रासायनिक बंधों के प्रकार / types of chemical bonds in hindi

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रासायनिक बंधों के प्रकार / types of chemical bonds in hindi

रासायनिक बंधों के प्रकार / types of chemical bonds in hindi
रासायनिक बंधों के प्रकार / types of chemical bonds in hindi

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प्रकृति में स्थित प्रत्येक कण स्थायित्व को अर्थात् न्यूनतम ऊर्जा की स्थिति को प्राप्त करने का प्रयास करता है, इसी प्रकार परमाणु भी स्थायित्व प्राप्त करने के लिए परस्पर संयोग करके अणुओं का निर्माण करते हैं। परमाणुओं का संयोग उनके मध्य इलेक्ट्रॉनों के पुनर्वितरण द्वारा ही सम्भव है। इलेक्ट्रॉनों के पुनर्वितरित होने के कारण परमाणुओं के मध्य कुछ बल कार्य करने लगते हैं, जो उन्हें परस्पर बाँधे रखते हैं। ये बल ही रासायनिक बन्ध कहलाते हैं।
किसी यौगिक के अणु में विभिन्न परमाणु जिन बलों द्वारा परस्पर बँधे होते हैं, वे बल रासायनिक बन्ध कहलाते हैं।

संयोजकता की परिभाषा / what is Valency

तत्वों की परस्पर बँधने की क्षमता को संयोजकता के रूप में प्रदर्शित किया जाता है। वास्तव में, वैलेन्सी (Valency) शब्द की उत्पत्ति लैटिन शब्द वैलेन्टिया (Valentia) से हुई थी, जिसका अर्थ है ‘क्षमता’ या सामर्थ्य। इस शब्द का प्रयोग सर्वप्रथम फ्रैंकलैण्ड ने 1852 में तत्वों की संयोजन क्षमता को एक संख्या के रूप में व्यक्त करने हेतु किया था। उन्होंने हाइड्रोजन की संयोजकता एक मानकर इसके आधार पर संयोजकता को निम्न प्रकार परिभाषित किया । किसी तत्व की संयोजकता हाइड्रोजन परमाणुओं की वह संख्या है, जो उस तत्व के एक परमाणु से संयोग करती है।

उदाहरण- H2O में ऑक्सीजन (O) की संयोजकता दो है, क्योंकि एक O परमाणु दो H परमाणुओं के साथ संयोग कर रहा है। इसी प्रकार NH3, तथा CH4, में N तथा C की संयोजकताएँ क्रमश: 3 तथा 4 हैं। उत्कृष्ट गैसों (जिन्हें पहले अक्रिय गैसें कहा जाता था) की संयोजकता शून्य होती है, क्योंकि ये गैसें सामान्यतया रासायनिक आबन्ध निर्माण में भाग नहीं लेती हैं। इस सिद्धान्त के आधार पर CH4, C2H6 , C2H4 तथा C2H2, में कार्बन की संयोजकता क्रमशः 4,3,2, तथा 1 प्रतीत होती है अतः इस सिद्धान्त का परित्याग कर दिया गया, क्योंकि यह कार्बन की भिन्न संयोजकताओं को स्पष्ट करने में असफल रहा।

संयोजकता का इलेक्ट्रॉनिक सिद्धान्त अष्टक नियम Electronic Theory of Valency : Octet Rule

इस सिद्धान्त को सन् 1916 में कॉसेल तथा लूईस ने प्रस्तावित किया एवं लैंगम्यूर ने 1919 में पूर्ण किया। चूँकि यह सिद्धान्त परमाणुओं के इलेक्ट्रॉनिक विन्यासों पर आधारित है, इसीलिए इसे संयोजकता का इलेक्ट्रॉनिक सिद्धान्त कहा गया। इस सिद्धान्त की मुख्य अवधारणाएँ निम्नलिखित हैं

(i) किसी भी तत्व की संयोजन क्षमता अर्थात् संयोजकता उसके बाह्यतम कोश में उपस्थित इलेक्ट्रानों की संख्या पर निर्भर करती है। बाह्यतम कोश संयोजी कोश (Valence shell) भी कहलाता है, अत: इसमें उपस्थित इलेक्ट्रॉन संयोजी इलेक्ट्रॉन (Valence electrons) कहलाते हैं।

