याम का तो काँटा ही दूर हो गया।
(100) किस्मत ठोंकना (पछताना)
अपने फेल होने का समाचार सुनकर राजू ने अपनी किस्मत ठोंक ली।
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(101) कुएँ में भाँग पड़ना (सभी की मति भ्रष्ट होना)
तुम लोग समय से विद्यालय नहीं आते हो, सभी के सभी मूर्ख हो, ऐसा लगता है तुम्हारे यहाँ कुएँ में भाँग पड़ी है।
(102) कुत्ते की मौत मरना (सम्मानरहित एवं कच्ट सहित मरना)
पापी लोग प्रायः कुत्ते की मौत मरते हैं।
(103) कोल्हू का बैल होना (उन्नति न करके जहाँ के तहाँ रहना )
दुनिया कहीं की कहीं चली गयी, परन्तु तुम कोल्हू के बैल ही रहे ।
(104) कायापलट होना (अत्यधिक परिवर्तन होना)
ईमानदार जिलाधिकारी के आने से आगरा की तो कायापलट ही हो गयी ।
(105) किनारा करना (साथ छोड़ना)
उसके व्यवहार को देखकर सभी भाई एक-एक करके किनारा कर गए।
(106) कागज काले करना (व्यर्थ में लिखना)
तुम अनेक वर्षों से कागज काले कर रहे हों, तुम्हें तो आज तक लिखना नहीं आता।
(107) किस्मत खुलना (भाग्य चमकना)
जमीदारी उन्मूलन के बाद भारतीय किसानों की तो किस्मत ही खुल गयी।
(108) कीचड़ उछालना (दोष लगाना)
उस साधु पुरुष पर कीचड़ उछालते हुए तुम्हें शर्म आनी चाहिए।
(109) खटाई में पड़ना (अनावश्यक विलम्ब करना)
हमारा काम तो ऐसा खटाई में पड़ा कि अब तक उसकी कहीं चर्चा ही नहीं।
(110) खरी-खोटी सुनाना (बुरा-भला कहना)
जरा-जरा सी वातों पर आपस में खरी-खोटी सुनाने से कोई लाभ नही है। शान्तिपूर्वक जीवन जाने सीखो।
(111) खरी मजूरी चोखा काम (सही दाम देने पर काम भी सही होता है)
तुम मजदूरों को उचित मजदूरी नहीं देते, उलटा उनका शोषण करते हो तभी तुम्हारी फैक्टरी प्रगति नहीं कर रही है, हमेशा याद रखो खरी मजूरी चोखा काम।
(112) खाक में मिलाना (नष्ट करना)
शराब पीते-पीते कृल-कपूत ने सम्पूर्ण घर को खाक में मिला दिया।
(113) खाक छानना (दर-दर भटकना)
उसने श्याम की बात नही मानी तभी आज खाक छान रहा है।
(114) खाने को दौड़ना (आक्रामक बाते करना)
जब कभी मैं तुम्हें बुलाता हूँ, तुम खाने को दौड़ती हो।
(115) खिल्ली उड़ाना (मजाक बनाना)
तुम लम्बे समय तक अनुपस्थित रहकर अपनी नौकरी को खटाई में डाल रहे हो तथा दूसरों की नहीं अपनी ही खिल्ली उड़ा रहे ह
(116) खुशामदी टट्टू (दूसरों की चापलूसी करने वाला)
आजकल खुशामदी टट्टुओं का ही जमानाहै।
(117) खून का प्यासा (जानी दूश्मन)
रहीम और करीम आजकल एक-दूसरे के खून के प्यासे बने हुए हैं।
(18) खून खौलना (जोश आना)
पाकिस्तान के आक्रमण करने पर वीरों का खून खौल उठा।
(119) खेल बिगड़ना (काम खराब होना)
कितने ही योद्धा युद्धभूमि में खेत रहे तथा बना-बनाया खेल बिगड़ गया ।
(120) खेल-खेल में (आसानी से)
कन्हैयालाल के लड़के ने खेल-खेल में ही एम०ए० कर लिया।
(121) खून सूखना (भयग्रस्त होना)
आतंकवादियों की गतिविधियों के कारण सीमा के निकटवासियों का खून सूखता रहता है।
(122) खेत रहना (युद्ध में मरना)
हल्दीघाटी के युद्ध में हजारों राजपूत खेत रहे।
(123) खोपड़ी गंजी करना (बूरी तरह पिटाई करना)
उसने बेचारे नौकर की खोपड़ी गंजी कर दी ।
(124) गढ़े मुर्दे उखाड़ना (पुरानी बातें खोलना)
चुप होकर अपने घर बैठो, बेकार गढ़े मुर्दे उखाड़ने से क्या लाभ?
