सतत एवं व्यापक मूल्यांकन का अर्थ,महत्व एवं क्षेत्र | दक्षता आधारित मूल्यांकन | सतत मूल्यांकन के क्षेत्र

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सतत मूल्यांकन का अर्थ

सतत मूल्यांकन का आशय उस आकलन या परीक्षण से है जिससे शिक्षार्थी के अध्ययन एवं उपलब्धियों का प्रतिमाह आकलन किया जाता है। सतत मूल्यांकन प्रक्रिया में सामान्यतः संपूर्ण पाठ्यक्रम को 10 इकाइयों में विभक्त कर दिया जाता है। उस इकाई का अध्ययन कराने के बाद स्वाभाविक रूप से प्रतिमाह परीक्षण किया जाता है। तथा उसका व्यवस्थित लेखा-जोखा रखा जाता है। सतत मूल्यांकन मूल्यांकन की ऐसी व्यवस्था हेतु सीखने सिखाने के साथ साथ चलती है जिसमें शिक्षार्थियों के अनुभव और व्यवहारों में होने वाले परिवर्तनों पर लगातार मूल्यांकन होता रहता है । सतत मूल्यांकन लिखित,मौखिक एवं अन्य क्रियाकलापों के माध्यम से संपन्न होता है।

व्यापक मूल्यांकन का अर्थ

शिक्षा जीवन-पर्यन्त चलने वाली एक प्रक्रिया है जो मानव जीवन के सभी पक्षों को प्रभावित करती है। चूँकि मूल्यांकन और शिक्षा का परस्पर गहन सम्बन्ध है अत: मूल्यांकन भी जीवन से मृत्यु तक किसी-न-किसी रूप में किया जाता है। मनुष्य के जीवन के अनेक पहलुओं, पक्षों, अवयवों, अवधारणाओं का संयुक्त स्वरूप है जो मनुष्य के जीवन को प्रभावित करता है वस्तुत: वह हमें दिखाई नहीं पड़ता। बालक के अधिगम को किसी-न-किसी रूप में प्रभावित करने वाले स्थूल-सूक्ष्म, प्रत्यक्ष-अप्रत्यक्ष, ज्ञात-अज्ञात, अनेकों पक्ष हैं जिनका मूल्यांकन करना व्यापक मूल्यांकन कहलाता है। इस मूल्यांकन के द्वारा यह निर्णय लिया जा सकता है कि कौन से तत्व छात्र के अन्दर अच्छे हैं और कौन से बुरे हैं तथा इन तत्वों का छात्र के विकास में क्या योगदान है। शैक्षिक क्षेत्र में किसी बालक का मूल्यांकन करते समय उसके वातावरण तथा सामाजिक पृष्ठभूमि व उसकी शारीरिक क्षमता को समझकर ही व्यापक मूल्यांकन किया जाता है।

सतत् मूल्यांकन का महत्व

कक्षोन्नति का प्रमुख साधन वार्षिक परीक्षा तथा उसके परिणाम होते हैं। इस प्रथा से सभी भली-भाँति परिचित हैं। सम्पूर्ण संकुल संकल्पना के कार्यक्रम अन्तर्निहित सतत् मूल्यांकन इस समस्या का प्रमुख समाधान है। सतत् मूल्यांकन के माध्यम से बालक की योग्यता तथा अयोग्यता के बारे में नियमित रूप से उपयोगी तत्वों का संकलन सम्भव हो सकेगा। इन तथ्यों का प्रयोग ऐसे उपचारात्मक शिक्षण यन्त्र तथा समृद्ध शिक्षण के रूप में किया जा सकेगा, जिससे कि बालकों के व्यक्तित्व के विभिन्न पहलुओं का अधिकतम विकास किया जा सके और शिक्षा के लक्ष्यों को प्राप्त किया जा सके।

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इस फीडबैक से न केवल विद्यार्थी को मापन, वर्गीकरण एवं प्रमाणीकरण में सहायता मिलेगी अपितु उसकी कार्यकुशलता एवं सफलता के स्तर को सुधारने की तथा इस प्रकार के रचनात्मक मूल्यांकन के द्वारा उसके अधिकतम विकास की व्यवस्था को सक्षम बनाया जा सकेगा। इस प्रकार सतत् मूल्यांकन के परिणाम हमें शीघ्र प्राप्त होंगे और सतत् व्यापक मूल्यांकन स्वयं लक्ष्य न होकर लक्ष्य प्राप्त करने का साधन है। विद्यार्थी परीक्षा के भय से मुक्त हो सकेंगे तथा सहज भाव से मूल्यांकन के लिए तत्पर रहेंगे।

