उत्तर प्रदेश में प्रारंभिक शिक्षा के विकास के लिए चलाए गए कार्यक्रम एवं योजनाएं / यूपी में शिक्षा संबंधी चलाये गए कार्यक्रम

बीटीसी एवं सुपरटेट की परीक्षा में शामिल शिक्षण कौशल के विषय प्रारंभिक शिक्षा के नवीन प्रयास में सम्मिलित चैप्टर उत्तर प्रदेश में प्रारंभिक शिक्षा के विकास के लिए चलाए गए कार्यक्रम एवं योजनाएं / यूपी में शिक्षा संबंधी चलाये गए कार्यक्रम आज हमारी वेबसाइट hindiamrit.com का टॉपिक हैं।

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उत्तर प्रदेश में प्रारंभिक शिक्षा के विकास के लिए चलाए गए कार्यक्रम एवं योजनाएं / यूपी में शिक्षा संबंधी चलाये गए कार्यक्रम

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उत्तर प्रदेश में प्रारंभिक शिक्षा के विकास के लिए चलाए गए कार्यक्रम एवं योजनाएं / यूपी में शिक्षा संबंधी चलाये गए कार्यक्रम

यूपी में शिक्षा संबंधी चलाये गए कार्यक्रम / उत्तर प्रदेश में प्रारंभिक शिक्षा के विकास के लिए चलाए गए कार्यक्रम एवं योजनाएं

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उत्तर प्रदेश में प्रारम्भिक शिक्षा के विकास हेतु शैक्षिक कार्यक्रम
तथा परियोजनाएँ / Educational Programmes and Projects in U.P. for Development of Elementary Education

उत्तर प्रदेश राज्य में प्रारम्भिक शिक्षा के सार्वभौमीकरण तथा तीव्रतर विकास के लिये विविध कार्यक्रम तथा परियोजनाओं को सन् 2008-09 में लागू किया गया है। इन परियोजनाओं तथा कार्यक्रमों के माध्यम से प्रारम्भिक शिक्षा के क्षेत्र में ह्रास एवं अवरोधन को रोकने में पर्याप्त सफलता मिली है।

जो कार्यक्रम तथा योजनाएँ प्रारम्भ की गयी हैं, उनका विवरण निम्नलिखित प्रकार है-

(1) ऑपरेशन ब्लैक बोर्ड परियोजना (OB)

(2) सेवा अध्यापकों का विस्तृत अभिविन्यास कार्यक्रम (P-MOST)

(3) प्राथमिक शिक्षकों का विशेष अनुस्थापन
कार्यक्रम (SOPT)

(4) बेसिक शिक्षा परियोजना (BEP)

(5) जिला प्राथमिक शिक्षा कार्यक्रम (द्वितीय एवं तृतीय) (DPEP)

(6) विद्यालय शिक्षा की तैयारी (स्कूल रेडीनेस कार्यक्रम )

(7) सम्पूर्ण साक्षरता अभियान

(8) सर्व शिक्षा अभियान

(9) नेशनल प्रोग्राम ऑफ एज्यूकेशन फॉर गर्ल्स एट एलीमेन्ट्री लेवल ( NPEGEL )

(10) स्कूल चलो अभियान

(11) कस्तूरबा गाँधी आवासीय बालिका विद्यालय योजना

(12) ई.सी.सी. ई. कार्यक्रम

(13) राष्ट्रीय बालश्रम परियोजना

(14) मध्याह्न भोजन/पोषाहार वितरण

(15) छात्रवृत्ति वितरण एवं अन्य प्रोत्साहन योजनाएँ (निःशुल्क पाठ्यपुस्तक, गणवेश तथा बालकों हेतु फर्नीचर)




(1) ऑपरेशन ब्लैकबोर्ड परियोजना-1987-88 / Operation Black Board (O.B.B.) 1987-88

राष्ट्रीय शिक्षा नीति, सन् 1986 में प्राथमिक शिक्षा को आवश्यक मानते हुए ह्रास एवं अवरोध की समस्या को कम करने के उद्देश्य से शैक्षिक वातावरण को पर्याप्त समुन्नत बनाने एवं शिक्षा में गुणात्मक सुधार लाने पर विशेष बल दिया गया है।