( 125 ) गला घोंटना (अत्याचार करना)
इस सरकार से बड़ी-बड़ी अपेक्षाएँ थी लेकिन यह तो गरीबों का गला घोट रही है।
(126) गला फॅसाना (बन्धन में पड़ना)
दूसरो के मामले में गला फेसाने से कोई लाभ नहीं है।
(127) गला काटना (बेईमानी करना)
गरीबों का गला काटकर ही आज वह सेठ बना बैठा है।
(128) गले पड़ना (जबरदस्ती मिश्रता का प्रयत्न करना)
मैं मुस्कराकर उससे क्या बोला वह तो मेरे गले ही पड़ने लगी।
(129) गले का हार होना (बहुत प्रिय होना)
विमल यहाँ आकर अपने नाना के गले का हार बन गया है।
(130) गागर में सागर भरना (थोड़े शब्दों में बड़ी-बड़ी बात कहना)
विहारी ने अपने दोहों में गागर में सागर भर दिया
(131) गिरगिट की तरह रंग बदलना (अस्थिर रहना)
आजकल के नेताओं को गिरगिट की तरह रंग बदलना खूब आता है।
(132) गुदड़ी का लाल (छिपा हुआ अमूल्य व्यक्तित्व)
डॉ० पद्मसिंह शर्मा ‘कमलेश’ गुदड़ी के लाल थे, जिन्होंने अपने साहित्य से आगरा का नाम रोशन किया।
(133) गुड़ गोबर करना (काम विगाड़ना )
तुमने मेरा छिपा हुआ रहस्य मालिक के सामने बताकर सारा गुड़ गोबर कर दिया।
(134) गुलछरें उड़ाना (मौज उड़ाना)
धनीराम पिता की कमाई पर गुलछरें उड़ा रहा है।
(135) गूँगे की मिठाई (अवर्णनीय होना)
साहित्य का आनन्द गूँगे की मिठाई है, उसका वर्णन कौन करे ?
(136) घर सिर पर उठाना (शोर मचाना)
जब घर पर बड़े नहीं होते तो बच्चे घर को सिर पर उठा लेते हैं, जो बुरी बात है।
(137) घर फूंक तमाशा देखना (अपनी हानि पर आनन्दित होना)
बच्चों को कुसंग में फैसाकर इस्लाम घर फूँक तमाशा देखने की कहावत चरितार्थ कर रहा है।
(138) घड़ों पानी पड़ना (बहुत शर्मिन्दा होना)
राधे चोरी के अपराध में पकड़ा गया-इस समाचार को सुनकर उसके पिता पर घड़ों पानी पी गए।
(139) घात में रहना (अवसर देखते रहना)
उद्दण्ड छात्र विद्यालय से भागने की घात में रहते हैं।
(140) घाव पर नमक छिड़कना (दुःखी को और दुःखी बनाना)
विधवा के घावों पर नमक कदापि न छिड़को। वह तो पहले से ही पीड़ित है।
(141) घाव हरा होना (दुख का समय याद आना)
भाई से मिलते ही गीता के घाव हरे हो गए और वह अपने दुख को याद करने लगी।
(142) घास खोदना (व्यर्थ समय बिताना)
कोई अच्छा कार्य खोजो, जिससे जीवन ठीक चले। इस प्रकार कब तक घास खोदते रहोगे।
(143) घी के दिये जलाना (खुशियाँ मनाना)
राम के अयोध्या आने पर अयोध्यावासियों ने घी के दिये जलाये।
(144) घी कहां गिरा-दाल में (घर का माल घर में रहना, दोस्ती बढ़ना, खाने का आनन्द बढ़ना)
रमेश ने अपने मित्र घनश्याम से कुछ कर्ज लिया, साल भर बाद मॉँगते हुए घनश्याम ने कहा-रमेश! पैसा लौटा दे नहीं तो मैं तुमसे लडूँगा नहीं और समझूंगा कि घी कहाँ गिरा – दाल में।
(145) घोड़ा बेचकर सोना (निश्चि्त होना)
कालू की एक लड़की थी, उसका विवाह कर दिया। अब तो वह ऐसा सोता है जैसे सौदागर घोड़ा बेचकर सोता है।
(146) घिग्घी बँधना (भय के कारण गले की आवाज न निकलना)
डकैतों के धर में घुसते ही उसकी घिग्घी बँध गयी।
(147) चम्पत होना ( भाग जाना)