सतत् मूल्यांकन के सोपान | सतत मूल्यांकन की कार्य-प्रणाली

मूल्यांकन की प्रक्रिया पूर्ण रूप से मनोवैज्ञानिक है। सतत् मूल्यांकन के द्वारा विद्यार्थी को अपने साफल्य में सहायता मिलती है। वह अध्ययन करने को तैयार रहता है। मूल्यांकन की प्रविधियों का इसलिए उद्देश्यपूर्ण एवं विश्वसनीय होना आवश्यक है। सतत् मूल्यांकन के लिए जो भी विधि अपनायी जाए वह पूर्ण रूप से स्पष्ट होनी चाहिए उसका प्रमुख आधार मापन की क्रिया होना चाहिए। इसीलिए उचित मापदण्डों का निर्धारण पहले से कर लेना चाहिए अगर ऐसा नहीं किया गया तो सतत् मूल्यांकन असम्भव है।

सतत् मूल्यांकन में निम्नलिखित सोपानों का प्रयोग किया जाना आवश्यक है-

(1) उद्देश्य की व्याख्या

जिस उद्देश्य का निर्धारण किया गया है, उसकी स्पष्ट व्याख्या की जानी चाहिए।

(2) परिस्थिति का ज्ञान

विद्यार्थियों को ऐसी परिस्थिति में रखा जाना चाहिए,जहाँ से वह वांछित व्यवहार को प्रदर्शित कर सके, अर्थात् यह परिस्थिति ऐसी होनी चाहिए कि जो व्यवहार की अभिव्यक्ति में सहायता कर सके इस प्रकार परिस्थिति का ज्ञान मूल्यांकन के लिए अत्यधिक आवश्यक है।

(3) प्रविधि का प्रयोग

बालक में हुए व्यवहारिक परिवर्तनों को जानने के लिए प्रविधि का उपयोग किया जाता है।

(4) मूल्यांकन की प्रविधियों का चयन

परिस्थिति का ज्ञान हो जाने के पश्चात् उन प्रविधियों का चयन किया जाना चाहिए जो विद्यार्थियों के इच्छित व्यवहार के सम्बन्ध में प्रमाण प्रस्तुत करे।

(5) निष्कर्ष निकालना

मूल्यांकन प्रक्रिया में निम्नलिखित बातों पर ध्यान देना चाहिए-
(i) कक्षा में उच्चतम तथा निम्नतम प्राप्तांक क्या हैं?
(ii) कक्षा का उच्चतम औसत प्राप्तांक क्या है?
(ii) कक्षा में विशिष्ट छात्र की क्या स्थिति है?
(iv) क्या किसी छात्र ने अपनी योग्यता से सर्वोत्तम स्थान प्राप्त कर लिया है?

(6) भविष्यवाणी

यदि एक विषय का मूल्यांकन किया जा चुका है तो उसी समस्या से सम्बन्धित अन्य पहलुओं का भी उसी आधार पर मूल्यांकन किया जायेगा तथा कारणों का पता लगाया जा सकता है। किसी विद्यार्थी के विषय में भविष्यवाणी की जा सकती है, किसी विस्तृत समस्या का भी समाधान किया जा सकता है।

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(7) प्रदत्तों का विश्लेषण

प्राप्त आँकड़ों का विश्लेषण किया जाए तथा पता लगाया जाए कि उसके कारण कितनी मात्रा में प्रगति हुई है।

(8) प्राप्त साक्ष्यों का विवेचन

जब प्रविधि का प्रयोग किया जाता है तथा होता है।

सतत् मूल्यांकन के क्षेत्र

शिक्षा में सतत् मूल्यांकन का प्रयोग प्राचीन काल से होता चला आ रहा है। इसके अनुसार शिक्षण के उद्देश्यों, सीखने के अनुभवों-परीक्षणों में प्रमुख सम्बन्ध स्थापित किया जाता है। सतत् मूल्यांकन में शिक्षण तथा परीक्षण दोनों ही क्रियाएँ एक साथ चलती हैं। मूल्यांकन एक सतत् तथा व्यापक क्रिया मानी जाती है। सतत् मूल्यांकन में छात्रों के व्यक्तित्व सम्बन्धी निम्न पक्ष आते हैं-

(1) छात्र की अभिरुचि (Aptitude of Student)

मुख्यतः समझा जाता है कि जो पिछली कक्षा में अच्छे अंकों से उत्तीर्ण हुए हैं, वे अगली कक्षा में भी अच्छे अंक प्राप्त करेंगे। परीक्षाएँ बालकों में अर्जित ज्ञान का मापन करती हैं यह वचन सदैव विश्वसनीय नहीं होता है।

(2) छात्र की सृजनात्मकता (Creativity of Student)

आज के समय में सृजनात्मकता का महत्व बढ़ता जा रहा है। यह एक प्रमुख समस्या है कि शैक्षिक प्रक्रिया में सृजनात्मकता का विकास कैसे हो? परन्तु सृजनात्मकता के मापन के लिए अभी कोई सन्तोषजनक उपकरण नहीं है।

(3) ज्ञान (Knowledge)

