न्यूनतम अधिगम स्तर का अर्थ और परिभाषा | न्यूनतम अधिगम स्तर की आवश्यकता

न्यूनतम अधिगम स्तर क्या है – अर्थ ,परिभाषा | न्यूनतम अधिगम स्तर की आवश्यकता से कक्षा शिक्षण में सुधार  – दोस्तों सहायक अध्यापक भर्ती परीक्षा में शिक्षण कौशल 10 अंक का पूछा जाता है। शिक्षण कौशल के अंतर्गत ही एक विषय शामिल है जिसका नाम शिक्षण अधिगम के सिद्धांत है। यह विषय बीटीसी बीएड में भी शामिल है। आज हम इसी विषय के समस्त टॉपिक को पढ़ेगे।  बीटीसी, बीएड,यूपीटेट, सुपरटेट की परीक्षाओं में इस टॉपिक से जरूर प्रश्न आता है।

अतः इसकी महत्ता को देखते हुए hindiamrit.com आपके लिए न्यूनतम अधिगम स्तर क्या है – अर्थ ,परिभाषा | न्यूनतम अधिगम स्तर की आवश्यकता से कक्षा शिक्षण में सुधार  लेकर आया है।

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न्यूनतम अधिगम स्तर का अर्थ और परिभाषा | न्यूनतम अधिगम स्तर की आवश्यकता

न्यूनतम अधिगम स्तर का अर्थ और परिभाषा | न्यूनतम अधिगम स्तर की आवश्यकता
न्यूनतम अधिगम स्तर का अर्थ और परिभाषा | न्यूनतम अधिगम स्तर की आवश्यकता


न्यूनतम अधिगम स्तर का अर्थ और परिभाषा | न्यूनतम अधिगम स्तर की आवश्यकता

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परिचय

वर्तमान समय में बढ़ती हुई जनसंख्या और घटते हुए शिक्षण साधनों को ध्यान में रखते हुए 1986 नयी नीति में यह निर्धारित किया गया कि बालकों को लिए प्रत्येक स्तर पर न्यूनतम स्तर निर्धारित किया जाए, जिससे सभी छात्र एक निश्चित मात्रा में ज्ञान प्राप्त कर सकें और इससे होने वाले अपव्यय एवं अवरोधन में सुलभता प्राप्त होगी तथा शिक्षा
के स्तर में एक परिवर्तन होगा । शिक्षा में अधिगम सुचारु एवं परिवर्तन एवं प्रभावी के साथ गुणात्मक सुधार होगा।

न्यूनतम अधिगम स्तर क्या है ? इससे पहले यह जानना अति आवश्यक है कि अधिगम क्या है ? क्योंकि न्यूनतम अधिगम स्तर अधिगम से जुड़ा हुआ है।

अधिगम क्या है ? (What is Learning)

मनोवैज्ञानिकों के अनेक अनुसन्धानों के माध्यम से यह सिद्ध कर दिया कि बालक का जब जन्म होता है तो वह कोरे कागज के समान होता है । भौतिक संसार के सम्पर्क में आता है अर्थात् जन्म के तुरन्त बाद वह सीखने लगता है उसके सीखने के साधन परिवार के सदस्य, वातावरण में उपस्थित उद्दीपक (Stimulus); तथा अन्य सम्पर्क आने वाली
परस्थितियाँ विद्यालय, मन्दिर, मस्जिद, समाज आदि से अनुभव प्राप्त करते है इन अनुभवों का प्रयोग अपने जीवन में उद्देश्य प्राप्ति हेतु करता है । इस प्रकार जन्म से लेकर मृत्यु तक जो सीखता एवं अनुभव प्राप्त करता है अधिगम कहलाता है।

अतः सीखना किसी स्थिति के प्रति की जाने वाली वह प्रक्रिया है जो व्यक्ति को उद्देश्य प्राप्ति में सहायता देती है और भविष्य में भी लाभान्वित करती है अधिगम की परिभाषा (Definitions of Learning)–विद्वानों में अधिगम के विषय में मतभेद रहा है उनमें से कुछ विद्वानों का विचार निम्नवत् हैं-

