अधिगम के पठार || सीखने के पठार || adhigam ke pathar in hindi

दोस्तों आज हम आपको अधिगम के पठार टॉपिक को विधिवत पढ़ाएंगे।

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अधिगम के पठार || सीखने के पठार

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अधिगम के पठार का अर्थ || अधिगम पठार का मतलब

जब हम कोई नई बात सीखते हैं तब हम सीखने में लगातार उन्नति नहीं करते है।

हमारी उन्नति कभी कम और कभी अधिक होती है।

कुछ समय बाद ऐसा अवसर भी आता है जब हमारी उन्नति बिल्कुल रुक जाती है।

ऐसा अनेक कारणों से हो सकता है।

जैसे-शारीरिक क्षमता,मानसिक क्षमता या किसी प्रकार की थकान, सिरदर्द या ज्ञानअवरोध आदि।

“सीखने की इस प्रकार की अवस्था को जिनमें सीखने की उन्नति रुक जाती है ,अधिगम वक्र ऊपर चढ़ने के स्थान पर समांतर चलने लगता है और अधिक देर तक कोई प्रगति नहीं दिखाई पड़ती अधिगम का पठार कहते हैं।”

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अधिगम के पठार की परिभाषाएं

रैक्स एवं नाइट के अनुसार

“सीखने में पठार तब आते हैं जब व्यक्ति सीखने की एक अवस्था पर पहुंचकर दूसरी अवस्था में प्रवेश करता है।”

रॉस के अनुसार

“पठार सीखने की प्रक्रिया की प्रमुख विशेषता है, जो इस अवधि को सूचित करते हैं जब सीखने की क्रिया में कोई उन्नति नहीं होती है।”

स्किनर के अनुसार

“पठार क्षैतिज प्रसार है जिससे सीखने में उन्नति का प्रत्यक्ष बोध नहीं होता है।”

अधिगम पठार का समय

सीखने में पठार कब एवं कितने समय के लिए आएगा यह निश्चित नहीं रहता है।

एक व्यक्ति शीघ्र सीख सकता है दूसरे को विलंब हो सकता है।
सीखने की प्रक्रिया में पठारों का आना अनिवार्य है।

पर यह व्यक्ति की प्रकृति पर निर्भर करता है कि वह पठारो में कितनी देर में पहुंचता है और पठार कितनी देर तक रहते हैं।

सोरेनसन के अनुसार ―” सीखने की अवधि में पठार साधारणतया कुछ दिन कुछ सप्ताह या कुछ महीने तक रहते हैं।”

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अधिगम के पठार के कारण

पठार बनने के प्रमुख कारण निम्नलिखित हैं

(1) मनोशारीरिक सीमा

पठार इसलिए आता है। क्योंकि कुछ समय पढ़ने के बाद आपका सिर दर्द या थकान प्रारंभ हो जाती है।

तो इस प्रकार मनो शारीरिक सीमा के बाद पठार आ जाते हैं।

(2) व्यवधान

अधिगम करते समय यदि बीच में किसी प्रकार के व्यवधान जैसे शोरगुल आदि होने लगते हैं।

तो अधिगम में पठार आ जाते है।

(3) प्रेरणा का भाव

कार्य को सीखने में यदि प्रेरणा का भाव नहीं है।

अर्थात आप उस कार के प्रति प्रेरित नहीं है। तो पठार बनना शुरू हो जाते है।

(4) नकारात्मक कारक

रुचि का अभाव,ज्ञान का अभाव,निराशा,थकान,अलस्यता,ध्यान भंग होना,पारिवारिक कठिनाइयां आदि।

(5) कार्य की जटिलता

किसी कार्य की जटिलता भी अधिगम में पठार उत्पन्न कर सकती है।

अर्थात यदि कार्य कठिन होगा तो उसे कुछ समय बाद सीखना सम्भव नही हो पाता है।

जिससे अधिगम में पठार आ जाता है।

(6) पुरानी यादों का नई आदतों से संघर्ष

इसका मतलब है कि यदि कोई कार्य को छात्र अपनी पुरानी आदत से करता है।

और बाद में उसे किसी नई आदत को अपनाना पड़ता है। तो उसे कठिनाइयों का सामना करना पड़ता है

जैसे कि यदि छात्र बाएं हाथ से लिखता है और उसे दाएं हाथ से लिखने को कहा जाता है।

तो वह जल्दी या तेजी से नहीं लिख पाता जिससे अधिगम में पठार बन जाते है।

(7) जटिल कार्य के केवल एक पक्ष पर ध्यान

जैसे सितार बजाने के लिए सितार को अच्छे से पकड़ना तथा उंगलियों को तार पर रखकर संभालने पर ही सितार बजेगा।

