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लिपि के प्रकार | देवनागरी लिपि | लिपि एवं व्याकरण
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हमने आपको इस टॉपिक में क्या क्या पढ़ाया है :–
(1) लिपि की परिभाषा
(2) लिपि के प्रकार
(3) 22 भाषाओं के नाम एवं उनकी लिपि
(4)देवनागरी लिपि का परिचय
(5)देवनागरी लिपि की विशेषतायें
(6)देवनागरी लिपि की कमियाँ
(7) व्याकरण की परिभाषा
(8) व्याकरण के अंग
(9) व्याकरण का महत्व
(10) परीक्षा उपयोगी प्रश्न
लिपि की परिभाषा
मौखिक भाषा में हम कुछ ध्वनियों का उच्चारण करते हैं। मुख से उच्चारित इन ध्वनियों को लिखित रूप देने के लिए कुछ चिन्हों को निश्चित किया गया है, यही लिपि कहलाती है।
भाषा के लिखित रूप में जिन ध्वनि चिन्हों का प्रयोग किया जाता है, उन्हें लिपि कहते हैं।
सबसे प्राचीन लिपि ब्राह्मी लिपि है।
देवनागरी लिपि का विकास ब्राम्ही लिपि से ही हुआ है। इसी से गुजराती व बांग्ला भाषाओं की लिपियों का भी विकास हुआ है।
लिपि के प्रकार
लिपि के बहुत से प्रकार हैं। लेखन के आधार पर लिपि के अलग प्रकार हैं। चित्र के आधार पर लिपि के अलग प्रकार हैं। हम आपको लेखन के आधार पर लिपि के कुछ प्रमुख प्रकारों को बताएंगे जो निम्नलिखित हैं।
(1) ब्राह्मी लिपि –
यह सबसे प्राचीनतम लिपियों में से एक है देवनागरी लिपि का विकास हुआ है और देवनागरी लिपि से कई भाषाओं का विकास हुआ है।
(2) गुरुमुखी लिपि –
इससे पंजाबी भाषा का विकास हुआ है।
(3) फ़ारसी लिपि –
इससे उर्दू भाषा का विकास हुआ है।
(4) अरबी लिपि –
इससे कश्मीरी, उर्दू तथा सिंधी भाषा का विकास हुआ है।
(5) ओड़िया लिपि –
इससे उड़िया भाषा का विकास हुआ है।
(6) बांग्ला लिपि –
इससे बंगाली भाषा का विकास हुआ है।
(7) देवनागरी लिपि –
इससे हिंदी संस्कृत मराठी नेपाली गुजराती आदि भाषाओं का विकास हुआ है।
(8) रोमन लिपि –
इसे अंग्रेजी जर्मन फ्रेंच फ्रांसीसी आदि भाषाओं का विकास हुआ है।
(9) तमिल लिपि –
इसे तमिल भाषा का विकास हुआ है।
22 भाषाओं के नाम व उनकी लिपि
(1) असमिया – ब्राह्मी लिपि
(2) उड़िया – ओड़िया
(3) उर्दू – अरबी- फ़ारसी लिपि
(4) कन्नड़ – अशोक की ब्राह्मी लिपि
(5) कश्मीरी – देवनागरी,फ़ारसी अरबी,शारदा एवं रोमन लिपि
(6) कोंकणी – देवनागरी
(7) गुजराती – देवनागरी
(8) डोगरी – स्वयं की लिपि है जिसे डोगरा अक्षर कहते हैं।
(9) तमिल – ब्राम्ही लिपि
(10) तेलुगु – तेलुगु लिपि
(11) नेपाली – देवनागरी
(12) पंजाबी – गुरुमुखी
(13) बंगाली – बांग्ला
(14) मणिपुरी – स्वयं की लिपि है जिसे मेइतेई माएक कहते हैं।
(15) मलयालम – शलाका लिपि
(16) मैथिली – कैथी लिपि
(17) संथाली – स्वयं की लिपि है।
(18) संस्कृत – देवनागरी
(19) मराठी – देवनागरी
(20) सिंधी – अरबी- सिंधी लिपि
(21) हिंदी – देवनागरी
(22) बोडो – स्वयं की लिपि है – बोडो लिपि
देवनागरी लिपि || हिंदी की लिपि का नाम
भारत की भाषा हिंदी है। हिंदी भाषा की लिपि देवनागरी लिपि है।
देवनागरी लिपि का विकास ब्राह्मी लिपि से ही हुआ है।
देवनागरी लिपि की विशेषतायें | देवनागरी लिपि के गुण
(1) उच्चारण,लेखन एवं पठन समान
दोस्तों देवनागरी लिपि की सबसे बड़ी विशेषता यही है कि यह लिपि जैसे बोली जाती है, वैसे ही लिखी जाती है। अर्थात इसका उच्चारण एवं लेखन समान रूप से होता है।
