दोस्तों अगर आप CTET परीक्षा की तैयारी कर रहे हैं तो CTET में 50% प्रश्न तो सम्मिलित विषय के शिक्षणशास्त्र से ही पूछे जाते हैं। आज हमारी वेबसाइट hindiamrit.com आपके लिए विज्ञान विषय के शिक्षणशास्त्र से सम्बंधित प्रमुख टॉपिक की श्रृंखला लेकर आई है। हमारा आज का टॉपिक विज्ञान शिक्षण में प्रयोगशाला का महत्व,उपयोगिता एवं उपकरण | CTET SCIENCE PEDAGOGY है।
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विज्ञान शिक्षण में प्रयोगशाला का महत्व,उपयोगिता एवं उपकरण | CTET SCIENCE PEDAGOGY
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Meaning of Laboratory / प्रयोगशाला का अर्थ
प्रयोगशाला का शाब्दिक अर्थ है-प्रयोग करने का स्थान । प्रयोगशाला एक विशाल कमरा है जिसमें विद्यार्थियों का समूह प्रयोग करता है। प्रयोगशाला में प्रकाश सरलता से आ सके और जिसमें इस प्रकार सीटों की व्यवस्था हो कि हर बालक अपनी-अपनी सीट के सामने विज्ञान सामग्री, उपकरणों की सहायता से प्रयोग करते हुए सही निष्कर्ष निकालने की दिशा में कार्य करे । प्रयोगशाला वैज्ञानिक अन्वेषण तथा प्रयोग करने के अवसर प्रदान करती है। साथ ही वैज्ञानिक विधि को कार्य रूप में देखने का अवसर प्रदान करती है ।
प्रयोगशाला की उपयोगिता अथवा महत्त्व
विज्ञान शिक्षण के अध्ययन हेतु प्रयोगशाला के अत्यधिक महत्त्व को देखते हुए राष्ट्रीय शिक्षा नीति (10 + 2) के अन्तर्गत माध्यमिक एवं उच्च माध्यमिक विद्यालयों में प्रयोगशाला खोलने की व्यवस्था की गयी है । प्रयोगशाला की उपयोगिता एवं महत्त्व निम्नलिखित प्रकार हैं-
1. प्रयोगशाला छात्रों में विज्ञान के प्रति रुचि उत्पन्न करती है।
2. प्रयोगशाला छात्रों में विज्ञान शिक्षण का वातावरण उत्पन्न करती है ।
3. प्रयोगशाला के द्वारा छात्रों में आत्मविश्वास, आत्मानुशासन तथा स्वावलम्बन जैसी भावनाओं का विकास होता है।
4. छात्रों में वैज्ञानिक दृष्टिकोण का विकास होता है।
5. प्रयोगशाला द्वारा छात्रों को ‘करके सीखने’ के सिद्धान्त के आधार पर ज्ञान दिया जाता है, जो अधिक स्थायी होता है तथा उसे शिक्षण कार्य में रुचिपूर्ण एवं रचनात्मक अनुभव प्राप्त होते हैं।
6. प्रयोगशाला में छात्रों द्वारा सामूहिक रूप से कार्य करने से उनमें सामाजिक गुणों का विकास होता है।
7. प्रयोगशाला में ‘छात्र प्रयोग द्वारा प्रेक्षण लेने’ विश्लेषण करने व निष्कर्ष निकालने से उसमें सोचने-विचारने, निरीक्षण करने, व्याख्या करने तथा निर्णय लेने की क्षमता का विकास होता है।
8. प्रयोगशाला में प्रयोग सम्बन्धी सभी उपकरण, यन्त्र व सामग्री एक ही जगह पर उपलब्ध हो जाती है, इसीलिए प्रयोग करने में आसानी रहती है तथा समय की बचत होती है।
9. छात्रों को पुष्ट एवं प्रामाणिक ज्ञान कराया जा सकता है।
