कल्पना का अर्थ एवं परिभाषा,कल्पना के प्रकार

दोस्तों आज आपको मनोविज्ञान का सबसे महत्वपूर्ण पाठ कल्पना का अर्थ एवं परिभाषा,कल्पना के प्रकार आदि की विस्तृत जानकारी प्रदान करेंगे।

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कल्पना का अर्थ एवं परिभाषा,कल्पना के प्रकार

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(meaning of imagination) कल्पना का अर्थ

वस्तु का प्रत्यक्षीकरण मानव मस्तिष्क में प्रतिमाओं को स्थापित करता है।

वहीं प्रतिमाओं में परिवर्तन करके नवीनता उत्पन्न कर देता है। इसी नवीनता का नाम कल्पना है।

मकान निर्मित करने वाले आर्किटेक्ट मकान के नए डिजाइन तैयार करते हैं।

डिजाइन कल्पना पर ही आधारित होते हैं।इसमें वह अपने पूर्व अनुभव का प्रत्यय स्मरण करता है।

उनमें से उपयुक्त अनुभव का चुनाव करके कुछ परिवर्तन करता है। और एक नए मकान का मानचित्र बना देता है।

इसी प्रकार से कहानीकार, उपन्यासकार यथार्थ जगत की किसी घटना को आधार मानकर काल्पनिक चरित्रों का प्रयोग करके कहानी,उपन्यास की संरचना करता है।

अतः शिक्षा के क्षेत्र में कल्पना का अत्यधिक महत्व है।कल्पना के द्वारा व्यक्ति यथार्थ से अलग हट जाता है। इससे उसे सुख मिलता है।

(imagination) कल्पना में अनुभव का प्रत्यास्मरण होता है, लेकिन कल्पना को अलग ही स्थापित करने वाला लक्षण विद्यमान होता है।

यथार्थता में अभूतपूर्व परिवर्तन करना ही कल्पना होता है।

कल्पना की परिभाषाएं (definition of imagination)

रायबर्न के अनुसार

कल्पना वह शक्ति है जिसके द्वारा हम अपनी प्रतिमाओं का नए प्रकार से प्रयोग करते हैं। यह हमको पूर्व अनुभव द्वारा किसी ऐसी वस्तु का निर्माण करने में सहायता देती जो पहले कभी नहीं थी।

वुडवर्थ के अनुसार

कल्पना मानसिक हस्त व्यापार है।जब पूर्व यथार्थ तथ्यों का व्यक्तिगत स्मरण करता है।तो कल्पना प्रदर्शित करता है।

मैकडूगल के अनुसार

कल्पना दूरस्थ वस्तुओं के संबंध का चिंतन है।

कल्पना की विशेषताएं (characteristics of imagination)

(1) कल्पना एक मानसिक प्रक्रिया है।

(2) कल्पना के लिए एक धरातल या अस्तित्व की आवश्यकता होती है।

पूर्व अनुभव धरातल के रूप में कल्पना को सहायता देता है। अतः कल्पना का आधार पूर्व अनुभव है।

(3) कल्पना प्रतिमा चयन है। कल्पना करते समय प्रतिमाओं में से उपयुक्त प्रतिमा का चयन करके हम अपनी सृजनात्मकता में वृद्धि करते हैं।

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(4) कल्पना का प्रारंभ और अंत सृजन के लिए होता है।

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कल्पना के प्रकार (types of imagination)

इसके प्रकार को हम मैकडूगल और ड्रेवर के अनुसार किये गए वर्गीकरण के अनुसार पढ़ते है।

(1) मैकडूगल के अनुसार कल्पना के प्रकार

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(A) पुनरुत्पादक कल्पना

मस्तिष्क में स्थापित पूर्व अनुभव जब प्रतिमा के रूप में हमारे समक्ष आते हैं। तो उन्हें पुनरुत्पादक कल्पना कहा जाता है।

इसको हम कल्पना ना मानकर स्मृति का नाम देते हैं।

(B) उत्पादक कल्पना

व्यक्ति द्वारा सीखे गए और धारण किए गए पूर्व अनुभवों को आधार मानकर जब हम उद्दीपक में कुछ नवीनता उत्पन्न कर देते हैं। तो इसे उत्पादक कल्पना कहते हैं।

इसी को वास्तविक कल्पना माना जाता है। आज मानव की उन्नति इसी के द्वारा संभव हो पाई है।

इसके दो भाग हैं

(i) रचनात्मक कल्पना

मानव प्रयोग के विकास के लिए भौतिक वस्तुओं में नवीनता लाना ही रचनात्मक कल्पना होती है।

वर्तमान शोध एवं अविष्कार इसके परिणाम होते हैं।

(ii) सृजनात्मक कल्पना

इस कल्पना के अंतर्गत व्यक्ति की मौलिकता किसी वस्तु या विचार के रूप में उत्पन्न होती है।

टी पी नन इसी को व्यक्ति की स्वाभाविकता का नाम दिया है।

सृजन शक्ति का सही प्रकाशन इसी के द्वारा संभव होता है।

(2) ड्रेवर के अनुसार कल्पना के प्रकार

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(A) पुनरुत्थान एवं उत्पादक कल्पना

ड्रेवर की यह कल्पना मैकडूगल के उत्पादन कल्पना का ही वर्णन है।

(B) आदानात्मक कल्पना

जब किसी उद्दीपक का परिचय चित्र द्वारा वर्णन करके प्रस्तुत करते हैं। तो बालकों के मस्तिष्क में एक प्रतिमा बनती है। जो आदानात्मक कल्पना होती है।

