स्मृति का अर्थ एवं परिभाषाएं,स्मृति के अंग,प्रकार,विशेषतायें,स्मृति के नियम

दोस्तों आज आपको मनोविज्ञान का सबसे महत्वपूर्ण पाठ स्मृति का अर्थ एवं परिभाषाएं,स्मृति के अंग,प्रकार,विशेषतायें,स्मृति के नियम आदि की विस्तृत जानकारी प्रदान करेंगे।

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स्मृति का अर्थ एवं परिभाषाएं,स्मृति के अंग,प्रकार,विशेषतायें

स्मृति या स्मरण का अर्थ (meaning of memory/remembering)

हमारे कार्य,अनुभव या विषय वस्तु कुछ समय तक चेतन मन में रहते हैं किंतु बाद में वह अचेतन मन में चले जाते है,और हम उसे भूल जाते हैं।

इन अनुभव, विषय वस्तु, कार्य को अचेतन मन में संचित रखने और आवश्यकता पड़ने पर चेतन मन में लाने की प्रक्रिया को स्मृति कहते हैं।

अतः स्मृति वह मानसिक प्रक्रिया है जिसके द्वारा मनुष्य अपने पूर्व अनुभवों को मानसिक संस्कार के रूप में अपने अचेतन मन में संचित रखता है और आवश्कयता पड़ने पर अपनी वर्तमान चेतना में ले आता है।

स्मृति एक जटिल मानसिक प्रक्रिया है।

स्मृति या स्मरण की परिभाषा ( definition of memory/remembering)

वुडवर्थ के अनुसार

स्मृति सीखी हुई वस्तु का सीधा उपयोग है।

मैकडूगल के अनुसार

स्मृति से तात्पर्य है – अतीत की घटनाओं के अनुभव की कल्पना करना और इस तथ्य को पहचान लेना कि अतीत कालीन अनुभव है।

हिलगार्ड के अनुसार

स्मृति वह मानसिक प्रक्रिया है जिसमें अतीत में सीखे गए ज्ञान, अनुभव या कौशल का पुनः स्मरण किया जाता है।

टी०पी० नन के अनुसार

हमारे अनुभवों को संचित करके रहने वाली शक्ति जब चेतना से युक्त होती तब हम उसे स्मृति कहते हैं।

रायबर्न के अनुसार

अपने अनुभवों को संचित रखने और उनको प्राप्त करने के कुछ समय बाद चेतना के क्षेत्र में लाने की जो शक्ति हमें होती है उसी को स्मृति कहते हैं।

स्मृति के अंग / स्मृति के तत्व / स्मरण की प्रक्रिया ( part of memory / process of remembering)

वुडवर्थ के अनुसार स्मृति प्रक्रिया के निम्नलिखित चार अंग होते हैं-

(1) सीखना (learning)

(2) धारणा (retention)

(3) पुनःस्मरण (recall)

(4) पहचान (recognition)

सीखना (learning)

किसी विषय वस्तु को स्मरण करने के लिए सर्वप्रथम उसे सीखना पड़ता है।

इसलिए सीखने को स्मृति का पहला अंग कहा जाता है।

बिना सीखे किसी भी विषय वस्तु का स्मरण करना या बिना स्मरण के सीखना भी संभव नहीं है।

धारणा (retention)

धारणा से तात्पर्य सीखी गई वस्तु को मस्तिष्क के चेतन जगत में स्थापित करना ।

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जब हम किसी कार्य को सीखते हैं तो उसकी छाप को चेतन मन में स्थापित करते हैं। फिर उसे अचेतन मन में स्थापित कर देते हैं ताकि आवश्यकता के समय चेतन में प्रयोग की जा सके।

पुनःस्मरण (recall)

पुनःस्मरण (recall) स्मृति का तीसरा अंग है।

इसका तात्पर्य गत अनुभवों अथवा अधिगम को वर्तमान में पुनः उत्पादन करने से है।

दूसरे शब्दों में कहा जा सकता है कि पूर्व अनुभव अथवा सीखी गई बातों को अचेतन मन से चेतन मन में लाना ही पुनःस्मरण है।

पहचान (recognition)

इसका का चौथा अंग पहचानना है।

पहचान से तात्पर्य उस विषय वस्तु को ठीक ढंग से जानने से है जिसे पूर्व समय में धारण किया गया है।

अतः अच्छी स्मृति वही मानी जाती है जिसमें सही ज्ञान का स्मरण किया गया हो।

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स्मृति के प्रकार / स्मरण के प्रकार ( types of memory)

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मनोवैज्ञानिकों ने स्मृति के निम्नलिखित प्रकार बताएं है-

(1) तात्कालिक स्मृति

इस स्मृति को संवेदिक स्मृति भी कहते हैं।
इस प्रकार की स्मृति से तात्पर्य किसी विषय वस्तु को सीखने के उपरांत तत्काल दोहरा देने की क्षमता है।

(2) स्थायी स्मृति

जब किसी व्यक्ति के मन में सीखे हुए तथ्य स्थाई रूप धारण हो जाते हैं और उन्हें कभी नहीं भुलाया भूलता तो इसे स्थायी स्मृति कहते है।

(3) सक्रिय स्मृति

प्रयास करने पर सीखे हुए जो तथ्य हमारी स्मृति में आते हैं अर्थात उन्हें याद करने के लिए विशेष प्रयास करना पड़ता है तो ऐसे ही स्मृति को सक्रिय स्मृति कहते हैं।