10. प्रयोगशाला में कार्य करने से छात्रों में वैज्ञानिक विधि से कार्य करने की आदत पड़ जाती है।
11. प्रयोगशाला में कार्य करते हुए विभिन्न उपकरणों की मरम्मत एवं निर्माण करने से छात्रों में आत्मनिर्भरता आती है।
12. प्रयोगशाला के अभाव में उपकरणों को एक स्थान से दूसरे स्थान पर लाने ले जाने में टूट-फूट होने की सम्भावना रहती है।
13. प्रयोगशाला में उपकरणों एवं यन्त्रों के रख-रखाव की छात्रों में व्यावहारिक समझ विकसित होती है।
प्रयोगशाला का प्रारूप
भौतिक प्रयोगशाला में निम्नलिखित सामान होना चाहिए-
1. प्रदर्शन मेज जिसमें दराज लगे हों तथा गैस और पानी की व्यवस्था भी हो ।
2. तुलाओं (Balance) को रखने के लिए दीवार में व्यवस्था ।
3. गहरी आलमारियाँ, दीवार पर श्यामपट्ट, दोनों कोनों पर बड़े सिंक तथा दो बड़े स्टूल होने चाहिए।
4. काम करने की मेजें जिनमें कपबोर्ड और सैल्फ लगे होने चाहिए।
5. विज्ञान शिक्षण में फोटोग्राफी करने के लिए अँधेरा कमरा होना चाहिए। यह कमरा प्रयोगशाला के निकट हो, तो छोटा होना चाहिए । इसमें बिजली का प्रबन्ध होना चाहिए।
6. प्रयोगशाला में प्रकाश, जल की व्यवस्था ठीक होनी चाहिए । दुर्गन्धयुक्त विषकारक गैसों को निकालने के लिए फ्यूमहुड (Fumehood) की व्यवस्था होनी चाहिए। प्रयोगशाला का फर्श मजबूत होना चाहिए।
7. कार्यशाला प्रयोगशाला के पास एक कमरे में होने चाहिए, जहाँ विद्यार्थी साधारण उपकरणों का निर्माण कर सकें ।
प्रयोगशाला के उपकरण
(Equipment of Laboratory)
मोफत तथा हावेल के अनुसार, “श्रेणीकक्ष की उचित व्यवस्था से अध्ययन अध्यापन क्रिया में सहायता मिलती है। नेतृत्व में निर्देशन प्राप्त होता है तथा उस वातावरण की सृष्टि होती है, जिसकी शिक्षण में अत्यधिक आवश्यकता होती है। इसमें सन्देह की स्थिति उत्पन्न नहीं होती और अनुशासनहीनता का भय नहीं रहता। विद्यार्थियों में भी ऐसे गुण उत्पन्न किये जायें कि श्रेणीकक्ष की व्यवस्था में पूरा-पूरा योगदान दें क्योंकि इससे प्रजातान्त्रिक भावना को मूर्त रूप प्राप्त होता है।”
विज्ञान प्रयोगशाला को सजाने के लिए निम्नलिखित सामग्री की आवश्यकता होती है –
1. फर्नीचर (Furniture) – व्याख्यान कक्ष में एक अध्यापक मेज तथा 50-60 आरामदेह कुर्सियाँ होनी चाहिए। वर्तमान में शिक्षा के उद्देश्य एवं विधियाँ शीघ्रता से बदल रही हैं। आज के विद्यार्थी को आलोचनात्मक चिन्तन-मनन की आवश्यकता है,जिसके लिए संगोष्ठियों और परिचर्चाओं की आवश्यकता है। अतः सभी विधियों के प्रयोग करने के लिए कुर्सी-मेजों को हटाकर समुचित व्यवस्था करनी पड़ती है। इसलिए फर्नीचर हल्का हो तथा मेज-कुर्सियों की ऊँचाई व चौड़ाई विद्यार्थियों के अनुरूप होनी चाहिए । पुस्तकें रखने के लिए अलमारियाँ होनी चाहिए ! दो छात्रों के लिए उनकी सम्मिलित मेज दो कुर्सियों के लिए स्थान होना चाहिए। सीटों की पंक्तियों के बीच में 45 x 60 सेमी तक स्थान रखना चाहिए।