रमन बिहारी के शब्दों में ,” देवनागरी लिपि की यह विशेषता है कि यह जैसे बोली जाती है, वैसी ही लिखी जाती है और वैसी ही पढ़ी जाती है।”
(2) अक्षर क्रम
देवनागरी लिपि में अक्षरों का क्रम उच्चारण के अनुसार है जैसे पहले स्वर और बाद में व्यंजन आते हैं।
अगर उच्चारण की दृष्टि से देखा जाए तो भी देवनागरी लिपि में अक्षर क्रम समान है।
जैसे कि पहले कंठ से,फिर तालु से,फिर मूर्धा से,फिर दंत से, फिर ओष्ठ से निकले वर्णों का क्रम ।
(3) सुंदरता
कलात्मक दृष्टि से देवनागरी लिपि के अक्षर सुंदर व सुडौल हैं। इसमें शिरोरेखा होने से अच्छा सुंदर दिखते हैं। देवनागरी लिपि के सभी अक्षर समान रूप से एक ही लंबाई चौड़ाई के अनुसार बनाए जाते हैं।
(4) व्यापक प्रसार
देवनागरी लिपि का क्षेत्र बहुत अधिक व्यापक है। भाषा में प्रयुक्त होने वाले समस्त शब्द इसमें समाहित है। देवनागरी लिपि सभी भारतीय लिपियों में संबंध स्थापन लिपि है।
(5) ध्वनि चिन्हों की पूर्णता
देवनागरी लिपि के 52 लिपि चिन्ह है। जिससे अनेक भाषाओं को लिपिबद्ध किया जा सकता है। देवनागरी लिपि की विशेषता यह भी है की इसके लिपि चिन्ह ध्वनि के अनुसार ही हैं। देवनागरी लिपि में वर्णों की संख्या पर्याप्त है अगर विस्तृत रूप में देखा जाए तो वर्णों की संख्या अधिक है। क्योंकि वर्तमान समय में देवनागरी लिपि के बहुत सारे वर्णों का प्रयोग बंद हो गया है।
(6) स्वरों के लिए अलग से चिन्ह
देवनागरी लिपि में स्वरों के लिए अलग से चिन्ह निर्धारित किए गए हैं जबकि अन्य लिपियों में ऐसा नहीं है।
(7) बोलने लिखने पढ़ने में आसान
दोस्तों देवनागरी लिपि बोलने लिखने पढ़ने से लेकर सभी चीजों में बहुत ही आसान होती है।
देवनागरी लिपि की कमियां || देवनागरी लिपि के दोष
देवनागरी लिपि बहुत ही सरल, सुडोल तथा पूर्ण है। पर कहते हैं कि जहां गुण होते है, वहां दोष भी होते हैं। तो चलिए जानते हैं देवनागरी लिपि की कमियां क्या क्या है :–
(1) शिरोरेखा खींचना
दोस्तों देवनागरी लिपि की प्रमुख विशेषता है शिरोरेखा खींचना।
शिरोरेखा खींचने से अक्षरों की सुंदरता तो बढ़ जाती है किंतु अगर व्यापक रूप में देखा जाए तो इन शिरोरेखा खींचने का कोई मतलब नहीं है। शिरोरेखा खींचने या न खींचने से शब्द की बनावट या उसके अर्थ की बनावट में कोई अंतर नहीं पड़ता है। इसलिए शिरोरेखा खींचना देवनागरी लिपि के वर्णों के लिए एक व्यर्थ या अतिरिक्त का कार्य है।
(2) र के कई रूप
देवनागरी लिपि का दूसरा दोष है कि इसमें किसी वर्ण के कई सारे रूप पाए जाते हैं अर्थात एक वर्ण का कई रूपों में प्रयोग होने लगता है।
जैसे- र वर्ण के कई रूप प्रयोग किये जाते हैं- कर्म,क्रम,गृह आदि।
(3) समय अधिक लगना
देवनागरी लिपि के वर्णों को लिखने में कुछ लिपियों की तुलना में अधिक समय लगता है। इस लिपि के कुछ वर्णों में अधिक समय लगता है। जैसे – क्ष,ज्ञ,झ आदि।
(4) कुछ चिन्हों का कठिन होना
देवनागरी लिपि के कुछ चिन्ह कठिन होते हैं जो कि छोटे बालकों को बनाने में कठिनाई होती है वह इसे देर में धीरे-धीरे सीख पाते है।
जैसे- ख,क्ष,झ,ज्ञ,ह,भ आदि।
(4) परिवर्तित रूप
