हिंदी भाषा पर निबंध हिंदी में | हिंदी दिवस पर निबंध हिंदी में | essay on hindi diwas | essay on hindi language

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Contents

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इस निबंध के अन्य शीर्षक / नाम

(1) राष्ट्रभाषा पर निबंध हिंदी में
(2) राष्ट्रभाषा हिंदी पर निबंध हिंदी में
(3) राष्ट्रभाषा का महत्व पर निबंध
(4) शिक्षा का माध्यम – हिंदी पर निबंध
(5) राष्ट्रभाषा हिंदी का भविष्य
(6) राष्ट्रभाषा के रूप में हिंदी के विकास में बाधाएं पर निबंध

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पहले जान लेते है हिंदी भाषा पर निबंध हिंदी में,हिंदी दिवस पर निबंध हिंदी में,essay on hindi diwas,essay on hindi language पर निबंध की रूपरेखा ।

निबंध की रूपरेखा

(1) प्रस्तावना
(2) राष्ट्रभाषा हिंदी
(3) राष्ट्रभाषा के लिए आवश्यक विशेषताएं
(4) हिंदी में राष्ट्रभाषा की योग्यता
(5) राष्ट्रभाषा विषयक विवाद
(6) विकास के उपाय
(7) उपसंहार


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प्रस्तावना

प्रत्येक राष्ट्र में एक ऐसी भाषा होती है जो राष्ट्र के सभी व्यापारों के लिए सर्वमान्य हो। इसी भाषा के द्वारा राष्ट्र के सब कार्य- व्यवहार चलते हैं । सरकारी दफ्तरों, कचहरियों आदि में इसी भाषा का प्रयोग होता है।

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इसी भाषा को राष्ट्र की राष्ट्रभाषा कहा जाता है। वास्तव में राष्ट्रभाषा ही राष्ट्र का प्राण होती है।

इसी के आधार पर देश का उत्थान व पतन निर्भर करता है। इस भाषा में राष्ट्र की भावना व्यक्त होती है। इसी के द्वारा राष्ट्र के नागरिकों में ज्ञान का संचार होता है।

अत: राष्ट्रभाषा का चृनाव करते समय बड़ी सावधानी की आवश्यकता होती है। इसके उत्थान और विकास के लिए राष्ट्र को उचित व्यवस्था करनी पड़ती है।




राष्ट्रभाषा हिन्दी

सन् 1947 में स्वतन्त्र ता-प्राप्ति के बाद संविधान का निर्माण हुआ। हमारे संविधान निर्माताओं के सामने एक विचारणीय प्रश्न था कि किस भारतीय भाषा को राष्ट्रभाषा के पद पर सुशोभित किया जाये।

भारत एक विशाल देश है। यहाँ के भिन्न-भिन्न प्रान्तों में भिन्न-भिन्न भाषाएँ बोली जाती हैं। उनमें से किसको यह महत्त्व दिया जाये ? यह एक भारी समस्या थी।

विचारवान संविधान निर्माताओं ने इस विषय में गम्भीर विचार किया और वे इस निर्णय पर पहुँचे कि हिन्दी ही एक ऐसी भाषा है जो सर्वथा राष्ट्रभाषा के महत्त्वपूर्ण पद पर अलंकृत होने की क्षमता रखती है।

अब प्रश्न यह होता है कि हिन्दी ही को क्यों यह महत्त्वपूर्ण पद दिया जाये, भारत में अन्य भाषाएँ भी बोली जाती हैं, यहाँ यह विचार कर लेना आवश्यक है कि राष्ट्रभाषा होने के लिए किसी भाषा में किन-किन गुणों का होना आवश्यक है।






राष्ट्रभाषा के लिए आवश्यक विशेषताएँ

किसी भाषा को राष्ट्रभाषा बनने के लिए उसमें निम्नांकित
विशेषताओं का होना आवश्यक है-

(1) वह भाषा देश की सबसे अधिक जनता की बोलचाल की भाषा हो।


(2) उस भाषा में ऐसी योग्यता हो कि वह भन्य प्रान्तीय भाषाओं को भी निकट ला सके तथा सभी प्रान्तोंके लोग उसे आसानी से सीख सकें।