2. प्रकाश, पानी तथा वायु की व्यवस्था—अन्धकारपूर्ण कमरों में काम करने से विद्यार्थियों की आँखों पर बुरा प्रभाव पड़ता है। इसलिए प्रयोगशाला में वायु तथा प्रकाश की समुचित व्यवस्था होनी चाहिए । शुद्ध वायु की व्यवस्था रोशनदान लगाकर की जा सकती है, इससे प्रकाश भी मिलता है। दरवाजे व खिड़कियाँ भी वायु-संचार में सहायक होते हैं। पानी से सम्बन्धित समस्या के लिए प्रयोगशाला की छत पर एक बड़ी पानी की टंकी बनाना चाहिए उससे नल द्वारा प्रयोगशाला में पानी आता रहेगा। हर सामाजिक अध्ययनकक्ष ध्वनि निरोधक होना चाहिए जिससे बाहर का शोर न तो अन्दर आ सके और न छात्रों की ध्वनियाँ बाहर या अन्य कमरों में जा सकें ।
3. चॉक-बोर्ड-चॉक-बोर्ड काले, हरे, सफेद या अन्य किसी भी रंग के हो सकते हैं। प्रत्येक कमरों में एक या दो चॉक-बोर्ड होने चाहिए । बोड़ों को पाठ का सारांश लिखने, चित्रों की रूपरेखा खींचने आदि के लिए प्रयोग किया जा सकता है। बोडों को सामने की ओर किसी ऐसे स्थान पर होना चाहिए जहाँ से उन्हें सभी विद्यार्थी देख सकें । चॉक-बोर्ड पर विभिन्न रंगों के चॉक प्रयोग किये जा सकते हैं।
4. बुलेटिन बोर्ड-बुलेटिन बोर्ड बहुउद्देशीय सहायक सामग्री का काम करता है। विज्ञान प्रयोगशाला के बाहर बरामदें में बुलेटिन बोर्ड और सूचना बोर्ड की व्यवस्था की जानी चाहिए। बुलेटिन बोर्ड पर अध्यापक अपने अध्यापन सम्बन्धी सूचनाएँ दे सकता है तथा छात्रों द्वारा तैयार की गयी कृतियों का प्रदर्शन भी कर सकता है । इस पर पत्र-पत्रिकाओं के लेख लगाकर भी छात्रों को दैनिक घटनाओं से अवगत कराया जा सकता है।
5. पुस्तकें-सन्दर्भ पुस्तकें एवं अन्य आवश्यक पाठ्य-पुस्तकें प्रयोगशाला में होनी चाहिए।
6. केबिनेट तथा फाइलें – विभिन्न सामान को रखने के लिए आवश्यक मात्रा में रैक्स, फाइल केबिनेट्स, स्टेण्ड्स तथा शैल्फ्स होने चाहिए। छात्र अपना कार्य समाप्त करने के पश्चात् अपना सारा सामान इन केबिनेट तथा फाइलों में रख दें। इन केबिनेट तथा फाइलों के आवरणों पर लेबिल लगा देना चाहिए।
7. श्रव्य एवं दृश्य सामग्री – प्रयोगशाला में आवश्यक रूप से विभिन्न प्रकार की श्रव्य-दृश्य सामग्री होनी चाहिए। इस प्रकार की सामग्री में चित्र, नक्शे, ग्लोब, चार्ट,ग्राफ विज्ञापन, कार्टून, समय रेखाएँ, नमूने फिल्म तथा फिल्म पट्टियाँ, रेडियो, टेप- रिकॉर्डर, प्रोजेक्टर आदि होने चाहिए।
8. आवश्यक सामान तथा यन्त्र – शिक्षण के सभी उपकरण; जैसे बैरोमीटर, वर्षा मापक यन्त्र, मौसम सूचक यन्त्र आदि होने चाहिए।