देवनागरी लिपि का सबसे सूक्ष्म दोष यह भी है की इसमें वर्णों या शब्दो का रूप बदलता रहता है। अर्थात कुछ अमानक शब्दों को हटा दिया गया है या उन शब्दों का मानक रूप नया प्रस्तुत किया गया है। परंतु प्रचलन में अभी मानक और अमानक दोनों शब्द है। इसलिए बालकों को ज्ञान नहीं हो पाता कि कौन सा सही है।
जैसे – बड़ी ऋ ,बड़ी लृ,लृ हिंदी में अमानक रूप में माने गए है। हिंदी में इनका प्रयोग होना बंद हो गया है। इसी प्रकार पहले महान में न में हलंत होता था पर वर्तमान में ये लुप्त हो गया है।
इसी प्रकार अब गयी को गई, ठण्डा को ठंडा लिखने लगा जाने लगा।
उपर्युक्त परिवर्तन में छोटी कक्षा के बालक भ्रमित हो जाते हैं।
व्याकरण की परिभाषा
व्याकरण वास्तुशास्त्र है जो हमें किसी भाषा को शुद्ध रूप से बोलना लिखना तथा पढ़ना सिखाता है।
भाषा के कुछ नियम होते हैं,व्याकरण के अंतर्गत हम भाषा के उन नियमों को सीखते हैं जो भाषा के शुद्ध अशुद्ध होने का निर्धारण करते हैं।
अतः “व्याकरण वह शास्त्र है जिसके द्वारा हम भाषा के शुद्ध रूप व शुद्ध प्रयोग का ज्ञान प्राप्त करते हैं।”
व्याकरण के अंग
व्याकरण के चार अंग होते हैं :–
(1) वर्ण विचार
वर्ण भाषा की सबसे छोटी इकाई है।
इसके अंतर्गत हमें वर्णमाला का ज्ञान, वर्णों का उच्चारण, वर्णों को लिखने की विधि, वर्णों को संयुक्त करने के नियमों आदि के विषय में सीखते हैं।
(2) शब्द विचार
वर्णों के सार्थक मेल से शब्द बनते हैं।
इसके अंतर्गत शब्दों की उत्पत्ति, शब्दो की रचना, शब्द निर्माण तथा शब्द भेद आदि सीखते हैं।
(3) पद विचार
वाक्य में प्रयुक्त किए गए शब्द पद कहलाते हैं।
पद विचार के अंतर्गत हम संज्ञा, सर्वनाम, विशेषण,क्रिया,अव्यय आदि शब्दों का ज्ञान सीखते हैं।
(4) वाक्य विचार
शब्दों के सार्थक मेल से वाक्य बनते हैं।
वाक्य विचार के अंतर्गत वाक्य रचना, वाक्य के भेद, वाक्य के प्रकार, वाक्य विग्रह तथा विराम चिन्ह आदि के बारे में सीखते हैं।
व्याकरण का महत्व
व्याकरण का हिंदी भाषा में बहुत महत्व है। व्याकरण का क्या महत्व है, इसको निम्न बिंदुओ के माध्यम से स्पष्ट किया जा सकता है।
(1) इससे भाषा शुद्ध बनती है। बिना व्याकरण के भाषा का ज्ञान सम्भव नहीं हो सकता है।
(2) व्याकरण ही एक ऐसा ज्ञान है,जो भाषा की अशुद्धता को दूर करके शुद्ध सरल रोचक एवं आकर्षक बनाता है।
(3) भाषा के शुद्ध और निश्चित रूप का निर्धारण व्याकरण से ही होता है।
(4) व्याकरण भाषा को लिखने,समझने,पढ़ने का तरीका प्रदान करती है।
(5) हिंदी भाषा में या किसी भी भाषा को पढ़ने लिखने के लिए व्याकरण की आवश्यकता पड़ती है।इसलिए व्याकरण का महत्व बहुत अधिक है।
लिपि के प्रकार | देवनागरी लिपि | लिपि एवं व्याकरण टॉपिक से जुड़े परीक्षा उपयोगी प्रश्न
प्रश्न-1- देवनागरी लिपि का विकास किस लिपि से हुआ है?
उत्तर- ब्राह्मी लिपि
प्रश्न-2- संस्कृत किस लिपि की भाषा है?
उत्तर- देवनागरी लिपि
प्रश्न-3- उर्दू किस लिपि की भाषा है?
उत्तर- अरबी-फारसी लिपि
प्रश्न-4- सबसे प्राचीन लिपि कौन सी है?
उत्तर- ब्राह्मी लिपि
प्रश्न-5- देवनागरी लिपि से कौन कौन सी भाषाओं का विकास हुआ है?
उत्तर- संस्कृत,हिंदी,मराठी,नेपाली,कोंकणी आदि भाषा।
प्रश्न-6- व्याकरण के कितने अंग है?
उत्तर- 4
👉 सम्पूर्ण हिंदी व्याकरण पढ़िये टच करके
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