यदि आप केवल अंगुलिया तार पर रखते हैं। और सितार संभालना या पकड़ना नहीं सीखा तो सितार बजाने में तुरंत पठार आ जाएगा।

(8) सीखने के अनुचित विधि

उंगुलियों की सहायता से गिनती गिनना,लिखने में कलम को कसकर पकड़ना,शब्द को रुककर पढ़ना आदि अनुचित विधि है। इन विधि को अपनाने पर अधिगम में पठार बन जाते है।

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(9) अभ्यास का भाव

थार्नडाइक ने सीखने में सबसे महत्वपूर्ण स्थान अभ्यास को दिया है।

यदि अभ्यास गलत तरीके से हुआ तो सीखने में पठार शीघ्र आ जाएगा।

(10) उपयुक्तता ना होना

यदि किसी कार्य की उपयोगिता ही नहीं है तो सीखने में रुचि नहीं आती जिससे सीखने में पठार आ जाते हैं।

(11) आवश्यकता के अनुरूप ना होना

यदि कोई कार्य आवश्यकता के अनुरूप नहीं है। तो उसे करने में रुचि और ध्यान नहीं लग पाता जिससे सीखने में पठार बनना शुरू हो जाते है।

(12) एक ही कार्य को लंबे समय तक करते रहना

यदि एक ही कार्य को बहुत अधिक समय तक किया जाता है।

तो कुछ समय बाद उस कार्य में वो रुचि और ध्यान नही लग पाता जिससे अधिगम पठार बनना शुरू हो जाते है।

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अधिगम के पठार का निराकरण || अधिगम पठार का निवारण या उपाय

सोरेनसन के अनुसार ― ‘शायद ऐसी कोई विधि नहीं है जिससे पठार को बिल्कुल समाप्त कर दिया जाए पर उनकी संख्या और अवधि को कम किया जा सकता है।”

पठार को दूर करने के लिए शिक्षक निम्नलिखित विधियों को अपना सकता है

(1) सीखने के समय का वितरण

यदि किसी कार्य को करना है तो उस कार्य को हम छोटे-छोटे समय में बांट दें।

जिससे अधिगमकर्ता का उस कार्य में मन लगे जिससे कि अधिगम में पठार उत्पन्न ना हो।

(2) उत्साह के साथ अधिगम

हमें किसी कार्य को करने में उत्साह की आवश्यकता होती है।

क्योंकि उत्साह के साथ करने में कार्य बहुत ही सरल लगता है और जल्दी हो जाता है।

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इस प्रकार उत्साह के साथ सीखने पर पठार नहीं बनते।

(3) पाठ सामग्री का संगठन

सीखने में हमें पाठ सामग्री का संगठन कर लेना चाहिए। अर्थात हमें जिस पाठ को पढ़ना है।

उससे संबंधित सारी किताबें नोट्स को एक साथ रख लेना चाहिए।

जिससे कि सीखने में बाधा ना आए और अधिगम पठार ना बने।

(4) शिक्षण विधि में परिवर्तन

बीच-बीच में शिक्षण विधि में परिवर्तन करना चाहिए ताकि बच्चों को अधिगम उबाऊ ना लगे।

शिक्षा विधि में परिवर्तन करते रहने से अधिगम में पठार नहीं बनते।

(5) प्रेरणा तथा उद्दीपन

यदि किसी कार्य को करने में प्रेरणा मिल जाती है।

या किसी प्रकार का उद्दीपन जैसे कि कोई लक्ष्य की प्राप्ति आदि होता है तो उस कार्य को करने में पठार नहीं आते है।

(6) अच्छी आदतें

छात्र कुछ अच्छी आदतें जैसे की पढ़ी हुई चीज को दोहराना।

नियमित और योजनाबद्ध रूप से तैयारी करना, थकने पर कार्य ना करना।

बीच-बीच आराम करना, पढ़ाई के नोट्स आदि को नियमित बनाना, एकाग्र चित्त होकर पढ़ना।

आदि आदतें अपनाने पर पठार उत्पन्न नहीं होते क्योंकि इनसे अधिगम बहुत ही सुचारू रूप और प्रभावी रूप से होता है।

(7) विश्राम

सीखने में बीच-बीच में विश्राम करना चाहिए। जिससे हमारे मस्तिष्क को आराम मिले ।

और पुनः कार्य में ध्यान लगे इस प्रकार विश्राम करने से अधिगम में पठार नहीं आते है।

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