आयकर अधिकारियो के उड़नदस्ते को देखकर बड़े-बड़े व्यापारी नगर से चम्पत हो गये।
(148) चपत लगाना (हल्का-सा thappd लगाना, धोखा देकर धन ऐंठना)
टी०वी० व्यापारी ने मुझे खराब टी०वी० सेट भेजकर 15 हजार की चपत लगा दी। मेरी शिकायत करने पर वह बड़बड़ाने लगा तो मैने सरेआम उसे कसकर एक चपत लगा दी।
(149) चल बसना (मर जाना)
मेरे मित्र की नानी कल चल बसी, यह जानकर मुझे हार्दिक बेदना हुई।
(150) चंगुल में फॅसाना (मीठी बातों के द्वारा वश में करना)
जेबकतरों ने वृद्ध ब्राह्मण को अपने चंगुल में फँसा लिया।
(151) चाँद पर थूकना (किसी भले आदमी पर दोष लगाना)
पण्डित जवाहरलाल नेहरू के विषय में उल्टा-सीधा कहना चाँद पर थूकना है।
(152) चार चाँद लगाना (शोभा बढ़ाना)
मन्त्री जी ने सहभोज में सम्मिलित होकर कार्यक्रम में चार चाँद लगा दिए।
(153) चारों खाने चित्त करना (बहुत बुरी तरह हराना)
मोहन पहलवान ने अपने प्रतिद्वन्दी प्याम पहलबान को अखाड़े में पहुँचते ही चारों खाने चित्त कर दिया।
(154) चिकना घड़ा (बेशर्म, जिस पर किसी बात का कोई असर न हो)
बाबुलाल तो चिकना घड़ा है, उस पर माता-पिता के सदुपदेशों का कोई प्रभाव नहीं पड़ता है।
(155) चिकनी चुपड़ी बातें करना (चापलूसी करना)
वह बड़ा स्वार्थी है, उसे अपने चाचा से चिकनी चुपड़ी बातें करते हुए हम सबने देखा है।
(156) चींटी के पर निकलना (छोट व्यक्ति द्वारा घमण्ड करना)
उसका दिमाग खराब हो गया है, रोज धमकियां दे रहा है, लगता है चींटी के पर निकल आये हैं।
(157) चुल्लू भर पानी में डूब मंरमा (अत्यधिक लज्जित होना)
रिश्तेदारों से पैसे ले-लेकर घर को भर रहे हो । तुम्हे शर्म महसूस नहीं होती। तुम्हे ता चुल्लु भर पाना में डूब मरना चाहिये ।
(158) चूड़ियाँ पहनना (कायरता दिखाना)
हम भारतीय वीर हैं। मौत से लड़ेगे। चूड़ियाँ पहनकर कभी नहीं बैठ सकते।
(159) चूल्हा न जलना (बहुत गरीब होना)
हमारी क्या पूछते हो? हमारे यहाँ तो कई-कई दिन तक चूल्हा तक नहीं जला ।
(160) चेहरे पर हवाइयों उड़ना (घबरा जाना)
टिकट-परीक्षक के डिब्बे में घुसते ही बिना टिकट यात्रियों के चेहरे पर हवाइयाँ उड़ने लगी ।
(161) चैन की वंशी बजाना (आनन्द से समय बिताना)
कम्पनी को दिवालिया घोषित कर लोग उसके धन से चैन की वंशी बजा रहे हैं ।
(162) चौकड़ी भूलना (सन्तुलन सोना)
विवाह के बाद गृहस्थ की जिम्मेदारियों से दबकर भूपसिंह चौकड़ी भूल गया।
(163) छप्पर फाड़कर देना (अनायास धन प्राप्त होना)
खुदा जब देता है तब छप्पर फाड़कर देता है।
(164) छक्के छूटना (हिम्मत टूट जाना)
झाँसी की रानी के सामने बड़े-बड़े बीरों के छक्के छूट गये।
(165) छाती पर मूंग दलना (कष्ट देना)
तुम पढ़-लिख गए, परिश्रम करो, नौकरी-धन्धा देखो, अभी कब तक मेरी छाती पर मूंग दलते रहोगे।
(166) छाती पर पत्थर रखना (हौसला रखना)
मैंने अपने पुत्र एवं नाती की मृत्यु के दुख को छाती पर पत्थर रखकर सहन कर लिया।
(167) छोटी मुँह बड़ी बात (अपनी योग्यता से अधिक बात करना)
पढ़े नहीं दो अक्षर भी, बात करते हैं प्रथम श्रेणी की, छोटे मुंह बड़ी बात।