(ii) उत्कृष्ट (अक्रिय) गैसें लगभग निष्क्रिय होती हैं, क्योंकि इनके बाह्यतम कोश में 8 इलेक्ट्रॉन (He को छोड़कर जिसके बाह्यतम कोश में 2 इलेक्ट्रॉन होते हैं) होते हैं, जोकि एक स्थायी व्यवस्था है।

तत्व    संकेत  परमाणु क्रमांक अक्रिय गैसों का इलेक्ट्रॉनिक विन्यास
हीलियम  He       2                           2
निऑन    Ne      10                          2,8
आर्गन     Ar       18                          2, 8, 8
क्रिप्टॉन    Kr       36                        2, 8, 18, 8
जिनॉन     Xe       54                        2, 8, 18, 18, 8
रेडॉन       Rn        86                        2, 8, 18, 32, 18, 8

(iii) जिन तत्वों के बाह्यतम कोश में इलेक्ट्रॉनों की संख्या 8 से कम होती है, वे इलेक्ट्रॉनों के आदान-प्रदान या साझे द्वारा अपना अष्टक पूर्ण करके निकटतम् उत्कृष्ट गैस का विन्यास प्राप्त कर लेने की क्षमता रखते हैं। यही अष्टक नियम (Octet rule) कहलाता है।

(iv) परमाणु अपना अष्टक निम्न विधियों द्वारा पूर्ण कर सकते हैं।
(a) इलेक्ट्रॉनों के आदान-प्रदान द्वारा (वैद्युत संयोजक बन्ध)
(b) इलेक्ट्रॉनों की बराबर साझेदारी द्वारा (सहसंयोजक बन्ध)
(c) इलेक्ट्रॉनों की एकतरफा साझेदारी द्वारा (उप-सहसंयोजक बन्ध)

(v) अष्टक पूर्ण करने के लिए कोई भी परमाणु जितने इलेक्ट्रॉनों का
आदान-प्रदान या साझा करता है, वह उसकी संयोजकता (अर्थात् वैद्युत संयोजकता, सहसंयोजकता या उप सहसंयोजकता) कहलाती है। उदाहरण – सोडियम (11 Na) का इलेक्ट्रॉनिक विन्यास 2,8,1 है, अत: अपना अष्टक पूर्ण करने के लिए यह एक इलेक्ट्रॉन देकर 28 विन्यास प्राप्त कर लेगा। इस कारण इसकी वैद्युतसंयोजकता 1 है। इसी प्रकार, कार्बन (C) का इलेक्ट्रॉनिक विन्यास 2,4 है, अत: यह इलेक्ट्रॉन लेने या देने की अपेक्षा शीघ्रता से चार इलेक्ट्रॉनों की साझेदारी करके अपना अष्टक पूर्ण कर लेगा। इसी कारण इसकी सहसंयोजकता 4 है।

उदाहरण – एक तत्व का इलेक्ट्रॉनिक विन्यास 2, 8, 8, 2 है। इसकी
संयोजकता क्या है?

हल – चूँकि इस तत्व के बाह्यतम् कक्ष में इलेक्ट्रॉनों की संख्या 2 है, अत: यह अपना अष्टक पूर्ण करने के लिए इन दोनों इलेक्ट्रॉनों का त्याग कर देगा। जिस कारण इसकी विद्युत संयोजकता 2 है।

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उदाहरण –एक तत्व का इलेक्ट्रॉनिक विन्यास 2, 6 है। इसकी संयोजकता बताइए।
हल – तत्व के संयोजी कोश (बाह्यतम् कोश) में इलेक्ट्रॉनों की संख्या 6 है, अत: अपना अष्टक पूर्ण करने के लिए यह 2 इलेक्ट्रॉन ग्रहण करेगा। जिस कारण इसकी संयोजकता 2 है।

संयोजकता के आधार पर रासायनिक बन्ध के प्रकार
Types of Chemical Bonds on the Basis of Valency