9. प्रयोगशाला की उपकरणीय साज-सज्जा-प्रयोगशाला की उपकरणीय साज-सज्जा के दो पक्ष हैं—पहला उपकरण अथवा अन्य वैज्ञानिक सामग्री प्राप्त करना दूसरा उसे प्रयोगशाला में अथवा स्टोर में व्यवस्थित रूप में रखना। प्रायोगिक सामग्री के प्रयोजन और उपयुक्तता, विशेष रूप से सामग्री के गुणात्मक स्तर पर विशेष ध्यान रखा जाना चाहिए।
10. अन्धकार कक्ष (Dark Room) – अन्धकार कक्ष में छात्र प्रकाश सम्बन्धी प्रयोग, जहाँ पर बाहर का प्रकाश न आये, आसानी से कर सकते हैं। इस कक्ष का दरवाजा प्रयोगशाला में ही खुलना चाहिए। अन्धकार कक्ष के दरवाजे पर काले रंग का पर्दा होना चाहिए । अंधकार कक्ष में प्रयोग करते समय प्रेक्षण लेने के लिए विद्युत लैम्प अथवा टॉर्च की व्यवस्था होनी चाहिए ।
11. अध्यापक कक्ष-अध्यापक अपने कक्ष का उपयोग पीरियड की तैयारी करने तथा बैठकर लिखित कार्य जाँचने में कर सकता है। इसका प्रयोग प्रयोगशाला सहायक एवं अध्यापक दोनों के लिए संयुक्त रूप से होना चाहिए।
प्रयोगशाला का निर्माण
(Establishment of Laboratory)
मिश्रित विज्ञान कक्ष एवं प्रयोगशाला-डॉ. आर. एच. व्हाइटहाउस (Dr. R. H. Whitehouse) ने एक मिश्रित विज्ञान के कमरे व प्रयोगशाला की रूपरेखा प्रस्तुत की जिसमें 40-50 छात्रों के प्रदर्शन की तथा 20-25 छात्रों के प्रायोगिक कार्य की व्यवस्था रहती है।
1. प्रयोगशाला की बनावट—उनके अनुसार कमरे का आकार 45′ x 25° उपयुक्त होता है। कमरे का आधा भाग अध्ययन कक्ष के रूप में तथा आधा भाग प्रयोगशाला के रूप में काम में लेना चाहिए। व्याख्यान भाग में एक साथ 40-50 छात्र तथा प्रयोगशाला में एक साथ 20-25 छात्र काम कर सकते हैं।
2. दीवारें एवं फर्श—प्रयोगशाला की दीवारें 1½ फुट चौड़ाई की बनायी जानी चाहिए। दरवाजे तथा दीवारों के कोने गोलाई में बनाने चाहिएं, जिससे कि सफाई आदि करने में धूल आदि को आसानी से निकाला जा सके। दीवारों को डिस्टैम्पर या पेण्ट से रंगना चाहिए। फर्श चिकना होना चाहिए ताकि धूल के कण न बैठें तथा पोंछने पर सफाई ठीक प्रकार से हो सके ।
3. दरवाजे व खिड़कियाँ-प्रयोगशाला में दो दरवाजे होने चाहिए। एक दरवाजा व्याख्यान दक्ष की ओर तथा दूसरा प्रयोगशाला के लिए अथवा एक दरवाजे से छात्र प्रवेश करें तथा दूसरे से बाहर जायें। दरवाजे बाहर की ओर खुलने च हए ताकि शीघ्रता से उन्हें आसानी से खोला जा सके। तीन खिड़कियाँ 6′ x 8′ व दीवार पर बनायी जायें, जिस पर दरवाजे नहीं लगे हों । दो खिड़कियाँ भाषण कक्ष की ओर होनी चाहिए तथा एक प्रयोगशाला की ओर । खिड़कियाँ भी बाहर की ओर खुलनी चाहिए, इनके ऊपरी भाग में शीशे लगे होने चाहिए। यदि अंधकार कक्ष (Dark Room) की अलग से व्यवस्था न हो तो खिड़कियों पर काले रंग के पर्दों की व्यवस्था होनी चाहिए जिससे प्रकाश सम्बन्धी प्रयोग के लिए अँधेरे की व्यवस्था की जा सके।