(168) छाती पर साँप लोटना (ईर्ष्या होना)
शीला के प्रथम श्रेणी में पास होने का समाचार सुनकर उतकी सहेली की छाती पर साँप लोट गया।
(169) जहर लहू का घूँट पीना (अपमान का उत्तर तक न देना )
उसके अपमान को मैं जहर का घूंट पीकर रह गया हूँ।
(170) जूते चटकाते फिरना (दर-दर के धक्के खाना)
शर्म करो, पढ़ लिखकर जूते चटकाते फिरते हो, परिश्रम के साथ कोई धंधा करो।
(171) जान पर खेलना (प्राणों की परवाह न करना)
राम ने जान पर खेल कर श्याम की रक्षा की।
(172) जीभ चलाना (अधिक बोलना)
अधिक जीभ चलाना कोई अच्छी बात नहीं।
(173) टस से मस न होना (डटे रहना, न हिलना)
सब राजाओं ने मिलकर जोर लगाया मगर वह धनुष टस से मस नहीं हुआ।
(174) टूट पड़ना (अचानक जोर का हमला करना)
मुगलों की सेना पर राणा प्रताप की सेना भूखे शेर की तरह टूट पड़ी।
(175) टेढ़ी खीर होना (बहुत मुश्किल होना)
और विषय में तो काम हो जायेगा किन्तु गणित में पास होना टेड़ी खीर है।
(176) टॉग अड़ाना (कार्य में बाधा डालना)
यह तुम्हारी बहुत बुरी आदत है कि तुम प्रत्येक की बात में टांगे अंडाते रहते हो।
(177) टोपी उछालना (वेइज्जती करना)
तेरे पास पैसे हैं अतः तू सबकी टोपी उछालता रहता है।
(178) ठकुर सुहाती कहना (चापलूसी करना)
मन्त्री गुरु और बैद्य यदि भय के कारण ठकुर सुहाती कहने लगे तो उस राजा का शीघ्र ही नाश हो जाता है।
(179) कोकर खारा ( बेकार भटकना)
बेकारी के इस युग में कितने ही ग्रेजुएट सड़कों पर ठोकरें खाते हैं।
(180) डंके की चोट कहना ( घोषणा करना)
मैं इस बात को डंके की चोट पर कहता हूँ कि चोरी तुमने की थी।
(181) डींग मारना (शेखी बघारना)
पैसे के अभाव में व्यर्थ की डींग मारना अच्छा नहीं है।
(182) जहर का घुंट पीना (अपमान का उत्तर तक न देना)
उसके अपमान से मैं जहर का घुँट पीकर रह गया हूँ।
(183) जूते चटकाते फिरना (दर-दर के धक्के खाना)
शर्म करो पढ़ लिखकर दर-दर के धक्के खाते फिरते हो। परिश्रम के समय कोई धंधा करो।
(184) दाक के बही तीन पात (थोड़ा परिवार होना)
घर पर उसका खर्च ही क्या है? ढाक के वही तीन पात है।
(185) ढीढोरा पीटना (प्रचार करना)
यह रहस्य दिनेश को मत बताना अन्यथा वह व्यर्थ में ढिंढोरा पीट देगा।
(186) त्यौरी बदलना (गुस्सा करना)
पिताजी ने ज्योंही त्यौरी बदली, घनश्याम उठकर चल दिया।
(187) तारे गिनना (रात में नींद न आना )
तुम तो घर से रूठ कर यहाँ आ बैठे, तुम्हें मालूम है कि तुम्हारी पत्नी रातभर तारे गिनती रहती है।
(188) तिल का ताड़ बनाना (छोटी बात को बढ़ा-चढ़ाकर कहना)
बात तो कुछ भी नहीं थी, यह तो तुमने तिल का ताड़ बना दिया।
(189) तीन पाँच करना (बहाना बनाना, इधर-उधर की बात करना)
राम तीन पाँच मत करो, सारी सच्चाई खोलकर बता दो।
(190) तीन तेरह होना (तितर-बितर होना)
खेल खत्म होते ही दर्शक तीन तेरह हो गये।
(191) तूती बोलना (धाक जमना)
शिवाजी की सारे दक्षिण भारत में तूती बोलती थी।
(192) थूक कर चाटना (कहीं हुई बात से मुकर जाना)
कल तुमने मुझे 50 रुपये देने का वायदा किया था और आज साफ इन्कार- थूक कर चाटते हो?