(1) वुडवर्थ (Woodworth) वुडवर्थ ने अधिगम को परिभाषित करते हुए लिखा है “किसी भी ऐसी प्रक्रिया को जो व्यक्ति के विकास में सहायक होती है और उसके वर्तमान व्यवहार एवं अनुभवों को जो कुछ वे हो सकते थे भिन्नता स्थापित करती है । सीखने की संज्ञा दी जा सकती है।”

(2) बर्नहटे के अनुसार-आपने पारिभाषित करते हुए लिखा है, “सीखना व्यक्ति के कार्यों में एक स्थायी परिवर्तन लाना हैं जो निश्चित परिस्थितियों में किसी उद्देश्य या लक्ष्य को प्राप्त करने अथवा किसी समस्या को सुलझाने के प्रयास में अभ्यास द्वारा किया जाता
है।”

(3) गेट्स (Gates) के अनुसार-‘गेट्स ने ‘Educational Psychoilogy’ पुस्तक में अधिगम को परिभाषित करते हुए लिखा है, “अनुभव के द्वारा व्यवहार में होने वाले परिवर्तन को सीखना कहते हैं।”

(4) एच. एल, किग्सले (H. L. Kingsle) के अनुसार-“अभ्यास तथा प्रशिक्षण के फलस्वरूप नवीन तरीके से व्यवहार करने अथवा व्यवहार में परिवर्तन लाने की प्रक्रिया को अधिगम कहते हैं।”

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उपरोक्त परिभाषाओं से स्पष्ट है कि अधिगम अथवा सीखने का अर्थ बालक के व्यवहार में उसका परिवर्तन करना है ।

न्यूनतम अधिगम स्तर का अर्थ

न्यून्तम अधिगम स्तर का सम्प्रत्यय ‘न्यूनतम अधिगम स्तर’ तीन शब्दों के योग से बना है । यदि तीनों का अर्थ अलग-अलग समझ लिया जाए तो उसका अभिप्राय  स्पष्ट हो जायेगा।

न्यूनतम –

न्यून्तम शब्द का अभिप्राय कौशलता के उस अंश से है जो किसी निश्चित कक्षा के विद्यार्थियों द्वारा निश्चित समय में अर्जित किया जाता है।

अधिगम –

अधिगम शब्द का अर्थ है सीखना अर्थात् बालक के व्यवहार से ऐसे परिवर्तन जिससे वह स्वयं को समाज में समायोजित कर सके।

स्तर–

स्तर शब्द का अभिप्राय उस स्थिति से है जिसमें बालक निश्चित समय में उपलब्धि प्राप्त करना है। अर्थात् कक्षा 6 में पढ़ने वाला छात्र का स्तर कक्षा 6 के पाठ्यक्रम को तैयार करना या उसमें निपुण होना ।

उपरोक्त तीनों शब्दों की व्याख्या से यह स्पष्ट हो जाता है कि न्यूनतम शैक्षिक अधिगम स्तर क्या है।

न्यूनतम अधिगम स्तर की परिभाषा

‘न्यूनतम अधिगम स्तर एक ऐसी प्रक्रिया है जिसमें यह निर्धारित किया जाता है कि बच्चे को अमुक या किसी निश्चित स्तर पर कम-से-कम कितना सीखना चाहिए।”

उपरोक्त परिभाषा स्पष्टीकरण एक उदाहरण के द्वारा स्पष्ट किया जा सकता है।

उदाहरण-राजू कक्षा 8 का छात्र है और इसके लिए बोर्ड द्वारा यह निश्चित किया गया है कि कम-से-कम 33% अंक प्राप्त करने वाला छात्र उत्तीर्ण होगा। तो उस बालक के द्वारा सत्र में मेहनत करके 8वीं के स्तर को पास करने के लिए 33% अंक प्राप्त करना अनिवार्य होगा। यही न्यूनतम अधिगम स्तर कहलायेगा।

वर्तमान समय में यह देखा जा रहा है कि अधिगम का न्यूनतम स्तर
गिरता ही जा रहा है । छात्रों में पढ़ने के प्रति रुचि का अभाव के परिणामस्वरूप कक्षाओं में उस गुणात्मक सुधार की सम्भावना आती जा रही है । कहीं-कहीं विद्यालयों में अधिगम स्तर ऊँचा है