4. फर्नीचर तथा बैठने की व्यवस्था – व्याख्यान कक्ष में एक अध्यापक मेज होनी चाहिए तथा 40-50 छात्रों के बैठने की व्यवस्था होनी चाहिए। दो छात्रों के लिए उनकी सम्मिलित मेज तथा दो कुर्सियों के लिए स्थान रखना चाहिए। सीटों की पंक्तियों के बीच में 1’/2′ x 2′ फीट तक स्थान रखना चाहिए।
5. प्रकाश, पानी तथा वायु की व्यवस्था—प्रयोगशाला में शुद्ध वायु के संचार की व्यवस्था रोशनदार लगाकर की जा सकती है। इससे प्रकाश भी मिलता है। दरवाजे व खिड़कियाँ भी वायु-संचार में सहायक होते हैं। पानी की व्यवस्था के लिए छत पर पानी की बड़ी टंकी बनानी चाहिए। उससे नल द्वारा पानी प्रयोगशाला में आता रहेगा।
6. प्रयोगशाला की उपकरणीय साज-सज्जा – प्रयोगशाला में उपकरणीय साज-सज्जा हेतु निम्नानुसार व्यवस्था होनी चाहिए-
(क) अध्ययन कक्ष-अध्ययन कक्ष में 10 x 4 फीट का एक श्यामपट्ट होना चाहिए । श्यामपट्ट से 3 फीट की दूरी पर अध्यापक मेज रखी होनी चाहिए। यह मेज अध्यापक प्रदर्शन कार्यों के लिए एवं अध्यापक के लिखने सम्बन्धी कार्य के लिए काम आ सकती है ।
(ख) प्रयोगशाला कक्ष-प्रयोगशाला में एक बड़ा श्यामपट्ट 10 × 4 फीट का दीवार पर बनाया जाता है । प्रयोगशाला कक्ष की ओर 6 मेजें 6 x 3/½ फीट की होनी चाहिए जिससे प्रत्येक मेज पर एक साथ चार छात्र कार्य कर सकें। इस प्रकार एक समय में 20-25 छात्र प्रयोगशाला में कार्य कर सकते हैं।
(ग) सामान रखने की व्यवस्था–सामान रखने के लिए पर्याप्त अलमारी प्रत्येक अलमारी 7 फीट ऊँची, 5 फीट चौड़ी तथा 1/2 फीट गहरी दीवार में बनी होनी चाहिए,जो एक फीट दीवार के अन्दर 6 इंच दीवार से बाहरी होनी चाहिए। तुलाओं को रखने हेतु 3′ ऊँचाई पर दीवार में 1/½ मी. चौड़ा एक पत्थर लगा होना चाहिए।
(घ) साज-सज्जा–प्रयोगशाला की दीवारों पर कुछ वैज्ञानिक के चित्रों को उनकी संक्षिप्त जीवनियों सहित टँगवाया जाना चाहिए । प्रयोगशाला के किसी कोने का बुलेटिन बोर्ड के लिए उपयोग किया जा सकता है, जिस पर विभिन्न पत्रिकाओं से काटकर विज्ञान शोध की आधुनिक सूचनाओं और लेखों का प्रदर्शन किया जा सकता है ।
(ङ) अंधकार कक्ष – प्रयोगशाला में एक अंधकार कक्ष होना चाहिए, जिसमें आने-जाने का दरवाजा प्रयोगशाला में ही खुलना चाहिए। इस अंधकार कक्ष में छात्र प्रकाश सम्बन्धी प्रयोग आसानी से कर सकते हैं। अंधकार कक्ष के दरवाजे पर काले रंग का पर्दा होना चाहिए। अंधकार कक्ष (Dark Room) में प्रयोग करते समय प्रेक्षण लेने के लिए विद्युत लैम्प या टार्च की व्यवस्था होनी चाहिए।
प्रयोगशाला में सावधानियाँ (Precautions in Laboratory)
1. बिजली उपकरणों का सही ढंग से उपयोग करना चाहिए।
2. किसी भी उपकरण एवं सामग्री को प्रयोग में लेने के बाद उसे उचित स्थान पर ही रखना चाहिए।