(1) प्रत्येक विद्यालय में कम से कम 2 कमरे बरामदा सहित वाले भवन उपलब्ध कराये (2) शिक्षक उपकरण (3) कक्षा शिक्षण सामग्री (4) खेल सामग्री एवं खिलौने  (5) प्राथमिक विज्ञान किट। (6) लघु औजार किट (7) टू-इन-वन ऑडियो उपकरण (8) पुस्तकालय के लिये पुस्तकें। (9) विद्यालय की घण्टी, चॉक, झाड़न तथा कूड़ादान (10) वाद्य-यन्त्र, ढोलक, तबला, मजीरा तथा हारमोनियम। (11) श्यामपट्ट तथा फर्नीचर। (12) शिक्षक के पास आकस्मिक व्यय के लिये धन। (13) प्रसाधन-लड़के एवं लड़कियों के लिये अलग-अलग। (14) पेयजल व्यवस्था।


(2) सेवारत अध्यापकों का विस्तृत अभिविन्यास कार्यक्रम : पीमोस्ट
PMOST

एन. सी. ई. आर. टी. नयी दिल्ली द्वारा वर्ष 1986 से यह कार्यक्रम प्रारम्भ किया गया। राष्ट्रीय शिक्षा नीति, 1986 की मूल संस्तुतियों से अवगत कराना, इस कार्यक्रम का मुख्य उद्देश्य है। इसके लिये प्रशिक्षण सामग्री का निर्माण दो भागों में किया गया है-(1) प्राथमिक शिक्षकों के लिये। (2) माध्यमिक शिक्षकों के लिये ऑपरेशन ब्लैक बोर्ड योजना के अन्तर्गत विद्यालयों को न्यूनतम शिक्षण सामग्री उपलब्ध करा देने के उपरान्त वर्ष 1990 में विस्तृत अभिन्यास कार्यक्रम (पी-मोस्ट सामान्य) को पी-मोस्ट ऑपरेशन ब्लैक बोर्ड में परिवर्तित कर देने का निर्णय लिया गया। 

पी-मोस्ट कार्यक्रम के अन्तर्गत अध्यापकों हेतु अभिन्यास कार्यक्रमों की रूपरेखा प्रस्तुत की गयी है –

(1) विद्यालय तथा कक्षाओं को आकर्षक बनाने पर बल दिया गया है। (2) बालकेन्द्रित शिक्षा तथा कार्यकलाप आधारित शिक्षण अधिगम के माध्यम से शिक्षा की गुणवत्ता के प्रोत्साहन पर बल दिया गया है।  (3) विद्यालय के प्रभावी रूप से कार्य करने के लिये भवन, अध्यापकों एवं प्रशिक्षण सामग्री के सम्बन्ध में स्पष्ट सुविधाओं का उल्लेख किया गया है। (4) अध्ययन अध्यापन प्रक्रिया के लिये न्यूनतम मदों का उल्लेख किया गया है। (5) प्रत्येक मद की गुणवत्ता बनाये रखने के उद्देश्य से आपूर्ति किये जाने वाले प्रत्येक मद के मानक तथा उसकी विशिष्टताएँ निर्धारित की गयी हैं।

(3) प्राथमिक अध्यापकों का विशेष अनुस्थापन कार्यक्रम / Special Officiate Programme for Primary Teachers (S.O.P.T.)

भारत सरकार के मानव संसाधन विकास मन्त्रालय के अन्तर्गत प्राथमिक विद्यालयों के अध्यापकों के विशेष अनुस्थापन हेतु चलायी जा रही प्रायोजित योजना को S.O.P.T. के नाम से जाना जाता है। N.C.E.R.T. कोशैक्षणिक संसाधन उपलब्ध कराने के अतिरिक्त इस योजना के क्रियान्वयन, संगठन, प्रबन्ध तथा अनुरीक्षण का उत्तरदायित्त्व सौंपा गया है।