संयोजकता के आधार पर रासायनिक बन्ध निम्न प्रकार के होते हैं।

(1) विद्युत संयोजक बन्ध या आयनिक बन्ध (Electrovalent Bond or lonic Bond)
(2) सहसंयोजक बन्ध (Covalent Bond)
(3) उप-सहसंयोजक बन्ध  (Co-ordinate Bond)

आयनिक बन्ध या विद्युत संयोजक बन्ध (lonic Bond or Electrovalent Bond)

वे बन्ध जो असमान तत्वों के मध्य इलेक्ट्रॉनों के स्थानान्तरण (आदान-प्रदान) द्वारा बनते हैं, आयनिक बन्ध या विद्युत संयोजक बन्ध कहलाते हैं। परमाणुओं के मध्य इलेक्ट्रॉनों का स्थानान्तरण होने पर उनमें से एक परमाणु एक या अधिक इलेक्ट्रॉनों का त्याग करके धनायन में परिवर्तित हो जाता है तथा अन्य परमाणु इन इलेक्ट्रॉनों को ग्रहण करके ऋणायन (Anion) बना लेता है। धनायन तथा ऋणायन (विपरीत आवेशित आयनों) के मध्य लगने वाले विद्युत आकर्षण बल (स्थिर विद्युत बल) को ही आयनिक बन्ध कहते हैं। उदाहरण-

1. सोडियम क्लोराइड (Nacl) के अणु का बनना
Formation of Sodium Chloride (NaCl) Molecules

Na (सोडियम) वCI (क्लोरीन) का इलेक्ट्रॉनिक विन्यास निम्न है
Na(11) = 2,8,1;
Cl (17) = 2,8,7
Na के अंतिम कोश में 1 इलेक्ट्रॉन है, वह इस इलेक्ट्रॉन का त्याग करके Na+ आयन में परिवर्तित हो जाता है जिसका इलेक्ट्रॉनिक विन्यास 2,8 है, जो अक्रिय गैस निऑन के समान है। क्लोरीन परमाणु, Na द्वारा त्यागे गये इलेक्ट्रॉन को ग्रहण करके CI- आयन में परिवर्तित हो जाता है, जिसका इलेक्ट्रॉनिक विन्यास 2,8,8 है, जो अक्रिय गैस आर्गन के समान है। ये Na तथा CI– आयन परस्पर स्थिर वैद्युत आकर्षण बलों द्वारा बँधकर NaCl अणु का निर्माण करते हैं।

2. कैल्सियम क्लोराइड (CaCl2) के अणु का बनना
Formation of Calcium Chloride (CaCl 2) Molecules

कैल्सियम और क्लोरीन परमाणु के इलेक्ट्रॉनिक विन्यास निम्न हैं
Ca (20) = 2, 8, 8, 2
Cl (17) = 2, 8, 7
कैल्सियम (Ca) परमाणु के बाह्यतम कोश में 2 इलेक्ट्रॉन हैं। यह दोनों इलेक्ट्रॉनों को त्यागकर Ca++ आयन में परिवर्तित हो जाता है। Ca++ का इलेक्ट्रॉनिक विन्यास 2, 8, 8 है, जो अक्रिय गैस आर्गन के समान है। प्रत्येक क्लोरीन परमाणु अपने बाह्य कोश में एक-एक इलेक्ट्रॉन ग्रहण करके CI- आयन में परिवर्तित हो जाता है। क्लोराइड आयन (Cl-) का इलेक्ट्रॉनिक विन्यास 2,8, 8 है, जो अक्रिय गैस आर्गन के समान है। ये (Ca++ तथा 2 CI-) आयन परस्पर स्थित विद्युत बलों द्वारा जुड़े रहते हैं। ये बल ही विद्युत संयोजक बन्ध कहलाते हैं।

विद्युत संयोजक बन्ध का निर्माण
(Formation of Electrovalent Bond)

