दोस्तों आज आपको मनोविज्ञान का सबसे महत्वपूर्ण पाठ ध्यान या अवधान का अर्थ,परिभाषा,प्रकार,ध्यान को प्रभावित करने वाले कारक आदि की विस्तृत जानकारी प्रदान करेंगे।
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ध्यान या अवधान का अर्थ,परिभाषा,प्रकार,ध्यान को प्रभावित करने वाले कारक
ध्यान की अवधारणा || meaning of meditation
मन के द्वारा व्यक्ति अनेक प्रकार के मोह एवं सांसारिक बंधनों में पड़ जाता है। मन की गति का मापन संभव नहीं होता है।
हमारे मनोवैज्ञानिकों ने मन को बुद्धि एवं मस्तिष्क आदि नामों से पुकारा है। मन का स्वभाव है कि वह एक स्थान पर स्थिर नहीं होता परिवर्तित एवं चलायमान अवस्था में रहता है।
मन के इस विकृत एवं परिवर्तन स्वरूप को एक निश्चित बिंदु पर केंद्रित करने के लिए ध्यान की अवधारणा का उदय हुआ।
ध्यान के माध्यम से हमारे पूर्वजों एवं मुनियों ने अनेक प्रकार की सिद्धियों को प्राप्त किया। वर्तमान समय में भी योग के साथ ध्यान की चर्चा आवश्यक रूप से की जाती है।
ध्यान के अभाव में योग की सार्थकता की कल्पना भी नहीं की जा सकती है।
ध्यान/अवधान का अर्थ || meaning of meditation
ध्यान के अंतर्गत मुख्य रूप से मन को नियंत्रित किया जाता है जिससे कि व्यक्ति के आध्यात्मिक विकास में मन चंचलता से बाधा उत्पन्न ना हो।
मन की एकाग्रता एवं मन की स्थिरता के लिए ध्यान किया जाता है।
ध्यान में अनेक प्रकार के आसनों एवं क्रियाओं के द्वारा व्यक्ति को मानसिक एवं शारीरिक रूप से स्वस्थ बनाया जाता है।ध्यान इस संसार में प्रत्येक व्यक्ति के लिए आवश्यक है।
ध्यान की परिभाषाएं || definition of meditation
प्रोफेसर एस के दुबे के अनुसार
“ध्यान एक ऐसी मानसिक प्रक्रिया है जिसमें आध्यात्मिक एवं भौतिक विकास हेतु मन की स्थिरता एवं एकाग्रता का विकास किया जाता है जिससे व्यक्ति मानसिक एवं शारीरिक रूप से स्वस्थ दृष्टिगोचर होता है।”
ध्यान की विशेषतायें || characteristics of meditation
(1) ध्यान में मन को एकाग्र एवं स्थिर किया जाता है।
(2) ध्यान में मानसिक शक्तियों के विकास हेतु विभिन्न क्रियाएं की जाती हैं जो योग से संबंधित होती हैं।
(3) ध्यान में मनोविकार, क्रोध, ईर्ष्या एवं दोष आदि को दूर करने का प्रयास किया जाता है।
(4) ध्यान में व्यक्ति बिंदु विशेष एवं विचार विशेष पर मनन एवं चिंतन करता है।
(5) ध्यान मन को सांसारिकता से पृथक कर बिंदु विशेष पर केंद्रित करता है।
ध्यान के प्रकार || types of meditation
ध्यान की विधियां ही ध्यान के प्रकार मानी जाती हैं आता ध्यान के निम्नलिखित प्रकार है
(1) आसन
इसके माध्यम से व्यक्ति ध्यान की प्रक्रिया को संपन्न करता है।अपनी आवश्यकता के अनुसार सिद्धासन,सुखासन एवं पद्मासन लगाकर किसी विशेष बिंदु पर ध्यान केंद्रित करते हुए मन को स्थिर किया जाता है।
(2) प्राणायाम
इसमें मन को श्वास पर केंद्रित करके प्रत्येक इंद्रिय अपने विषय से पृथक हो जाती है।
व्यक्ति अनुभव करता है कि आंख देख नहीं रही है, नाक सूंघ नहीं रही है, कान सुन नहीं रहे हैं। इस प्रकार व्यक्ति ध्यान के द्वारा परिपक्व अवस्था को प्राप्त कर लेता है।
(3) विचार दर्शन
इसमें व्यक्ति एक दृष्टा अर्थात देखने वाले की भांति मन के विचारों को देखता रहता है।वह सोचने का कार्य बंद कर देता है।तथा मन की स्थिति का अवलोकन एवं मूल्यांकन करता है।