और कहीं-कहीं अधिगम स्तर निम्न है उसका क्या कारण है ? इसीलिए चाहिए कि सभी के लिए समानता को ध्यान में रखकर एक स्तर को निर्धारित किया जाएँ, जिससे अपव्यय एवं अवरोधन जैसी ज्वलन्त समस्याओं का समाधान आसान से हो जाए।

न्यूनतम अधिगम की आवश्यकता

न्यून्तम अधिगम स्तर की आवश्यकता निम्न कारणों से हुई है


(1) अपव्यय एवं अवरोधन–

प्राथमिक स्तर की अपव्यय एवं अवरोधन की समस्या अंग्रेजों के समय से चली आ रही है । अधिकांशतः यह देखा जाता है कि प्राथमिक स्तर पर छात्र एक कक्षा में फेल होने के कारण या तो विद्यालय छोड़ देते हैं या फिर एक पुरानी कक्षा की ही शोभा बढ़ाते रहते हैं । इस समस्या के उन्मूलन के विषय में हर्टोग समिति ने जोरदार विरोध करते हुए इसके समाधान प्रस्तुत किये । लेकिन यह समस्या आज भी बनी हुई है अत: इस समस्या से छुटकारा पाने हेतु आवश्यक है कि शिक्षा में छात्रों के लिए न्यूनतम अधिगम स्तर का निर्माण किया जाए ।

(2) छात्रों के स्तर में अन्तर-

न्यूनतम अधिगम स्तर की आवश्यकता छात्रों के स्तर में अन्तर पाये जाने के कारण भी स्वीकार की जा रही है। एक विद्यालय से दूसरे विद्यालय, एक जिले से दूसरे जिले तथा एक प्रदेश से दूसरे प्रदेश के शैक्षिक स्तरों में अन्तर पाया जाता है । अत: जिस प्रकार शैक्षिक अवसरों में समानता का अधिकार है।
उसी प्रकार शिक्षा के न्यूनतम अधिगम स्तर में समानता होनी चाहिए जिसके परिणामस्वरूप छात्रों के स्तर तथा उत्तीर्ण होने की संख्या में वृद्धि की जा सकती है ।

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(3) शिक्षा का गिरता हुआ स्तर–

जब तक शिक्षा के प्रत्येक क्षेत्र में न्यूनतम अधिगम स्तर लागू नहीं होगा तथा शिक्षा के गिरते हुए स्तर में सुधार सम्भव नहीं है।
प्राथमिक स्तर के बालक को किस स्तर पर किन उद्देश्यों को प्राप्त करना, कैसे प्राप्त किया जाना इसका निर्धारण आवश्यक है इसलिए न्यूनतम शैक्षिक अधिगम स्तर होना चाहिए।
उपरोक्त समस्या को ध्यान में रखकर 1986 की शिक्षा नीति में क्रियान्वयन योजना में इस बात को रखा गया कि प्रत्येक स्तर पर छात्रों के लिए अधिगम स्तर निर्धारित किये जाएँ तथा उस स्तर पर उस योग्यता को प्राप्त करने के लिए पूर्ण प्रयास करना चाहिए, इसके
लिए इस तथ्य का निरीक्षण करना भी आवश्यक है कि हमारे द्वारा निर्धारित जो न्यूनतम स्तर तैयार किया है उसे छात्र पा रहे हैं या नहीं। यदि नहीं तो उनके कारणों का पता स्तर पर लगाकर उन्हें दूर कर उनका समाधान करना परम आवश्यक है।