इसका निर्माण केवल निम्न युग्मों के मध्य सम्भव हैं
(i) प्रबल धनविद्युती तत्व (जैसे सोडियम, पोटैशियम, मैग्नीशियम, कैल्सियम आदि) तथा प्रबल ऋण विद्युती तत्व (जैसे क्लोरीन, ऑक्सीजन, सल्फर आदि) के मध्य ।
(ii) धातु तथा अधातु के मध्य
(ii) विद्युत ऋणात्मकताओं में अधिक अन्तर रखने वाले तत्वों के मध्य
(iv) धातु के बाह्य कोश में 1,2 या कभी-कभी तीन इलेक्ट्रॉन होने पर तथा अधातु के बाह्य कोश में 5,6 या 7 इलेक्ट्रॉन होने पर।

विद्युत संयोजकता Electrovalency

अपना अष्टक पूर्ण करने अर्थात् यौगिक बनाने के लिए परमाणु द्वारा त्यागे गये या ग्रहण किये गये इलेक्ट्रॉनों की संख्या को उस तत्व की विद्युत संयोजकता कहते हैं। अतः उपरोक्त उदाहरण (ii) में Ca की विद्युत संयोजकता 2 तथा CI की विद्युत संयोजकता 1 है।

विद्युत संयोजक यौगिक Electrovalent Compounds

वे यौगिक जिनमें आयनिक बन्ध पाया जाता है, विद्युत संयोजक या आयनिक यौगिक कहलाते हैं। उदाहरण- MgCl2, KCl तथा NaCl आयनिक यौगिक हैं, क्योंकि ये आयनों के योग से मिलकर बनते हैं।

विद्युत संयोजक यौगिकों की विशेषताएँ
Characteristics of Electrovalent or lonic Compounds

विद्युत संयोजक या आयनिक यौगिकों की विशेषताएँ निम्नलिखित हैं

(i) क्रिस्टलीय प्रकृति (Crystalline Nature) – आयनिक या विद्युत संयोजी यौगिक धनावेशित तथा ऋणावेशित आयनों के परस्पर प्रबल स्थिर वैद्युत आकर्षण बलों द्वारा बँधने पर निर्मित होते हैं, जिस कारण ये एक निश्चित क्रम में व्यवस्थित होते हैं। फलस्वरूप ये ठोस अवस्था में पाये जाते हैं व इनकी प्रकृति क्रिस्टलीय होती है।

(ii) गलनांक एवं क्वथनांक (Melting and Boiling Points)– प्रबल स्थिर वैद्युत आकर्षण बलों की उपस्थिति के कारण इनके गलनांक एवं क्वथनांक उच्च होते हैं, क्योंकि इन बलों को तोड़ने हेतु अधिक ऊर्जा की आवश्यकता होती है।

(iii) विलेयता (Solubility) – विद्युत संयोजी यौगिक जल व ध्रुवीय विलायकों में विलेय होते हैं जबकि अध्रुवीय विलायकों (कार्बनिक विलायकों) में अविलेय होते हैं। ध्रुवीय विलायक या जल के सहसंयोजक अणु आयनिक यौगिक के आयनों पर आकर्षण बल आरोपित करते हैं। विलायक के अणुओं का ऋणावेशित सिरा यौगिक के धनायनों (Cations) को व धनावेशित सिरा यौगिक के ऋणायनों (Anions) को आकर्षित करके मुक्त हुई ऊर्जा अर्थात् जलयोजन ऊर्जा (Hydration energy) के द्वारा उन्हें तोड़ देता है तथा विद्युत संयोजक यौगिक जल में विलेय हो जाते हैं। अध्रुवीय विलायकों की स्थिति में उनके अणु आयनों को आकर्षित नहीं करते हैं अतः वे विद्युत संयोजी बल को नहीं तोड़ पाते हैं। जिस कारण आयनिक यौगिक, अध्रुवीय विलायकों जैसे कार्बनिक विलायकों (ऐसीटोन, बेन्जीन आदि) में अविलेय होते हैं।

(iv) विद्युत चालकता (Electrical Conductivity) – आयनिक यौगिक ठोस अवस्था में विद्युत चालक नहीं होते हैं, क्योंकि ये प्रबल स्थिर विद्युत बलों द्वारा बन्धे रहते हैं अतः इनमें विद्युत का चालन करने के लिए मुक्त आयन नहीं हो जाते हैं। गलित अवस्था या जलीय विलयन में आयनिक यौगिकों के आयन मुक्त हो जाते हैं, इन मुक्त आयनों की उपस्थिति के कारण गलित अवस्था या जलीय विलयन में आयनिक यौगिक विद्युत के चालक हो जाते हैं।