इस समय N.C.E.R. T. का अध्यापक शिक्षा एवं विशेष शिक्षा विभाग अपने अन्य सम्बन्धित विभागों; जैसे-विद्यालय पूर्व एवं माध्यमिक शिक्षा विभाग, केन्द्रीय शैक्षिक प्रौद्योगिकी संस्थान,क्षेत्रीय शिक्षा महाविद्यालयों अजमेर, भोपाल, भुवनेश्वर तथा मैसूर एवं अन्य क्षेत्रीय सलाहकारोंके सहयोग से इस कार्यक्रम का संयोजन किया गया है। लगभग सम्पूर्ण क्षेत्र के सम्पूर्ण कार्यक्रम एवं विकसित पैमाने पर प्रतिवर्ष 4.5 लाख प्राथमिक अध्यापकों को प्रशिक्षित करने का लक्ष्य लेकर वर्ष 1993-94 से प्रारम्भ किया गया।

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(4) बेसिक शिक्षा परियोजना
Basic Education Project (B.E.P.)

यह परियोजना प्रदेश में बेसिक शिक्षा की सुव्यवस्था हेतु संचालित की जा रही है। इस परियोजना के अन्तर्गत बेसिक शिक्षा के सार्वजनीकरण को मुख्य रूप से महत्त्व दिया जा रहा है। इसका मुख्य लक्ष्य सार्वजनीकरण के नामांकन, शिक्षा की अवधि की पूर्णता तथा शैक्षिक
गुणवत्ता में सुधार लाना है। राज्य, जनपद तथा ग्राम स्तर की संस्थाओं का स्थायीकरण ही उद्देश्यों की प्राप्ति में सहायक हो सकता है। शैक्षिक नियोजन तथा प्रबन्धन का विकेन्द्रीकरण तथा उनकी प्रभावकारिता में वृद्धि करना भी इस परियोजना का महत्त्वपूर्ण अंग है।

(5) जिला प्राथमिक शिक्षाकार्यक्रम
District Primary Education Programme (D.P.E.P.)

उत्तर प्रदेश बेसिक शिक्षा परिषद के अनुभवों तथा उपलब्धियों के आधार पर उत्तर प्रदेश सरकार द्वारा विश्व बैंक की सहायता से छात्र साक्षरता के सन्दर्भ में पिछड़े हुए 18 अन्य जनपद हैं, जैसे-महाराजगंज, गोण्डा, सिद्धार्थ नगर, बदायूँ, खीरी, ललितपुर, बस्ती, मुरादाबाद, शाहजहाँपुर, सोनभद्र, देवरिया, बरेली, रायबरेली, हमीरपुर, सुल्तानपुर, बहराइच, बाराबंकी तथा रामपुर ।

इन जनपदों में जिला प्राथमिक शिक्षा परियोजना (D.P.E.P.) वित्तीय वर्ष 1997-98 से प्रारम्भ करने का निर्णय लिया गया था। इस कार्यक्रम के अन्तर्गत मात्र 9-11 वर्ष के बच्चों का शत प्रतिशत नामांकन, धारण एवं गुणवत्ता का लक्ष्य रखा गया। कार्यक्रम को अधिक सफल बनाने के उद्देश्य से विकेन्द्रीकरण की नीति पर अधिक बल दिया गया और लक्ष्य की प्राप्ति हेतु रणनीति, प्राथमिकता एवं मध्यस्थताएँ जनपद स्तर पर तैयार की गर्दी। परियोजना कार्यान्वयन के पूर्व जनपदों में शैक्षिक स्तर पर आधार लाइन सर्वेक्षण किया गया। तदनुरूप शिक्षक प्रशिक्षण पाठ्यक्रम तथा पाठ्य-पुस्तक निर्माण किया जा रहा है।

जिला प्राथमिक शिक्षा परियोजना के अधिकार

जिला प्राथमिक शिक्षा परियोजना के अधिकार निम्नलिखित हैं-

(1) प्राथमिक विद्यालयों के शिक्षकों की प्रोन्नति, दक्षता वृद्धि, स्थानान्तरण, दक्षता रोपड़ तथा कर्त्तव्य पालन में उदासी दिखाने के प्रति शिक्षा विभाग से सम्बन्धित अधिकारियों को अपनी टिप्पणी के साथ संस्तुति एवं प्रेषण करना ।