3. छात्रों के अनुशासन और दुर्घटनाओं से बचाव से सम्बन्धित सभी आवश्यक निर्देश श्यामपट्ट पर अलग से स्थायी रूप से लिख देना चाहिए।
4. सभी वस्तुओं पर उनके नाम के लेबल लगे होने चाहिए।
5. प्रयोग करने के पश्चात् सभी उपकरणों को अच्छी तरह साफ करके रखना चाहिए।
6. किसी भी उपकरण एवं सामग्री का सही रूप में कार्य न करने पर शिक्षक से परामर्श लेना चाहिए।
7. छात्रों को सम्भावित आकस्मिक दुर्घटनाओं एवं उससे सम्बन्धित उपचार की आवश्यक जानकारी अवश्य देनी चाहिए।
8. नये उपकरणों से सम्बन्धित जानकारी शिक्षक से प्राप्त कर लेनी चाहिए।
9. प्रयोगशाला मेज पर अनावश्यक सामग्री नहीं रखनी चाहिए।
10. रेडियोएक्टिव पराबैंगनी किरणों से आँखों को बचाने के लिए उपयुक्त चश्में का प्रयोग करना चाहिए।
11. काँच को गरम करते समय, काटते समय तथा ब्लो करते समय हाथों को दूर रखना चाहिए।
12. काँच की नली पर रबर-ट्यूब या डाट लगाते समय किसी लुब्रीकेन्ट का प्रयोग करना चाहिए।
13. किसी भी यन्त्र, उपकरण व औजार का वहीं उपयोग करना चाहिए, जहाँ उसकी आवश्यकता हो ।
14. प्रयोगशाला में शान्ति का वातावरण होना चाहिए।
प्रयोगशाला में दुर्घटना से बचने के उपाय (Remedies for Accident in Laboratory)
प्रयोगशाला में काम करते समय कभी-कभी साधारण घटनायें हो जाती हैं। उसके उपचार के लिए यह आवश्यक है कि कुछ आसान दवाओं को प्रयोगशाला में रखना चाहिए । प्रयोगशाला में एक प्राथमिक उपचार बॉन्स (First-aid Box) की व्यवस्था अवश्य करनी चाहिए।
(1) अम्ल व क्षार से हाथ जलना-कभी-कभी तेज अम्ल से हाथ जल जाते हैं। इस स्थिति में तुरन्त अधिक पानी अथवा बोरेक्स के हल्के घोल से उस अंग को धोना चाहिए । इसके बाद मरहम या वैसलीन लगाकर पट्टी बाँध देना चाहिए। यदि क्षार से हाथ में जलन होती है तो उसको पहले पानी से धोकर एसिटिक अम्ल के हल्के घोल या नींबू के रस से धोना चाहिए और इसके पश्चात् मरहम या वैसलीन लगाकर पट्टी बाँध देना चाहिए।
(2) फॉस्फोरस से जलने पर-फॉस्फोरस से जलने पर जले हुए स्थान को पानी में डुबोकर अच्छी प्रकार से धो देना चाहिए। इसके बाद उस स्थान पर सिल्वर नाइट्रेट से भीगी हुई रुई से ढँक कर पट्टी बाँध देनी चाहिए।
(3) आँखों में अम्ल अथवा क्षार पड़ने पर-आँखों में अम्ल अथवा क्षार पड़ जाय तो उसका फौरन उपचार करना चाहिए। अम्ल पड़ने पर मुख को पानी में डुबोकर पानी के अन्दर आँखों को खोलना और बन्द करना चाहिए। इसके बाद चूने के पानी सेबआँखों को धोकर आँखों में अरण्डी के तेल की एक बूँद डाल देनी चाहिए। आँख में क्षार के पड़ने पर उपरोक्त विधि का प्रयोग करना चाहिए। इसके बाद बोरिक अम्ल के हल्के घोल से आँखों को धोना चाहिए।