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(v) अदिशात्मक गुण (Non-directional Property) – विद्युत संयोजक बन्ध अदिशात्मक होता है, जिस कारण विद्युत संयोजक यौगिकों की कोई निश्चित ज्यामिति नहीं होती अर्थात् अणु संरचना नहीं होती।

(vi) रासायनिक क्रियाएँ (Chemical Reactions) – जलीय विलयन में विद्युत संयोजक यौगिक मुक्त आयन देते हैं, जिस कारण इनकी रासायनिक क्रियाएँ आयनिक होती हैं तथा तीव्र वेग से सम्पन्न होती हैं।

(vii) भंगुरता एवं घनत्व (Brittleness and Density) – सामान्यतः विद्युत संयोजी यौगिक बहुत अधिक भंगुर होते हैं व इनके घनत्व भी उच्च होते हैं।

सहसंयोजक बन्ध Covalent Bond

परमाणुओं के मध्य इलेक्ट्रॉनों की साझेदारी से बने बन्ध को सहसंयोजक बन्ध कहते हैं। सहसंयोजक बन्ध बनाने वाले परमाणुओं में से प्रत्येक परमाणु इलेक्ट्रॉन देता है तथा यह इलेक्ट्रॉन दोनों परमाणुओं के मध्य इस प्रकार स्थित होता है कि इस पर दोनों परमाणुओं का समान अधिकार होता है। सहसंयोजक बन्ध बनाने वाले परमाणु, इलेक्ट्रॉनों का साझा इस प्रकार करते हैं कि उनके बाह्य कोश में 8 इलेक्ट्रॉन हो जाएँ। सहसंयोजक बन्ध के आधार पर हाइड्रोजन (H), क्लोरीन (Cl,) आदि के अणुओं के निर्मित होने तथा मेथेन (CH,), एथेन (C2Hg) आदि कार्बनिक यौगिकों की संरचना को स्पष्ट किया जा सकता है।

सहसंयोजक बन्ध का निर्माण
Formation of Covalent Bond

इसके लिए अनुकूल परिस्थितियाँ निम्नलिखित हैं
(i) संयोग करने वाले परमाणुओं की ऋणविद्युतता में लगभग नगण्य या बहुत कम अन्तर होना चाहिए।
(ii) संयोग करने वाले दोनों परमाणु अधातुओं के होने चाहिए।
(iii) समान तत्व के परमाणु होने पर सदैव सहसंयोजक बन्ध बनता है।
(iv) हाइड्रोजन सामान्य तथा सहसंयोजक यौगिक बनाता है।
(v) 3 या 3 से अधिक संयोजकता दर्शाने वाले तत्वों के यौगिक भी
सामान्यतः सहसंयोजक होते हैं।

सहसंयोजकता Covalency

एक अणु के निर्माण में किसी तत्व के एक परमाणु द्वारा साझे में दिए गए इलेक्ट्रॉनों की संख्या को उस तत्व की सहसंयोजकता कहते हैं।
उदाहरण- हाइड्रोजन गैस (H2) में प्रत्येक हाइड्रोजन परमाणु (H) की सहसंयोजकता 1 है, क्योंकि प्रत्येक हाइड्रोजन परमाणु 1 इलेक्ट्रॉन का साझा करता है। (निकटतम अक्रिय गैस, हीलियम का विन्यास प्राप्त करने के लिए)। दूसरे शब्दों में, किसी तत्व के दो परमाणुओं के मध्य बनाए गए सहसंयोजक बन्धों की कुल संख्या को उस तत्व की सहसंयोजकता कहते हैं। उदाहरण- मेथेन (CH4) में कार्बन, हाइड्रोजन के साथ चार सहसंयोजक बन्ध बनाता है। अतः कार्बन की सहसंयोजकता 4 है।