(2) संविधान में शिक्षा के सार्वजनीकरण के अन्तर्गत 6-14 वर्ष के सभी बच्चों को कक्षा 1-8 तक की शिक्षा को अनिवार्य करने का उल्लेख किया गया है।

(3) पिछड़े हुए क्षेत्रों में शिक्षा के प्रति आकर्षण उत्पन्न करने एवं उन्हें आवश्यक सुविधाएँ उपलब्ध कराने का दायित्त्व भी ग्राम पंचायत को दिया गया है।

(4) शैक्षिक दायित्वों का यह क्रम ग्राम पंचायतों से लेकर न्याय पंचायत, सेवा क्षेत्र, जिला पंचायत तक एक निश्चित रूपरेखा में परिभाषित है। शिक्षा की आवश्यकता के प्रति जन चेतना, जागृत करना विशेष रूप से छात्रा शिक्षा, S/C, S/T सुविधा वंचित वर्ग आदि की शिक्षा के महत्त्व को जन जन तक पहुँचाने के लिये प्रत्येक स्तर पर सबको सक्रिय करना होगा।

(5) बेसिक शिक्षा के सन्दर्भ में हमारी संकल्पना यह है कि समाज का प्रत्येक वर्ग यह समझने लगे कि देश के सभी बालक हमारे हैं, समस्त विद्यालयमारे हैं और हम भी विद्यालय के लिये ही हैं।


(6) विद्यालय शिक्षा की तैयारी
School Rediness

विद्यालयोन्मुखी कार्यक्रम (स्कूल रेडीनेस) का तात्पर्य विद्यालय की ओर उन्मुख करने वाले कार्यक्रम से है। अर्थात् वह कार्यक्रम जिसके द्वारा बालक विद्यालय के प्रति आकर्षित हों। प्रारम्भ में इस कार्यक्रम का प्रारूप अन्तर्राष्ट्रीय बाल वर्ष में राष्ट्रीय शैक्षिक अनुसन्धान
और प्रशिक्षण परिषद् द्वारा तैयार किया गया।

यह कार्यक्रम उन बालकों के लिये बनाया गया है जो कक्षा 1 में सीधे प्रवेश करते हैं। कक्षा एक के पहले पूर्व प्राथमिक शिक्षा का उन्हें किसी प्रकार का अनुभव प्राप्त नहीं होता। इस कार्यक्रम के अन्तर्गत कक्षा 1 के प्रारम्भिक छ: सप्ताह से दो माह तक की अवधि तक उन बालकों को पूर्व प्राथमिक शिक्षा के अनुभव प्रदान किये जाते हैं और उन्हें विद्यालय के लिये तैयार किया जाता है।

इसीलिये इस कार्यक्रम को स्कूल रेडीनेस प्रोग्राम भी कहते हैं। इस कार्यक्रम में बालकों को मानसिक, शारीरिक, संवेगात्मक और सामाजिक रूप से इस प्रकार तैयार किया जाता है कि वे कक्षा 1 की विषयवस्तु को सरलता से समझ सकें। यह कार्यक्रम सीमित संसाधनों में ही प्राथमिक विद्यालय से पूर्व प्राथमिक शिक्षा के उद्देश्यों एवं लाभों का प्राप्त करने का एक व्यावहारिक साधन है।

पूर्व प्राथमिक शिक्षा से पूर्व शिशुओं को अनौपचारिक शिक्षा द्वारा समय से जाना और आना, विद्यालय में ठीक से बैठना, साथी बालकों से व्यवहार तथा स्वच्छता सम्बनधी आदतें सिखायी जाती हैं जिससे वे विद्यालय में प्रवेश लेने के बाद स्वयं को विद्यालय के परिवेश में समायोजित कर सकें एवं अपनी शक्तियों का विकास कर सकें।


(7) सम्पूर्ण साक्षरता अभियान (प्रौढ़ शिक्षा)
Complete Literacy Mission or Adult Education