(4) कपड़ों में आग लगने पर-यदि किसी बालक के कपड़ों में आग लग जाये तो उसे फौरन कम्बल से लपेट देना चाहिए और जले हुए भाग पर दवा लगा देनी चाहिए। किसी प्रकार की दुर्घटना होने पर प्राथमिक उपचार करना चाहिए और उसके बाद डॉक्टर को दिखाना चाहिए।
(5) विषैली गैस का प्रभाव-यदि किसी बालक को प्रयोगशाला में किसी विषैली गैस का प्रभाव हो गया है तो उसे शीघ्र खुली हवा में ले आना चाहिए। उसके वस्त्र ढीले कर देना चाहिए। उसे चाय पिला देनी चाहिए इसके बाद तुरन्त किसी अच्छे डॉक्टर के पास ले जाना चाहिए ।
(6) बिजली का करेंट लगना-किसी बालक को बिजली पकड़ ले तो तुरन्त बिजली का स्विच बन्द करके उसे सूखी लकड़ी की सहायता से छुड़ाना चाहिए । तत्पश्चात् जलने, सदमे या बेहोशी का उपचार करना चाहिए।
(7) चोट लगने पर-चोट से कटी हुई जगह को साफ करके टिंचर आयोडीन लगाना चाहिए। थोड़ी चोट या कटी जगह पर बैण्ड-एड लगा देना चाहिए।
(8) गर्म द्रव से जलने पर-जले हुए भाग को सोडियम बाइकार्बोनेट के संतृप्त घोल से हल्के-हल्के धो देना चाहिए।
(9) शुष्क जलन – शुष्क जल जाने पर जिंक ऑक्साइड का मरहम लगा देना चाहिए । सोडियम बाइकार्बोनेट के संतृप्त घोल में फिगोया हुआ रुई का फोहा रख देना चाहिए।
(10) विषाक्तता-मुँह में जहरीली वस्तु चले जाने पर उसे तुरन्त थूक देना चाहिए तथा साफ पानी से कुल्ला कर लेना चाहिए। मुँह में अम्ल चले जाने पर सोडियम बाइकार्बोनेट के घोल से मुँह साफ करना चाहिए। पेट में अम्ल चले जाने पर चूने का पानी अथवा मिल्क ऑफ मैग्नीशियम पिला देना चाहिए। पेट में असंक्षारक विष चले जाने पर उल्टी करानी चाहिए। उल्टी कराने के लिए एक चम्मच सरसों का तेल या एक गिलास गर्म पानी में एक बड़ा चम्मच नमक मिलाकर पिला देना चाहिए।
(11) कान में कीड़ा पड़ जाने पर-कान में कोई कीड़ा पड़ जाने पर जैतून या गिरी के तेल की कुछ बूँदें डाल देनी चाहिए। गम्भीर स्थिति में डॉक्टर की सलाह लेनी चाहिए। कान में कोई नुकीला पदार्थ नहीं डालना चाहिए।
(12) धमनी से रुधिर स्त्राव होने पर-कट जाने या चोट लग जाने पर जहाँ से खून बह रहा हो वहाँ रुई रखकर तुरन्त दबा देना चाहिए ।
बहुविकल्पीय प्रश्न
1. एक प्रयोगशाला में एक बार में अधिकतम कितने विद्यार्थी कार्य कर सकते हैं.
(अ) 40
(ब) 30
(स) 50
(द) 75
2. प्रयोगशाला के माध्यम से बालक में विकास होता है-
(अ) कल्पना शक्ति का
(ब) निरीक्षण शक्ति का
(द) उपरोक्त सभी ।
(स) तर्क एवं निर्णय शक्ति का
3. प्रयोगशाला कार्य के उद्देश्य हैं-
(अ) रुचि उत्पन्न करना
(ब) मनोवृत्ति जागृत करना
(द) उपरोक्त सभी।
(स) उत्सुकता उत्प करना
4. विज्ञान प्रमुख कक्ष के पास व सम्बन्धित होना चाहिए-
(अ) भण्डार गृह
(ब) अँधेरा कक्ष
(स) प्रयोगशाला
(द) उपरोक्त सभी ।
उत्तर – 1. (ब), 2. (द), 3. (द), 4. (द)।
IMP link – मूर्त और अमूर्त चिंतन में अंतर
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