(4) रटन्त स्मृति

इस प्रकार की स्मृति बालकों में पायीजाते हैं। बालक द्वारा किसी चीज को बिना सोचे समझे रट लिया जाता है। ऐसी स्मृति को रटन्त स्मृति कहते हैं।
जैसे – कविता याद करना।

(5) निष्क्रिय स्मृति

जब बिना किसी प्रयास के सीखा हुआ कोई तथ्य में याद आ जाता है तो ऐसी स्मृति को निष्क्रिय स्मृति कहते हैं। ऐसी स्मृति का विशेष लक्ष्य नहीं होता है।

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(6) मनोवैज्ञानिक स्मृति

जब किसी विधि के द्वारा कोई तथ्य शीघ्रता से याद कर लिया जाता है और दोहराने की आवश्यकता नहीं होती तो ऐसे ही स्मृति को मनोवैज्ञानिक स्मृति कहते हैं।

स्मृति की विधियां / स्मरण करने की विधियां ( methods of remembering)

(1) पूर्ण विधि

इस विधि में पूरे पाठ को आरंभ से अंत तक एक ही बार में पढ़कर याद किया जाता है।

(2) खंड विधि

इस विधि में पाठ को छोटे-छोटे खंड में बैठकर याद किया जाता है। यह बालकों के लिए विशेष उपयोगी है।

(3) मिश्रित विधि

यह विधि पूर्ण विधि एवं खंड विधि दोनों का मिश्रण है।

(4) सक्रिय विधि

इसके द्वारा पाठ को पढ़ पढ़ कर बोल बोल कर याद किया जाता है।

(5) निष्क्रिय विधि

यह विधि सक्रिय विधि के उल्टा है। इसमें पाठ को मन ही मन में बोलकर याद किया जाता है।

(6) रटने की विधि

इसमें बिना सोचे समझे बस पाठ को रट लिया जाता है।

(7) अभिराम या निरंतर विधि विधि

इसमें बिना बीच-बीच में रुके पाठ पर लगातार दोहराया जाता है।यह विधि तात्कालिक स्मृति के लिए अच्छी होती है।

(8) निरीक्षण विधि

इस विधि में याद किए जाने वाले पाठ का पहले निरीक्षण किया जाता है उसके बाद उसको पढ़ा जाता है।

(9) विचार साहचर्य विधि

इस विषय को याद करने से पहले उसे किसी ज्ञात विषय से संबंधित किया जाता है । इस विधि से याद सरलतम शीघ्रता से होता है।जैसे यदि हमें लाल बहादुर शास्त्री की जन्म तिथि याद करनी है तो इसका संबंध गांधी जी की जन्म तिथि 2 अक्टूबर से कर देने पर शीघ्र ही याद हो जाता और कभी नहीं भूलता है।

स्मृति के नियम / अच्छी स्मृति के कारक / स्मरण के नियम (rule of memory)

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(1) आदत का नियम

यदि किसी विचार को बार-बार दोहराया जाता है तो हमारे मस्तिष्क में उसकी छाप इतनी गहरी हो जाती है कि हम बिना विचारे उसे व्यक्त कर देते हैं अर्थात वह चीज हमारी आदत में आ जाती है।

(2) निरंतरता का नियम

सीखने की प्रक्रिया समाप्त हो जाने के बाद जो अनुभव विशेष तौर पर स्पष्ट होते है वो हमारे मस्तिष्क में कुछ समय तक निरंतर आते रहते हैं
अतः उन्हें स्मरण रखने के लिए किसी प्रकार का प्रयत्न नहीं करना पड़ता है।

जैसे किसी दुखद घटना को देखने के बाद हम लाख प्रयत्न करने के बाद भी उसे भूल नहीं पाते है।

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(3) परस्पर संबंध का नियम

इस नियम को विचार साहचर्य का नियम भी कहते हैं।
इस नियम के अनुसार जब एक अनुभव को दूसरे अनुभव संबंधित कर देते हैं तो उसमें स्मरण करने में आसानी हो जाती है।

स्मृति की विशेषतायें / स्मृति के लक्षण / स्मरण की विशेषतायें

(1) शीघ्र याद होना

अच्छी स्मृति वही है जिसमें हमें पाठ्य वस्तु तुरन्त याद हो जाए।

(2) उत्तम धारणा शक्ति

यदि हमारे द्वारा पढ़ी लिखी हुई विषय वस्तु अधिक दिनों तक याद रहती है तो इसका मतलब उसकी धारणा शक्ति बहुत अच्छी है। अतः उत्तम धारणा शक्ति अच्छी स्मृति के संकेत है।

(3) शीघ्र पुनः स्मरण

अच्छी स्मृति की सबसे प्रमुख विशेषता है की याद करने पर वस्तु याद आ जाना। अतः शीघ्र पुनः स्मरण अच्छी स्मृति के लिए आवश्यक है।
जैसे- परीक्षा के समय बालक पढ़ी हुई चीज़े याद करके कॉपी में लिखता है।

(4) शीघ्र एवं स्पष्ट पहचानना

बालक ने परीक्षा के लिए बहुत सारा विषय पढ़ा पर परीक्षा में कुछ प्रश्न आये और उन्हें करने के लिए बालक पढ़े हुए विषय का स्मरण करता है और यदि यह स्मरण शीघ्र और स्पष्ट होता है तो यह अच्छी स्मृति का संकेत है।

(5) अनावश्यक बातों को भूलना

अच्छी स्मृति का गुण यह भी होना चाहिए की अनावश्यक बातों को भूल जाए।
क्योंकि अनावश्यक बातें जीवन में तनाव उत्पन्न करती है।

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