न्यूनतम अधिगम स्तर लागू करते समय ध्यान देने योग्य बातें-


न्यूनतम अधिगम स्तर लागू करते समय निम्न बातों को ध्यान में रखना चाहिए-

(1) छात्रों की आयु।
(2) छात्रों की कक्षा का स्तर ।
(3) छात्रों की भौगोलिक परिस्थितियाँ ।
(4) छात्रों का मनोवैज्ञानिक स्तर ।
(5) विश्व में इस स्तर के अन्य देशों का स्तर ।
(6) छात्रों के मानसिक विकास के अनुरूप ।
(7) छात्रों की परिस्थितियों, साधन एवं सुविधाओं के अनुसार ।
(8) छात्रों के लिए निश्चित स्तर का निर्धारित उद्देश्य ।
(9) निर्धारित उद्देश्यों का मूल्यांकन एवं निरीक्षण ।
(10) अप्राप्त उद्देश्य मिलने पर उनका समाधान प्रस्तुत करना ।

न्यूनतम अधिगम स्तर प्राप्त करने हेतु शिक्षण व्यवस्था में सुधार

न्यूनतम अधिगम स्तर पर लक्ष्य हेतु शिक्षण तथा शिक्षण
व्यवस्था में सुधार न्यूनतम अधिगम स्तर के लक्ष्य को प्राप्त करने हेतु शिक्षण तथा शिक्षण व्यवस्था में निम्नलिखित सुधार करने चाहिए-

(1) अध्यापक की भूमिका (Role of Teacher)

न्यूनतम अधिगम स्तर पर निर्धारित लक्ष्यों को प्राप्त करने में अध्यापक की अहम् भूमिका है । बच्चों के समक्ष अध्यापक आदर्शमय व्यक्तित्व उपस्थित रहते हैं और छात्र भी उस पर पूर्ण आस्था रखते हैं तथा उनके कथन को बिना किसी तर्क के स्वीकार कर लेते हैं। ऑनीडॉन ने अध्यापक को
अपनी पूर्ण भूमिका निभाने हेतु निम्नलिखित गुण दर्शाये हैं-

(i) बच्चों के भावों को पहचानना ।
(ii) उपयुक्त शिक्षण विधियों का प्रयोग करना ।
(iii) प्रशंसा तथा उत्साह का संचार करना।
(iv) बच्चों के विचारों को स्वीकार करना ।
(v) उत्तम निर्देशन प्रदान करना ।
(vi) छात्रों को स्व-मूल्यांकन हेतु प्रेरित करना ।
(vii) छात्रों में उत्तरदायित्व की भावना का विकास करना।
(viii) छात्रों के स्तर के अनुरूप तथा रुचियों के अनुसार ज्ञान प्रदान करना ।

(2) पाठ्यक्रम में सुधार (Improvement in Curriculum)

शिक्षा के स्तर को निर्धारित करने हेतु यह आवश्यक है कि प्रत्येक स्तर के पाठ्यक्रम को उसके निर्धारित बिन्दुओं के अनुसार तैयार करना चाहिए तथा पाठ्यक्रम में निर्धारित लक्ष्यों के अनुरूप पाठ्यक्रम में तत्त्वों का समावेश करना चाहिए। जिससे प्रत्येक स्तर पर न्यूनतम अधिगम के स्तर को प्राप्त किया जा सके।

(3) अधिगम स्तर का निर्धारण

शिक्षण में एकरूपता एवं समानता लाने के लिए प्रत्येक स्तर पर अधिगम के स्तरों का निर्माण किया जाए जिन्हें अध्यापक द्वारा निश्चित कक्षा के विद्यार्थियों को निश्चित समय में निश्चित ज्ञान प्रदान किया जाए तथा छात्र एक निश्चित स्तर पर एक निर्धारित योग्यता को प्राप्त कर सकेंगे।

(4) परीक्षा प्रणाली में सुधार

परीक्षा प्रणाली में सुधार की परम आवश्यकता है क्योंकि 5 प्रश्न पूछ लेना परीक्षा का उपयुक्त साधन नहीं है । परीक्षा विधि इस प्रकार की हो जिससे बालक के द्वारा प्राप्त ज्ञान का समुचित रूप से परीक्षण किया जा सके तथा तथ्यात्मक बिन्दुओं का परीक्षण हो सके । इसके लिए प्राचीन चली आ रही शिक्षा प्रणाली उपयुक्त नहीं है। यदि परीक्षा में निबन्धात्मक, वस्तुनिष्ठ, लघु प्रश्न, अति लघु प्रश्नों का संकलन हो तो अधिक उपयुक्त होगा।