(193) दाई से पेट छिपाना (जानकार से बात छिपाना)
क्यों दाई से पेट छिपाते हो ? मुझे तुम्हारी हर बात का पता
(194) दधीचि होना (परोपकारी होना)
दूसरों का उपकार करने में तो वह दधीचि है।
(195) दाँतों तले उँगली दबाना ( चकित रह जाना)
अजन्ता की गुफाओं को देखकर दर्शकगण दाँतों तले उँगली दबाते हैं।
(196) दाल में काला होना ( रहस्य छिपा होना)
राहुल के यहाँ पुलिस आयी है, जरूर कुछ दाल में काला है।
(197) दाल न गलना (सफलता न मिलना)
शिवाजी के सामने औरंगजेब की दाल न गली।
(198) दाँत खट्टे करना (परेशान अथवा पराजित करना)
महारानी लक्ष्मीबाई ने अँग्रेजों की विशाल सेना के दाँत खट्टे कर दिये थे।
(199) दाँतों काटी रोटी होना (बहुत मेल होना)
राम और श्याम में आजकल दाँतों काटी रोटी है।
(200) दिन दूनी रात चौगुनी (अत्यधिक वृद्धि होना)
ईश्वर से यही प्रार्थना है कि आप अपने व्यवसाय में दिन दूनी रात चौगुनी उन्नति करें।
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(201) दिल टूटना (आघात पहुँचना)
सुबोध के दुर्व्यवहार से तो मेरा दिल ही टूट गया।
(202) डोपक लेकर ढूँढना (भली-भाँति खोजना)
आजकल ईमानदार व्यक्ति तो दीपक लेकर ढूँढने से भी नहीं मिलते।
(203) दूर के ढोल सुहावने होना ( दूर की (दुर्लभ) वस्तु अच्छी लगना)
अपने घर की बनी बर्फी तुम्हें अच्छी नहीं लगती परन्तु सहारनपुर की जलेबी भी तुम्हें लुभाती हैं- दूर के ढोल सुहावने।
(204) दो दिन का मेहमान (स्थिर न होना, चलताऊ डेरा)
मनुष्य इस संसार में दो दिन का मेहमान है।
(205) दोनों हाथों में लड्डू (दोनों ही अवस्थाओं में लाभ होना)
बीमा कराने पर धीरे-धीरे संचय हो जाता है, यदि बीच में दुर्घटना घट गयी तो घर बालों को पैसा मिल जाता है। इस प्रकार उसके तो दोनों ही हाथों में लड्डू हैं।
(206) धोती ढीली होना (घबरा जाना)
शेर को देखते ही अच्छे अच्छों की धोती ढीली हो जाती है।
(207) नदी नाव संयोग (अचानक)
हमारा मिलना नदी नाब संयोग है, इसके बाद न जाने कब और कहाँ मिलेंगे, नहीं कहा जा सकता।
(208) नमक मिर्च मिलाना (बढ़ा-चढ़ाकर बात कहना)
दिनेश को सभी जानते हैं, उसमें नमक-मिर्च मिलाकर बात कहने की आदत है।
(209) नाक का बाल होना (कष्ट देने वाला बनना)
रमेश तो मेरी नाक का बाल हो गया है। बात-बात में बिना किसी कारण के झगड़ा करता रहता है।
(210) नाक रख लेना (इज्जत बचा लेना)
ठीक अवसर पर कर्जा चुकाने के लिए धन देकर तुमने मेरी नाक रख ली।
(211) नाक में दम करना (बहुत परेशान कर देना)
रामसिंह के लड़के ने तो उसके नाक में दम कर रखा है।
(212) नाक कटना (अपमानित होना)
बेटी के कूकृत्य से पूरे परिवार की नाक कट गयी।
(213) नाक नीची करना (अपमानित करना)
तुम्हारे कुकर्मों ने तो परिवार की नाक ही नीची कर दी।
(214) नानी याद आना (बहुत संकट में पड़ना)
कारगिल युद्ध में पाकिस्तानियों को नानी याद आ गयी ।