5मई सन् 1988 ई. में राष्ट्रीय साक्षरता मिशन की स्थापना एक सामाजिक तथा प्रौद्योगिकी अभियान के रूप में राष्ट्रीय स्तर पर की गयी थी। जिसका उद्देश्य सन् 2007 तक साक्षरता का बना रहने वाला 75 प्रतिशत का न्यूनतम स्तर प्राप्त करना है। मिशन में वर्ष 1995 तक 8 करोड़ निरक्षर प्रौढ़ों को कार्यात्मक साक्षरता प्रदान करने का लक्ष्य निर्धारित किया गया।

अन्तत:3 करोड़ निरक्षरों को वर्ष 1990 तथा 5 करोड़ निरक्षरों को वर्ष 1995 तक साक्षर करना सुनिश्चित किया गया। राज्य स्तर पर भी उसी के अनुरूप राज्य साक्षरता मिशन प्राधिकरण का गठन किया गया है। देश में राष्ट्रीय साक्षरता मिशन के अन्तर्गत संचालित सम्पूर्ण साक्षरता अभियान (प्रौढ़ शिक्षा) की सफलता से यह तथ्य सामने आया कि सम्पूर्ण साक्षरता की प्राप्ति कठिन है, किन्तु असम्भव नहीं। इस लक्ष्य को प्रत्येक स्तर पर दृढ़ संकल्प, समन्वित जन सहयोग और सुनियोजित प्रयास से समयबद्ध अभियान के रूप में संचालित करके प्राप्त किया जा सकता है।

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(8) सर्व शिक्षा अभियान
Sarv Shiksha Abhiyan

6-14 वर्षकी आयुवर्गकेबालकोंके लियेप्रारम्भिक शिक्षा कोएक मूलभूत अधिकार बनाने के लिये ससद ने संविधान (86 वां संशोधन) अधिनियम,सन् 2002 पारित किया है। राज्यों के शिक्षा
मन्त्रियों के सम्मेलन, जो अक्टूबर सन् 1998 में सम्पन्न हुआ, की सिफारिशों के आधार पर “सर्व-शिक्षा अभियान” योजना विकसित की गयी, जिसमें सभी को प्राथमिक शिक्षा उपलब्ध कराने का लक्ष्य रखा गया। इसे नवम्बर सन् 2000 में निर्धारित किया गया।

सर्व-शिक्षा अभियान के लक्ष्य निम्नलिखित हैं-

(1) 06-14 वर्ष की उम्र के सभी बालक सन् 2003 तक स्कूल शिक्षा गारण्टी योजना केन्द्र/ब्रिज कोर्स में जायें। (2) वर्ष 2007 तक सभी बालकों की पाँच वर्ष की प्राथमिक शिक्षा पूरी हो जाय। (बालक वर्ष 2010 तक आठ वर्ष की स्कूली शिक्षा पूरी कर लें। (4) जीवनोपयोगी शिक्षा पर बल देते हुए सन्तोषजनक गुणवत्ता पूर्व प्राथमिक शिक्षा पर बल दिया जाय। (5) वर्ष 2007 तक प्राथमिक स्तर पर सभी लड़के-लड़कियों और सामाजिक वर्ग के अन्तरों को और प्रारम्भिक शिक्षा स्तर पर 2010 तक समाप्त करना, और (6) सन् 2010 तक बीच में पढ़ाई छोड़ने वालों की संख्या शून्य करना।

9. प्रारम्भिक स्तरीय राष्ट्रीय बालिका शिक्षापरियोजना
(एन.पी.ई.जी.ई.एल.)
National Project of Elementary Girls Education Level

प्रारम्भिक स्तरीय राष्ट्रीय बालिका शिक्षा परियोजना की संकल्पना सर्व शिक्षा अभियान के संशोधन के रूप में की गयी है। इसकी एक विशिष्ट पहचान है। इस परियोजना के द्वारा बालिका शिक्षा के लिये अतिरिक्त सुविधाएँ दी गयी हैं और इस परियोजना का लक्ष्य कक्षा 1 से कक्षा 8 तक की अपवंचित वर्ग की लड़कियों को प्रारम्भिक शिक्षा उपलब्ध कराना है।