मूल्यांकन किसी भी विद्यार्थी के ज्ञान का मापन करता है कि उस व्यक्ति का ज्ञान किस कोटि का है तथा उसके आधार पर उसके भविष्य के विषय में सम्भावना व्यक्त करता है।

(4) पारिवारिक रुचियाँ (Interests of Family)

पारिवारिक सम्बन्धों का मूल्यांकन करना कठिन होता है। व्यक्ति में अनेक विशेषताएँ पायी जाती हैं। उसकी यह विशेषताएँ परिस्थितियों के अनुसार बदलती रहती हैं।

(5) बोध (Understanding)

किसी व्यक्ति के ज्ञान का मापन भी उसके आधार पर हो सकता है। अत: मूल्यांकन के क्षेत्र में व्यक्ति की समझ शक्ति का मापन करना तथा आवश्यक निर्देशन में सहायता करना है।

(6) वैयक्तिक रुचियाँ (Individual Interest)

अभिरुचि परीक्षणों, प्रश्नावली तथा साक्षात्कार के द्वारा वैयक्तिक रुचियों का मापन किया जाता है।

(7) शारीरिक स्थिति तथा स्वास्थ्य (Ilealth and Physical Status)

शारीरिक स्थिति का मापन अति आवश्यक होता है। इसके लिए ‘प्रश्नावली’, ‘स्वास्थ्य इतिहास’ तथा निरीक्षण पद्धतियाँ उपयुक्त होती हैं। स्वास्थ्य तथा शारीरिक ये दोनों स्वयं में उतने महत्वपूर्ण हैं कि बिना इन तत्वों को लिए कोई भी मूल्यांकन पद्धति अधूरी रह जायेगी।

(8) अनुप्रयोग (Application)

यह ज्ञात किया जा सकता है कि किस सीमा तक विद्यार्थी प्राप्त ज्ञान का प्रयोग करता है।

(9) विद्यार्थी की शैक्षिक उपलब्धि (Educational achievement)

शैक्षिक उपलब्धि ज्ञात करने के उनके ढंग होते हैं। परीक्षाओं के प्राप्तांक, प्रमापीकृत परीक्षाओं के परिणाम तथा विद्यालय की क्रियाएँ प्रमुख होती हैं।

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(10) विद्यार्थी की त्रुटियाँ (Mistakes of Student)

मूल्यांकन के माध्यम से छात्र की इस बात की जाँच हो जाती है कि वह त्रुटियाँ क्यों कर रहा है तथा उन त्रुटियों का निवारण कैसे किया जा सकता है?

सतत् मूल्यांकन की विधियां / सतत मूल्यांकन के प्रकार

वर्तमान में परम्परगात रूप से अर्द्धवार्षिक परीक्षा एवं वार्षिक परीक्षा
काफी अधिक समयान्तराल के बाद होती हैं जिनके कारण बालकों की कठिनाइयों को पहचान कर उन्हें दूर करना असम्भव होता है। अत: बालकों की प्रगति को निरन्तर बनाये रखने के लिए सतत् मूल्यांकन करने हेतु कुछ अग्रलिखित नई प्रविधियों को अपनाया जाने लगा है-
1. सत्र परीक्षा।
2. इकाई परीक्षण।
3. मासिक परीक्षाएँ।
4. सेमेस्टर पद्धति।

दक्षता आधारित मूल्यांकन का अर्थ

दक्षता आधारित मूल्यांकन का अर्थ है-शिक्षार्थियों की दक्षता पर आधारित न्यूनतम अधिगम आकलन। विश्लेषण करना जिससे शिक्षार्थियों की दक्षता एवं ग्राह्यता को सुनिश्चित किया जा सके। जैसे-प्राथमिक स्तर की कक्षाओं में छात्रों को 1 से 100 तक की गिनतियों का अभ्यास कराते हैं। उन छात्रों में निम्नांकित दक्षताएँ देखी जा सकती हैं-
(i) संख्याओं की पहचान करना
(ii) संख्याओं को लिखना
(iii) संख्याओं की धारणा
(iv) संख्याओं को लिखने का निश्चित क्रम।


इनमें पूर्णरूपेण दक्षता प्राप्त करना ही अधिगम प्रक्रिया है। इस अधिगम की जाँच या अंकन हेतु शिक्षक दक्षताधारित मूल्यांकन का सहारा लेते हैं। दक्षताधारित मूल्यांकन के द्वारा अध्यापक उन कारणों को ज्ञात भी कर लेते हैं जिनके कारण शिक्षार्थी अपेक्षित स्तर तक सीखने में असमर्थ हैं। अर्थात् शिक्षकों को कक्षा में समय-समय पर दक्षताधारित मूल्यांकन या अंकन करते रहना चाहिए जिससे छात्रों में दक्षता का ज्ञान हो सके और अधिगम प्रक्रिया को सबल बनाया जा सके।


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