(215) नाम बड़े और दर्शन छोटे (यश के अनुरूप शारीरिक प्रभाव न होना)
देखे हमने मियाँ खोटे, नाम बड़े और दर्शन छोटे।
(216) नौ-दौ ग्यारह होना (इधर उधर भाग जाना)
सिपाही को देखकर जुआरी नौ-दो ग्यारह हो गये।
(217) पत्ता काटना (पृथक् करना, सम्बन्ध समाप्त करना)
मैने राधे को कितना समझाया, उसने एक नहीं मानी, अब. कहीं का तहीं रहा जिलाधिकारी ने उसका नौकरी से पत्ता ही काट दिया।
(218) पत्थर की लकीर होना (पक्की बात)
दशरथ का कथन पक्की लकीर था।
(219) पहाड़ टूट पड़ना (विपत्ति आ पड़ना)
मोहन के सिर से पिता की छाया क्या उठी, विपत्तियों का पहाड़ ही टूट पड़ा।
(220) पानी उतर जाना (प्रतिष्ठा समाप्त होना)
चारा में पकड़े जाने पर सुभाष का तो पानी उतर गया।
(221) पानी रखना (मर्यादा की रक्षा करना)
कुलीन व्यक्ति बड़े से बड़ा बलिदान करके भी पानी रखते हैं।
(222) पानी पानी होना (लज्जित होना)
पुत्र के अशिष्ट व्यवहार को देखकर पिता पानी पानी हो गया।
(223) पापड़ बेलना (कष्ट उठाना)
संस्कार एवं अनुशासनहीन सन्तान के माता-पिता जीवन भर पापड़ बेलते रहते है।
(224) प्राणों की बाजी लगाना (जीवन को खतरे में डालना)
गांधी जी ने भारत की एकता की रक्षा के लिए अपने प्राणों की बाजी लगा दी ।
(225) पीठ दिखाना (युद्ध में भागना)
बीर पुरुष प्राण दे देते हैं किन्तु युद्ध में पीठ नहीं दिखाते।
(226) पीठ ठोंकना (शाबासी देना, उत्साह बढ़ाना)
माधव ने अपने पुत्र के प्रथम श्रेणी में पास होने पर उसकी पीठ ठोंकी।
(227) पेट में चूहे कूदना (अत्यधिक भूख लगना)
एक बजने वाला है, अभी तक मध्यावकाश नहीं हुआ। मेरे तो पेट में चूहे कूद रहे हैं।
(228) पौ बारह होना (अत्यधिक लाभ होना)
इस बार रामेश्वर ने दो हजार बोरे गेहूँ भर लिये। भाब आसमान पर चढ़ गया, उसके तो पौ बारह हो गये।
(229) पोल खोलना (भेद खोलना)
पत उसने दुश्मन से मिलकर हमारी पोल खोल दी।
(230) फूले न समाना (बहुत खुश होना)
लाटरी का नम्बर आने का समाचार सुनकर सुनील फूला न समा रहा ।
(231) बाँछें खिलना (प्रसन्न होना, हँसना)
मित्र को आते हुए देखकर कमल की बाँछें खिल उठीं।
(232) बात जमाना (प्रभावित करना)
उपाध्याय जी ने बहुत उपदेश दिया पर वे अपनी बात जमा नहीं पाये।
(233) बात बिगड़ना (काम बिगड़ जाना)
उसके पैर में जरा-सी चोट लगी थी, पर बिगड़ते-बिगड़ते वात बिगड़ गयी, पूरी टाँग कटवानी पड़ी।
(234) बात की बात में (बहुत शीघ्र)
दोपहर तक वह ठीक था, बस बात की बात में बीमार हो गया।
(235) बातें बनाना (व्यर्थ प्रलाप करना)
आप से होता तो कुछ है नहीं, केवल बातें बनाना जानते हो।
(236) बाल-बाल बचना ( कठिनाई से बचना)
सोहन जैसे ही रेलवे लाइन पार कर रहा था, वैसे ही गाड़ी आ गयी और बाल-बाल बच गया।
(237) बाल बॉँका न होना (अहित/अशुभ न होना)
कितना ही जोर लगा लो, तुम मेरा बाल भी बाँका नहीं कर सकते।