(3)उस भाषा के पास एक विशाल तथा उन्नत साहित्य हो।

(4) वह भाषा देश के नागरिकों के कर्तव्य, आचार-व्यवहार तथा संस्कृति को व्यक्त करती हो।

(5)  उस भाषा के पास एक विशाल शब्दको ष हो जिससे बह दूसरी भाषाओं के ज्ञान विज्ञान तथा विविध विषयों को सरलता से व्यक्त कर सके।






हिंदी में राष्ट्रभाषा की योग्यता

इनबातों को ध्यान में रखकर हमारे संविधान निर्माताओं ने यह
निर्णय किया कि राष्ट्रभाषा का गौरवपूर्ण पद हिन्दी को ही दिया जाये क्योंकि हिन्दी में उपर्युक्त सभी गुण पाये जाते हैं ।

यह देश के सबसे अधिक विस्तृत भूभाग में बोली जाती है। यह उत्तर प्रदेश, मध्य प्रदेश,विहार, हरियाणा, दिल्ली तथा राजस्थान, कई प्रान्तों की बोलचाल की भाषा है। इस भाषा के बोलने वालों की संख्या देश में सबसे अधिक है।

दूसरी बात यह है कि हिन्दी भारत की अन्य प्रान्तीय भाषाओं को निकट लाने में समर्थ है।

हिन्दी के पास एक विस्तृत तथा समुन्नत साहित्य है और संस्कृत की उत्तराधिकारिणी होने के कारण यह भारतीय धर्म, संस्कृति तथा आचार-व्यवहार आदि को अभिव्यक्त करने में समर्थ हो सकती है।

इसके अतिरिक्त हिन्दी के पास एक विशाल शब्दकोष है । दूसरी प्रात्तीय भाषाओं के शब्दों को भी वह अपने में समा सकती है।

सबसे महत्त्वपूर्ण बात यह है कि हिन्दी का सम्बन्ध संस्कृत से है और संस्कृत शब्दकोष संसार की सब भाषाओं से अधिक विस्तृत तथा समृद्ध है; अत: हिन्दी संस्कृत से जितने चाहे शब्द ग्रहण कर सकती है।

अन्य किसी भी भारतीय भाषा में ये सब गुण इतनी मात्रा में तथा एक साथ नहीं पाये जाते हैं; अत: हिन्दी को ही भारत की राष्ट्रभाषा होने के लिए सर्वथा उपयुक्त पाया गया।

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एक बात और है-वह यह कि हिन्दी में देवनागरी लिपि का प्रयोग किया जाता है और देवनागरी लिपि सबसे अधिक वैज्ञानिक तथा सरल है; अतः संविधान सभा ने देवनागरी लिपि में लिखित हिन्दी को राष्ट्भाषा के रूप में स्वीकार किया।




राष्ट्रभाषा विषयक विवाद

हिन्दी के राष्ट्रभाषा होने पर भारी विवाद उपस्थित हुआ है। पश्चिम से प्रभावित तथा अँग्रेजी के भक्त लोगों का कहना था कि हिन्दी के राष्ट्रभाषा होने पर भिन्न-भिन्न भाषा बोलने वाले लोगों में झगड़ा और विवाद होगा; अतः भारत की एकता को बनाये रखने के लिए अंग्रेजी का राष्ट्रभाषा रहना बहुत आवश्यक है।

इन लोगों का यह कहना था कि हिन्दी में वैज्ञानिक साहित्य का अभाव है और आज के वैज्ञानिक युग में वह राष्ट्रभाषा के लिए उपयुक्त नहीं हो सकती है।

उन लोगों की यह भी युक्ति थी कि हिन्दी के पास पारिभाषिक शब्दों का अभाव है और वह पूर्ण विकसित नहीं है।

यद्यपि यह उन लोगों निरा भ्रम था क्योंकि हिन्दी के राष्ट्रभाषा होने पर विभिन्न भाषा बोलने वाले भिन्न-भिन्न प्रान्तो के लोगों में झगड़े विवाद का कोई कारण नहीं था।

सभी प्रात्तों के लोग हिन्दी से प्रेम करते हैं । अन्य भाषा-भाषी प्रान्तों में भी हिन्दी के अच्छे विद्वान् तथा हिन्दी-प्रेमी लोग हुए हैं ।