(4) विचार सृजन
इसमें व्यक्ति एक विचार पर 5 से 7 सेकंड तक ध्यान केंद्रित करता है। अनेक विचारों पर ध्यान केंद्रित करने के बाद मन निर्विचार रह जाता है। तथा आनंद का अनुभव करता हुआ मन विश्राम की अवस्था में पहुंच जाता है।
(5) विचार विसर्जन
इस विधि में मन में आने वाले प्रत्येक विचार को हटा दिया जाता है।
यह क्रम बार बार करने से मन विचार शून्य स्थिति में आ जाता है। उस अवस्था में मन को परम शांति मिलती है।तथा मन को नवीन ऊर्जा प्राप्त होती हैं।
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ध्यान को प्रभावित करने वाले कारक || factors affecting to mediation
इसको प्रभावित करने वाले कारकों को दो भागों में बाँटा गया है-
अवधान या ध्यान को प्रभावित करने वाले आंतरिक कारक(internal factor effecting to meditation)
(1) आवश्यकता (need)
ध्यान और आवश्यकता का घनिष्ठ संबंध है। जब हमें भूख प्यास लगती है तो शरीर में आंतरिक परिवर्तन होने लगते हैं। यह परिवर्तन हमारे ध्यान को और सख्त आपूर्ति उद्दीपक पर केंद्रित कर देते हैं।
(2) रुचि (interest)
पति तो मनोवैज्ञानिक मैडूगल के विचार से- रुचि किया हुआ ध्यान और ध्यान करना ही रुचि है। व्यक्ति का ध्यान रुचि के आधार पर स्थापित होता है।
जैसे एक व्यक्ति की रुचि रेडियो पर गाने सुनने की है तो आप गाने पर ध्यान अधिक लगाएगा।
(3) लक्ष्य (goal)
चयन किए गए लक्ष्य भी ध्यान को प्रभावित करते हैं। यदि छात्र को पढ़कर कुछ बनना है तो वह पढ़ाई में ध्यान लगाएगा।
(4) सूझ या समझ (understanding)
जो व्यक्ति अपनी विशिष्टता किसी क्षेत्र में प्रकट कर चुके हैं। उस उद्दीपक के मिलते ही का ध्यान उस ओर चला जाता है।
जैसे कि कलाकार का कलावृत्ति की ओर ,संगीतकार का संगीत की ओर।
(5) आदत (habit)
जिन कार्यों की आदत विकसित हो जाती है उन पर हमारा ध्यान स्वतः ही केंद्रित हो जाता है।
जैसे सुबह की चाय अखबार और शाम का खेलना।
(6) मानसिक दशा (mental condition)
ध्यान के केंद्रीकरण में मानसिक दशा अपना प्रमुख प्रभाव डालती है। हमारा मन कभी प्रसन्न और कभी अप्रसन्न रहता है।
जैसे हम कभी-कभी पत्नी की अत्यधिक प्रशंसा भी करते हैं और कभी-कभी उसके कार्य में दोष भी निकालते हैं।
(7) पूर्व ज्ञान (previous knowledge)
थार्नडाइक के अनुसार- पाठ के प्रति ध्यान को लगाने के लिए पूर्व ज्ञान को जागृत करना पड़ता है। इस प्रकार पूर्व ज्ञान सीखने में सहायता देता है और ध्यान को केंद्रित करता है।
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अवधान / ध्यान को प्रभावित करने वाले बाह्य कारक(external factor affecting to meditation)
(1) उद्दीपक की प्रकृति (nature of the stimulus)
ध्यान का केंद्रीकरण उद्दीपक की प्रकृति पर निर्भर करता है।
जैसे रंगीन एवं भड़कीले पोशाकें पहने लोग ध्यान ज्यादा आकर्षित करते हैं।
(2) उद्दीपक के उद्देश्य (aims of the stimulus)
स्थिर वस्तु की अपेक्षा गतिशील वस्तु हमारे ध्यान को अधिक आकर्षित करती है।
जैसे मेज पर रखा हुआ खिलौना इतना ध्यान आकर्षित नहीं करता जितना कि चलता हुआ खिलौना।
(3) उद्दीपक की अवधि (duration of the stimulus)
जो वस्तु हमारे सामने अधिक समय तक रहती है या बार बार आती है उस पर हमारा ध्यान केंद्रित होता है। कम अवधि वाली वस्तुओं को हम शीघ्रता से भूल जाते हैं।