एन.पी.ई.जी.ई.एल. का कार्यक्षेत्र निम्नलिखित प्रकार है-

(1) शैक्षिक आधार पर पिछड़े हुए विकास खण्डों में। (2) जहाँ ग्रामीण स्त्री साक्षरता दर कम तथा लैंगिक अन्तराल (जैण्डर गैप) अधिक है। (3) उन विकास खण्डों में जहाँ कम से कम 5 प्रतिशत अनुसूचित जाति/जनजाति की आबादी है और महिला साक्षरता दर 10 प्रतिशत से कम है। (4) चयनित मलिन बस्तियों में भी यह परियोजना संचालित है।

10. स्कूल चलो अभियान
School Chalo Abhiyan

वर्ष 2004 में उत्तर प्रदेश के समस्त जिलों में स्कूल चलो अभियान प्रारम्भ किया गया था। इसका प्रमुख उद्देश्य विद्यालय न जाने वाले तथा पढ़ायी तथा विद्यालय से अरुचि रखने वाले बालकों को विद्यालय तक पहुँचाकर शिक्षा की असमानता, ह्रास एवं अवरोधन को समाप्त
करना है।

(11) कस्तूरबा गाँधी बालिका विद्यालय योजना / Kasturaba Gandhi Girls School Plan

इस प्रकार के विद्यालयों को ब्लॉक स्तर पर स्थापित किया गया है। इसमें अनुसूचित जाति, अनुसूचित जनजाति, अल्पसंख्यक एवं पिछड़े वर्ग की छात्राओं को अध्ययन के लिये प्रवेश दिया जाता है। यह विद्यालय विकास खण्डों में स्थापित किये गये हैं जो शैक्षिक दृष्टि से पिछड़े हुए हैं तथा दुर्गम स्थानों से सम्बन्धित हैं। कस्तूरबा गाँधी विद्यालयों का स्वरूप पूर्णत: आवासीय है।

इनमें अध्ययन करने वाली छात्राओं को कक्षा छ: से आठ तक तक शिक्षा प्रदान की जाती है। वर्तमान समय में 750 करतूरबा गाँधी बालिका विद्यालय कार्य कर रहे हैं। इन विद्यालयों में कम से कम 75% सीटें अनुसूचित जाति एवं जनजाति, पिछड़ा वर्ग तथा अल्पसंख्यक वर्गों की बालिकाओं के लिये आरक्षित होंगी बाकी 25% गरीबी रेखा के नीचे जीवनयापन करने वाले परिवार की बालिकाओं के लिये होंगी।

12. पूर्व बाल्यावस्था सुरक्षा (कल्याण) तथा शिक्षा (E.C.C.E.) / Early Childhood Care and Education

“पूर्व बाल्यावस्था सुरक्षा एवं शिक्षा” विभाग छात्रों के सम्पूर्ण विकास को बढ़ाने का कार्य कर उन्हें शिक्षा के प्रति तैयार करता है। इस विभाग (ECCE) के कार्य क्षेत्र निम्नलिखित हैं-

(1) पूर्व बाल्यावस्था सुरक्षा एवं शिक्षा (ECCE) के लिये सभी साधन राष्ट्रीय संसाधन ग्रुप या समूह स्तर पर सशक्त रूप में करना। इसके लिये खोज, प्रशिक्षण, विकास और प्रसार क्रियाओं को समझना।

(2) पूर्व बाल्यावस्था सुरक्षा एवं शिक्षा द्वारा शिक्षा के क्षेत्र में राज्यों के लिये क्षमता का निर्माण करना तथा राज्यों की पूर्व बाल्यकाल तथा सुरक्षा विभाग के अन्तर्गत SCERT तथा DIET के विकास हेतु सहायता प्रदान करना।

(3) पूर्व बाल्यावस्था सुरक्षा एवं शिक्षा द्वारा षट्मासिक डिप्लोमा कोर्स को व्यवहार में लाना जिससे राज्य योजना कार्यक्रम को क्रियान्वित किया जा सके और अध्यापकों,बालकों तथा अभिभावकों के लिये आवश्यक विकास कार्यक्रम का क्रियान्वयन सम्भव हो सके।