एकल, द्विक तथा त्रिक सहसंयोजक बन्ध
Single, Double and Triple Covalent Bonds

एकल सहसंयोजक बन्ध (Single Covalent Bond)
जब दो परमाणुओं के मध्य एक-एक इलेक्ट्रॉनों का साझा होता है, तब उनके मध्य एकल सहसंयोजक बन्ध बनता है। इसे (-) से प्रदर्शित करते हैं।
उदाहरण- हाइड्रोजन (H2) अणु का निर्माण हाइड्रोजन का परमाणु क्रमांक 1 है, अतः इसकी बाह्यतम् कक्षा में 1 इलेक्ट्रॉन उपस्थित है। स्थायी विन्यास (बाह्यतम् कक्षा में 2 इलेक्ट्रॉन) प्राप्त करने के लिये इसे एक और इलेक्ट्रॉन की आवश्यकता होती है, अतः हाइड्रोजन के दो परमाणु 1-1 इलेक्ट्रॉन का साझा करके हाइड्रोजन अणु का निर्माण करते हैं। एक इलेक्ट्रॉन युग्म की साझेदारी के कारण हाइड्रोजन अणु में एकल सहसंयोजक बन्ध बनता है।

द्वि सहसंयोजक बन्ध (Double Covalent Bond)

जब दो परमाणुओं के मध्य युग्मित इलेक्ट्रॉनों का साझा होता है, तब उनके मध्य द्वि सहसंयोजक बन्ध बनता है। इसे (=) से प्रदर्शित करते हैं।
उदाहरण- ऑक्सीजन (O2) अणु का निर्माण
ऑक्सीजन का परमाणु क्रमांक 8 है व इसका इलेक्ट्रॉनिक विन्यास 2,6 है अर्थात् इसके बाह्यतम् कोश में 6 इलेक्ट्रॉन हैं। इसे अपनी निकटतम अक्रिय गैस निऑन (2.8) का इलेक्ट्रॉनिक विन्यास प्राप्त करने के लिये 2 इलेक्ट्रॉनों की आवश्यकता अतः ऑक्सीजन के दो परमाणु दो-दो इलेक्ट्रॉनों का साझा करके द्विबन्ध बनाकर ऑक्सीजन अणु (O2) का निर्माण करते हैं।

त्रि सहसंयोजक बन्ध (Triple Covalent Bond)

जब दो परमाणुओं के मध्य तीन इलेक्ट्रॉनों का साझा होता है, तब उनके मध्य त्रि सहसंयोजक बन्ध बनता है। इसे (≡) से प्रदर्शित करते हैं।
उदाहरण- नाइट्रोजन (N2) अणु का निर्माण
नाइट्रोजन का परमाणु क्रमांक 7 है, अत: इसका इलेक्ट्रॉनिक विन्यास 2,5 है अर्थात् इसके बाह्यतम् कोश में 5 इलेक्ट्रॉन हैं। इसे अपनी निकटतम अक्रिय गैस निऑन (2, 8) का इलेक्ट्रॉनिक विन्यास प्राप्त करने के लिये 3 इलेक्ट्रॉनों की आवश्यकता है। अतः नाइट्रोजन के दो परमाणु 3-3 इलेक्ट्रॉनों का साझा करके त्रिबन्ध बनाकर नाइट्रोजन अणु (N2) का निर्माण करते हैं।

सहसंयोजक बन्धों के प्रकार
Types of Covalent Bonds

धुव्रीयता के आधार पर सहसंयोजक बन्धों को दो भागों में वर्गीकृत किया गया है –

अध्रुवीय सहसंयोजक बन्ध (Non-polar Covalent Bond)

जब कोई सहसंयोजक बन्ध दो समान विद्युतऋणात्मकता वाले तत्वों के मध्य बनता है, तब साझे का इलेक्ट्रॉन युग्म दोनों परमाणुओं के ठीक मध्य में स्थित होता है तथा सहसंयोजी बन्ध में कोई आयनिक गुण नहीं होता है। इस प्रकार के सहसंयोजक बन्धों को अध्रुवीय सहसंयोजक बन्ध कहते हैं। उदाहरण- H2, N2, O2, Cl2, CH4 आदि।