यही कारण है कि बच्चों के सामने पाठ को बार-बार पढ़ने के लिए कहा जाता है।
(4) उद्दीपक की स्थिति (state of the stimulus)
उद्दीपक की स्थिति में समानता रहने पर हमारा ध्यान केंद्रित नहीं होता लेकिन जब स्थिति में असमानता उत्पन्न हो जाती है तो हमारा ध्यान अचानक ही चला जाता है।
जैसे हम प्रतिदिन सही स्थिति में खड़े मकान को देखते थे लेकिन आज उसकी दीवार गिर गई तो हमारा ध्यान स्वता ही उस पर चला गया।
(5) उद्दीपक की तीव्रता (interity of the stimulus)
उद्दीपक की तीव्रता हमारे ध्यान को आकर्षित करने में सफल होती है। जैसे कि तेज आवाज, तीव्र रंग, तीव्र गंध आदि हमारे ध्यान को अचानक आकर्षित कर लेती।
(6) विषमता (contrast)
जब समता में अचानक विषमता के दर्शन होने लगते हैं तो हमारा ध्यान स्वतः ही चला जाता है।
जैसे भले व्यक्तियों के बीच दुष्ट प्रकृति वाला व्यक्ति बैठा हो तो हमारा आकर्षण का केंद्र बन जाता।
(7) नवीनता (novelty)
साहचर्य का नियम की नवीन वस्तु या अनुभव हमारे ध्यान को आकर्षित करते हैं।
जैसे– कक्षा के एक छात्र निम्न स्तर के कपड़े पहन कर आता था।एक दिन अच्छा सूट पहनकर आया तो सभी की दृष्टि उस पर चली जाती है।
(8) उद्दीपक का आकार (size of the stimulus)
उद्दीपक का आकार हमारे ध्यान को खींचता है। अखबार के बड़े-बड़े अक्षर,चौराहों के विज्ञापन,एवं बड़े बड़े मकान हमारे ध्यान को आकर्षित करते हैं।
(9) पुनरावृत्ति (repetition)
जो वस्तुएं हमारे सामने बार बार आती है उन पर हमारा ध्यान स्वतः ही चला जाता है।
जैसे – रेडियो और टेलीविजन में वही विज्ञापन बार बार आने पर हमारा ध्यान चला जाता है।
(10) रहस्यात्मकता (secracy)
रहस्य एवं रोमांच से भरे पर्यावरण में स्थित वस्तु हमारे ध्यान को आकर्षित करती है।
जैसे दो महिलाएं किसी को देखकर धीरे-धीरे वार्तालाप करें तो उस व्यक्ति का ध्यान स्वता ही उनकी ओर आकर्षित हो जाता है।
बच्चों का ध्यान केंद्रित करने के उपाय
(1) बालक को समझना
(2) शिक्षक की तैयारी
(3) रुचि को जागृत करना
(4) सहायक सामग्री का प्रयोग
(5) उपयुक्त शिक्षण की विधि
(6) अध्यापक की भूमिका
(7) प्रेरक
(8) अधिगम में स्थानांतरण
ध्यान की शैक्षिक उपयोगिता || ध्यान का शिक्षा में महत्व || ध्यान का कक्षा शिक्षण में महत्व
(1) मानसिक विकास में सहायक
(2) मानसिक विकारों को दूर करने में सहायक
(3) स्मृति में वृद्धि एवं संवेगात्मक परिपक्वता की प्राप्ति
(4) प्रेम एवं सहयोग की भावना का विकास
(5) इन्द्रिय सुख की प्राप्ति
(6) शैक्षिक कार्य के लिए ऊर्जा की प्राप्ति
ध्यान लगाते समय आवश्यक बातें || ध्यान सम्बंधी तथ्य
(1) इसके लिए एकांत एवं हवादार स्थान होना चाहिए जिससे मन स्थिर हो सके।
(2) नियमित रूप से एक ही स्थान पर ध्यान लगाना चाहिए।
(3) ध्यान का सर्वोत्तम समय ब्रह्म मुहूर्त माना जाता है।
(4) रात को सोने से पहले भी ध्यान किया जा सकता है। इस समय हाथ,मुंह एवं पैर धोकर ध्यान करना चाहिए।
(5) ध्यान में नियमितता परम आवश्यक है इसमें एक दिन का भी अवकाश नहीं होना चाहिए।
(6) ध्यान की प्रक्रिया के लिए सिद्धासन, पद्मासन एवं सुखासन में से किसी एक का चयन आवश्यकतानुसार कर लेना चाहिए।
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प्रमुख शिक्षण विधियां एवं प्रतिपादक
बाल विकास को प्रभावित करने वाले कारक
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