(238) बाल की खाल निकालना (बहुत बारीकी से विचार करना)
उन्हें तुम क्या चलाओगे, वे तो वकील हैं, बाल की खाल निकालते हैं ।
(239) बॉसों उछलना (अति प्रसन्न होना)
एक करोड़ की लॉटरी निकलने पर निखट्टू घनश्याम बॉँसों उदछलने लगा।
(240) भंडा फोड़ करना ( भेद खोलना)
कल तो गोपाल भक्त बना हुआ था मगर आज महेश ने उसका भंडा फोड़ दिया।
(241) भीगी बिल्ली बनना (डर जाना)
प्रधानाचार्य के कक्षा में प्रवेश करते ही शोर बन्द हो गया तथा छात्र भीगी बिल्ली बन गये।
(242) भूख बुझाना (इच्छा शान्त करना)
परिवार को मिटाकर ही तुम्हारी कुर्सी की भूख बुझेगी।
(243) मक्खन लगाना (चाटुकारिता करना)
अब तो अपने पैरों पर खड़े हो जाओ, मक्खन लगाते हुए कब तक जिओगे।
(244) मक्खियाँ मारना (बेकार बैठना)
इस डॉक्टर के पास मरीज तो एक भी नहीं आता, दिन भर बैठे मक्खी मारता है।
(245) मिट्टी में मिलना (बरबाद होना)
ठाकुर रामसिंह की जुए और सट्टेवाजी की आदत ने उसकी इज्जत मिट्टी में मिला दी।
(246) मुँह की खाना (बुरी तरह हारना, धोखा खाना, प्रतिष्ठा खोना)
एक बार लज्जित हुए और मुँह की खाई फिर भी तृम न चेते, बार-बार उससे विवाद करते हो।
(247) मुह फुलाना (रूठ जाना)
सतीश ने गौतम को अपनी पुस्तक नहीं दी तो गौतम मुँह फुलाकर बैठ गया।
(248) मुँह में पानी भर आना (लालच करना)
रिश्वत के दो हजार रुपये देखकर अधिकारी के मुँह में पानी भर आया।
(249) मुँछें नीची हो जाना (इज्जत उतर जाना)
इधर-उधर आवारागर्दी करके, मार-पीट, लड़ाई-झगड़ा करते रहते हो। तुम क्यों मेरी मूँछें नीची करने पर तुले हो ?
(250) रद्दा चढ़ाना (वृद्धि कर देना)
मैंने तो केवल आज विद्यालय न आने की बात कही थी, तुमने गुरुजी से बताते हुए उस पर और रद्दा चढ़ा दिया।
(251) रफूचक्कर होना (भाग जाना)
उठाईगीर मेरी अटैची को लेकर रफूचक्कर हो गया।
(252) रास्ता नापना (बेकार घूमना)
पहले तो रास्ते पर आया नहीं, अब नीकरी छूटने पर राजेश नेताओं के घरों के रास्ते नाप रहा है।
(253) रोड़े अटकाना (बाधा डालना)
गाँव वाले ईष्ष्या के कारण मेरे प्रत्येक कार्य में रोडे अटकाते रहते हैं।
(254) रोंगटे खड़े होना (भयभीत होना)
कल रात को मैं श्मशान में होकर गुजर रहा था और मुझे भूत का ख्याल आ गया तभी मेरे रोंगटे खड़े हो गए।
(255) लकीर का फकीर होना (रूढिवादी होना)
तुम तो लकीर के फकीर हो रहे हो, भला बुधवार को बैल खरीदने से क्या होता है !
(256) लकीर पीटना (पुरानी रीति पर चलना)
अभी भी परम्परावादी लोग पुराने रीति-रिवाजों की लकीर पीटते है।
(257) लाल झंडी दिखाना (काम रोक देना)
कारखाना चालू होने के केवल दो मास बाद ही मजदूरों ने लाल झंडी दिखा दी।
(258) लोहा लेना (मुकाबला करना)
कई दिन तक महारानी लक्ष्मीबाई अंग्रेजी सेना से लोहा लेती रही।
(259) लाल पीला होना ( क्रोध करना)
गिलास टूटने पर इतने लाल पीले क्यों हो रहे हो?