(4) राज्य स्तरीय संयोजन समितियों को राज्य की विशिष्ट योजनाओं के लिये तैयार करना, जिससे राज्य शिक्षा विकास के साथ महिला तथा शिशु विकास विभाग में सामंजस्य पैदा हो सके।

(5) पूर्व बाल्यावस्था सुरक्षा एवं शिक्षा का कार्य है शिशु संचार माध्यम, प्रयोगशाला किट के प्रबन्धन तथा अशासकीय स्वैच्छिक संगठन (N. G.O.) तथा अन्य निजी संस्थाओं को कार्य करने हेतु उत्साहित करना जिससे आँगनबाड़ी तथा पूर्व प्राथमिक शिक्षा केन्द्रों का विकास हो सके।

(6) पूर्व बाल्यावस्था सुरक्षा एवं शिक्षा के क्षेत्र में अनुभव के आधार पर शोध अध्ययन को व्यवहार में लाना तथा इसका विकास करना।

13. राष्ट्रीय बाल श्रमिक परियोजना / National Child Labour Project

राष्ट्रीय बाल श्रमिक नीति, 1987 का एक दायित्व है बाल श्रमिकों की अधिकता वाले क्षेत्रों में राष्ट्रीय बाल श्रमिक परियोजनाएँ चलाना, ताकि बाल श्रमिकों जिनकी आयु 9 से 14 वर्ष के बीच है, का पता लगाकर उन्हें मुक्त कराया और फिर बसाया जा सके। बाल श्रमिकों के पुनर्वास पैकेज में अनौपचारिक/औपचारिक शिक्षा, व्यावसायिक प्रशिक्षण, पोषाहार, स्वास्थ्य, देख-रेख तथा स्टाइपेंड आदि सम्मिलित हैं।

अन्य गतिविधियों में बाल श्रमिकों से सम्बद्ध कानूनों को अधिक कठोरता से लागू करना, बाल मजदूरी की बुराई के प्रति लोगों में जागरुकता पैदा करना और कल्याण सुविधाओं को बाल श्रमिकों तक पहुँचाना सम्मिलित है। बाल श्रमिकों से सम्बद्ध नीति के अन्तर्गत 1988 में 12 जिलों में राष्ट्रीय बाल श्रमिक परियोजनाएँ प्रारम्भ की गयी थीं।
इनका उद्देश्य था-खतरनाक और जोखिम वाले धन्धों तथा प्रक्रियाओं से बाल श्रमिकों को बाहर निकालना और उनका पुनर्वास करना। नौवीं योजना-1997-2000 में इन परियोजनाओं की संख्या 100 कर दी गयी थी और अब दसर्वी योजना 2002-07 में भारत के 21 राज्यों के 250 जिलों में इसका विस्तार कर दिया गया है।

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14. मध्याह्न भोजन/पोषाहार वितरण योजना / Mid-Day Meal/Diet Distribution Plan

इस योजना का मुख्य उद्देश्य बच्चों को पुष्टाहार सुलभ कराने के साथ-साथ प्राथमिक शिक्षा की ओर आकर्षित करना है। नामांकन की गति आगे बढ़े और विद्यालय छोड़ देने की गति घटे, यही इस योजना का लक्ष्य है। इस योजना को 15 अगस्त, सन् 1995 को सम्पूर्ण
उत्तर प्रदेश में लागू किया गया। योजना लागू होने के प्रथम चरण में प्रदेश के 38 जिलों के 248 विकास खण्डों को चुना गया। योजना के द्वितीय चरण में 643 नये विकास खण्डों में इस योजना को लागू किया गया है।