ध्रुवीय सहसंयोजक बन्ध (Polar Covalent Bond)

जब कोई सहसंयोजक बन्ध विभिन्न विद्युतऋणात्मकताओं वाले तत्वों के मध्य बनता है, तब साझे का इलेक्ट्रॉन युग्म अधिक विद्युतऋणात्मक तत्व की ओर आकर्षित रहता है तथा इस कारण एक परमाणु पर आंशिक धनावेश एवं दूसरे परमाणु पर आंशिक ऋणावेश आ जाता है अर्थात् बन्ध में आयनिक लक्षण आ जाते हैं, इस प्रकार के सहसंयोजक बन्ध को ध्रुवीय सहसंयोजक बन्ध कहते हैं। उदाहरण- HCI, HF, H2O आदि।

नोट – कुछ ऐसे यौगिक भी होते हैं, जिनके अणु में सहसंयोजक एवं आयनिक दोनों प्रकार के बन्ध उपस्थित रहते हैं।
उदाहरण- NaOH, KOH, H2SO4, Na2CO3, आदि।

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सहसंयोजक यौगिक Covalent Compounds

वे यौगिक जिनमें सहसंयोजक बन्ध पाया जाता है, सहसंयोजक यौगिक कहलाते हैं। उदाहरण- मेथेन (CH,), क्लोरीन (Cl2), हाइड्रोजन क्लोराइड (HCI) आदि।

सहसंयोजक यौगिकों की विशेषताएँ
Characteristics of Covalent Compounds

सहसंयोजक यौगिक निम्नलिखित विशेषताएँ दर्शाते हैं –

भौतिक अवस्था (Physical State) – सहसंयोजक यौगिकों के अणुओं के मध्य दुर्बल वाडरवाल्स बलों की उपस्थिति के कारण ये सामान्यतः द्रव या गैसीय अवस्था में पाये जाते हैं। यद्यपि अणुभार उच्च होने पर ये ठोस अवस्था में भी पाये जा सकते हैं।

गलनांक एवं क्वथनांक (Melting and Boiling Points ) –
सहसंयोजक यौगिकों में अणु परस्पर दुर्बल वाण्डर वाल्स बलों (van der Waals’ forces) द्वारा जुड़े रहते हैं। इन दुर्बल वाण्डर वाल्स बलों की उपस्थिति के कारण इनके गलनांक एवं क्वथनांक कम होते हैं, क्योंकि इनको तोड़ने के लिए कम ऊर्जा की आवश्यकता होती है।

विद्युत चालन (Electrical Conductivity) – सहसंयोजक यौगिक द्रवित अवस्था या ठोस अवस्था में भी विद्युत के कुचालक होते हैं, क्योंकि इन अवस्थाओं में भी ये आयन उत्पन्न नहीं करते हैं।

नोट –  HCI एक सहसंयोजी यौगिक है, लेकिन जलीय माध्यम में आयनों में पृथक्करण के कारण यह जल में घुल जाता है, अतः यह जलीय विलयन में विद्युत का संचालन कर सकता है, परन्तु ग्रेफाइट मुक्त इलेक्ट्रॉनों की उपस्थिति के कारण विद्युत का सुचालक (Conductor) होता है, अत: यह जलीय विलयन में विद्युत का संचालन नहीं कर सकता है।

बन्धों की प्रकृति (Nature of Bonds) – सहसंयोजक बन्ध की दिशात्मक प्रकृति के कारण ये यौगिक एक विशेष प्रकार की ज्यामितीय आकृति (Geometrical shape) रखते हैं तथा समावयवता प्रदर्शित करते हैं।

रासायनिक अभिक्रियाएँ (Chemical Reactions) – आयनों की अनुपस्थिति के कारण सहसंयोजक यौगिकों की अभिक्रियाओं में अणु भाग लेते हैं, अत: इनकी अभिक्रियाएँ आण्विक अभिक्रियाएँ कहलाती हैं तथा ये जटिल एवं धीमी होती हैं।