गाडगिल, काका कालेलकर तथा के०एम० मुंशी आदि का नाम उदाहरण के लिए प्रस्तुत किया जा सकता है। वैज्ञानिक साहित्य का हिन्दी में अनुवाद हो सकता है।

पारिभाषिक शब्दों की कमी तथा अविकास का दोष देना तो केवल अपनी अज्ञानता ही का परिचय देना है। हिन्दी के पास एक ऐसा विकसित और उन्नत साहित्य है जिसकी संसार की किसी भी अन्य उन्नत भाव से तुलना की जा सकती है।

पारिभाषिक-शब्द तो उसमें संस्कृत के आधार पर बहुत आसानी से तैयार किये जा सकते हैं । रही पूर्ण विकास की बात, तो उसके लिए हमारी निम्नांकित सम्मति है।





हिंदी के विकास के उपाय

हिन्दी के विकास और उसे राष्ट्रभाषा के पद पर प्रतिष्ठित करने के लिए निम्न उपाय उपयुक्त हो सकते हैं-

(1) केन्द्रीय सरकार के कार्यालयों में नियुक्ति करने से पूर्व हिन्दी का ज्ञान अनिवार्य कर दिया जाये।

(2)  जिले में अदालतों की सारी कार्यवाही हिन्दी या प्रान्तीय भाषाओं में ही की जाये और धीरे धीरे कुछ समय पश्चात् उच्च और सर्वोच्च न्यायालयों में भी हिन्दी का प्रवेश हो।

(3) उत्तर प्रदेश, मध्य प्रदेश, राजस्थान तथा दिल्ली आदि में परस्पर राजकीय पत्र व्यवहार हिन्दी में ही प्रारम्भ होने चाहिए।

(4)  महाविद्यालयो में शिक्षा का माध्यम हिन्दी कर देना चाहिए।

(5) केन्द्र के सब सरकारी दफ्तरों की नाम-पट्टिकाएँ हिन्दी में लिखी जानी चाहिए-जहाँ अनिवार्य आवश्यकता हो, वहाँ कोष्ठक में अंग्रेजी नाम देने में कोई हानि नहीं है।

(6) हिन्दी को अधिकाधिक सुगम और प्रचलित करने के लिए यह आवश्यक है कि शब्दों के पारिभाषिक पर्यायों (रुपों) का शीघ्र ही निश्चय कर लेना चाहिए।

(7) क्षेत्रीय भाषाओं को एक-दूसरे के निकट लाने के लिए यह आवश्यक है कि सब क्षेत्रीय भाषाओं की लिपि देवनागरी हो।

(8) सबसे अधिक महत्त्वपूर्ण कार्य हिन्दी-भाषी और हिन्दी-प्रेमियों का है। जब तक वे हिन्दी को अपने दैनिक जीवन में यथोचित स्थान नहीं देंगे, तब तक वे हिन्दी को राष्ट्रभाषा बना देने का दाबा ही नही कर
सकते।





उपसंहार

आज हम स्वतन्त्र देश के निवासी हैं परन्तु हम बिदेशीपन के इस प्रवाह में अधिक दिन तक नहीं बहेगे।

अब समय आ गया है और भारत ने अपने आत्मगौरव का ध्यान करना शुरू कर दिया है। भाषा की दृष्टि से भी हमें इस विदेशीपन को दूर करना होगा।

हिन्दी हमारी अपनी मातृभाषा है। उसे पूर्ण अधिकार के साथ राष्ट्रभाषा पद पर आरूढ़ होना हो चाहिए और वह होकर रहेगी।

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वह समय दूर नहीं है कि हिन्दी से भारतीय ही नही, विदेशी भी प्रेम करंगे और इस अपनी राष्ट्रभाषा हिन्दी के माध्यम से विश्व को विश्व- शान्ति का उपदेश देगे।

राष्ट्रकवि मैथिलीशरण के शब्दों में राष्ट्र की हार्दिक कामना इस प्रकार व्यक्त हई है-

“मानस-भवन में आर्यजन जिसकी उतारे आरती।
भगवान् भारतवर्ष में गूँजे हमारी भारती ॥
हो भव्य भावोन्मेषिनी वह भारती हे सुरपते।
सीतापते ! सीतापते ! गीता मते गीता मते ।॥ .

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