इस प्रकार अब यह योजना प्रदेश के 891 विकास खण्डों में चल रही है। यह योजना कक्षा एक से पाँच तक के सभी बच्चों के लिये है। इस योजना के तहत प्रति छात्र जिसकी माह में 80% उपस्थिति हैं, को तीन किलोग्राम खाद्यान्न गेहूँ या चावल प्रति माह की दर से वितरित किया जा रहा था। आर्थिक दृष्टि से कमजोर परिवार के छात्रों को पोषाहार तथा छात्रवृत्ति देकर शिक्षा के सार्वजनीकरण के लक्ष्य को पूरा करना है। आर्थिक पिछड़ेपन के कारण से छात्र विद्यालय नहीं जा पाते तथा शिक्षा से दूर भागते हैं। इस योजना के माध्यम से छात्रों में शिक्षा और विद्यालय के प्रति आकर्षण पैदा किया गया है।

माननीय सर्वोच्च न्यायालय द्वारा दिनांक 28 नवम्बर 2001 को दिये गये निर्देश के क्रम में प्रदेश में दिनांक 1 सितम्बर 2004 से पका पकाया भोजन प्राथमिक विद्यालयों में उपलब्ध कराये जाने की योजना प्रारम्भ कर दी गयी है। मिड डे मील योजना के तहत खिचड़ी खाने वाले परिषदीय स्कूलों के बच्चे अब दूध पीयेंगे। बच्चों को कुपोषण से निजात दिलाने और उनकी सेहत सुधारने के लिये बच्चों को दूध और मौसमी फल बाँटने की यह व्यवस्था भी सप्ताह में एक दिन की जायेगी।

15. छात्रवृत्ति वितरण योजना / Scholarship Distribution Plan

प्राथमिक, माध्यमिक और उच्च शिक्षा विभाग भारतीय विद्यार्थियों की स्कूली और उच्च शिक्षा के लिये छात्रवृत्तियों/शिक्षावृत्तियों का वित्त पोषण करता हैं । ये योजनाएँ राज्यों/केन्द्रशासित क्षेत्रों की सरकारों के माध्यम से संचालित की जाती है। छात्रवृत्ति योजनाओं का प्रारूप
निम्नलिखित प्रकार है-

(1) पूर्वदशम अनुसूचित जाति छात्रवृत्ति योजना-प्रदेश सरकार द्वारा कक्षा 1 से 8 तक अध्ययनरत समस्त अनुसूचित जाति/जनजाति के छात्र-छात्राओं को छात्रवृत्ति प्रदान की जाती है। कक्षा 1 से 8 तक के विद्यार्थियों को देय छात्रवृत्ति के लिये पात्रता की कोई आय
सीमा प्रतिबन्धित नहीं है।

(2) पूर्वदशम सामान्य वर्ग छात्रवृत्ति योजना-गरीबी की रेखा के नीचे जीवनयापन करने वाले सामान्य वर्ग के अभिभावकों, जिनकी वार्षिक आय प्रति परिवार रु. 19884.00 (ग्रामीण क्षेत्र) तथा रु. 25546.00 (शहरी क्षेत्र) हो, को उपर्युक्त दर पर कक्षा 1 से 10 तक के छात्रों को छात्रवृत्ति प्रदान की जाती है।

अन्य प्रोत्साहन योजनाएँ अग्रलिखित प्रकार हैं-

1. निःशुल्क पाठ्य-पुस्तकों की व्यवस्था-छात्रों के लिये निःशुल्क पाठ्य पुस्तकों की व्यवस्था करना सरकार द्वारा संचालित महत्त्वपूर्ण प्रोत्साहन योजना है।

2. शाला गणवेश (School Dress)-विद्यालय अनुशासन के लिये आवश्यक तत्त्व है विद्यालय के सभी छात्रों को एक-सा गणवेश। सरकार द्वारा शालाओं में नि:शुल्क गणवेश की प्रोत्साहन योजना चलायी गयी है।

3. बालकों हेतु फर्नीचर – प्राथमिक तथा माध्यमिक विद्यालयों में शासन द्वारा फर्नीचर की भी व्यवस्था की जाती है। उपयुक्त फर्नीचर के होने से छात्रों का मन अध्ययन में लगता है तथा इससे विद्यालय में आने वाले छात्रों की संख्या में कमी नहीं आ पाती और छात्र संख्या में वृद्धि होने लगती है।


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