जैसे रानी लक्ष्मीबाई के युद्ध का वर्णन एवं चित्र प्रदर्शन बालकों के मस्तिष्क में महारानी के शौर्य की कल्पना स्थापित करता है।

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(C) कार्यसाधक कल्पना

जब हम किसी काल्पनिक विचार के द्वारा समाज का लाभ करते हैं। तो उसे कार्य साधक कल्पना माना जाता है।

जैसे नदी के पुल का मानचित्र ,कृषि की मशीनें आदि।

(D) सौंदर्यात्मक कल्पना

मानव जीवन को सुंदर बनाने और मानव में सौंदर्य अनुभूति को जागृत करने के लिए कला, गायन, चित्र, काव्य आदि की कल्पना इसके अंतर्गत आती है।

(E) विचारात्मक कल्पना

विचारों एवं ज्ञान को महत्व देने वाली कल्पना विचारात्मक होती है।

इसमें नवीन विचार, सिद्धांत और आदर्श का निर्माण किया जाता है।

(F) क्रियात्मक कल्पना

वस्तु की व्यवहारिक उपयोगिता को ध्यान में रखकर जब हम किसी वस्तु की कल्पना को साकार रूप प्रदान करते हैं इसे क्रियात्मक कल्पना मानते हैं।

जैसे नदी को पार करने के लिए नाव, स्टीमर आदि।

(G) कलात्मक कल्पना

जब हम कला के रूप में काव्य के क्षेत्र में या संगीत के क्षेत्र में सृजन करते हैं तो वह कलात्मक कल्पना होती है।

(H) मन तरंग कल्पना

जब हम बिना किसी यथार्थ को सम्मुख रखकर काल्पनिक उड़ान भरते हैं। तो वह मन तरंग कल्पना होती है।

इसमें व्यक्ति भावनावस हवाई किले बनाता है। और परियों की कथाओं को सत्य मानता है।

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कल्पना का महत्व / कल्पना का शिक्षा में महत्व / कल्पना और शिक्षा का सम्बन्ध (importance of imagination)

कल्पना के संबंध में एच० एल० हलग्रीव ने अनेक प्रयोग किए।

निष्कर्ष स्वरूप बताया गया कि कल्पना प्रखर बुद्धि बालकों में अधिक पाई जाती है।

जब उसके द्वारा रचनात्मक और सृजनात्मक शक्ति का विकास बालकों में हो। कल्पना तभी सार्थक हो सकती है।

अतः कल्पना को शिक्षा में निम्नलिखित प्रकार स्पष्ट कर सकते हैं

(1) बौद्धिक प्रखरता

कल्पना से बालकों की बुद्धि प्रखर एवं तीव्र होती है। व्यवहारी क्रियाओं में बुद्धि का विभिन्न विधियों से प्रयोग करना ही बुद्धि की प्रखरता को बढ़ाना होता है।

(2) ज्ञानार्जन में तीव्रता

संसार के सभी ज्ञान हम चित्र,मॉडल ,उदाहरण या प्रयोगों के माध्यम से बालकों तक नहीं पहुंचा सकते।

इसलिए हम बालकों को कल्पनात्मक क्रिया और व्यवहारों के द्वारा सीखने को कहते हैं।

अतः कल्पना के द्वारा ज्ञान की तीव्रता में वृद्धि होती है।

(3) निराशा का निवारण

रायबर्न का मत है कि कल्पना हमारी निराशा और दुखों और फूलों और अपमानों आदि से छुटकारा दिलाती है।

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जैसे एक बालक सिनेमा देखने से वंचित रहता है। तो वह कल्पना करता है। कि गर्मी की छुट्टियों में पिता के साथ मुंबई जाएंगे और खूब सिनेमा देखेंगे।

(4) भावी जीवन की झलक

मनोवैज्ञानिकों के अध्ययन इस तथ्य को सिद्ध करते हैं। कि व्यक्ति कल्पना के समय अपने भविष्य को निश्चित करता है। वह अपने भविष्य में सुख को सम्मिलित करता है।

वह कल्पना के आधार पर भावी जीवन की रणनीति तैयार करता है और उसको व्यवहार में लाता है।

(5) रुचि परिष्करण

यथार्थ में नवीनीकरण स्थापित करना ही कल्पना है। बालक कल्पना का प्रयोग करके अपनी रुचि में परिष्कार लाते हैं।

वे दैनिक व्यवहार में अपनी क्रियाओं में भोजन वस्त्र धारण वार्तालाप आज में कल्पना शक्ति का प्रयोग करके नए नए अविष्कार करते रहते हैं।

(6) सृजन शक्ति का विकास

कल्पना के बिना सृजन नहीं हो सकता है। कल्पना से पहले हम उद्दीपक की यथार्थता का परिचय मन में धारण करते हैं।

(7) निर्देशन

कल्पना व्यक्ति को अपूर्व मार्ग दिखाती है। यही मार्ग उनके अविष्कार का जन्मदाता होता है।

विज्ञान के क्षेत्र में साहित्य के क्षेत्र में प्रशासन के क्षेत्र में और संसार के अन्य क्षेत्रों में भी जो भी नवीनता हैं, देखने को मिलती हैं। वे केवल कल्पना के कारण ही हैं।

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