विलेयता (Solubility) – सहसंयोजी यौगिक प्रायः जल व अन्य धुव्रीय विलायकों में अविलेय होते हैं जबकि ये अध्रुवीय विलायकों (जैसे कार्बनिक विलायकों) में प्राय: विलेय होते हैं।

उप-सहसंयोजक बन्ध Co-ordinate Bond

दो परमाणुओं के मध्य यदि एक इलेक्ट्रॉन युग्म की साझेदारी द्वारा एक रासायनिक बन्ध का निर्माण इस प्रकार हो कि साझे के दोनों इलेक्ट्रॉन उनमें से किसी एक परमाणु द्वारा दिए जाएँ, तो इस प्रकार के बन्ध को उप-सहसंयोजक बन्ध कहते हैं। इसे डेटिव बन्ध (Dative bond) या अर्द्धध्रुवीय (Semipolar) बन्ध भी कहते हैं। इस बन्ध की रचना में इलेक्ट्रॉन युग्म प्रदान करने वाले परमाणु को ‘दाता’ तथा ग्रहण करने वाले परमाणु को ‘ग्राही’ कहते हैं। उप-सहसंयोजक बन्ध को एक तीर  से दर्शाते हैं, जिसकी दिशा दाता से ग्राही की ओर होती है। इलेक्ट्रॉन युग्म प्रदान करने वाले दाता पर आंशिक धनात्मक (6) आवेश तथा इलेक्ट्रॉन ग्रहण करने वाले ग्राही पर आंशिक ऋणात्मक (6) आवेश स्थापित हो जाता है। यदि A दाता परमाणु तथा B ग्राही परमाणु है, तो उनके मध्य का उप-सहसंयोजक बन्ध निम्न रूप में प्रदर्शित किया जाता है।

उदाहरण- अमोनियम आयन (NH4+) का बनना
अमोनियम आयन में अमोनिया (NH) व प्रोटॉन (H+) के मध्य एक उप-सहसंयोजी बन्ध है। NH  में N के पास एकाकी युग्म है जबकि H के पास कोई इलेक्ट्रॉन नहीं है। अत: इसे स्थायी इलेक्ट्रॉनिक विन्यास प्राप्त करने के लिए 2 इलेक्ट्रॉनों की आवश्यकता होती है, जो इसे N परमाणु अपना एकाकी युग्म उपसंयोजी बन्ध द्वारा प्रदान करके पूरा करता है।

उप-सहसंयोजकता Co-ordinate Valency

एक अणु के निर्माण में किसी तत्व के एक परमाणु द्वारा बनाए गए
उप-सहसंयोजक बन्धों की संख्या को उस तत्व की उप-सहसंयोजकता कहते हैं।

उप-सहसंयोजक यौगिक
Co-ordinate Compounds

वे यौगिक जिनमें सहसंयोजक के साथ-साथ एक या अधिक उप-सहसंयोजक बन्ध उपस्थित होते हैं, उप-सहसंयोजक यौगिक कहलाते हैं। उदाहरण- NH3, BF3. NH4+, आदि।

उप-सहसंयोजक यौगिकों की विशेषताएँ
Characteristics of Co-ordinate Compounds

उप-सहसंयोजक यौगिकों की विशेषताएँ निम्नलिखित हैं।

गलनांक एवं क्वथनांक (Melting and Boiling Points) – उप-सहसंयोजक यौगिकों के गलनांक एवं क्वथनांक सहसंयोजक यौगिकों से अधिक तथा आयनिक यौगिकों से कम होते हैं।

विलेयता (Solubility) – उपसहसंयोजक यौगिक अध्रुवीय विलायकों में विलेय होते हैं।

बन्धों की प्रकृति (Nature of Bonds) – उप-सहसंयोजक यौगिकों की दिशात्मक प्रकृति के कारण ये निश्चित ज्यामिति के होते हैं। उदाहरण- [Cu (NH3)4]2+ वर्ग समतल ज्यामिति

विद्युत चालकता (Electrical Conductivity) – उप-सहसंयोजक यौगिक प्रायः विद्युत के कुचालक होते हैं, क्योंकि ये जल में मुक्त आयन नहीं देते हैं।



                             ◆◆◆ निवेदन ◆◆◆

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