(260) लोहा मानना (हार मानना)
बीर पुरुषो का सभी लोहा मानते हैं।
(261) लोहे के चने चबाना (बहुत मुश्किल काम होना)
विद्या पढ़ना कोई खेल थोड़ा ही है, यह तो लोहे के चने चवाना है।
(262) श्री गणेश करना (शुरू करना)
कल इस गाँव में विद्यालय का श्रीगणेश होगा।
(263) सिर माथे पर लेना (अत्यधिक आदर देना)
मैं आपका आदेश सिर माथे पर धारण करके (लेकर) कल ही गुवाहाटी जा रहा हूँ।
(264) सीधी अँगुली से घी नहीं निकलता (सीधे बस में न आना, सीधे तरीके व्यर्थ होना)
तुम्हारे पैसे वो ऐसे नही देगा तुम्हे अब घी निकालने के लिए अंगुली टेड़ी करनी पड़ेगी।
(265) सिर मुड़ाते ही ओले पड़ना (काम शुरू होते ही बाधा पड़ना)
कल दुकान का उद्घाटन हुआ था, आज चोरी हो गयी-सिर मुड़ाते ही ओले पड़े।
(266) सूरज को दीपक दिखाना (महापुरुषों के गुणों का वर्णन असम्भव)
महात्मा गांधी के चरित्र के बारे में कूछ कहना सूरज को दीपक दिखाना है।
(267) सोने में सुगन्ध होना (गुणों में और गुण आना)
सुन्दरी तो वह थी ही, विद्वत्ता ने उसके व्यक्तित्व में सोने में सुगन्ध पैदा कर दीहै।
(268) हक्का-बक्का रह जाना (आश्चर्य में पड़ जाना)
आज अचानक गाँव में पुलिस को देखकर मैं हक्का-बक्का रह गया।
(269) हवा से बातें करना (बहुत तेज चलना)
स्टेशन छोड़ते ही तूफान मेल हवा से बातें करने लगी।
(270) हवाई किले बनाना (उच्च कल्पनाएँ करना)
लोटरी मिलते ही श्याम ने हवाई किंले बनाना प्रारम्भ कर दिया।
(271) हँसी खेल होना (आसान काम होना)
बी०ए० की परीक्षा में प्रथम श्रेणी लाना हँसी खेल नहीं है।
(272) हाथ के तोते उड़ जाना (अक्ल चली जाना)
बाप के मरते ही उसके हाथों के तोते उड़ गए और वो बुद्धू बना बैठा रहता है कुछ भी कर नहीं पाता है।
(273) हाथ कंगन को आरसी क्या? (प्रत्यक्ष को प्रमाण की आवश्यकता नहीं)
हाथ कंगन को आरसी क्या ? पढ़े-लिखे को फारसी क्या?
(274) हाथ-पॉव फूलना (बहुत घबरा जाना)
दिल्ली की भीड़-भाड़ वाली सड़क पर एकदम कार के ब्रेक फेल होते ही ड्राइवर के हाथ-पैर फूल गए।
(275) हाथ मलना (पछताना)
बचपन में परिश्रम न करने वाले व्यक्ति जीवनभर हाथ मलते रहते है।
(276) हाथ पीले करना (बिवाह करना)
दहेज के युग में सामान्य व्यक्ति के लिए बेटी के हाथ पीले करना बड़ा कठिन कार्य है।
(277) हाथ पसारना (भीख या सहायता माँगना)
पुरुषार्थी व्यक्ति कभी किसी के सम्मुख हाथ नहीं पसारते।
(278) हाथ पर हाथ धरकर बैठना (निकम्मा होना)
परिश्रमशील ब्यक्ति कभी हाथ पर हाथ धरकर नहीं बैठता।
(279) होइहि सोइ जो राम रचि राखा ( ईश्वर की इच्छानुसार कार्य होना)
व्यर्थ में अपने मन को चिन्तित मत करो, होइहि सोइ जो राम रचि राखा।
(280) चादर के बाहर पैर पसारना ( सीमा से अधिक कार्य करना)
व्याह-शादियों में चादर से बाहर पैर पसारना कष्टकर होता है।
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