मूर्त और अमूर्त चिंतन में अंतर || difference between concrete and abstruct thinking

दोस्तों आज आपको मनोविज्ञान का सबसे महत्वपूर्ण पाठ मूर्त और अमूर्त चिंतन में अंतर की विस्तृत जानकारी प्रदान करेंगे।

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मूर्त और अमूर्त चिंतन में अंतर || difference between concrete and abstruct thinking

सामान्य रूप से चिंतन की यह दोनों प्रक्रियाएं एक दूसरे से पृथक पृथक हैं। परंतु अनेक अर्थों में इनका वर्णन एक साथ किया जाता है।

क्योंकि जब हम किसी मूर्त वस्तु को देखते हैं तभी उसके बारे में अमूर्त चिंतन करते हैं।

जैसे जब हम महिला को बुर्का पहले देखते हैं। तो यह मानते हैं कि एक महिला हमारे सामने बुर्के में मुंह ढक कर जा रही है।

इसके बाद आगे की चिंतन की प्रक्रिया अमूर्त चिंतन से संबंधित हो जाती है।

जब हम यह जानने का प्रयास करते हैं। कि यह महिला क्यों अपना मुंह क्यों ढके हुए है? इस परंपरा के मूल में कौन से कारण हैं? यह परंपरा कब से भारतीय समाज में प्रारंभ है? वर्तमान समय में से क्या प्रासंगिकता है आदि।

मूर्त एवं अमूर्त चिंतन के मध्य विशेषताओं एवं अंतर को निम्नलिखित रुप से स्पष्ट किया जा सकता है–

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मूर्त चिंतन
(Concreate thinking)
अमूर्त चिंतन
(Abstruct thinking)
इसका संबंध किसी वस्तु के बाहरी आवरण तक भाग से होता है। तथा उसके स्वरूप एवं आकार के ज्ञान को प्रकट करता है।इसका संबंध वस्तु के भीतरी सीमित होता है। जो कि वस्तु के मूल कारण एवं मूल तत्वों से संबंधित होता है।
इसमें किसी वस्तु की ऊपरी सतह के बारे में विचार किया जाता है। इसमें किसी भी वस्तु की भीतरी सतह के बारे में पूर्ण रूप से विचार किया जाता है।
यह केवल वस्तुओं के तथ्यों तक सीमित रह जाता है।
जैसे महात्मामा गांधी के चित्र को समझकर विचार करना।
वस्तुओं के तथ्यों के अंदर तक या कार्यरत हैं।जैसे– महात्मा गांधी के चित्र को देखकर उनके गुणों तथा कार्य व्यवहार के बारे में विचार करना।
इसमें किसी वस्तु के आकार एवं प्रकार के बारे में विचार किया जाता है।यह आकार प्रकार के निर्माण की प्रक्रिया के बारे में विचार करता है।
इसकी प्रक्रिया मूर्त वस्तुओं एवं मूर्त विचारों से संबंधित होती हैं। इसका संबंध चित्र वर्णन से नहीं होता वरन वह चित्र के मूल उद्देश्य एवं उसके निर्माण के कारणों से होता है।
इसका संबंध भौतिक जगत से होता है। मानसिक जगत से होता है।
इसके द्वारा वस्तु के आकार एवं प्रकार से अलग विचार नहीं किया जा सकता है।यह चिंतन वस्तु के आकार प्रकार के अतिरिक्त विषयों पर विचार करता है।
इसका क्षेत्र सीमित होता है। इसका क्षेत्र असीमित होता है।
यह चिंतन दृश्य जगत एवं दृश्य वस्तुओं से संबंधित होता है।यह चिंतन विचारों से संबंधित होता है।

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