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(5) शिक्षा के गुणात्मक सुधार

वर्तमान समय में शिक्षा के विकास की दृष्टि से बहुत खोज हुई है जिनमें वही शिक्षण तकनीकी का विकास हुआ जिसमें शिक्षण की प्रकृतिक, स्वरूप, शिक्षण विधि तथा परीक्षाओं का आमूलचूल परिवर्तन किया है। इससे स्वरूप से बच्चों में गुणात्मक सुधार का अभाव ही रहेगा। ही शिक्षा की स्थिति में गुणात्मक सुधार हो सकता है।

(6) लक्ष्य का चुनाव

बच्चों पर किये अनेकों अध्ययनों से स्पष्ट होता है कि छात्रों को कुछ सिखाने से पूर्व शिक्षण लक्ष्य निर्धारित करना आवश्यक है । अत: शक्षण जन्य चयनित उद्देश्य छात्रों के स्तर के अनुरूप ही होने चाहिए ऐसी परिस्थिति में ही बालक में प्रभावी बनाया जा सकता है। न्यूनतम अधिगम स्तर पर निर्धारित लक्ष्यों को प्राप्त करके ही न्यूनतम अधिगम स्तर को पूरा किया जा सकता है।

(7) भाषा ज्ञान में वृद्धि

ज्ञान प्राप्त करने के लिए तथा प्राप्त ज्ञान के भाव को महात्मा गाँधी ने लिखा है प्रकाशित करने के लिए मातृभाषा का ज्ञान आवश्यक है । मातृभाषा के ज्ञान के विषय में ‘बालक का विकास मातृभाषा के माध्यम से उपयुक्त होता है अन्य भाषा का बोझ नहीं लादना चाहिए।” अतः अध्यापकों को चाहिए कि छात्रों को व्यावहारिक ज्ञान व्यावहारिक भाषा के माध्यम से दें जिससे कक्षा में अधिगम प्रक्रिया सुचारु रूप से स्थापित हो सके।

(8) शिक्षण विधियों में सुधार

शिक्षक का पुरानी और घिसी-पिटी शिक्षण विधियों का प्रयोग करने से छात्रों के मानसिक विकास का संकुचन हो जाता है । इसलिए व्यावहारिक शिक्षण विधियों को प्रयोग करें जिससे बालक निर्धारित उद्देश्यों को आसानी से प्राप्त कर सके तथा व्यवहार ज्ञान प्राप्त करे उसके लिए अध्यापक को चाहिए कि वह क्रियात्मक, प्रोजेक्ट विधि, प्रयोगशाला पद्धति का प्रयोग करे ।

(9) सफलता के उपायों का सुझाव–

छात्रों को जीवन में सफलता प्राप्त करने के लिए कठिन परिश्रम, उपयुक्त प्रतिद्वन्दिता और सरकारी भाषा का विकास करना चाहिए। यही वे तथ्य हैं जिनसे बालक या मनुष्य श्रेष्ठ बन जाता है । कक्षा के कार्यों में, पाठ्य सहगामी क्रियाओं में तथा सामाजिक क्रियाकलापों में यदि उपरोक्त तथ्यों का पालन शिक्षक द्वारा कराया जाए तो बालक निश्चित ही अपने निर्धारित उद्देश्यों को प्राप्त करने में सम्पन्न होगा।

(10) अनुशासनशीलता

शिक्षण में अनुशासन की अहम् भूमिका होती है इसके अभाव में कक्षा में शिक्षण कार्य सम्भव नहीं है तथा निर्धारित उद्देश्य भी प्राप्त नहीं हो सकते । इसीलिए अध्यापक को कक्षा में अनुशासन बनाये रखना चाहिए जिससे न्यूनतम अधिगम स्तर को प्राप्त कराने में सफलता हासिल कर सके। उपरोक्त बिन्दुओं का यदि शिक्षण में प्रयोग किया जाता है तो निश्चित ही न्यूनतम अधिगम स्तर के लक्ष्यों को प्राप्त किया जा सकता है ।


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